Hindi Page 784

ਖਾਤ ਖਰਚਤ ਬਿਲਛਤ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਕਰਤੇ ਕੀ ਦਾਤਿ ਸਵਾਈ ਰਾਮ ॥
खात खरचत बिलछत सुखु पाइआ करते की दाति सवाई राम ॥
अब खाते-खर्चते एवं उपयोग करते हुए सुख ही उपलब्ध हुआ है, इस तरह परमात्मा की देन में दिन-ब-दिन वृद्धि हो रही है।

ਦਾਤਿ ਸਵਾਈ ਨਿਖੁਟਿ ਨ ਜਾਈ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਪਾਇਆ ॥
दाति सवाई निखुटि न जाई अंतरजामी पाइआ ॥
उसकी देन में वृद्धि हो रही है और कभी समाप्त नहीं होती, क्योंकि उस अन्तर्यामी प्रभु को पा लिया है।

ਕੋਟਿ ਬਿਘਨ ਸਗਲੇ ਉਠਿ ਨਾਠੇ ਦੂਖੁ ਨ ਨੇੜੈ ਆਇਆ ॥
कोटि बिघन सगले उठि नाठे दूखु न नेड़ै आइआ ॥
इस तरह करोड़ों ही विघ्न उठकर भाग गए हैं और कोई दुख भी निकट नहीं आया।

ਸਾਂਤਿ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਘਨੇਰੇ ਬਿਨਸੀ ਭੂਖ ਸਬਾਈ ॥
सांति सहज आनंद घनेरे बिनसी भूख सबाई ॥
मुझे शांति, सहजावस्था एवं अनेक आनंद प्राप्त हो गए हैं और तमाम भूख भी समाप्त हो गई है।

ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸੁਆਮੀ ਕੇ ਅਚਰਜੁ ਜਿਸੁ ਵਡਿਆਈ ਰਾਮ ॥੨॥
नानक गुण गावहि सुआमी के अचरजु जिसु वडिआई राम ॥२॥
हे नानक ! मैं तो अपने स्वामी प्रभु का ही गुणगान कर रहा हूँ, जिसकी महिमा अद्भुत है॥ २॥

ਜਿਸ ਕਾ ਕਾਰਜੁ ਤਿਨ ਹੀ ਕੀਆ ਮਾਣਸੁ ਕਿਆ ਵੇਚਾਰਾ ਰਾਮ ॥
जिस का कारजु तिन ही कीआ माणसु किआ वेचारा राम ॥
हे भाई ! जिसका यह कार्य था, उसने ही यह सम्पूर्ण किया है, इसमें मनुष्य बेचारा भला क्या कर सकता है ?

ਭਗਤ ਸੋਹਨਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਦਾ ਕਰਹਿ ਜੈਕਾਰਾ ਰਾਮ ॥
भगत सोहनि हरि के गुण गावहि सदा करहि जैकारा राम ॥
भक्तजन हरि का गुणगान करते हुए बड़े सुन्दर लगते हैं और वे सदैव उसकी जय-जयकार करते रहते हैं।

ਗੁਣ ਗਾਇ ਗੋਬਿੰਦ ਅਨਦ ਉਪਜੇ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਸੰਗਿ ਬਨੀ ॥
गुण गाइ गोबिंद अनद उपजे साधसंगति संगि बनी ॥
गोविंद का स्तुतिगान करने से उनके मन में बड़ा आनंद उत्पन्न होता है तथा साधु-संगति करने से उनकी प्रभु से प्रीति बनी रहती है।

ਜਿਨਿ ਉਦਮੁ ਕੀਆ ਤਾਲ ਕੇਰਾ ਤਿਸ ਕੀ ਉਪਮਾ ਕਿਆ ਗਨੀ ॥
जिनि उदमु कीआ ताल केरा तिस की उपमा किआ गनी ॥
जिस परमात्मा ने पावन सरोवर को बनाने का प्रयास किया है, उसकी उपमा वर्णन नहीं की जा सकती।

ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਪੁੰਨ ਕਿਰਿਆ ਮਹਾ ਨਿਰਮਲ ਚਾਰਾ ॥
अठसठि तीरथ पुंन किरिआ महा निरमल चारा ॥
इस सरोवर में स्नान करने से अड़सठ तीर्थों के स्नान, अनेक दान-पुण्य एवं सभी महानिर्मल कर्मो का फल मिल जाता है।

ਪਤਿਤ ਪਾਵਨੁ ਬਿਰਦੁ ਸੁਆਮੀ ਨਾਨਕ ਸਬਦ ਅਧਾਰਾ ॥੩॥
पतित पावनु बिरदु सुआमी नानक सबद अधारा ॥३॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे स्वामी ! पतितों को पावन करना तेरा धर्म है और मुझे तेरे शब्द का ही आसरा है॥ ३॥

ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਕਰਤਾ ਉਸਤਤਿ ਕਉਨੁ ਕਰੀਜੈ ਰਾਮ ॥
गुण निधान मेरा प्रभु करता उसतति कउनु करीजै राम ॥
सृष्टि-रचयिता मेरा प्रभु गुणों का भण्डार है और उसकी स्तुति भला कौन कर सकता है।

ਸੰਤਾ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਸੁਆਮੀ ਨਾਮੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਦੀਜੈ ਰਾਮ ॥
संता की बेनंती सुआमी नामु महा रसु दीजै राम ॥
हे स्वामी ! तेरे पास संतों की यही विनती है कि हमें नाम रूपी महारस दीजिए।

ਨਾਮੁ ਦੀਜੈ ਦਾਨੁ ਕੀਜੈ ਬਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਇਕ ਖਿਨੋ ॥
नामु दीजै दानु कीजै बिसरु नाही इक खिनो ॥
हमें नाम-दान दीजिए ताकि तू हमें एक क्षण भी विस्मृत न होवे।

ਗੁਣ ਗੋਪਾਲ ਉਚਰੁ ਰਸਨਾ ਸਦਾ ਗਾਈਐ ਅਨਦਿਨੋ ॥
गुण गोपाल उचरु रसना सदा गाईऐ अनदिनो ॥
हमें अपनी जीभ से सदैव उसके गुण गाते रहना चाहिए।

ਜਿਸੁ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਗੀ ਨਾਮ ਸੇਤੀ ਮਨੁ ਤਨੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭੀਜੈ ॥
जिसु प्रीति लागी नाम सेती मनु तनु अम्रित भीजै ॥
जिसकी नाम से प्रीति लग जाती है, उसका मन-तन नामामृत से भीग जाता है।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਇਛ ਪੁੰਨੀ ਪੇਖਿ ਦਰਸਨੁ ਜੀਜੈ ॥੪॥੭॥੧੦॥
बिनवंति नानक इछ पुंनी पेखि दरसनु जीजै ॥४॥७॥१०॥
नानक विनती करता है कि हे प्रभु ! मेरी इच्छा पूरी हो गई है और मैं तेरे दर्शन देखकर ही जिंदा हूँ॥ ४॥ ७ ॥ १० ॥

ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ
रागु सूही महला ५ छंत
रागु सूही महला ५ छंत

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਮਿਠ ਬੋਲੜਾ ਜੀ ਹਰਿ ਸਜਣੁ ਸੁਆਮੀ ਮੋਰਾ ॥
मिठ बोलड़ा जी हरि सजणु सुआमी मोरा ॥
मेरा स्वामी सज्जन हरि बहुत मीठा बोलने वाला है।

ਹਉ ਸੰਮਲਿ ਥਕੀ ਜੀ ਓਹੁ ਕਦੇ ਨ ਬੋਲੈ ਕਉਰਾ ॥
हउ समलि थकी जी ओहु कदे न बोलै कउरा ॥
मैं याद कर-करके थक चुकी हूँ, वह कभी भी कड़वा नहीं बोलता।

ਕਉੜਾ ਬੋਲਿ ਨ ਜਾਨੈ ਪੂਰਨ ਭਗਵਾਨੈ ਅਉਗਣੁ ਕੋ ਨ ਚਿਤਾਰੇ ॥
कउड़ा बोलि न जानै पूरन भगवानै अउगणु को न चितारे ॥
वह पूर्ण भगवान् कड़वा बोलना जानता ही नहीं और मेरा कोई अवगुण याद ही नहीं करता।

ਪਤਿਤ ਪਾਵਨੁ ਹਰਿ ਬਿਰਦੁ ਸਦਾਏ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਭੰਨੈ ਘਾਲੇ ॥
पतित पावनु हरि बिरदु सदाए इकु तिलु नही भंनै घाले ॥
पतितों को पावन करना उसका विरद् कहलाता है, वह किसी की साधना को तिल भर भी नहीं भूलता।

ਘਟ ਘਟ ਵਾਸੀ ਸਰਬ ਨਿਵਾਸੀ ਨੇਰੈ ਹੀ ਤੇ ਨੇਰਾ ॥
घट घट वासी सरब निवासी नेरै ही ते नेरा ॥
वह घट-घट में व्याप्त है, सर्वव्यापक है और हमारे बिल्कुल निकट ही रहता है।

ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਸਦਾ ਸਰਣਾਗਤਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਜਣੁ ਮੇਰਾ ॥੧॥
नानक दासु सदा सरणागति हरि अम्रित सजणु मेरा ॥१॥
दास नानक सदैव उसकी शरण में है, मेरा सज्जन हरि अमृत समान मीठा है॥ १॥

ਹਉ ਬਿਸਮੁ ਭਈ ਜੀ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਅਪਾਰਾ ॥
हउ बिसमु भई जी हरि दरसनु देखि अपारा ॥
हे भाई ! हरि का दर्शन देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गई हूँ।

ਮੇਰਾ ਸੁੰਦਰੁ ਸੁਆਮੀ ਜੀ ਹਉ ਚਰਨ ਕਮਲ ਪਗ ਛਾਰਾ ॥
मेरा सुंदरु सुआमी जी हउ चरन कमल पग छारा ॥
मेरा स्वामी बड़ा सुन्दर है और मैं उसके चरणों की धूल मात्र हूँ।

ਪ੍ਰਭ ਪੇਖਤ ਜੀਵਾ ਠੰਢੀ ਥੀਵਾ ਤਿਸੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
प्रभ पेखत जीवा ठंढी थीवा तिसु जेवडु अवरु न कोई ॥
मैं प्रभु को देखकर ही जीवित रहती हूँ व बड़ी शांति मिलती है और उस जैसा महान् अन्य कोई नहीं।

ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਮਧਿ ਪ੍ਰਭੁ ਰਵਿਆ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਸੋਈ ॥
आदि अंति मधि प्रभु रविआ जलि थलि महीअलि सोई ॥
जगत् के आरम्भ, मध्य, एवं अन्त में प्रभु ही विद्यमान है, वह समुद्र, जमीन एवं आसमान में व्यापक है।

ਚਰਨ ਕਮਲ ਜਪਿ ਸਾਗਰੁ ਤਰਿਆ ਭਵਜਲ ਉਤਰੇ ਪਾਰਾ ॥
चरन कमल जपि सागरु तरिआ भवजल उतरे पारा ॥
मैं उसके चरण-कमल को जपकर संसार-सागर से तर गया हूँ और भवसागर से पार हो गया हूँ।

ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰਾ ॥੨॥
नानक सरणि पूरन परमेसुर तेरा अंतु न पारावारा ॥२॥
नानक वंदना करता है कि हे पूर्ण परमेश्वर ! मैं तेरी शरण में आया हूँ, तेरा कोई आर-पार नहीं ॥ २॥

ਹਉ ਨਿਮਖ ਨ ਛੋਡਾ ਜੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੋ ॥
हउ निमख न छोडा जी हरि प्रीतम प्रान अधारो ॥
प्रियतम हरि मेरे प्राणों का आधार है और मैं उसका नाम, एक क्षण भर के लिए भी नहीं छोड़ता।

ਗੁਰਿ ਸਤਿਗੁਰ ਕਹਿਆ ਜੀ ਸਾਚਾ ਅਗਮ ਬੀਚਾਰੋ ॥
गुरि सतिगुर कहिआ जी साचा अगम बीचारो ॥
गुरु ने मुझे उपदेश दिया है कि उस सच्चे प्रभु का ही चिंतन करो।

ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਦੀਨਾ ਤਾ ਨਾਮੁ ਲੀਨਾ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖ ਨਾਠੇ ॥
मिलि साधू दीना ता नामु लीना जनम मरण दुख नाठे ॥
मैंने साधु को मिलकर अपना तन-मन सौंपकर उन से नाम लिया है, अब मेरे जन्म-मरण के दुख भाग गए हैं।

ਸਹਜ ਸੂਖ ਆਨੰਦ ਘਨੇਰੇ ਹਉਮੈ ਬਿਨਠੀ ਗਾਠੇ ॥
सहज सूख आनंद घनेरे हउमै बिनठी गाठे ॥
मेरे मन में सहज सुख एवं बेशुमार आनंद पैदा हो गया है और मेरी अहंत्व की गांठ नाश हो गई है।

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