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ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਚਉਪਦੇ ਦੁਪਦੇ
रागु गउड़ी गुआरेरी महला १ चउपदे दुपदे
रागु गउड़ी गुआरेरी महला १ चउपदे दुपदे

ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
परमात्मा एक है, उसका नाम सत्य है। वह सृष्टि का रचयिता सर्वशक्तिमान है। वह निडर है, उसकी किसी से शत्रुता नहीं, वह कालातीत, अयोनि एवं स्वयंभू है। उसकी लब्धि गुरु-कृपा से होती है।

ਭਉ ਮੁਚੁ ਭਾਰਾ ਵਡਾ ਤੋਲੁ ॥
भउ मुचु भारा वडा तोलु ॥
ईश्वर का भय बहुत भारी और बड़ा वजनदार है।

ਮਨ ਮਤਿ ਹਉਲੀ ਬੋਲੇ ਬੋਲੁ ॥
मन मति हउली बोले बोलु ॥
मन की मति पर चलने वाला मनुष्य तुच्छ मति अनुसार अपने मुँह से घटिया वचन ही बोलता है।

ਸਿਰਿ ਧਰਿ ਚਲੀਐ ਸਹੀਐ ਭਾਰੁ ॥
सिरि धरि चलीऐ सहीऐ भारु ॥
प्रभु का भय अपने सिर पर धारण करके चलना चाहिए और उसका बोझ सहन करना चाहिए।

ਨਦਰੀ ਕਰਮੀ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰੁ ॥੧॥
नदरी करमी गुर बीचारु ॥१॥
प्रभु की कृपा-दृष्टि एवं भाग्य से ही मनुष्य को गुरु की शिक्षा मिलती है॥ १ ॥

ਭੈ ਬਿਨੁ ਕੋਇ ਨ ਲੰਘਸਿ ਪਾਰਿ ॥
भै बिनु कोइ न लंघसि पारि ॥
परमात्मा के भय बिना कोई भी प्राणी संसार सागर से पार नहीं हो सकता।

ਭੈ ਭਉ ਰਾਖਿਆ ਭਾਇ ਸਵਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भै भउ राखिआ भाइ सवारि ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु के साथ जीव के प्रेम को प्रभु का भय ही संवार कर रखता है॥ १॥ रहाउ॥

ਭੈ ਤਨਿ ਅਗਨਿ ਭਖੈ ਭੈ ਨਾਲਿ ॥
भै तनि अगनि भखै भै नालि ॥
मनुष्य के शरीर की क्रोध रूपी अग्नि ईश्वर के भय से जल जाती है।

ਭੈ ਭਉ ਘੜੀਐ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰਿ ॥
भै भउ घड़ीऐ सबदि सवारि ॥
प्रभु के भय से शब्द की रचना सुन्दर बन जाती है।

ਭੈ ਬਿਨੁ ਘਾੜਤ ਕਚੁ ਨਿਕਚ ॥
भै बिनु घाड़त कचु निकच ॥
प्रभु के भय के बिना शब्द की रचना बहुत ही कच्ची रह जाती है।

ਅੰਧਾ ਸਚਾ ਅੰਧੀ ਸਟ ॥੨॥
अंधा सचा अंधी सट ॥२॥
शब्द रचने वाला सांचा निरुपयोगी है अर्थात् मनुष्य की बुद्धि ज्ञानहीन होती है और ज्ञानहीन बुद्धि पर ज्ञान रूपी हथौड़े की चोट कोई प्रभाव नहीं करती ॥ २॥

ਬੁਧੀ ਬਾਜੀ ਉਪਜੈ ਚਾਉ ॥
बुधी बाजी उपजै चाउ ॥
जीवन बाजी खेलने का चाव मनुष्य की बुद्धि द्वारा ही उत्पन्न होता है।

ਸਹਸ ਸਿਆਣਪ ਪਵੈ ਨ ਤਾਉ ॥
सहस सिआणप पवै न ताउ ॥
हजारों ही चतुराइयों के बावजूद ईश्वर-भय की तपस (आंच) नहीं लगती।

ਨਾਨਕ ਮਨਮੁਖਿ ਬੋਲਣੁ ਵਾਉ ॥
नानक मनमुखि बोलणु वाउ ॥
हे नानक ! मनमुख की बातचीत निरर्थक होती है।

ਅੰਧਾ ਅਖਰੁ ਵਾਉ ਦੁਆਉ ॥੩॥੧॥
अंधा अखरु वाउ दुआउ ॥३॥१॥
उसका उपदेश निकम्मा और व्यर्थ होता है॥ ३॥ १॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥

ਡਰਿ ਘਰੁ ਘਰਿ ਡਰੁ ਡਰਿ ਡਰੁ ਜਾਇ ॥
डरि घरु घरि डरु डरि डरु जाइ ॥
अपने हृदय-घर में प्रभु के भय को धारण करना चाहिए। जब प्रभु का भय हृदय-घर में निवास कर जाता है तो मृत्यु का भय भयभीत होकर भाग जाता है।

ਸੋ ਡਰੁ ਕੇਹਾ ਜਿਤੁ ਡਰਿ ਡਰੁ ਪਾਇ ॥
सो डरु केहा जितु डरि डरु पाइ ॥
यह प्रभु भय किस प्रकार का है, जिस द्वारा मृत्यु का भय भयभीत हो जाता है।

ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜੀ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥
तुधु बिनु दूजी नाही जाइ ॥
हे भगवान ! तेरे अलावा दूसरा कोई सुख का स्थान नहीं।

ਜੋ ਕਿਛੁ ਵਰਤੈ ਸਭ ਤੇਰੀ ਰਜਾਇ ॥੧॥
जो किछु वरतै सभ तेरी रजाइ ॥१॥
जो कुछ भी होता है, सब तेरी इच्छानुसार ही होता है॥ १॥

ਡਰੀਐ ਜੇ ਡਰੁ ਹੋਵੈ ਹੋਰੁ ॥
डरीऐ जे डरु होवै होरु ॥
हे प्रभु ! हम भयभीत तब हों, जब कोई दूसरा भय कायम रहे।

ਡਰਿ ਡਰਿ ਡਰਣਾ ਮਨ ਕਾ ਸੋਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
डरि डरि डरणा मन का सोरु ॥१॥ रहाउ ॥
ईश्वर-भय बिना दूसरे के भय से सहम जाना मन का शोर है॥ १॥ रहाउ ॥

ਨਾ ਜੀਉ ਮਰੈ ਨ ਡੂਬੈ ਤਰੈ ॥
ना जीउ मरै न डूबै तरै ॥
आत्मा न ही मरती है, न ही जल में डूबती है और न ही जल में तैरती है।

ਜਿਨਿ ਕਿਛੁ ਕੀਆ ਸੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ॥
जिनि किछु कीआ सो किछु करै ॥
जिस परमात्मा ने सृष्टिरचना की है, वहीं सब कुछ करता है।

ਹੁਕਮੇ ਆਵੈ ਹੁਕਮੇ ਜਾਇ ॥
हुकमे आवै हुकमे जाइ ॥
मनुष्य ईश्वर के हुक्म से संसार में आता है और उसके हुक्मानुसार संसार से कूच करता है।

ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਹੁਕਮਿ ਸਮਾਇ ॥੨॥
आगै पाछै हुकमि समाइ ॥२॥
वर्तमान काल एवं भविष्य काल में भी प्राणी उसके हुक्म में लीन रहता है॥ २॥

ਹੰਸੁ ਹੇਤੁ ਆਸਾ ਅਸਮਾਨੁ ॥
हंसु हेतु आसा असमानु ॥
जिस व्यक्ति के हृदय में हिंसा, मोह, आशा एवं अहंकार होता है

 ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਭੂਖ ਬਹੁਤੁ ਨੈ ਸਾਨੁ ॥
तिसु विचि भूख बहुतु नै सानु ॥
उसमें नदी के जल की तरह माया की अत्यधिक भूख होती है।

ਭਉ ਖਾਣਾ ਪੀਣਾ ਆਧਾਰੁ ॥
भउ खाणा पीणा आधारु ॥
ऐसे व्यक्ति को इनसे मुक्ति पाने के लिए प्रभु के भय को अपना भोजन-पानी एवं जीवन का आधार बनाना चाहिए।

ਵਿਣੁ ਖਾਧੇ ਮਰਿ ਹੋਹਿ ਗਵਾਰ ॥੩॥
विणु खाधे मरि होहि गवार ॥३॥
जो मूर्ख व्यक्ति प्रभु के भय का सेवन नहीं करते, वह मरते एवं बर्बाद होते रहते हैं।॥३॥

ਜਿਸ ਕਾ ਕੋਇ ਕੋਈ ਕੋਇ ਕੋਇ ॥
जिस का कोइ कोई कोइ कोइ ॥
यदि प्राणी का कोई अपना है तो वह कोई बहुत ही विरला है।

ਸਭੁ ਕੋ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਕਾ ਸੋਇ ॥
सभु को तेरा तूं सभना का सोइ ॥
हे परमेश्वर ! सभी जीव तेरे हैं और तुम सबके हो।

ਜਾ ਕੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਧਨੁ ਮਾਲੁ ॥
जा के जीअ जंत धनु मालु ॥
हे नानक ! जिस भगवान के ये जीव-जन्तु एवं धनमाल निर्मित किए हैं,

ਨਾਨਕ ਆਖਣੁ ਬਿਖਮੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥੪॥੨॥
नानक आखणु बिखमु बीचारु ॥४॥२॥
उस बारे कहना एवं विचार करना बड़ा कठिन है ॥ ४ ॥ २ ॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥

ਮਾਤਾ ਮਤਿ ਪਿਤਾ ਸੰਤੋਖੁ ॥
माता मति पिता संतोखु ॥
मैंने बुद्धि को अपनी माता, संतोष को अपना पिता

ਸਤੁ ਭਾਈ ਕਰਿ ਏਹੁ ਵਿਸੇਖੁ ॥੧॥
सतु भाई करि एहु विसेखु ॥१॥
और सत्य को अपना भाई बना लिया है। बुद्धि, संतोष एवं सत्य मेरे अच्छे संबंधी हैं।॥ १॥

ਕਹਣਾ ਹੈ ਕਿਛੁ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥
कहणा है किछु कहणु न जाइ ॥
भगवान के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ परन्तु मुझसे कुछ कहा नहीं जा सकता।

ਤਉ ਕੁਦਰਤਿ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तउ कुदरति कीमति नही पाइ ॥१॥ रहाउ ॥
हे भगवान ! तेरी कुदरत का मूल्यांकन नहीं पाया जा सकता ॥ १॥ रहाउ॥

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