Hindi Page 305

ਸਚਿਆਰ ਸਿਖ ਬਹਿ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸਿ ਘਾਲਨਿ ਕੂੜਿਆਰ ਨ ਲਭਨੀ ਕਿਤੈ ਥਾਇ ਭਾਲੇ ॥
सचिआर सिख बहि सतिगुर पासि घालनि कूड़िआर न लभनी कितै थाइ भाले ॥
सत्यवादी सिक्ख सतिगुरु के पास बैठते हैं और उनकी सेवा करते हैं। झूठों को खोज-तलाश करते हुए कहीं भी स्थान नहीं मिलता।

ਜਿਨਾ ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਆਖਿਆ ਸੁਖਾਵੈ ਨਾਹੀ ਤਿਨਾ ਮੁਹ ਭਲੇਰੇ ਫਿਰਹਿ ਦਯਿ ਗਾਲੇ ॥
जिना सतिगुर का आखिआ सुखावै नाही तिना मुह भलेरे फिरहि दयि गाले ॥
जिन्हें सतिगुरु के वचन अच्छे नहीं लगते, उनके चेहरे तिरस्कृत हैं और ईश्वर से अपमानित हुए वे भटकते फिरते हैं।

ਜਿਨ ਅੰਦਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਹੀ ਹਰਿ ਕੇਰੀ ਸੇ ਕਿਚਰਕੁ ਵੇਰਾਈਅਨਿ ਮਨਮੁਖ ਬੇਤਾਲੇ ॥
जिन अंदरि प्रीति नही हरि केरी से किचरकु वेराईअनि मनमुख बेताले ॥
जिनके ह्रदय में ईश्वर का प्रेम नहीं, उन स्वेच्छाचारी बेताल लोगों को कितनी देर तक दिलासा दिया जा सकता है?

ਸਤਿਗੁਰ ਨੋ ਮਿਲੈ ਸੁ ਆਪਣਾ ਮਨੁ ਥਾਇ ਰਖੈ ਓਹੁ ਆਪਿ ਵਰਤੈ ਆਪਣੀ ਵਥੁ ਨਾਲੇ ॥
सतिगुर नो मिलै सु आपणा मनु थाइ रखै ओहु आपि वरतै आपणी वथु नाले ॥
जो मनुष्य सतिगुरु को मिलता है, वह अपने मन को (विकारों से) अंकुश लगाकर रखता है। साथ ही, प्रभु के नाम की अपनी पूंजी का वह स्वयं ही इस्तेमाल करता है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਇਕਨਾ ਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਸੁਖੁ ਦੇਵੈ ਇਕਿ ਆਪੇ ਵਖਿ ਕਢੈ ਠਗਵਾਲੇ ॥੧॥
जन नानक इकना गुरु मेलि सुखु देवै इकि आपे वखि कढै ठगवाले ॥१॥
हे नानक! (जीव के वश में कुछ नहीं) गुरु से मिलाकर कुछ लोगों को प्रभु सुख प्रदान करता है एवं कुछ कपट करने वालों को अलग कर देता है॥ १॥

ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥

ਜਿਨਾ ਅੰਦਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹਰਿ ਤਿਨ ਕੇ ਕਾਜ ਦਯਿ ਆਦੇ ਰਾਸਿ ॥
जिना अंदरि नामु निधानु हरि तिन के काज दयि आदे रासि ॥
जिनके अन्तर्मन में भगवान का नाम रूपी भण्डार है, उनके कार्य ईश्वर स्वयं संवार देता है।

ਤਿਨ ਚੂਕੀ ਮੁਹਤਾਜੀ ਲੋਕਨ ਕੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅੰਗੁ ਕਰਿ ਬੈਠਾ ਪਾਸਿ ॥
तिन चूकी मुहताजी लोकन की हरि प्रभु अंगु करि बैठा पासि ॥
उन्हें दूसरे लोगों के सहारे की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि ईश्वर उनको अपना कर सदैव उनके साथ-साथ रहता है।

ਜਾਂ ਕਰਤਾ ਵਲਿ ਤਾ ਸਭੁ ਕੋ ਵਲਿ ਸਭਿ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਕਰਹਿ ਸਾਬਾਸਿ ॥
जां करता वलि ता सभु को वलि सभि दरसनु देखि करहि साबासि ॥
सब लोग उनका दर्शन करके उनकी प्रशंसा करते हैं क्योंकि जब सृजनहार परमात्मा स्वयं उनका पक्ष करता है तो प्रत्येक ही उनका पक्ष करेगा।

ਸਾਹੁ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਸਭੁ ਹਰਿ ਕਾ ਕੀਆ ਸਭਿ ਜਨ ਕਉ ਆਇ ਕਰਹਿ ਰਹਰਾਸਿ ॥
साहु पातिसाहु सभु हरि का कीआ सभि जन कउ आइ करहि रहरासि ॥
भगवान के बनाए हुए राजे-महाराजे भी प्रभु के सेवक के समक्ष वन्दना करते हैं।

ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਹਰਿ ਵਡਾ ਸੇਵਿ ਅਤੁਲੁ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
गुर पूरे की वडी वडिआई हरि वडा सेवि अतुलु सुखु पाइआ ॥
पूर्ण गुरु की महिमा महान है। महान ईश्वर की सेवा करने से अतुलनीय सुख प्राप्त होता है।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਦਾਨੁ ਦੀਆ ਹਰਿ ਨਿਹਚਲੁ ਨਿਤ ਬਖਸੇ ਚੜੈ ਸਵਾਇਆ ॥
गुरि पूरै दानु दीआ हरि निहचलु नित बखसे चड़ै सवाइआ ॥
पूर्ण गुरु के द्वारा ईश्वर ने दान दिया है, वह समाप्त नहीं होता, क्योंकि ईश्वर सदैव ही दया किए जाता है और वह दान दिनों-दिन बढ़ता रहता है।

ਕੋਈ ਨਿੰਦਕੁ ਵਡਿਆਈ ਦੇਖਿ ਨ ਸਕੈ ਸੋ ਕਰਤੈ ਆਪਿ ਪਚਾਇਆ ॥
कोई निंदकु वडिआई देखि न सकै सो करतै आपि पचाइआ ॥
जो कोई निंदक (ऐसे प्रभु के सेवक की) महानता देखकर सहन नहीं कर सकता, उसे सृजनहार ने स्वयं ईष्याग्नि में पीड़ित किया है।

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣ ਬੋਲੈ ਕਰਤੇ ਕੇ ਭਗਤਾ ਨੋ ਸਦਾ ਰਖਦਾ ਆਇਆ ॥੨॥
जनु नानकु गुण बोलै करते के भगता नो सदा रखदा आइआ ॥२॥
दास नानक विश्व के रचयिता परमात्मा की गुणस्तुति करता है, जो अपने भक्तो की सदैव रक्षा करता आया है ॥ २ ॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਤੂ ਸਾਹਿਬੁ ਅਗਮ ਦਇਆਲੁ ਹੈ ਵਡ ਦਾਤਾ ਦਾਣਾ ॥
तू साहिबु अगम दइआलु है वड दाता दाणा ॥
हे मेरे मालिक ! तू अगम्य एवं दया का घर है, बड़ा दाता एवं चतुर है,

ਤੁਧੁ ਜੇਵਡੁ ਮੈ ਹੋਰੁ ਕੋ ਦਿਸਿ ਨ ਆਵਈ ਤੂਹੈਂ ਸੁਘੜੁ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਣਾ ॥
तुधु जेवडु मै होरु को दिसि न आवई तूहैं सुघड़ु मेरै मनि भाणा ॥
मुझे तेरे समान बड़ा दूसरा कोई दिखाई नहीं देता, तुम ही बुद्धिमान हो, जो मेरे मन को प्रिय लगे हो।

ਮੋਹੁ ਕੁਟੰਬੁ ਦਿਸਿ ਆਵਦਾ ਸਭੁ ਚਲਣਹਾਰਾ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ॥
मोहु कुट्मबु दिसि आवदा सभु चलणहारा आवण जाणा ॥
जो मोह रूपी कुटुम्ब दिखाई देता है, सब क्षणभंगुर है और जन्म-मरण के अधीन है।

ਜੋ ਬਿਨੁ ਸਚੇ ਹੋਰਤੁ ਚਿਤੁ ਲਾਇਦੇ ਸੇ ਕੂੜਿਆਰ ਕੂੜਾ ਤਿਨ ਮਾਣਾ ॥
जो बिनु सचे होरतु चितु लाइदे से कूड़िआर कूड़ा तिन माणा ॥
जो मनुष्य सत्यस्वरूप परमात्मा के अलावा किसी दूसरे से मन लगाते हैं, वह झूठ के व्यापारी हैं और उनका इस पर अभिमान भी झूठा है।

ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਧਿਆਇ ਤੂ ਬਿਨੁ ਸਚੇ ਪਚਿ ਪਚਿ ਮੁਏ ਅਜਾਣਾ ॥੧੦॥
नानक सचु धिआइ तू बिनु सचे पचि पचि मुए अजाणा ॥१०॥
हे नानक ! सत्यस्वरूप परमात्मा का ध्यान कर, चूंकि सत्य (ईश्वर) से विहीन हुए मूर्ख जीव दुखी होकर मरते रहते हैं ॥१०॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥

ਅਗੋ ਦੇ ਸਤ ਭਾਉ ਨ ਦਿਚੈ ਪਿਛੋ ਦੇ ਆਖਿਆ ਕੰਮਿ ਨ ਆਵੈ ॥
अगो दे सत भाउ न दिचै पिछो दे आखिआ कमि न आवै ॥
स्वेच्छाचारी पुरुष पहले तो सतिगुरु को सम्मान नहीं देता, तत्पश्चात् उसकी शिक्षा का कोई फायदा नहीं होता,

ਅਧ ਵਿਚਿ ਫਿਰੈ ਮਨਮੁਖੁ ਵੇਚਾਰਾ ਗਲੀ ਕਿਉ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥
अध विचि फिरै मनमुखु वेचारा गली किउ सुखु पावै ॥
वह भाग्यहीन दुविधा में ही भटकता रहता है, यदि गुरु के प्रति श्रद्धा न हो तो सिर्फ बातों से कैसे सुख मिल सकता है ?

ਜਿਸੁ ਅੰਦਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਹੀ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸੁ ਕੂੜੀ ਆਵੈ ਕੂੜੀ ਜਾਵੈ ॥
जिसु अंदरि प्रीति नही सतिगुर की सु कूड़ी आवै कूड़ी जावै ॥
जिसके अन्तर्मन में सतिगुरु का प्रेम नहीं, वह दिखावे के लिए (गुरु-द्वार पर) आता जाता है।

ਜੇ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਕਰਤਾ ਤਾਂ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਦਰੀ ਆਵੈ ॥
जे क्रिपा करे मेरा हरि प्रभु करता तां सतिगुरु पारब्रहमु नदरी आवै ॥
यदि जगत् का रचयिता प्रभु-परमेश्वर दया करे तो दिखाई दे जाता है कि सतिगुरु भगवान का रूप है।

ਤਾ ਅਪਿਉ ਪੀਵੈ ਸਬਦੁ ਗੁਰ ਕੇਰਾ ਸਭੁ ਕਾੜਾ ਅੰਦੇਸਾ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥
ता अपिउ पीवै सबदु गुर केरा सभु काड़ा अंदेसा भरमु चुकावै ॥
वह तब गुरु का शब्द रूपी अमृत पान करता है और उसकी तमाम ईष्या, चिन्ता एवं दुविधा मिट जाते हैं।

ਸਦਾ ਅਨੰਦਿ ਰਹੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥੧॥
सदा अनंदि रहै दिनु राती जन नानक अनदिनु हरि गुण गावै ॥१॥
हे नानक ! वह दिन-रात सदैव ही प्रसन्न रहता है और सदा ही परमेश्वर की गुणस्तुति करता रहता है।॥ १॥

ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥

ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਜੋ ਸਿਖੁ ਅਖਾਏ ਸੁ ਭਲਕੇ ਉਠਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ॥
गुर सतिगुर का जो सिखु अखाए सु भलके उठि हरि नामु धिआवै ॥
जो मनुष्य सतिगुरु का (सच्चा) सिक्ख कहलाता है, वह प्रभातकाल उठकर ईश्वर के नाम का सिमरन करता है।

ਉਦਮੁ ਕਰੇ ਭਲਕੇ ਪਰਭਾਤੀ ਇਸਨਾਨੁ ਕਰੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰਿ ਨਾਵੈ ॥
उदमु करे भलके परभाती इसनानु करे अम्रित सरि नावै ॥
वह प्रतिदिन सुबह उद्यम करता है, स्नान करता है और फिर नाम-रूपी अमृत के सरोवर में डुबकी लगाता है।

ਉਪਦੇਸਿ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਜਾਪੈ ਸਭਿ ਕਿਲਵਿਖ ਪਾਪ ਦੋਖ ਲਹਿ ਜਾਵੈ ॥
उपदेसि गुरू हरि हरि जपु जापै सभि किलविख पाप दोख लहि जावै ॥
गुरु के उपदेश द्वारा वह प्रभु-परमेश्वर के नाम का जाप जपता है और इस प्रकार उसके तमाम पाप दोष निवृत हो जाते हैं।

ਫਿਰਿ ਚੜੈ ਦਿਵਸੁ ਗੁਰਬਾਣੀ ਗਾਵੈ ਬਹਦਿਆ ਉਠਦਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ॥
फिरि चड़ै दिवसु गुरबाणी गावै बहदिआ उठदिआ हरि नामु धिआवै ॥
फिर दिन निकलने पर गुरु की वाणी का कीर्त्तन करता है और उठते-बैठते प्रभु का नाम सिमरन करता रहता है।

ਜੋ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਧਿਆਏ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੋ ਗੁਰਸਿਖੁ ਗੁਰੂ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥
जो सासि गिरासि धिआए मेरा हरि हरि सो गुरसिखु गुरू मनि भावै ॥
जो गुरु का सिक्ख अपनी हर सांस एवं ग्रास से मेरे हरि-परमेश्वर की आराधना करता है, वह गुरु के मन को अच्छा लगने लग जाता है।

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