ਧਾਵਤੁ ਰਾਖੈ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ॥
धावतु राखै ठाकि रहाए ॥
इससे चंचल मन काबू में आ जाता है और
ਸਚਾ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥੪॥
सचा नामु मंनि वसाए ॥४॥
सच्चा नाम मन में अवस्थित हो जाता है।॥ ४॥
ਬਿਸਮ ਬਿਨੋਦ ਰਹੇ ਪਰਮਾਦੀ ॥
बिसम बिनोद रहे परमादी ॥
प्रमाद उत्पन्न करने वाले खेल-तमाशे खत्म हो जाते हैं।
ਗੁਰਮਤਿ ਮਾਨਿਆ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
गुरमति मानिआ एक लिव लागी ॥
गुरु की शिक्षा पर भरोसा रखकर एक ईश्वर में ध्यान लगा रहता है।
ਦੇਖਿ ਨਿਵਾਰਿਆ ਜਲ ਮਹਿ ਆਗੀ ॥
देखि निवारिआ जल महि आगी ॥
दर्शन करके जीव तृष्णाग्नि को नाम जल से दूर कर देता है।
ਸੋ ਬੂਝੈ ਹੋਵੈ ਵਡਭਾਗੀ ॥੫॥
सो बूझै होवै वडभागी ॥५॥
इस रहस्य को समझने वाला भाग्यशाली माना जाता है॥ ५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
सतिगुरु सेवे भरमु चुकाए ॥
जीव यदि सतिगुरु की सेवा करे तो उसका हर भ्रम दूर हो जाता है,
ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੈ ਸਚਿ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
अनदिनु जागै सचि लिव लाए ॥
वह दिन-रात जाग्रत रहकर ईश्वर में ध्यानस्थ रहता है।
ਏਕੋ ਜਾਣੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
एको जाणै अवरु न कोइ ॥
एक परमशक्ति के अलावा वह किसी को नहीं मानता और
ਸੁਖਦਾਤਾ ਸੇਵੇ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥੬॥
सुखदाता सेवे निरमलु होइ ॥६॥
सुखदाता प्रभु की उपासना से वह निर्मल हो जाता है।॥ ६॥
ਸੇਵਾ ਸੁਰਤਿ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
सेवा सुरति सबदि वीचारि ॥
जब शब्द के चिंतन द्वारा सेवा में ध्यान लगता है तो
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ॥
जपु तपु संजमु हउमै मारि ॥
अहंम् समाप्त हो जाता है, यही जप तप संयम है।
ਜੀਵਨ ਮੁਕਤੁ ਜਾ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥
जीवन मुकतु जा सबदु सुणाए ॥
शब्द को सुनने वाला जीवन्मुक्त होता है और
ਸਚੀ ਰਹਤ ਸਚਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥੭॥
सची रहत सचा सुखु पाए ॥७॥
सत्कर्म द्वारा सच्चा सुख पाता है॥ ७॥
ਸੁਖਦਾਤਾ ਦੁਖੁ ਮੇਟਣਹਾਰਾ ॥
सुखदाता दुखु मेटणहारा ॥
ईश्वर सुख देने वाला है, सब दुखों को मिटाने वाला है
ਅਵਰੁ ਨ ਸੂਝਸਿ ਬੀਜੀ ਕਾਰਾ ॥
अवरु न सूझसि बीजी कारा ॥
उसकी भक्ति के अतिरिक्त अन्य सब कर्म व्यर्थ हैं।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਹਰਿ ਆਗੈ ਰਾਖਿਆ ॥
तनु मनु धनु हरि आगै राखिआ ॥
नानक का कथन है कि जो जिज्ञासु अपना तन-मन धन सर्वस्व प्रभु के सम्मुख अर्पण करता है,
ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਮਹਾ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ॥੮॥੨॥
नानकु कहै महा रसु चाखिआ ॥८॥२॥
उसे ही महारस प्राप्त होता है॥ ८॥ २॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥
ਨਿਵਲੀ ਕਰਮ ਭੁਅੰਗਮ ਭਾਠੀ ਰੇਚਕ ਪੂਰਕ ਕੁੰਭ ਕਰੈ ॥
निवली करम भुअंगम भाठी रेचक पूरक कु्मभ करै ॥
मनुष्य न्योली कर्म करता है, कुण्डलिनी द्वारा साँस को भरने, रोकने तथा छोड़ने की क्रिया करता है।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕਿਛੁ ਸੋਝੀ ਨਾਹੀ ਭਰਮੇ ਭੂਲਾ ਬੂਡਿ ਮਰੈ ॥
बिनु सतिगुर किछु सोझी नाही भरमे भूला बूडि मरै ॥
परन्तु सच्चे गुरु के बिना कोई ज्ञान नहीं होता और भ्रम में गलतियाँ करते हुए डूब मरता है।
ਅੰਧਾ ਭਰਿਆ ਭਰਿ ਭਰਿ ਧੋਵੈ ਅੰਤਰ ਕੀ ਮਲੁ ਕਦੇ ਨ ਲਹੈ ॥
अंधा भरिआ भरि भरि धोवै अंतर की मलु कदे न लहै ॥
अज्ञानांध व्यक्ति शरीर को तो खूब साफ करता है, परन्तु उसकी मन की मैल कभी नहीं उतरती।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਫੋਕਟ ਸਭਿ ਕਰਮਾ ਜਿਉ ਬਾਜੀਗਰੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲੈ ॥੧॥
नाम बिना फोकट सभि करमा जिउ बाजीगरु भरमि भुलै ॥१॥
प्रभु नाम के बिना सब कर्म व्यर्थ हैं, जिस प्रकार बाजीगर लोगों को भ्रम में डाल रखता है॥ १॥
ਖਟੁ ਕਰਮ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸੋਈ ॥
खटु करम नामु निरंजनु सोई ॥
परमात्मा का पावन नाम ही छः कर्म हैं।
ਤੂ ਗੁਣ ਸਾਗਰੁ ਅਵਗੁਣ ਮੋਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तू गुण सागरु अवगुण मोही ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! तू गुणों का सागर है, लेकिन मुझ में केवल अवगुण ही भरे हुए हैं।॥ १॥रहाउ॥
ਮਾਇਆ ਧੰਧਾ ਧਾਵਣੀ ਦੁਰਮਤਿ ਕਾਰ ਬਿਕਾਰ ॥
माइआ धंधा धावणी दुरमति कार बिकार ॥
मनुष्य माया के धंधों में भागदौड़ करता है, खोटी बुद्धि के कारण विकारयुक्त कार्य करता है।
ਮੂਰਖੁ ਆਪੁ ਗਣਾਇਦਾ ਬੂਝਿ ਨ ਸਕੈ ਕਾਰ ॥
मूरखु आपु गणाइदा बूझि न सकै कार ॥
मूर्ख व्यक्ति अभिमान में आकर स्वयं को बड़ा मानता है, लेकिन सच्चे कार्य को नहीं समझता।
ਮਨਸਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਣੀ ਮਨਮੁਖ ਬੋਲ ਖੁਆਰ ॥
मनसा माइआ मोहणी मनमुख बोल खुआर ॥
माया में मोहित होकर वह वासनाओं में फस जाता है, ऐसा स्वेच्छाचारी कटु वचन ही बोलता है।
ਮਜਨੁ ਝੂਠਾ ਚੰਡਾਲ ਕਾ ਫੋਕਟ ਚਾਰ ਸੀਂਗਾਰ ॥੨॥
मजनु झूठा चंडाल का फोकट चार सींगार ॥२॥
उस चाण्डाल का स्नान भी झूठा होता है और चार प्रकार का कमों वाला श्रृंगार भी व्यर्थ सिद्ध होता है॥ २॥
ਝੂਠੀ ਮਨ ਕੀ ਮਤਿ ਹੈ ਕਰਣੀ ਬਾਦਿ ਬਿਬਾਦੁ ॥
झूठी मन की मति है करणी बादि बिबादु ॥
उसकी मन की मति झूठी होती है और जीवन-आचरण वाद-विवाद ही बना रहता है।
ਝੂਠੇ ਵਿਚਿ ਅਹੰਕਰਣੁ ਹੈ ਖਸਮ ਨ ਪਾਵੈ ਸਾਦੁ ॥
झूठे विचि अहंकरणु है खसम न पावै सादु ॥
ऐसा अहंकारी झूठ में फंसा रहता है और मालिक का आनंद नहीं पाता।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਹੋਰੁ ਕਮਾਵਣਾ ਫਿਕਾ ਆਵੈ ਸਾਦੁ ॥
बिनु नावै होरु कमावणा फिका आवै सादु ॥
हरिनाम स्मरण बिना अन्य कर्म करने से आनंद प्राप्त नहीं होता।
ਦੁਸਟੀ ਸਭਾ ਵਿਗੁਚੀਐ ਬਿਖੁ ਵਾਤੀ ਜੀਵਣ ਬਾਦਿ ॥੩॥
दुसटी सभा विगुचीऐ बिखु वाती जीवण बादि ॥३॥
दुष्ट लोगों की संगत में रहने से दुख ही मिलते हैं और जहर पाने से जिन्दगी समाप्त ही होती है।॥ ३॥
ਏ ਭ੍ਰਮਿ ਭੂਲੇ ਮਰਹੁ ਨ ਕੋਈ ॥
ए भ्रमि भूले मरहु न कोई ॥
हे भ्रम में भूले हुए लोगो ! किसी भूल में मत पड़ो,
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
सतिगुरु सेवि सदा सुखु होई ॥
सतिगुरु की सेवा में तल्लीन रहने से सदैव सुख पाया जा सकता है।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈ ॥
बिनु सतिगुर मुकति किनै न पाई ॥
सतिगुरु के बिना किसी ने भी मुक्ति प्राप्त नहीं की,
ਆਵਹਿ ਜਾਂਹਿ ਮਰਹਿ ਮਰਿ ਜਾਈ ॥੪॥
आवहि जांहि मरहि मरि जाई ॥४॥
अन्यथा आवागमन में जीव बार-बार जन्मता-मरता है॥ ४॥
ਏਹੁ ਸਰੀਰੁ ਹੈ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਧਾਤੁ ॥
एहु सरीरु है त्रै गुण धातु ॥
यह शरीर तीन गुणों का बना हुआ है और
ਇਸ ਨੋ ਵਿਆਪੈ ਸੋਗ ਸੰਤਾਪੁ ॥
इस नो विआपै सोग संतापु ॥
इसे शोक-संताप सताते रहते हैं।
ਸੋ ਸੇਵਹੁ ਜਿਸੁ ਮਾਈ ਨ ਬਾਪੁ ॥
सो सेवहु जिसु माई न बापु ॥
सो उस परमात्मा की उपासना करो, जिसकी कोई माता अथवा पिता नहीं।
ਵਿਚਹੁ ਚੂਕੈ ਤਿਸਨਾ ਅਰੁ ਆਪੁ ॥੫॥
विचहु चूकै तिसना अरु आपु ॥५॥
मन से तृष्णा एवं अहम् को दूर करो॥ ५॥
ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਤਹ ਸੋਈ ॥
जह जह देखा तह तह सोई ॥
मैं जहाँ भी देखता हूँ, वहाँ परमेश्वर ही विद्यमान है।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥
बिनु सतिगुर भेटे मुकति न होई ॥
परन्तु सतगुरु से भेंट किए बिना मुक्ति नहीं होती।
ਹਿਰਦੈ ਸਚੁ ਏਹ ਕਰਣੀ ਸਾਰੁ ॥
हिरदै सचु एह करणी सारु ॥
हृदय में सत्य को धारण करना ही उत्तम कर्म है,
ਹੋਰੁ ਸਭੁ ਪਾਖੰਡੁ ਪੂਜ ਖੁਆਰੁ ॥੬॥
होरु सभु पाखंडु पूज खुआरु ॥६॥
अन्य पूजा-पाठ सब पाखण्ड है॥ ६॥
ਦੁਬਿਧਾ ਚੂਕੈ ਤਾਂ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣੁ ॥
दुबिधा चूकै तां सबदु पछाणु ॥
जब दुविधा दूर होती है तो शब्द की पहचान हो जाती है।
ਘਰਿ ਬਾਹਰਿ ਏਕੋ ਕਰਿ ਜਾਣੁ ॥
घरि बाहरि एको करि जाणु ॥
तब जीव घर बाहर एक प्रभु को ही मानता है।
ਏਹਾ ਮਤਿ ਸਬਦੁ ਹੈ ਸਾਰੁ ॥
एहा मति सबदु है सारु ॥
शब्द को मानना ही उत्तम बुद्धि है,
ਵਿਚਿ ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਥੈ ਪਵੈ ਛਾਰੁ ॥੭॥
विचि दुबिधा माथै पवै छारु ॥७॥
दुविधा में अपमान ही प्राप्त होता है॥ ७॥
ਕਰਣੀ ਕੀਰਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਰੁ ॥
करणी कीरति गुरमति सारु ॥
गुरु का उत्तम सिद्धांत यही है कि शुभ कर्म ही परमात्मा का कीर्ति-गान करना है।
ਸੰਤ ਸਭਾ ਗੁਣ ਗਿਆਨੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
संत सभा गुण गिआनु बीचारु ॥
संत पुरुषों की संगत में प्रभु के गुणों एवं ज्ञान का चिंतन होता है।
ਮਨੁ ਮਾਰੇ ਜੀਵਤ ਮਰਿ ਜਾਣੁ ॥
मनु मारे जीवत मरि जाणु ॥
जो मन की वासनाओं को समाप्त कर देता है, वही जीवन्मुक्त माना जाता है।
ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਨਦਰਿ ਪਛਾਣੁ ॥੮॥੩॥
नानक नदरी नदरि पछाणु ॥८॥३॥
हे नानक ! परमात्मा की कृपा-दृष्टि से ही इसकी पहचान होती है।॥ ८॥ ३॥