ਖੋਟੇ ਖਰੇ ਤੁਧੁ ਆਪਿ ਉਪਾਏ ॥
खोटे खरे तुधु आपि उपाए ॥
हे भगवान ! बुरे एवं भले जीव तूने ही पैदा किए हैं।
O’God, you yourself have created both the evil and the virtuous people.
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਪਰਖੇ ਲੋਕ ਸਬਾਏ ॥
तुधु आपे परखे लोक सबाए ॥
समस्त लोगों के अच्छे एवं दुष्कर्मो की परख तू स्वयं ही करता है।
You Yourself assess the deeds of all people.
ਖਰੇ ਪਰਖਿ ਖਜਾਨੈ ਪਾਇਹਿ ਖੋਟੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਵਣਿਆ ॥੬॥
खरे परखि खजानै पाइहि खोटे भरमि भुलावणिआ ॥६॥
भले जीवों को तुम अपने भक्ति-कोष में डाल देते हो परन्तु बुरे जीवों को तुम भ्रम में फँसाकर कुमार्ग लगा देते हो।॥६॥
Those found virtuous are accepted and united with You, the false ones remain lost in delusion.||6||
ਕਿਉ ਕਰਿ ਵੇਖਾ ਕਿਉ ਸਾਲਾਹੀ ॥
किउ करि वेखा किउ सालाही ॥
हे भगवान ! मैं तेरे दर्शन कैसे करूं ? और कैसे तेरी महिमा-स्तुति करूं ?
O’ God, how can I behold You? How can I praise You?
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਬਦਿ ਸਲਾਹੀ ॥
गुर परसादी सबदि सलाही ॥
गुरु की कृपा से ही मैं वाणी द्वारा तेरी ही महिमा कर सकता हूँ!
By Guru’s Grace, I praise You through the Word of the Shabad.
ਤੇਰੇ ਭਾਣੇ ਵਿਚਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵਸੈ ਤੂੰ ਭਾਣੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆਵਣਿਆ ॥੭॥
तेरे भाणे विचि अम्रितु वसै तूं भाणै अम्रितु पीआवणिआ ॥७॥
हे प्रभु ! तेरी इच्छा से ही नाम-अमृत की वर्षा होती है और तू अपनी इच्छानुसार ही जीव को नाम-अमृत का पान करवाता है॥७॥
O’God, it is only according to Your Will that the nectar of Your Naam comes to reside in one’s heart, and it is in Your will that You administer Your nectar to anyone.||7||
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਬਦੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਹਰਿ ਬਾਣੀ ॥
अम्रित सबदु अम्रित हरि बाणी ॥
हे भगवान ! तेरा नाम अमृत है और तेरी वाणी भी अमृत है।
The holy word of the Guru is the immortalizing nectar and so is the Naam of God.
ਸਤਿਗੁਰਿ ਸੇਵਿਐ ਰਿਦੈ ਸਮਾਣੀ ॥
सतिगुरि सेविऐ रिदै समाणी ॥
सतिगुरु की सेवा करने से ही तेरी वाणी मनुष्य के हृदय में समा जाती है।
Serving the True Guru, it permeates the heart.
ਨਾਨਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਪੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਭ ਭੁਖ ਲਹਿ ਜਾਵਣਿਆ ॥੮॥੧੫॥੧੬॥
नानक अम्रित नामु सदा सुखदाता पी अम्रितु सभ भुख लहि जावणिआ ॥८॥१५॥१६॥
हे नानक ! अमृत-नाम सदैव ही सुखदाता है और नाम रूपी अमृत का पान करने से मनुष्य की तमाम भूख मिट जाती है।॥८॥१५॥१६॥
O’Nanak,the nectar of naam gives eternal peace. By drinking it, one’s hunger (of worldly desires) is satisfied.||8||15||16||
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला ३ ॥
Composed by the third Guru, in Maajh Raag ||
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵਰਸੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥
अम्रितु वरसै सहजि सुभाए ॥
नाम-अमृत सहज-स्वभाव ही बरस रहा है।
The nectar of Naam comes into one’s heart intuitively.
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਕੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ॥
गुरमुखि विरला कोई जनु पाए ॥
गुरु के माध्यम से इसे कोई विरला पुरुष ही प्राप्त करता है।
However, rare are those Guru’s followers who receive and enjoys this nectar.
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀ ਸਦਾ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝਾਵਣਿਆ ॥੧॥
अम्रितु पी सदा त्रिपतासे करि किरपा त्रिसना बुझावणिआ ॥१॥
नाम-अमृत का पान करने वाले सदैव तृप्त रहते हैं। अपनी दया करके प्रभु उनकी प्यास बुझा देता है॥१ ॥
Those who drink it are satisfied forever (from worldly things). Showering His mercy, God quenches their thirst of worldly desires.
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी गुरमुखि अम्रितु पीआवणिआ ॥
मैं उन पर न्यौछावर हूँ, जिन्हें गुरु जी नाम अमृत का पान करवाते हैं।
I am a sacrifice, my soul is a sacrifice, to those Guru’s followers who by Guru’s grace, drink this nectar of Naam.
ਰਸਨਾ ਰਸੁ ਚਾਖਿ ਸਦਾ ਰਹੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रसना रसु चाखि सदा रहै रंगि राती सहजे हरि गुण गावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
नाम अमृत को चखकर जिव्हा सदैव प्रभु की प्रीति में लीन रहती है और सहज ही हरि प्रभु का यशोगान करती है ॥१॥रहाउ॥
Tasting this nectar, their tongue remains imbued with divine love and intuitively keep singing God’s praise.||1||Pause||
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਹਜੁ ਕੋ ਪਾਏ ॥
गुर परसादी सहजु को पाए ॥
गुरु की कृपा से कोई विरला प्राणी ही सहज अवस्था को प्राप्त करता है
It is only a rare person who by Guru’s Grace attains a state of spiritual poise and balance of mind
ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਰੇ ਇਕਸੁ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
दुबिधा मारे इकसु सिउ लिव लाए ॥
और अपनी दुविधा का नाश करके एक ईश्वर के साथ सुरति लगाता है।
This person subdued all senses of duality, fixes the mind only on one God.
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਦਰੀ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੨॥
नदरि करे ता हरि गुण गावै नदरी सचि समावणिआ ॥२॥
जब परमात्मा दया-दृष्टि करता है तो प्राणी उस प्रभु के गुण गायन करता है और उसकी दया से सत्य में लीन हो जाता है।॥२॥
But this happens only when He bestows His glance of grace ,then that person sings God’s praises ;and by His grace ,merge in Truth.||2||
ਸਭਨਾ ਉਪਰਿ ਨਦਰਿ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ॥
सभना उपरि नदरि प्रभ तेरी ॥
हे मेरे हरि-प्रभु ! तेरी कृपा-दृष्टि समस्त जीवों पर है
O God,Your glance of grace is over all.
ਕਿਸੈ ਥੋੜੀ ਕਿਸੈ ਹੈ ਘਣੇਰੀ ॥
किसै थोड़ी किसै है घणेरी ॥
किन्तु यह (कृपा-दृष्टि) किसी पर कम और किसी पर अधिकतर है।
On some it may be less, on others, more (just as rain falls equally on all places,but the level fields retain more while slopes retain very less).
ਤੁਝ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਕਿਛੁ ਨ ਹੋਵੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੋਝੀ ਪਾਵਣਿਆ ॥੩॥
तुझ ते बाहरि किछु न होवै गुरमुखि सोझी पावणिआ ॥३॥
आपके सिवाय कुछ भी नहीं होता। इस बात का ज्ञान मनुष्य को गुरु के माध्यम से ही प्राप्त होता है॥३॥
It is only the Gurmukhs (Guru’s followers) who understand that nothing happens at all without Your will.||3||
ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਤੁ ਹੈ ਬੀਚਾਰਾ ॥
गुरमुखि ततु है बीचारा ॥
गुरमुख इस तथ्य पर चिंतन करते हैं कि
The Gurmukhs contemplate the essence of reality;
ਅੰਮ੍ਰਿਤਿ ਭਰੇ ਤੇਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
अम्रिति भरे तेरे भंडारा ॥
तेरे भण्डार नाम-अमृत से परिपूर्ण हैं।
That your divine treasures are overflowing with nectar of Naam.
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਕੋਈ ਨ ਪਾਵੈ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਪਾਵਣਿਆ ॥੪॥
बिनु सतिगुर सेवे कोई न पावै गुर किरपा ते पावणिआ ॥४॥
सतिगुरु की सेवा करने के अलावा कोई भी नाम अमृत को प्राप्त नहीं कर सकता। यह तो गुरु की दया से ही मिलता है।॥४॥
However, without serving and following the true Guru, no one receives this nectar. Whosoever receives it, gets it only by Guru’s grace,
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੈ ਸੋ ਜਨੁ ਸੋਹੈ ॥
सतिगुरु सेवै सो जनु सोहै ॥
जो पुरुष सतिगुरु की सेवा करता है, वह शोभनीय है।
The person who serves and follows the true Guru becomes beauteous and virtuous.
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮਿ ਅੰਤਰੁ ਮਨੁ ਮੋਹੈ ॥
अम्रित नामि अंतरु मनु मोहै ॥
प्रभु का अमृत-नाम मनुष्य के मन एवं ह्रदय को मोहित कर देता है।
Such a person’s inner mind is fascinated with the Nectar of Naam.
ਅੰਮ੍ਰਿਤਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਬਾਣੀ ਰਤਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਹਜਿ ਸੁਣਾਵਣਿਆ ॥੫॥
अम्रिति मनु तनु बाणी रता अम्रितु सहजि सुणावणिआ ॥५॥
जिनके मन एवं तन अमृत वाणी में मग्न हो जाते हैं, प्रभु उन्हें सहज ही अपना अमृत-नाम सुनाता है॥५॥
The person’s body and mind attuned to the Ambrosial Naam and the person intuitively keep hearing the sweet words of Guru’s Naam.||5||
ਮਨਮੁਖੁ ਭੂਲਾ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਖੁਆਏ ॥
मनमुखु भूला दूजै भाइ खुआए ॥
स्वेच्छाचारी जीव भटका हुआ है। और मोह-माया में फँसकर नष्ट हो जाता है।
A self-willed person goes astray and is ruined due to the love of duality ( the worldly riches instead of God )
ਨਾਮੁ ਨ ਲੇਵੈ ਮਰੈ ਬਿਖੁ ਖਾਏ ॥
नामु न लेवै मरै बिखु खाए ॥
प्रभु नाम का वह जाप नहीं करता और माया रूपी विष सेवन करके प्राण त्याग देता है।
This person does not meditate on God’s Naam and dies while going after false worldly desires.
ਅਨਦਿਨੁ ਸਦਾ ਵਿਸਟਾ ਮਹਿ ਵਾਸਾ ਬਿਨੁ ਸੇਵਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਵਣਿਆ ॥੬॥
अनदिनु सदा विसटा महि वासा बिनु सेवा जनमु गवावणिआ ॥६॥
रात-दिन उसका बसेरा सदैव विष्टा रूपी विषय-विकारों में रहता है। गुरु की सेवा के बिना वह अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ ही गंवा देता है॥६॥
Such a person lives in filth of sinful worldly pleasures day and night and without remembering God, wastes the human birth.||6||
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵੈ ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਪੀਆਏ ॥
अम्रितु पीवै जिस नो आपि पीआए ॥
जिसको प्रभु स्वयं पिलाता है वही नाम अमृत का पान करता है।
Only that person drinks the nectar of Naam, whom He Himself inspires to do so.
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਹਜਿ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
गुर परसादी सहजि लिव लाए ॥
गुरु की कृपा से सहज ही वह परमात्मा में सुरति लगाता है।
By Guru’s Grace, such a person imperceptibly becomes attuned to God.
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਸਭ ਆਪੇ ਗੁਰਮਤਿ ਨਦਰੀ ਆਵਣਿਆ ॥੭॥
पूरन पूरि रहिआ सभ आपे गुरमति नदरी आवणिआ ॥७॥
पूर्ण परमेश्वर स्वयं ही सर्वत्र परिपूर्ण हो रहा है। गुरु की मति द्वारा वह प्रत्यक्ष दिखाई देता है। ७॥
Then, through the Guru’s teachings, is able to see that the perfect God Himself is pervading everywhere.||7||.
ਆਪੇ ਆਪਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸੋਈ ॥
आपे आपि निरंजनु सोई ॥
वह निरंजन प्रभु सब कुछ अपने आप से ही है।
The immaculate God is all by Himself.
ਜਿਨਿ ਸਿਰਜੀ ਤਿਨਿ ਆਪੇ ਗੋਈ ॥
जिनि सिरजी तिनि आपे गोई ॥
जिस प्रभु ने सृष्टि की रचना की है, वह स्वयं ही इसका विनाश भी करता है।
He who has created (this universe) shall Himself destroy it.
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ਸਦਾ ਤੂੰ ਸਹਜੇ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੮॥੧੬॥੧੭॥
नानक नामु समालि सदा तूं सहजे सचि समावणिआ ॥८॥१६॥१७॥
हे नानक ! तुम सदैव ही प्रभु नाम का सिमरन करो। ऐसे तुम सहज ही परमात्मा में विलीन हो जाओगे ॥८॥१६॥१७॥
O Nanak, always meditate on God’s Naam, and you will merge into the eternal God with intuitive ease.||8||16||17||
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला ३ ॥
Compose by third Guru, in Maajh Raag.
ਸੇ ਸਚਿ ਲਾਗੇ ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਏ ॥
से सचि लागे जो तुधु भाए ॥
हे ईश्वर ! जो तुझे अच्छे लगते हैं, वहीं सत्य (नाम) में लगते हैं।
Only those people are attuned to the Truth, who are pleasing to you.
ਸਦਾ ਸਚੁ ਸੇਵਹਿ ਸਹਜ ਸੁਭਾਏ ॥
सदा सचु सेवहि सहज सुभाए ॥
वह सहज-स्वभाव सदैव ही परमेश्वर की सेवा भक्ति करते हैं।
They always imperceptibly keep serving the True One ( by meditating on Your eternal Naam).
ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸਚਾ ਸਾਲਾਹੀ ਸਚੈ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੧॥
सचै सबदि सचा सालाही सचै मेलि मिलावणिआ ॥१॥
वह सत्य-नाम द्वारा सत्य-प्रभु की सराहना करते हैं और सत्य-नाम उन्हें सत्य से मिला देता है।॥१॥
Through the True Word of the Guru,They praise the eternal God, and thus they themselves are united and unite others with the eternal God.||1||
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਸਚੁ ਸਾਲਾਹਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी सचु सालाहणिआ ॥
मैं उन पर तन-मन से कुर्बान हूँ, जो सत्य परमेश्वर की सराहना करते हैं।
I am a sacrifice, my soul is a sacrifice, to those who praise the True One.
ਸਚੁ ਧਿਆਇਨਿ ਸੇ ਸਚਿ ਰਾਤੇ ਸਚੇ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सचु धिआइनि से सचि राते सचे सचि समावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जो सत्य परमेश्वर का ध्यान करते हैं, वह सत्य में ही रंग जाते हैं और सत्यवादी बन कर सत्य में लीन हो जाते हैं।॥१॥ रहाउ॥
Those who meditate on the eternal God are imbued with the love of the eternal God, and they merge in that true and eternal God.||||Pause||
ਜਹ ਦੇਖਾ ਸਚੁ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥
जह देखा सचु सभनी थाई ॥
मैं जहाँ कहीं भी देखता हूँ, सत्य परमात्मा मुझे सर्वत्र दिखाई देता है।
Wherever I look, I see that eternal God pervading everywhere.
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈ ॥
गुर परसादी मंनि वसाई ॥
वह गुरु की कृपा से मनुष्य के मन में आकर निवास करता है।
By Guru’s Grace, I enshrine Him in my mind.
ਤਨੁ ਸਚਾ ਰਸਨਾ ਸਚਿ ਰਾਤੀ ਸਚੁ ਸੁਣਿ ਆਖਿ ਵਖਾਨਣਿਆ ॥੨॥
तनु सचा रसना सचि राती सचु सुणि आखि वखानणिआ ॥२॥
फिर उस मनुष्य का शरीर शाश्वत हो जाता है और उसकी रसना सत्य में ही मग्न हो जाती है। वह मनुष्य सत्य नाम को सुनकर स्वयं भी मुँह से सत्य का ही बखान करता है ॥२॥
Now my body is filled with Truth, my tongue is imbued with Truth, and I hear and talk only about the eternal God.||2||