Hindi Page 800

ਕਾਇਆ ਨਗਰ ਮਹਿ ਰਾਮ ਰਸੁ ਊਤਮੁ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਉਪਦੇਸੁ ਜਨ ਕਰਹੁ ॥
काइआ नगर महि राम रसु ऊतमु किउ पाईऐ उपदेसु जन करहु ॥
इस काया रूपी नगर में सर्वोत्तम राम रस है। हे संतजनो ! मुझे उपदेश करो कि मैं इसे कैसे प्राप्त करूं ?

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਫਲ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਮਿਲਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਅਹੁ ॥੨॥
सतिगुरु सेवि सफल हरि दरसनु मिलि अम्रितु हरि रसु पीअहु ॥२॥
गुरु को मिलकर हरि-रस रूपी अमृत पान करो तथा गुरु की सेवा करके भगवान् के दर्शन कर लो ॥२॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਮੀਠਾ ਹਰਿ ਸੰਤਹੁ ਚਾਖਿ ਦਿਖਹੁ ॥
हरि हरि नामु अम्रितु हरि मीठा हरि संतहु चाखि दिखहु ॥
हे संतजनो ! ‘हरि-हरि’ नाम रूपी अमृत बड़ा मीठा है, इसे चखकर देख लो।

ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ਲਾਗਾ ਤਿਨ ਬਿਸਰੇ ਸਭਿ ਬਿਖ ਰਸਹੁ ॥੩॥
गुरमति हरि रसु मीठा लागा तिन बिसरे सभि बिख रसहु ॥३॥
गुरु के उपदेश द्वारा जिन्हें हरि-रस मीठा लगता है, उन्हें विष रूपी माया के सभी रस भूल गए हैं।३ ।

ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਸੁ ਰਾਮ ਰਸਾਇਣੁ ਹਰਿ ਸੇਵਹੁ ਸੰਤ ਜਨਹੁ ॥
राम नामु रसु राम रसाइणु हरि सेवहु संत जनहु ॥
राम-नाम रूपी रस ही रसायन है। हे संतजनो ! भगवान की उपासना करते रहो।

ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਚਾਰੇ ਪਾਏ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭਜਹੁ ॥੪॥੪॥
चारि पदारथ चारे पाए गुरमति नानक हरि भजहु ॥४॥४॥
हे नानक ! गुरु उपदेश द्वारा भगवान् का भजन करने से चारों पदार्थ-धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष पाए जा सकते हैं।॥ ४॥ ४॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
बिलावलु महला ४ ॥

ਖਤ੍ਰੀ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਸੂਦੁ ਵੈਸੁ ਕੋ ਜਾਪੈ ਹਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਜਪੈਨੀ ॥
खत्री ब्राहमणु सूदु वैसु को जापै हरि मंत्रु जपैनी ॥
हे भाई ! क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूद्र एवं वैश्य में से हर कोई हरि-मंत्र जप सकता है, जो सभी के लिए जपने योग्य है।

ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਕਰਿ ਪੂਜਹੁ ਨਿਤ ਸੇਵਹੁ ਦਿਨਸੁ ਸਭ ਰੈਨੀ ॥੧॥
गुरु सतिगुरु पारब्रहमु करि पूजहु नित सेवहु दिनसु सभ रैनी ॥१॥
परब्रह्म का रूप मानकर गुरु की पूजा करो और नित्य दिन-रात सेवा में लीन रहो॥ १॥

ਹਰਿ ਜਨ ਦੇਖਹੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਨੈਨੀ ॥
हरि जन देखहु सतिगुरु नैनी ॥
हे भक्तजनों ! नयनों से सतगुरु के दर्शन करो।

ਜੋ ਇਛਹੁ ਸੋਈ ਫਲੁ ਪਾਵਹੁ ਹਰਿ ਬੋਲਹੁ ਗੁਰਮਤਿ ਬੈਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो इछहु सोई फलु पावहु हरि बोलहु गुरमति बैनी ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के उपदेश द्वारा हरि-नाम बोलो और मनोवांछित फल पा लो॥ १॥ रहाउ॥

ਅਨਿਕ ਉਪਾਵ ਚਿਤਵੀਅਹਿ ਬਹੁਤੇਰੇ ਸਾ ਹੋਵੈ ਜਿ ਬਾਤ ਹੋਵੈਨੀ ॥
अनिक उपाव चितवीअहि बहुतेरे सा होवै जि बात होवैनी ॥
आदमी अनेक उपाय मन में सोचता रहता है लेकिन वही होता है, जो बात होनी होती है।

ਅਪਨਾ ਭਲਾ ਸਭੁ ਕੋਈ ਬਾਛੈ ਸੋ ਕਰੇ ਜਿ ਮੇਰੈ ਚਿਤਿ ਨ ਚਿਤੈਨੀ ॥੨॥
अपना भला सभु कोई बाछै सो करे जि मेरै चिति न चितैनी ॥२॥
हर कोई अपनी भलाई की कामना करता है लेकिन भगवान् वही करता है, जो हमारे चित में याद भी नहीं होता ॥२॥

ਮਨ ਕੀ ਮਤਿ ਤਿਆਗਹੁ ਹਰਿ ਜਨ ਏਹਾ ਬਾਤ ਕਠੈਨੀ ॥
मन की मति तिआगहु हरि जन एहा बात कठैनी ॥
हे भक्तजनों ! अपने मन की मति त्याग दो, पर यह बात बड़ी कठिन है।

ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹੁ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਮਤਿ ਲੈਨੀ ॥੩॥
अनदिनु हरि हरि नामु धिआवहु गुर सतिगुर की मति लैनी ॥३॥
गुरु का उपदेश लेकर नित्य हरि-नाम का ध्यान करते रहो॥ ३॥

ਮਤਿ ਸੁਮਤਿ ਤੇਰੈ ਵਸਿ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਜੰਤ ਤੂ ਪੁਰਖੁ ਜੰਤੈਨੀ ॥
मति सुमति तेरै वसि सुआमी हम जंत तू पुरखु जंतैनी ॥
हे स्वामी ! मति अथवा सुमति यह सब तेरे ही वश में है। हम जीव तो यंत्र हैं और तू यंत्र चलाने वाला पुरुष है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਕਰਤੇ ਸੁਆਮੀ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਬੁਲੈਨੀ ॥੪॥੫॥
जन नानक के प्रभ करते सुआमी जिउ भावै तिवै बुलैनी ॥४॥५॥
हे नानक के प्रभु, हे कर्ता स्वामी ! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे ही हम बोलते हैं॥ ४ ॥ ५ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
बिलावलु महला ४ ॥

ਅਨਦ ਮੂਲੁ ਧਿਆਇਓ ਪੁਰਖੋਤਮੁ ਅਨਦਿਨੁ ਅਨਦ ਅਨੰਦੇ ॥
अनद मूलु धिआइओ पुरखोतमु अनदिनु अनद अनंदे ॥
आनंद का मूल स्रोत पुरुषोत्तम प्रभु का ध्यान करने से रात-दिन आनंद ही आनंद बना रहता है।

ਧਰਮ ਰਾਇ ਕੀ ਕਾਣਿ ਚੁਕਾਈ ਸਭਿ ਚੂਕੇ ਜਮ ਕੇ ਛੰਦੇ ॥੧॥
धरम राइ की काणि चुकाई सभि चूके जम के छंदे ॥१॥
अब यमराज की मोहताजी मिटा दी है और यम का लेन-देन समाप्त कर दिया है॥ १॥

ਜਪਿ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਗੋੁਬਿੰਦੇ ॥
जपि मन हरि हरि नामु गोबिंदे ॥
हे मन! हरि नाम जप।

ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਗੁਣ ਗਾਏ ਪਰਮਾਨੰਦੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
वडभागी गुरु सतिगुरु पाइआ गुण गाए परमानंदे ॥१॥ रहाउ ॥
बड़े भाग्य से हमने सतगुरु को पाया है और अब परमानंद का ही किया है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਾਕਤ ਮੂੜ ਮਾਇਆ ਕੇ ਬਧਿਕ ਵਿਚਿ ਮਾਇਆ ਫਿਰਹਿ ਫਿਰੰਦੇ ॥
साकत मूड़ माइआ के बधिक विचि माइआ फिरहि फिरंदे ॥
मूर्ख शाक्त माया के बंदी हैं और वे माया में ही भटकते रहते हैं।

ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਜਲਤ ਕਿਰਤ ਕੇ ਬਾਧੇ ਜਿਉ ਤੇਲੀ ਬਲਦ ਭਵੰਦੇ ॥੨॥
त्रिसना जलत किरत के बाधे जिउ तेली बलद भवंदे ॥२॥
ये तकदीर के बंधे हुए तृष्णाग्नि में जलते रहते हैं तथा तेली के बैल के समान जन्म मरण के चक्र में भटकते रहते हैं।॥ २॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵ ਲਗੇ ਸੇ ਉਧਰੇ ਵਡਭਾਗੀ ਸੇਵ ਕਰੰਦੇ ॥
गुरमुखि सेव लगे से उधरे वडभागी सेव करंदे ॥
जो व्यक्ति गुरु के माध्यम से भगवान् की सेवा में लीन हुए हैं, उनका उद्धार हो गया है किन्तु यह सेवा खुशनसीब ही करते हैं।

ਜਿਨ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਤਿਨ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਸਭਿ ਤੂਟੇ ਮਾਇਆ ਫੰਦੇ ॥੩॥
जिन हरि जपिआ तिन फलु पाइआ सभि तूटे माइआ फंदे ॥३॥
जिन्होंने भगवान् का जाप किया है, उन्हें फल मिल गया है, उनके माया के तमाम फंदे टूट गए हैं।॥ ३॥

ਆਪੇ ਠਾਕੁਰੁ ਆਪੇ ਸੇਵਕੁ ਸਭੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਗੋਵਿੰਦੇ ॥
आपे ठाकुरु आपे सेवकु सभु आपे आपि गोविंदे ॥
गोविंद सबकुछ स्वयं ही है और मालिक अथवा सेवक भी स्वयं ही है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਆਪੇ ਆਪਿ ਸਭੁ ਵਰਤੈ ਜਿਉ ਰਾਖੈ ਤਿਵੈ ਰਹੰਦੇ ॥੪॥੬॥
जन नानक आपे आपि सभु वरतै जिउ राखै तिवै रहंदे ॥४॥६॥
हे नानक ! परमात्मा सर्वत्र व्याप्त है, जैसे वह जीवों को रखता है, वैसे ही वे रहते हैं।॥ ४॥ ६॥

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਰਾਗੁ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ਪੜਤਾਲ ਘਰੁ ੧੩ ॥
रागु बिलावलु महला ४ पड़ताल घरु १३ ॥
रागु बिलावलु महला ४ पड़ताल घरु १३ ॥

ਬੋਲਹੁ ਭਈਆ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨੋ ॥
बोलहु भईआ राम नामु पतित पावनो ॥
हे भाई ! पतितों को पावन करने वाला राम नाम बोलो।

ਹਰਿ ਸੰਤ ਭਗਤ ਤਾਰਨੋ ॥
हरि संत भगत तारनो ॥
वह प्रभु ही संतों एवं भक्तों का उद्धार करने वाला है।

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