ਸੁਖੁ ਮਾਨੈ ਭੇਟੈ ਗੁਰ ਪੀਰੁ ॥
सुखु मानै भेटै गुर पीरु ॥
जिसे गुरु-पीर मिल जाता है, वह सदा सुख भोगता है।
ਏਕੋ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕੁ ਵਜੀਰੁ ॥੫॥
एको साहिबु एकु वजीरु ॥५॥
एक परमात्मा ही दुनिया का बादशाह है और खुद ही अपना एक वजीर है॥ ५ ॥
ਜਗੁ ਬੰਦੀ ਮੁਕਤੇ ਹਉ ਮਾਰੀ ॥
जगु बंदी मुकते हउ मारी ॥
यह समूचा जगत मोह-माया की कैद में है। जो अपना अभिमान मिटा देता है, वह मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
ਜਗਿ ਗਿਆਨੀ ਵਿਰਲਾ ਆਚਾਰੀ ॥
जगि गिआनी विरला आचारी ॥
जगत में कोई विरला ही ज्ञानी है, जिसका आचरण उस ज्ञान के अनुसार है।
ਜਗਿ ਪੰਡਿਤੁ ਵਿਰਲਾ ਵੀਚਾਰੀ ॥
जगि पंडितु विरला वीचारी ॥
जगत में पण्डित भी कोई विरला है, जो सही विचारक है।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਸਭ ਫਿਰੈ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥੬॥
बिनु सतिगुरु भेटे सभ फिरै अहंकारी ॥६॥
सतिगुरु को मिले बिना सभी अहंकार में भटकते हैं।॥ ६॥
ਜਗੁ ਦੁਖੀਆ ਸੁਖੀਆ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥
जगु दुखीआ सुखीआ जनु कोइ ॥
जगत दुखी है परन्तु कोई विरला पुरुष ही सुखी है।
ਜਗੁ ਰੋਗੀ ਭੋਗੀ ਗੁਣ ਰੋਇ ॥
जगु रोगी भोगी गुण रोइ ॥
जगत भोगी होने के कारण रोगी है और अपने गुणों को गंवा कर रोता है।
ਜਗੁ ਉਪਜੈ ਬਿਨਸੈ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥
जगु उपजै बिनसै पति खोइ ॥
जगत जन्मता है और अपनी प्रतिष्ठा गंवा कर यह मर जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਬੂਝੈ ਸੋਇ ॥੭॥
गुरमुखि होवै बूझै सोइ ॥७॥
जो गुरुमुख बन जाता है, वह इस तथ्य को समझ लेता है।७॥
ਮਹਘੋ ਮੋਲਿ ਭਾਰਿ ਅਫਾਰੁ ॥
महघो मोलि भारि अफारु ॥
प्रभु मूल्य में महंगा एवं भार में अनन्त है।
ਅਟਲ ਅਛਲੁ ਗੁਰਮਤੀ ਧਾਰੁ ॥
अटल अछलु गुरमती धारु ॥
हे प्राणी ! गुरु की मति से अटल एवं अछल प्रभु को अपने हृदय में धारण कर।
ਭਾਇ ਮਿਲੈ ਭਾਵੈ ਭਇਕਾਰੁ ॥
भाइ मिलै भावै भइकारु ॥
प्रेम द्वारा मनुष्य उससे मिल जाता है जो प्रभु के भय में कार्य करता है, वह उसे अच्छा लगने लग जाता है।
ਨਾਨਕੁ ਨੀਚੁ ਕਹੈ ਬੀਚਾਰੁ ॥੮॥੩॥
नानकु नीचु कहै बीचारु ॥८॥३॥
नानक यही विचारणीय बात कहता है॥ ८ ॥ ३ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥
ਏਕੁ ਮਰੈ ਪੰਚੇ ਮਿਲਿ ਰੋਵਹਿ ॥
एकु मरै पंचे मिलि रोवहि ॥
जब एक मरता है तो पाँचों संबंधी मिलकर रोते हैं।
ਹਉਮੈ ਜਾਇ ਸਬਦਿ ਮਲੁ ਧੋਵਹਿ ॥
हउमै जाइ सबदि मलु धोवहि ॥
यह अहंत्व की मैल तब दूर होती है, जब इन्सान यह मैल शब्द द्वारा शुद्ध कर लेता है।
ਸਮਝਿ ਸੂਝਿ ਸਹਜ ਘਰਿ ਹੋਵਹਿ ॥
समझि सूझि सहज घरि होवहि ॥
जो इस तथ्य को समझता है वह सहज घर में प्रवेश कर जाता है।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਸਗਲੀ ਪਤਿ ਖੋਵਹਿ ॥੧॥
बिनु बूझे सगली पति खोवहि ॥१॥
ज्ञान के बिना मनुष्य सारी प्रतिष्ठा गंवा लेता है॥ १॥
ਕਉਣੁ ਮਰੈ ਕਉਣੁ ਰੋਵੈ ਓਹੀ ॥
कउणु मरै कउणु रोवै ओही ॥
कौन मरता है और कौन उसे रोता है।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਭਸੈ ਸਿਰਿ ਤੋਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करण कारण सभसै सिरि तोही ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! एक तू ही जग का रचयिता है, तेरा हुक्म सबके सिर पर है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੂਏ ਕਉ ਰੋਵੈ ਦੁਖੁ ਕੋਇ ॥
मूए कउ रोवै दुखु कोइ ॥
यदि कोई मृतक को रोता है, वह वास्तव में दुख व्यक्त करता है।
ਸੋ ਰੋਵੈ ਜਿਸੁ ਬੇਦਨ ਹੋਇ ॥
सो रोवै जिसु बेदन होइ ॥
केवल रोता वही है जिस पर विपदा आ जाती है।
ਜਿਸੁ ਬੀਤੀ ਜਾਣੈ ਪ੍ਰਭ ਸੋਇ ॥
जिसु बीती जाणै प्रभ सोइ ॥
जिसके साथ बीतती है, उसकी दशा वह प्रभु ही जानता है।
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੨॥
आपे करता करे सु होइ ॥२॥
जो कुछ कर्ता प्रभु स्वयं करता है, वही कुछ होता है॥ २॥
ਜੀਵਤ ਮਰਣਾ ਤਾਰੇ ਤਰਣਾ ॥
जीवत मरणा तारे तरणा ॥
अहंकार को मारकर जीना ही भवसागर से पार करने के लिए एक नाव का काम करता है।
ਜੈ ਜਗਦੀਸ ਪਰਮ ਗਤਿ ਸਰਣਾ ॥
जै जगदीस परम गति सरणा ॥
उस जगदीश की जय करो, जिसकी शरण लेने से परमगति प्राप्त होती है।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣਾ ॥
हउ बलिहारी सतिगुर चरणा ॥
मैं सतिगुरु के चरणों पर बलिहारी जाता हूँ।
ਗੁਰੁ ਬੋਹਿਥੁ ਸਬਦਿ ਭੈ ਤਰਣਾ ॥੩॥
गुरु बोहिथु सबदि भै तरणा ॥३॥
गुरु जहाज है और उसके शब्द द्वारा भयानक संसार सागर से पार हुआ जा सकता है॥ ३॥
ਨਿਰਭਉ ਆਪਿ ਨਿਰੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ॥
निरभउ आपि निरंतरि जोति ॥
प्रभु स्वयं निर्भय है और उसकी ज्योति सबमें विद्यमान रहती है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸੂਤਕੁ ਜਗਿ ਛੋਤਿ ॥
बिनु नावै सूतकु जगि छोति ॥
नाम के बिना संसार में कहीं सूतक एवं कहीं छूत का वहम है।
ਦੁਰਮਤਿ ਬਿਨਸੈ ਕਿਆ ਕਹਿ ਰੋਤਿ ॥
दुरमति बिनसै किआ कहि रोति ॥
दुर्बुद्धि से मनुष्य नष्ट हो गया है इसलिए वह क्यों पुकार करता रोता है ?
ਜਨਮਿ ਮੂਏ ਬਿਨੁ ਭਗਤਿ ਸਰੋਤਿ ॥੪॥
जनमि मूए बिनु भगति सरोति ॥४॥
प्रभु-भक्ति एवं भजन सुने बिना मनुष्य जन्म-मरण के चक्र में फँसकर आता-जाता रहता है।॥ ४ ॥
ਮੂਏ ਕਉ ਸਚੁ ਰੋਵਹਿ ਮੀਤ ॥ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਰੋਵਹਿ ਨੀਤਾ ਨੀਤ ॥
मूए कउ सचु रोवहि मीत ॥ त्रै गुण रोवहि नीता नीत ॥
मरे हुए को असल में सच्चे मित्र ही रोते हैं। तीन गुणों (रजो, सतो, तमो) वाले मनुष्य सदैव ही रोते रहते हैं।
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਪਰਹਰਿ ਸਹਜਿ ਸੁਚੀਤ ॥
दुखु सुखु परहरि सहजि सुचीत ॥
दुख-सुख को त्याग कर अपने हृदय में प्रभु को धारण करो।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਉਪਉ ਕ੍ਰਿਸਨ ਪਰੀਤਿ ॥੫॥
तनु मनु सउपउ क्रिसन परीति ॥५॥
अपना तन-मन भगवान के प्रेम में समर्पित कर दो ॥ ५॥
ਭੀਤਰਿ ਏਕੁ ਅਨੇਕ ਅਸੰਖ ॥
भीतरि एकु अनेक असंख ॥
अनेक प्रकार के असंख्य ही जीव हैं पर सबके भीतर एक परमात्मा ही बसता है।
ਕਰਮ ਧਰਮ ਬਹੁ ਸੰਖ ਅਸੰਖ ॥
करम धरम बहु संख असंख ॥
बहुत सारे कर्म धर्म हैं, जिनकी संख्या असंख्य है।
ਬਿਨੁ ਭੈ ਭਗਤੀ ਜਨਮੁ ਬਿਰੰਥ ॥
बिनु भै भगती जनमु बिरंथ ॥
प्रभु के भय एवं भक्ति के बिना मनुष्य जन्म निरर्थक है।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਮਿਲਿ ਪਰਮਾਰੰਥ ॥੬॥
हरि गुण गावहि मिलि परमारंथ ॥६॥
हरि का गुणगान करने से परमार्थ मिल जाता है।॥ ६॥
ਆਪਿ ਮਰੈ ਮਾਰੇ ਭੀ ਆਪਿ ॥
आपि मरै मारे भी आपि ॥
किसी प्राणी की मृत्यु में मानो वही मरता है और उस प्राणी को प्रभु ही मारता है।
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥
आपि उपाए थापि उथापि ॥
प्रभु स्वयं पैदा करता है और पैदा करके वह स्वयं ही नाश कर देता है।
ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ਜੋਤੀ ਤੂ ਜਾਤਿ ॥
स्रिसटि उपाई जोती तू जाति ॥
हे ज्योतिस्वरूप भगवान ! तूने स्वयं ही सृष्टि की रचना की है और स्वयं ही अपनी ज्योति स्थापित कर दी है।
ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ਮਿਲਣੁ ਨਹੀ ਭ੍ਰਾਤਿ ॥੭॥
सबदु वीचारि मिलणु नही भ्राति ॥७॥
जो शब्द का चिन्तन करता है, वह प्रभु से मिल जाता है, इसमें कोई भ्रांति नहीं ॥ ७॥
ਸੂਤਕੁ ਅਗਨਿ ਭਖੈ ਜਗੁ ਖਾਇ ॥
सूतकु अगनि भखै जगु खाइ ॥
अग्नि में भी सूतक है, जब अग्नि भड़कती है तो वह जगत को भस्म कर देती है।
ਸੂਤਕੁ ਜਲਿ ਥਲਿ ਸਭ ਹੀ ਥਾਇ ॥
सूतकु जलि थलि सभ ही थाइ ॥
जल, धरती हर कहीं सूतक विद्यमान है।
ਨਾਨਕ ਸੂਤਕਿ ਜਨਮਿ ਮਰੀਜੈ ॥
नानक सूतकि जनमि मरीजै ॥
हे नानक ! सूतक में प्राणी जन्मते-मरते रहते हैं,
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੮॥੪॥
गुर परसादी हरि रसु पीजै ॥८॥४॥
गुरु की कृपा से हरि रस का पान करते रहना चाहिए॥८॥ ४॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रागु आसा महला १ ॥
रागु आसा महला १ ॥
ਆਪੁ ਵੀਚਾਰੈ ਸੁ ਪਰਖੇ ਹੀਰਾ ॥
आपु वीचारै सु परखे हीरा ॥
जो मनुष्य आप विचार करता है वह नाम रूपी हीरे की परख कर लेता है।
ਏਕ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਤਾਰੇ ਗੁਰ ਪੂਰਾ ॥
एक द्रिसटि तारे गुर पूरा ॥
पूर्ण गुरु अपनी एक कृपादृष्टि से ही मनुष्य का (संसार सागर से) उद्धार कर देता है।
ਗੁਰੁ ਮਾਨੈ ਮਨ ਤੇ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥੧॥
गुरु मानै मन ते मनु धीरा ॥१॥
जो इन्सान सच्चे दिल से गुरु पर श्रद्धा धारण करता है, उसका मन चंचल नहीं होता ॥ १॥
ਐਸਾ ਸਾਹੁ ਸਰਾਫੀ ਕਰੈ ॥
ऐसा साहु सराफी करै ॥
गुरु ऐसा साहुकार है जो अपने शिष्यों को परखता है।
ਸਾਚੀ ਨਦਰਿ ਏਕ ਲਿਵ ਤਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साची नदरि एक लिव तरै ॥१॥ रहाउ ॥
उसकी अचूक दयादृष्टि से मनुष्य को प्रभु-प्रेम की देन मिल जाती है और उसका उद्धार हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਪੂੰਜੀ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਸਾਰੁ ॥
पूंजी नामु निरंजन सारु ॥
निरंजन प्रभु के नाम की राशि-पूंजी सर्वोत्तम है।
ਨਿਰਮਲੁ ਸਾਚਿ ਰਤਾ ਪੈਕਾਰੁ ॥
निरमलु साचि रता पैकारु ॥
जो सत्य से रंगा हुआ है, वह महापुरुष पवित्र है।
ਸਿਫਤਿ ਸਹਜ ਘਰਿ ਗੁਰੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥੨॥
सिफति सहज घरि गुरु करतारु ॥२॥
उसकी प्रशंसा गान करने से वह गुरु-कर्तार को सहज ही अपने हृदय-घर में बसा लेता है॥ २॥
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
आसा मनसा सबदि जलाए ॥
जो अपनी आशा एवं तृष्णा को शब्द द्वारा जला देता है,
ਰਾਮ ਨਰਾਇਣੁ ਕਹੈ ਕਹਾਏ ॥
राम नराइणु कहै कहाए ॥
वह राम-नारायण के नाम का स्वयं भजन करता है और दूसरों से भी भजन करवाता है।
ਗੁਰ ਤੇ ਵਾਟ ਮਹਲੁ ਘਰੁ ਪਾਏ ॥੩॥
गुर ते वाट महलु घरु पाए ॥३॥
वह गुरु के माध्यम से प्रभु के महल एवं घर का मार्ग खोज लेता है॥ ३॥