Hindi Page 1060

ਅਨਦਿਨੁ ਸਦਾ ਰਹੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭਗਤਿ ਕਰਾਇਦਾ ॥੬॥
अनदिनु सदा रहै रंगि राता करि किरपा भगति कराइदा ॥६॥
भक्त सदैव प्रभु-प्रेम में लीन रहता है और प्रभु स्वयं ही कृपा करके भक्ति करवाता है ॥६॥

ਇਸੁ ਮਨ ਮੰਦਰ ਮਹਿ ਮਨੂਆ ਧਾਵੈ ॥
इसु मन मंदर महि मनूआ धावै ॥
इस शरीर में मन भटकता रहता है और

ਸੁਖੁ ਪਲਰਿ ਤਿਆਗਿ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥
सुखु पलरि तिआगि महा दुखु पावै ॥
पुआल जैसी व्यर्थ माया के लिए आत्मिक सुख को त्याग कर महा दुख प्राप्त करता है।

ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਠਉਰ ਨ ਪਾਵੈ ਆਪੇ ਖੇਲੁ ਕਰਾਇਦਾ ॥੭॥
बिनु सतिगुर भेटे ठउर न पावै आपे खेलु कराइदा ॥७॥
सतिगुरु से साक्षात्कार किए बिना कोई भी सुख का ठिकाना नहीं पा सकता है और परमात्मा स्वयं ही यह लीला करवाता है॥ ७॥

ਆਪਿ ਅਪਰੰਪਰੁ ਆਪਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥
आपि अपर्मपरु आपि वीचारी ॥
ईश्वर स्वयं ही अपरंपार है, स्वयं ही विचारवान् है और

ਆਪੇ ਮੇਲੇ ਕਰਣੀ ਸਾਰੀ ॥
आपे मेले करणी सारी ॥
स्वयं ही जीव से शुभ-कर्म करवा कर मिला लेता है।

ਕਿਆ ਕੋ ਕਾਰ ਕਰੇ ਵੇਚਾਰਾ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੮॥
किआ को कार करे वेचारा आपे बखसि मिलाइदा ॥८॥
यह जीव बेचारा कोई कार्य क्या कर सकता है, ईश्वर स्वयं ही अनुकंपा करके उसे अपने साथ मिला लेता है॥ ८॥

ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਪੂਰਾ ॥
आपे सतिगुरु मेले पूरा ॥
वह स्वयं ही जीव को पूर्ण सतिगुरु से मिला देता है और

ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਮਹਾਬਲ ਸੂਰਾ ॥
सचै सबदि महाबल सूरा ॥
उसे सच्चे शब्द द्वारा महाबली शूरवीर बना देता है।

ਆਪੇ ਮੇਲੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ਸਚੇ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇਦਾ ॥੯॥
आपे मेले दे वडिआई सचे सिउ चितु लाइदा ॥९॥
वह स्वयं ही मिलाकर बड़ाई प्रदान करता है और जीव का चित सत्य से लगा देता है।॥ ९॥

ਘਰ ਹੀ ਅੰਦਰਿ ਸਾਚਾ ਸੋਈ ॥
घर ही अंदरि साचा सोई ॥
हृदय-घर में वह परम-सत्य ही विद्यमान है और

ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥
गुरमुखि विरला बूझै कोई ॥
कोई विरला गुरुमुख ही इस रहस्य को बूझता है।

ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਵਸਿਆ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਦਾ ॥੧੦॥
नामु निधानु वसिआ घट अंतरि रसना नामु धिआइदा ॥१०॥
जिसके ह्रदय में नाम रूपी भण्डार बस गया है, उसकी रसना नाम का ही भजन करती रहती है॥ १०॥

ਦਿਸੰਤਰੁ ਭਵੈ ਅੰਤਰੁ ਨਹੀ ਭਾਲੇ ॥
दिसंतरु भवै अंतरु नही भाले ॥
सत्य की खोज में मानव देश-देशान्तर भटकता रहता है किन्तु अपने अन्तर्मन में खोज नहीं करता।

ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਬਧਾ ਜਮਕਾਲੇ ॥
माइआ मोहि बधा जमकाले ॥
माया-मोह में बंधा हुआ वह यमकाल के शिकंजे में आ जाता है।

ਜਮ ਕੀ ਫਾਸੀ ਕਬਹੂ ਨ ਤੂਟੈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਭਰਮਾਇਦਾ ॥੧੧॥
जम की फासी कबहू न तूटै दूजै भाइ भरमाइदा ॥११॥
वह द्वैतभाव में भटकता रहता है और उसकी यम की फाँसी कभी नहीं टूटती॥ ११॥

ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਹੋਰੁ ਕੋਈ ਨਾਹੀ ॥
जपु तपु संजमु होरु कोई नाही ॥
तब तक कोई जप, तप, संयम एवं कोई अन्य उपाय उसका कल्याण नहीं कर सकता

ਜਬ ਲਗੁ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਨ ਕਮਾਹੀ ॥
जब लगु गुर का सबदु न कमाही ॥
जब तक मनुष्य गुरु के शब्द अनुरूप आचरण नहीं अपनाता,”

ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਿਆ ਸਚੁ ਪਾਇਆ ਸਚੇ ਸਚਿ ਸਮਾਇਦਾ ॥੧੨॥
गुर कै सबदि मिलिआ सचु पाइआ सचे सचि समाइदा ॥१२॥
जिसे गुरु के शब्द द्वारा सत्य मिल गया है, वह परम-सत्य में ही विलीन हो गया है॥ १२॥

ਕਾਮ ਕਰੋਧੁ ਸਬਲ ਸੰਸਾਰਾ ॥
काम करोधु सबल संसारा ॥
संसार में काम-क्रोध बहुत बली है,”

ਬਹੁ ਕਰਮ ਕਮਾਵਹਿ ਸਭੁ ਦੁਖ ਕਾ ਪਸਾਰਾ ॥
बहु करम कमावहि सभु दुख का पसारा ॥
जीव अनेक धर्म-कर्म करता रहता है किन्तु यह सब दुखों का ही प्रसार है।

ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੧੩॥
सतिगुर सेवहि से सुखु पावहि सचै सबदि मिलाइदा ॥१३॥
जो सतिगुरु की सेवा करते हैं, वही सुख पाते हैं और गुरु उन्हें सच्चे शब्द द्वारा परमात्मा से मिला देता है। १३॥

ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਹੈ ਬੈਸੰਤਰੁ ॥
पउणु पाणी है बैसंतरु ॥
यह शरीर पवन, पानी, अग्नि से बना हुआ है और

ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਵਰਤੈ ਸਭ ਅੰਤਰਿ ॥
माइआ मोहु वरतै सभ अंतरि ॥
माया का मोह सब जीवों के भीतर कार्यशील है।

ਜਿਨਿ ਕੀਤੇ ਜਾ ਤਿਸੈ ਪਛਾਣਹਿ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਦਾ ॥੧੪॥
जिनि कीते जा तिसै पछाणहि माइआ मोहु चुकाइदा ॥१४॥
जिसने पंच तत्वों से पैदा किया है, जब जीव उस रचनहार को पहचान लेता है तो उसका माया-मोह दूर हो जाता है॥ १४॥

ਇਕਿ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਗਰਬਿ ਵਿਆਪੇ ॥
इकि माइआ मोहि गरबि विआपे ॥
कई जीव माया मोह में अभिमानी बने रहते हैं और

ਹਉਮੈ ਹੋਇ ਰਹੇ ਹੈ ਆਪੇ ॥
हउमै होइ रहे है आपे ॥
अहंकार के कारण अपने आप ही सब कुछ बन बैठते हैं।

ਜਮਕਾਲੈ ਕੀ ਖਬਰਿ ਨ ਪਾਈ ਅੰਤਿ ਗਇਆ ਪਛੁਤਾਇਦਾ ॥੧੫॥
जमकालै की खबरि न पाई अंति गइआ पछुताइदा ॥१५॥
जिस व्यक्ति को यमकाल की खबर नहीं हुई, वह अंतकाल जगत् में से पछताता ही गया है॥ १५॥

ਜਿਨਿ ਉਪਾਏ ਸੋ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥
जिनि उपाए सो बिधि जाणै ॥
जिसने उत्पन्न किया है, वही युक्ति को जानता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੇਵੈ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣੈ ॥
गुरमुखि देवै सबदु पछाणै ॥
गुरु जिसे शब्द देता है, वह पहचान लेता है।

ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇਦਾ ॥੧੬॥੨॥੧੬॥
नानक दासु कहै बेनंती सचि नामि चितु लाइदा ॥१६॥२॥१६॥
दास नानक विनती करता है कि वह अपना चित सत्य-नाम में ही लगाता है॥ १६॥ २॥ १६॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मारू महला ३ ॥
मारू महला ३॥

ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਦਇਆਪਤਿ ਦਾਤਾ ॥
आदि जुगादि दइआपति दाता ॥
सृष्टि-रचना से पूर्व एवं युगों के प्रारम्भ में दयालु दाता (परमात्मा) ही है,”

ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥
पूरे गुर कै सबदि पछाता ॥
जिसे पूर्ण गुरु के शब्द द्वारा ही भक्तों ने पहचाना है।

ਤੁਧੁਨੋ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਤੁਝਹਿ ਸਮਾਵਹਿ ਤੂ ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੧॥
तुधुनो सेवहि से तुझहि समावहि तू आपे मेलि मिलाइदा ॥१॥
हे परमेश्वर ! जो तेरी उपासना करते हैं, वे तुझ में ही समा जाते हैं और तू स्वयं ही उन्हें अपने साथ मिलाता है॥ १॥

ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥
अगम अगोचरु कीमति नही पाई ॥
तू जीवों की पहुँच से परे एवं इन्द्रियातीत है और किसी ने भी तेरी कीमत नहीं ऑकी।

ਜੀਅ ਜੰਤ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥
जीअ जंत तेरी सरणाई ॥
सभी जीव-जन्तु तेरी ही शरण में हैं।

ਜਿਉ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਵਹਿ ਤੂ ਆਪੇ ਮਾਰਗਿ ਪਾਇਦਾ ॥੨॥
जिउ तुधु भावै तिवै चलावहि तू आपे मारगि पाइदा ॥२॥
जैसे तू चाहता है, वैसे ही जीवों को चलाता है और तू स्वयं ही सन्मार्ग प्रदान करता है॥ २॥

ਹੈ ਭੀ ਸਾਚਾ ਹੋਸੀ ਸੋਈ ॥
है भी साचा होसी सोई ॥
अब भी परम-सत्य निरंकार ही है और भविष्य में भी वही रहेगा।

ਆਪੇ ਸਾਜੇ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
आपे साजे अवरु न कोई ॥
वह स्वयं ही बनाने वाला है, अन्य कोई समर्थ नहीं।

ਸਭਨਾ ਸਾਰ ਕਰੇ ਸੁਖਦਾਤਾ ਆਪੇ ਰਿਜਕੁ ਪਹੁਚਾਇਦਾ ॥੩॥
सभना सार करे सुखदाता आपे रिजकु पहुचाइदा ॥३॥
सुख देने वाला परमात्मा सबकी देखरेख करता है और स्वयं ही रिजक पहुँचाता है॥ ३॥

ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਅਲਖ ਅਪਾਰਾ ॥
अगम अगोचरु अलख अपारा ॥
हे अगम्य, अगोचर, अलख-अपार !

ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੈ ਤੇਰਾ ਪਰਵਾਰਾ ॥
कोइ न जाणै तेरा परवारा ॥
कोई भी तेरा आर-पार नहीं जानता।

ਆਪਣਾ ਆਪੁ ਪਛਾਣਹਿ ਆਪੇ ਗੁਰਮਤੀ ਆਪਿ ਬੁਝਾਇਦਾ ॥੪॥
आपणा आपु पछाणहि आपे गुरमती आपि बुझाइदा ॥४॥
तू स्वयं ही अपने आपको पहचानता है और गुरु उपदेश द्वारा ही अपने बारे में ज्ञान प्रदान करता है॥ ४॥

ਪਾਤਾਲ ਪੁਰੀਆ ਲੋਅ ਆਕਾਰਾ ॥ ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਵਰਤੈ ਹੁਕਮੁ ਕਰਾਰਾ ॥
पाताल पुरीआ लोअ आकारा ॥ तिसु विचि वरतै हुकमु करारा ॥
हे निरंकार ! समूचे पातालों, पुरियों एवं लोकों में तेरा ही सख्त हुक्म चल रहा है।

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