Hindi Page 198

ਰੂਪਵੰਤੁ ਸੋ ਚਤੁਰੁ ਸਿਆਣਾ ॥
रूपवंतु सो चतुरु सिआणा ॥
केवल वही मनुष्य सुन्दर, चतुर एवं बुद्धिमान है,

ਜਿਨਿ ਜਨਿ ਮਾਨਿਆ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਭਾਣਾ ॥੨॥
जिनि जनि मानिआ प्रभ का भाणा ॥२॥
जो व्यक्ति प्रभु की इच्छा को स्वीकार करता है॥ २॥

ਜਗ ਮਹਿ ਆਇਆ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥
जग महि आइआ सो परवाणु ॥
इस दुनिया में उसका जन्म ही सफल होता है,

ਘਟਿ ਘਟਿ ਅਪਣਾ ਸੁਆਮੀ ਜਾਣੁ ॥੩॥
घटि घटि अपणा सुआमी जाणु ॥३॥
जो सर्वव्यापक प्रभु को जान लेता है॥ ३॥

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕੇ ਪੂਰਨ ਭਾਗ ॥
कहु नानक जा के पूरन भाग ॥
हे नानक ! जिसके भाग्य पूर्ण हैं,

ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਤਾ ਕਾ ਮਨੁ ਲਾਗ ॥੪॥੯੦॥੧੫੯॥
हरि चरणी ता का मनु लाग ॥४॥९०॥१५९॥
वही व्यक्ति ईश्वर के चरणों में अपने मन को लगाता है ॥४॥९०॥१५९॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਹਰਿ ਕੇ ਦਾਸ ਸਿਉ ਸਾਕਤ ਨਹੀ ਸੰਗੁ ॥
हरि के दास सिउ साकत नही संगु ॥
प्रभु-भक्त के साथ (भगवान से टूटे हुए) शाक्त इन्सान का साथ नहीं होता।

ਓਹੁ ਬਿਖਈ ਓਸੁ ਰਾਮ ਕੋ ਰੰਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ओहु बिखई ओसु राम को रंगु ॥१॥ रहाउ ॥
क्योंकि वह नास्तिक विषयों का प्रेमी होता है और उस भक्त को प्रभु का रंग चढ़ा होता है॥ १ ॥ रहाउ ॥

ਮਨ ਅਸਵਾਰ ਜੈਸੇ ਤੁਰੀ ਸੀਗਾਰੀ ॥
मन असवार जैसे तुरी सीगारी ॥
उनका मिलन ऐसे है, जैसे अनाड़ी घुड़सवार के लिए एक सुसज्जित घोड़ी हो।

ਜਿਉ ਕਾਪੁਰਖੁ ਪੁਚਾਰੈ ਨਾਰੀ ॥੧॥
जिउ कापुरखु पुचारै नारी ॥१॥
जैसे कोई नपुंसक किसी नारी को प्रेम करता है॥ १॥

ਬੈਲ ਕਉ ਨੇਤ੍ਰਾ ਪਾਇ ਦੁਹਾਵੈ ॥
बैल कउ नेत्रा पाइ दुहावै ॥
नास्तिक और आस्तिक का मिलन ऐसा है जैसे कोई व्यक्ति बछड़े द्वारा बैल दुहता हो।

ਗਊ ਚਰਿ ਸਿੰਘ ਪਾਛੈ ਪਾਵੈ ॥੨॥
गऊ चरि सिंघ पाछै पावै ॥२॥
जैसे गाय पर सवार होकर व्यक्ति शेर का पीछा करता है॥ २ ॥

ਗਾਡਰ ਲੇ ਕਾਮਧੇਨੁ ਕਰਿ ਪੂਜੀ ॥
गाडर ले कामधेनु करि पूजी ॥
जैसे कोई व्यक्ति भेड़ लेकर उसे कामधेनु समझकर पूजा-अर्चना करने लगे अथवा

ਸਉਦੇ ਕਉ ਧਾਵੈ ਬਿਨੁ ਪੂੰਜੀ ॥੩॥
सउदे कउ धावै बिनु पूंजी ॥३॥
जैसे धन-दौलत के बिना व्यक्ति सौदा खरीदने के लिए जाता है॥ ३॥

ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਚੀਤ ॥
नानक राम नामु जपि चीत ॥
हे नानक ! अपने मन में राम नाम का जाप कर।

ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਸਾ ਮੀਤ ॥੪॥੯੧॥੧੬੦॥
सिमरि सुआमी हरि सा मीत ॥४॥९१॥१६०॥
तू मित्र जैसे स्वामी प्रभु की आराधना कर ॥४॥९१॥१६०॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਸਾ ਮਤਿ ਨਿਰਮਲ ਕਹੀਅਤ ਧੀਰ ॥
सा मति निरमल कहीअत धीर ॥
हे भाई ! वही बुद्धि निर्मल एवं धैर्यवान कही जाती है,

ਰਾਮ ਰਸਾਇਣੁ ਪੀਵਤ ਬੀਰ ॥੧॥
राम रसाइणु पीवत बीर ॥१॥
जो राम के अमृत (नाम) का पान करती है॥ १॥

ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਣ ਹਿਰਦੈ ਕਰਿ ਓਟ ॥
हरि के चरण हिरदै करि ओट ॥
अपने हृदय में ईश्वर के चरणों का सहारा ले।

ਜਨਮ ਮਰਣ ਤੇ ਹੋਵਤ ਛੋਟ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जनम मरण ते होवत छोट ॥१॥ रहाउ ॥
इस तरह जन्म-मरण से तुझे मुक्ति प्राप्त हो जाएगी।॥१॥ रहाउ ॥

ਸੋ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਜਿਤੁ ਉਪਜੈ ਨ ਪਾਪੁ ॥
सो तनु निरमलु जितु उपजै न पापु ॥
वही शरीर निर्मल है, जिसके भीतर पाप उत्पन्न नहीं होता।

ਰਾਮ ਰੰਗਿ ਨਿਰਮਲ ਪਰਤਾਪੁ ॥੨॥
राम रंगि निरमल परतापु ॥२॥
राम के प्रेम (रंग) से व्यक्ति का निर्मल प्रताप बढ़ता जाता है।॥ २॥

ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਟਿ ਜਾਤ ਬਿਕਾਰ ॥
साधसंगि मिटि जात बिकार ॥
संतों की संगति में रहने से (मनुष्य के) पाप नष्ट हो जाते हैं।

ਸਭ ਤੇ ਊਚ ਏਹੋ ਉਪਕਾਰ ॥੩॥
सभ ते ऊच एहो उपकार ॥३॥
संतों की संगति का यही सर्वोच्च उपकार है॥ ३॥

ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਰਾਤੇ ਗੋਪਾਲ ॥
प्रेम भगति राते गोपाल ॥
जो गोपाल के प्रेमा-भक्ति के रंग में मग्न रहते हैं।

ਨਾਨਕ ਜਾਚੈ ਸਾਧ ਰਵਾਲ ॥੪॥੯੨॥੧੬੧॥
नानक जाचै साध रवाल ॥४॥९२॥१६१॥
नानक ऐसे संतों की चरण-धूलि की याचना करता है ॥४॥९२॥१६१॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ 
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਐਸੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੋਵਿੰਦ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ॥
ऐसी प्रीति गोविंद सिउ लागी ॥
मुझे गोविन्द से ऐसा प्रेम हो गया है कि

ਮੇਲਿ ਲਏ ਪੂਰਨ ਵਡਭਾਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेलि लए पूरन वडभागी ॥१॥ रहाउ ॥
उसने मुझे अपने साथ मिला लिया है और मैं पूर्ण भाग्यशाली हो गया हूँ ॥ १॥ रहाउ॥

ਭਰਤਾ ਪੇਖਿ ਬਿਗਸੈ ਜਿਉ ਨਾਰੀ ॥
भरता पेखि बिगसै जिउ नारी ॥
जैसे पत्नी अपने पति को देख कर हर्षित होती है,

ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨੁ ਜੀਵੈ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰੀ ॥੧॥
तिउ हरि जनु जीवै नामु चितारी ॥१॥
वैसे ही प्रभु का सेवक उसके नाम को उच्चारण करने से आत्मिक प्रसन्नतापूर्वक जीता है॥ १॥

ਪੂਤ ਪੇਖਿ ਜਿਉ ਜੀਵਤ ਮਾਤਾ ॥
पूत पेखि जिउ जीवत माता ॥
जैसे अपने पुत्र को देखकर माता जीवन ग्रहण करती है,

ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਜਨੁ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਾਤਾ ॥੨॥
ओति पोति जनु हरि सिउ राता ॥२॥
वैसे ही प्रभु का भक्त परमात्मा के साथ ताने-बाने के धागे के तुल्य मग्न रहता है।॥ २ ॥

ਲੋਭੀ ਅਨਦੁ ਕਰੈ ਪੇਖਿ ਧਨਾ ॥
लोभी अनदु करै पेखि धना ॥
जैसे कोई लोभी व्यक्ति धन को देख कर प्रसन्नता व्यक्त करता है,

ਜਨ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੋ ਮਨਾ ॥੩॥
जन चरन कमल सिउ लागो मना ॥३॥
वैसे ही प्रभु के भक्त का मन प्रभु के चरण कमलों से लगा रहता है॥ ३ ॥

ਬਿਸਰੁ ਨਹੀ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਦਾਤਾਰ ॥ 
बिसरु नही इकु तिलु दातार
हे मेरे दाता ! तुम मुझे क्षण भर के लिए विस्मृत न हों।

ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ॥੪॥੯੩॥੧੬੨॥
नानक के प्रभ प्रान अधार ॥४॥९३॥१६२॥
नानक का प्रभु उसके प्राणों का सहारा है॥ ४ ॥९३॥ १६२ ॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਰਾਮ ਰਸਾਇਣਿ ਜੋ ਜਨ ਗੀਧੇ ॥
राम रसाइणि जो जन गीधे ॥
जो भक्त राम के अमृत (नाम) में लीन हुए हैं,

ਚਰਨ ਕਮਲ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤੀ ਬੀਧੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चरन कमल प्रेम भगती बीधे ॥१॥ रहाउ ॥
वह उसके चरण-कमलों की प्रेमा-भक्ति में बंधे हुए हैं।॥ १ ॥ रहाउ ॥

ਆਨ ਰਸਾ ਦੀਸਹਿ ਸਭਿ ਛਾਰੁ ॥
आन रसा दीसहि सभि छारु ॥
ऐसे भक्तों को दूसरे भोग-विलास राख के तुल्य दिखाई देते हैं ।

ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਿਹਫਲ ਸੰਸਾਰ ॥੧॥
नाम बिना निहफल संसार ॥१॥
भगवान के नाम के बिना इस दुनिया में जन्म लेना निष्फल है॥ १॥

ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਕਾਢੇ ਆਪਿ ॥
अंध कूप ते काढे आपि ॥
ईश्वर स्वयं ही मनुष्य को अज्ञानता के अंधे कुएँ से बाहर निकाल देता है।

ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਅਚਰਜ ਪਰਤਾਪ ॥੨॥
गुण गोविंद अचरज परताप ॥२॥
गोविन्द की महिमा का तेज प्रताप अदभुत है॥ २॥

ਵਣਿ ਤ੍ਰਿਣਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਪੂਰਨ ਗੋਪਾਲ ॥
वणि त्रिणि त्रिभवणि पूरन गोपाल ॥
वनों, वनस्पति एवं तीनों लोकों में गोपाल सर्वव्यापक है।

ਬ੍ਰਹਮ ਪਸਾਰੁ ਜੀਅ ਸੰਗਿ ਦਇਆਲ ॥੩॥
ब्रहम पसारु जीअ संगि दइआल ॥३॥
सृष्टि में ब्रह्म का ही प्रसार है और भगवान जीवों के साथ दयालु दिखाई देता है॥ ३॥

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਾ ਕਥਨੀ ਸਾਰੁ ॥
कहु नानक सा कथनी सारु ॥
हे नानक ! केवल वही वाणी श्रेष्ठ है,

ਮਾਨਿ ਲੇਤੁ ਜਿਸੁ ਸਿਰਜਨਹਾਰੁ ॥੪॥੯੪॥੧੬੩॥
मानि लेतु जिसु सिरजनहारु ॥४॥९४॥१६३॥
जिसे कर्तार स्वीकार कर लेता है॥ ४ ॥ ९४ ॥ १६३॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
उड़ी महला ५ ॥

ਨਿਤਪ੍ਰਤਿ ਨਾਵਣੁ ਰਾਮ ਸਰਿ ਕੀਜੈ ॥
नितप्रति नावणु राम सरि कीजै ॥
राम के सरोवर में प्रतिदिन स्नान कीजिए।

ਝੋਲਿ ਮਹਾ ਰਸੁ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
झोलि महा रसु हरि अम्रितु पीजै ॥१॥ रहाउ ॥
हरि के नाम अमृत के महारस का प्रेमपूर्वक पान कीजिए॥ १॥ रहाउ ॥

ਨਿਰਮਲ ਉਦਕੁ ਗੋਵਿੰਦ ਕਾ ਨਾਮ ॥
निरमल उदकु गोविंद का नाम ॥
गोविन्द के नाम का जल बड़ा निर्मल है।

ਮਜਨੁ ਕਰਤ ਪੂਰਨ ਸਭਿ ਕਾਮ ॥੧॥
मजनु करत पूरन सभि काम ॥१॥
उसमें स्नान करने से सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।॥ १॥

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