Hindi Page 1242

ਪੁਛਾ ਦੇਵਾਂ ਮਾਣਸਾਂ ਜੋਧ ਕਰਹਿ ਅਵਤਾਰ ॥
पुछा देवां माणसां जोध करहि अवतार ॥
देवताओं, मनुष्यों, योद्धाओं एवं अवतारों से तथ्य को पूछे ।

ਸਿਧ ਸਮਾਧੀ ਸਭਿ ਸੁਣੀ ਜਾਇ ਦੇਖਾਂ ਦਰਬਾਰੁ ॥
सिध समाधी सभि सुणी जाइ देखां दरबारु ॥
सिद्धों की समाधि में ईश्वर का यश सुन लूं, उसके दरबार का वैभव जाकर देखें।

ਅਗੈ ਸਚਾ ਸਚਿ ਨਾਇ ਨਿਰਭਉ ਭੈ ਵਿਣੁ ਸਾਰੁ ॥
अगै सचा सचि नाइ निरभउ भै विणु सारु ॥
आगे सब परम सत्य, निर्भय प्रभु का सच्चा नाम ही है।

ਹੋਰ ਕਚੀ ਮਤੀ ਕਚੁ ਪਿਚੁ ਅੰਧਿਆ ਅੰਧੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
होर कची मती कचु पिचु अंधिआ अंधु बीचारु ॥
अन्य सब कच्ची बुद्धि, व्यर्थ एवं अज्ञानांध विचार है।

ਨਾਨਕ ਕਰਮੀ ਬੰਦਗੀ ਨਦਰਿ ਲੰਘਾਏ ਪਾਰਿ ॥੨॥
नानक करमी बंदगी नदरि लंघाए पारि ॥२॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि परमात्मा की कृपा से ही बंदगी होती है, यदि कृपा-दृष्टि हो जाए तो संसार-सागर से पार लंघा देती है॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਦੁਰਮਤਿ ਗਈ ਮਤਿ ਪਰਗਟੀ ਆਇਆ ॥
नाइ मंनिऐ दुरमति गई मति परगटी आइआ ॥
परमेश्वर के नाम-मनन से दुर्मति दूर हो जाती है और सद्बुद्धि प्रगट हो जाती है।

ਨਾਉ ਮੰਨਿਐ ਹਉਮੈ ਗਈ ਸਭਿ ਰੋਗ ਗਵਾਇਆ ॥
नाउ मंनिऐ हउमै गई सभि रोग गवाइआ ॥
यदि ईश्वर के नाम का मनन किया जाए तो अहम्-भाव एवं सब रोग दूर हो जाते हैं।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਨਾਮੁ ਊਪਜੈ ਸਹਜੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
नाइ मंनिऐ नामु ऊपजै सहजे सुखु पाइआ ॥
प्रभु-नाम के मनन से हरिनामोच्चारण ही उपजता है और स्वाभाविक सुख-शान्ति प्राप्त होती है।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਸਾਂਤਿ ਊਪਜੈ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥
नाइ मंनिऐ सांति ऊपजै हरि मंनि वसाइआ ॥
नाम के मनन से मन में शान्ति पैदा होती है और प्रभु मन में अवस्थित होता है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਰਤੰਨੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥੧੧॥
नानक नामु रतंनु है गुरमुखि हरि धिआइआ ॥११॥
हे नानक ! हरि-नाम अमूल्य रत्न है, गुरुमुख ने परमात्मा का भजन किया है॥११॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १॥

ਹੋਰੁ ਸਰੀਕੁ ਹੋਵੈ ਕੋਈ ਤੇਰਾ ਤਿਸੁ ਅਗੈ ਤੁਧੁ ਆਖਾਂ ॥
होरु सरीकु होवै कोई तेरा तिसु अगै तुधु आखां ॥
हे सृष्टिकर्ता ! यदि कोई दूसरा तेरा शरीक हो तो उसके समक्ष तेरा ही यश गाऊँगा।

ਤੁਧੁ ਅਗੈ ਤੁਧੈ ਸਾਲਾਹੀ ਮੈ ਅੰਧੇ ਨਾਉ ਸੁਜਾਖਾ ॥
तुधु अगै तुधै सालाही मै अंधे नाउ सुजाखा ॥
तेरे पास तेरी प्रशंसा कर रहा हूँ, मैं बेशक अंधा हूँ, पर नाम मेरा दूरदर्शी पड़ गया है।

ਜੇਤਾ ਆਖਣੁ ਸਾਹੀ ਸਬਦੀ ਭਾਖਿਆ ਭਾਇ ਸੁਭਾਈ ॥
जेता आखणु साही सबदी भाखिआ भाइ सुभाई ॥
जितना कहता हूँ, सब शब्दों में ही हो रहा है और कहना भी स्वभावानुसार ही है।

ਨਾਨਕ ਬਹੁਤਾ ਏਹੋ ਆਖਣੁ ਸਭ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥
नानक बहुता एहो आखणु सभ तेरी वडिआई ॥१॥
गुरु नानक का कथन है कि मेरा अधिकतर यही कहना है कि सब तेरी कीर्ति है॥१॥

ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥

ਜਾਂ ਨ ਸਿਆ ਕਿਆ ਚਾਕਰੀ ਜਾਂ ਜੰਮੇ ਕਿਆ ਕਾਰ ॥
जां न सिआ किआ चाकरी जां जमे किआ कार ॥
जब प्राणी का कोई अस्तित्व नहीं था, तब क्या नौकरी करता था। जब जन्म ले लिया तो फिर भला कोन-सी अपनी मर्जी से काम कर रहा है।

ਸਭਿ ਕਾਰਣ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਦੇਖੈ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥
सभि कारण करता करे देखै वारो वार ॥
परमेश्वर ही सब कारण करता है और बार-बार देखरेख करता है।

ਜੇ ਚੁਪੈ ਜੇ ਮੰਗਿਐ ਦਾਤਿ ਕਰੇ ਦਾਤਾਰੁ ॥
जे चुपै जे मंगिऐ दाति करे दातारु ॥
यदि चुप रहा जाए अथवा मांगा जाए, वह देने वाला स्वेच्छा से देता है।

ਇਕੁ ਦਾਤਾ ਸਭਿ ਮੰਗਤੇ ਫਿਰਿ ਦੇਖਹਿ ਆਕਾਰੁ ॥
इकु दाता सभि मंगते फिरि देखहि आकारु ॥
यद्यपि पूरा संसार घूमकर देखा जाए तो भी यही ज्ञात होता है कि एकमात्र ईश्वर ही दाता है, सब लोग भिखारी हैं।

ਨਾਨਕ ਏਵੈ ਜਾਣੀਐ ਜੀਵੈ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥੨॥
नानक एवै जाणीऐ जीवै देवणहारु ॥२॥
हे नानक ! यही मानना चाहिए कि देने वाला परमेश्वर सदा शाश्वत है।२ ॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पाउड़ी ॥

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਸੁਰਤਿ ਊਪਜੈ ਨਾਮੇ ਮਤਿ ਹੋਈ ॥
नाइ मंनिऐ सुरति ऊपजै नामे मति होई ॥
परमात्मा के नाम-मनन से ज्ञान एवं सद्बुद्धि उत्पन्न होती है।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਗੁਣ ਉਚਰੈ ਨਾਮੇ ਸੁਖਿ ਸੋਈ ॥
नाइ मंनिऐ गुण उचरै नामे सुखि सोई ॥
हरिनाम को मानने से गुणों का उच्चारण होता है और सुखों की प्राप्ति होती है।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਭ੍ਰਮੁ ਕਟੀਐ ਫਿਰਿ ਦੁਖੁ ਨ ਹੋਈ ॥
नाइ मंनिऐ भ्रमु कटीऐ फिरि दुखु न होई ॥
नाम-मनन से सब भ्रम कट जाते हैं और पुनः कोई दुख प्रभावित नहीं करता।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਸਾਲਾਹੀਐ ਪਾਪਾਂ ਮਤਿ ਧੋਈ ॥
नाइ मंनिऐ सालाहीऐ पापां मति धोई ॥
नाम-मनन से पाप-बुद्धि धुल जाती है और ईश्वर का स्तुतिगान होता है

ਨਾਨਕ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਨਾਉ ਮੰਨੀਐ ਜਿਨ ਦੇਵੈ ਸੋਈ ॥੧੨॥
नानक पूरे गुर ते नाउ मंनीऐ जिन देवै सोई ॥१२॥
हे नानक ! पूर्ण गुरु से ही हरी नाम का मनन होता है जिसे स्वयं ऐसी शक्ति देता है ॥१२॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १ ॥

ਸਾਸਤ੍ਰ ਬੇਦ ਪੁਰਾਣ ਪੜ੍ਹ੍ਹੰਤਾ ॥
सासत्र बेद पुराण पड़्हंता ॥
पण्डित शास्त्रों, वेदों एवं पुराणों का पठन करता है,

ਪੂਕਾਰੰਤਾ ਅਜਾਣੰਤਾ ॥
पूकारंता अजाणंता ॥
सस्वर लोगों को सुनाता है।

ਜਾਂ ਬੂਝੈ ਤਾਂ ਸੂਝੈ ਸੋਈ ॥
जां बूझै तां सूझै सोई ॥
जब ज्ञान होता है तो ही तथ्य की सूझ होती है।

ਨਾਨਕੁ ਆਖੈ ਕੂਕ ਨ ਹੋਈ ॥੧॥
नानकु आखै कूक न होई ॥१॥
हे नानक ! फिर चिल्ला-चिल्लाकर लोगों को नहीं कहता ॥१॥

ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १ ॥

ਜਾਂ ਹਉ ਤੇਰਾ ਤਾਂ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਮੇਰਾ ਹਉ ਨਾਹੀ ਤੂ ਹੋਵਹਿ ॥
जां हउ तेरा तां सभु किछु मेरा हउ नाही तू होवहि ॥
जब मैं तेरा हूँ तो सबकुछ मेरा ही है, मैं नहीं तो भी तू ही होता है।

ਆਪੇ ਸਕਤਾ ਆਪੇ ਸੁਰਤਾ ਸਕਤੀ ਜਗਤੁ ਪਰੋਵਹਿ ॥
आपे सकता आपे सुरता सकती जगतु परोवहि ॥
तू सर्वशक्तिमान है, स्वयं ही बुद्धिमान है और अपनी शक्ति से संसार को पिरोया हुआ है।

ਆਪੇ ਭੇਜੇ ਆਪੇ ਸਦੇ ਰਚਨਾ ਰਚਿ ਰਚਿ ਵੇਖੈ ॥
आपे भेजे आपे सदे रचना रचि रचि वेखै ॥
प्रभु स्वयं ही भेजता है, स्वयं ही बुला लेता है और सृष्टि की रचना करके देखता है।

ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਸਚੀ ਨਾਂਈ ਸਚੁ ਪਵੈ ਧੁਰਿ ਲੇਖੈ ॥੨॥
नानक सचा सची नांई सचु पवै धुरि लेखै ॥२॥
हे नानक ! सच्चे नाम से ही जीव सत्यशील होता है और सत्यशील ही प्रभु दरबार में मान्य होता है॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਅਲਖੁ ਹੈ ਕਿਉ ਲਖਿਆ ਜਾਈ ॥
नामु निरंजन अलखु है किउ लखिआ जाई ॥
नाम निरंजन अदृष्ट है, उसे किस तरह देखा जा सकता है।

ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਨਾਲਿ ਹੈ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਭਾਈ ॥
नामु निरंजन नालि है किउ पाईऐ भाई ॥
पावन प्रभु नाम हमारे साथ ही है, उसे कैसे पाया जा सकता है।

ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਵਰਤਦਾ ਰਵਿਆ ਸਭ ਠਾਂਈ ॥
नामु निरंजन वरतदा रविआ सभ ठांई ॥
निरंजन नाम समूची सृष्टि में कार्यशील है।

ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਾਈਐ ਹਿਰਦੈ ਦੇਇ ਦਿਖਾਈ ॥
गुर पूरे ते पाईऐ हिरदै देइ दिखाई ॥
पूर्ण गुरु से ही प्राप्त होता है और हृदय में ही दिखाई देता है।

ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਕਰਮੁ ਹੋਇ ਗੁਰ ਮਿਲੀਐ ਭਾਈ ॥੧੩॥
नानक नदरी करमु होइ गुर मिलीऐ भाई ॥१३॥
नानक का कथन है कि हे भाई ! पर गुरु भी प्रभु की कृपा-दृष्टि से ही मिलता है॥ १३॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १ ॥

ਕਲਿ ਹੋਈ ਕੁਤੇ ਮੁਹੀ ਖਾਜੁ ਹੋਆ ਮੁਰਦਾਰੁ ॥
कलि होई कुते मुही खाजु होआ मुरदारु ॥
कलियुग के लोग कुत्ते की तरह लालची हो गए हैं और रिश्वत एवं घूसखोरी ही इनका भोजन है।

ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬੋਲਿ ਭਉਕਣਾ ਚੂਕਾ ਧਰਮੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
कूड़ु बोलि बोलि भउकणा चूका धरमु बीचारु ॥
ये झूठ बोल-बोलकर भौंकते हैं और धर्म-कर्त्तव्य की बात खत्म हो गई है।

ਜਿਨ ਜੀਵੰਦਿਆ ਪਤਿ ਨਹੀ ਮੁਇਆ ਮੰਦੀ ਸੋਇ ॥
जिन जीवंदिआ पति नही मुइआ मंदी सोइ ॥
जिनकी जिंदा रहते इज्जत नहीं, मरने के बाद भी बदनामी ही होती है।

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