Hindi Page 317

ਜੋ ਮਾਰੇ ਤਿਨਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਸੇ ਕਿਸੈ ਨ ਸੰਦੇ ॥
जो मारे तिनि पारब्रहमि से किसै न संदे ॥
जो मनुष्य पारब्रह्म द्वारा मृत हैं, वे किसी के (सगे) नहीं।

ਵੈਰੁ ਕਰਨਿ ਨਿਰਵੈਰ ਨਾਲਿ ਧਰਮਿ ਨਿਆਇ ਪਚੰਦੇ ॥
वैरु करनि निरवैर नालि धरमि निआइ पचंदे ॥
यह धर्म का न्याय है कि जो लोग निर्वेरों के साथ वैर करते हैं, वे बहुत दुखी होते हैं।

ਜੋ ਜੋ ਸੰਤਿ ਸਰਾਪਿਆ ਸੇ ਫਿਰਹਿ ਭਵੰਦੇ ॥
जो जो संति सरापिआ से फिरहि भवंदे ॥
जो व्यक्ति संतों से शापित हैं, वे योनियों में भटकते रहते हैं।

ਪੇਡੁ ਮੁੰਢਾਹੂ ਕਟਿਆ ਤਿਸੁ ਡਾਲ ਸੁਕੰਦੇ ॥੩੧॥
पेडु मुंढाहू कटिआ तिसु डाल सुकंदे ॥३१॥
जब वृक्ष जड़ से उखाड़ दिया जाता है तो इसकी टहनियाँ भी सूख जाती हैं।॥ ३१॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ॥५॥

ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਭੰਨਣ ਘੜਣ ਸਮਰਥੁ ॥
गुर नानक हरि नामु द्रिड़ाइआ भंनण घड़ण समरथु ॥
हे नानक ! मेरे मन में गुरु ने उस भगवान का नाम दृढ़ किया है, जो सहज ही सृष्टि की रचना एवं सृष्टि का विनाश करने में समर्थ है।

ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਸਮਾਲਹਿ ਮਿਤ੍ਰ ਤੂ ਦੁਖੁ ਸਬਾਇਆ ਲਥੁ ॥੧॥
प्रभु सदा समालहि मित्र तू दुखु सबाइआ लथु ॥१॥
हे मित्र ! यदि तू भगवान को सदैव स्मरण करे तो तेरे तमाम दुःख निवृत्त हो जाएँ॥ १॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਖੁਧਿਆਵੰਤੁ ਨ ਜਾਣਈ ਲਾਜ ਕੁਲਾਜ ਕੁਬੋਲੁ ॥
खुधिआवंतु न जाणई लाज कुलाज कुबोलु ॥
भूखा मनुष्य मान-अपमान तथा अपशब्दों की परवाह नहीं करता।

ਨਾਨਕੁ ਮਾਂਗੈ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸੰਜੋਗੁ ॥੨॥
नानकु मांगै नामु हरि करि किरपा संजोगु ॥२॥
हे हरि ! नानक तो तेरा नाम ही माँगता है, इसलिए कृपा करके ऐसा संयोग बना दे॥ २॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਜੇਵੇਹੇ ਕਰਮ ਕਮਾਵਦਾ ਤੇਵੇਹੇ ਫਲਤੇ ॥
जेवेहे करम कमावदा तेवेहे फलते ॥
इन्सान जैसा कर्म करता है, उसका वैसा ही फल प्राप्त करता है।

ਚਬੇ ਤਤਾ ਲੋਹ ਸਾਰੁ ਵਿਚਿ ਸੰਘੈ ਪਲਤੇ ॥
चबे तता लोह सारु विचि संघै पलते ॥
यदि कोई इन्सान गर्म एवं कड़ा लोहा चबाए तो वह गले में चुभ जाता है।

ਘਤਿ ਗਲਾਵਾਂ ਚਾਲਿਆ ਤਿਨਿ ਦੂਤਿ ਅਮਲ ਤੇ ॥
घति गलावां चालिआ तिनि दूति अमल ते ॥
उसके खोटे कर्मों के कारण यमदूत उसके गले में रस्सा डालकर आगे धकेल देता है।

ਕਾਈ ਆਸ ਨ ਪੁੰਨੀਆ ਨਿਤ ਪਰ ਮਲੁ ਹਿਰਤੇ ॥
काई आस न पुंनीआ नित पर मलु हिरते ॥
उसकी कोई भी आशा पूरी नहीं होती, वह हमेशा पराई मैल चोरी करता है।

ਕੀਆ ਨ ਜਾਣੈ ਅਕਿਰਤਘਣ ਵਿਚਿ ਜੋਨੀ ਫਿਰਤੇ ॥
कीआ न जाणै अकिरतघण विचि जोनी फिरते ॥
कृतघ्न इन्सान भगवान के किए हुए उपकार का आभार व्यक्त नहीं करता, इसलिए योनियों में भटकता रहता है।

ਸਭੇ ਧਿਰਾਂ ਨਿਖੁਟੀਅਸੁ ਹਿਰਿ ਲਈਅਸੁ ਧਰ ਤੇ ॥
सभे धिरां निखुटीअसु हिरि लईअसु धर ते ॥
जब उसके समस्त सहारे समाप्त हो जाते हैं तो फल भोगने हेतु ईश्वर उसे दुनिया से उठा लेता है।

ਵਿਝਣ ਕਲਹ ਨ ਦੇਵਦਾ ਤਾਂ ਲਇਆ ਕਰਤੇ ॥
विझण कलह न देवदा तां लइआ करते ॥
वह लड़ाई की अग्नि यो बुझने नहीं देता था, इसलिए परमात्मा ने उसे समेट लिया है।

ਜੋ ਜੋ ਕਰਤੇ ਅਹੰਮੇਉ ਝੜਿ ਧਰਤੀ ਪੜਤੇ ॥੩੨॥
जो जो करते अहमेउ झड़ि धरती पड़ते ॥३२॥
जो जो लोग अभिमान करते हैं, वे ढह कर धरती पर ही गिरते हैं॥ ३२ ॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨੁ ਬਿਬੇਕ ਬੁਧਿ ਹੋਇ ॥
गुरमुखि गिआनु बिबेक बुधि होइ ॥
गुरमुख में ही ज्ञान तथा विवेक बुद्धि होती है।

ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਹਿਰਦੈ ਹਾਰੁ ਪਰੋਇ ॥
हरि गुण गावै हिरदै हारु परोइ ॥
वह भगवान की महिमा-स्तुति करता है और अपने ह्रदय में उनकी माला पिरोता है।

ਪਵਿਤੁ ਪਾਵਨੁ ਪਰਮ ਬੀਚਾਰੀ ॥
पवितु पावनु परम बीचारी ॥
वह पवित्र-पावन एवं उच्च बुद्धि वाला होता है।

ਜਿ ਓਸੁ ਮਿਲੈ ਤਿਸੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੀ ॥
जि ओसु मिलै तिसु पारि उतारी ॥
जो व्यक्ति उसकी संगति करता है, वह उसे भी भवसागर से पार करवा देता है।

ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬਾਸਨਾ ਸਮਾਣੀ ॥
अंतरि हरि नामु बासना समाणी ॥
उसके हृदय में प्रभु नाम (रूपी) सुगन्ध समाई होती है,

ਹਰਿ ਦਰਿ ਸੋਭਾ ਮਹਾ ਉਤਮ ਬਾਣੀ ॥
हरि दरि सोभा महा उतम बाणी ॥
वह भगवान के दरबार में बड़ी शोभा प्राप्त करता है और उसकी वाणी सर्वोत्तम होती है,

ਜਿ ਪੁਰਖੁ ਸੁਣੈ ਸੁ ਹੋਇ ਨਿਹਾਲੁ ॥
जि पुरखु सुणै सु होइ निहालु ॥
जो पुरुष उस वाणी को सुनता है, वह कृतार्थ हो जाता है।

ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਮਾਲੁ ॥੧॥
नानक सतिगुर मिलिऐ पाइआ नामु धनु मालु ॥१॥
हे नानक ! सतिगुरु को मिलकर उसने यह नाम (रूपी) धन-सम्पति प्राप्त की है॥ १॥

ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥

ਸਤਿਗੁਰ ਕੇ ਜੀਅ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਪੈ ਕਿ ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਵੈ ॥
सतिगुर के जीअ की सार न जापै कि पूरै सतिगुर भावै ॥
सतिगुरु के हृदय का भेद इन्सान की समझ में नहीं आ सकता कि सतिगुरु को क्या भला लगता है।

ਗੁਰਸਿਖਾਂ ਅੰਦਰਿ ਸਤਿਗੁਰੂ ਵਰਤੈ ਜੋ ਸਿਖਾਂ ਨੋ ਲੋਚੈ ਸੋ ਗੁਰ ਖੁਸੀ ਆਵੈ ॥
गुरसिखां अंदरि सतिगुरू वरतै जो सिखां नो लोचै सो गुर खुसी आवै ॥
परन्तु सतिगुरु गुरसिक्खों के हृदय में मौजूद है। जो मनुष्य उनकी (सेवा की) कामना करता है, वह गुरु की प्रसन्नता के दायरे में आ जाता है।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਆਖੈ ਸੁ ਕਾਰ ਕਮਾਵਨਿ ਸੁ ਜਪੁ ਕਮਾਵਹਿ ਗੁਰਸਿਖਾਂ ਕੀ ਘਾਲ ਸਚਾ ਥਾਇ ਪਾਵੈ ॥
सतिगुरु आखै सु कार कमावनि सु जपु कमावहि गुरसिखां की घाल सचा थाइ पावै ॥
“(क्योंकि) सतिगुरु जो आज्ञा देता है, वही काम गुरसिक्ख करते हैं। सत्य के घर में गुरु के सिक्खों की सेवा स्वीकार हो जाती है।

ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕੇ ਹੁਕਮੈ ਜਿ ਗੁਰਸਿਖਾਂ ਪਾਸਹੁ ਕੰਮੁ ਕਰਾਇਆ ਲੋੜੇ ਤਿਸੁ ਗੁਰਸਿਖੁ ਫਿਰਿ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ॥
विणु सतिगुर के हुकमै जि गुरसिखां पासहु कमु कराइआ लोड़े तिसु गुरसिखु फिरि नेड़ि न आवै ॥
जो मनुष्य सतिगुरु की आज्ञा के विरुद्ध गुरसिक्खों के पास से काम कराना चाहे, गुरु का सिक्ख फिर उसके निकट नहीं जाता,

ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਅਗੈ ਕੋ ਜੀਉ ਲਾਇ ਘਾਲੈ ਤਿਸੁ ਅਗੈ ਗੁਰਸਿਖੁ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ॥
गुर सतिगुर अगै को जीउ लाइ घालै तिसु अगै गुरसिखु कार कमावै ॥
“(परन्तु) जो मनुष्य सतिगुरु के दरबार में एकाग्रचित होकर सेवा करता है, गुरसिक्ख उसकी सेवा करता है।

ਜਿ ਠਗੀ ਆਵੈ ਠਗੀ ਉਠਿ ਜਾਇ ਤਿਸੁ ਨੇੜੈ ਗੁਰਸਿਖੁ ਮੂਲਿ ਨ ਆਵੈ ॥
जि ठगी आवै ठगी उठि जाइ तिसु नेड़ै गुरसिखु मूलि न आवै ॥
जो मनुष्य छल-कपट करने हेतु आता है और छल-कपट के ख्याल में चला जाता है, उसके निकट गुरु का सिक्ख कभी नहीं आता।

ਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰੁ ਨਾਨਕੁ ਆਖਿ ਸੁਣਾਵੈ ॥
ब्रहमु बीचारु नानकु आखि सुणावै ॥
नानक यही ब्रह्म विचार कह कर सुनाता है केि

ਜਿ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕੇ ਮਨੁ ਮੰਨੇ ਕੰਮੁ ਕਰਾਏ ਸੋ ਜੰਤੁ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥੨॥
जि विणु सतिगुर के मनु मंने कमु कराए सो जंतु महा दुखु पावै ॥२॥
जो व्यक्ति सतिगुरु के मन को प्रसन्न किए बिना कार्य कराता है, वह व्यक्ति बहुत दुख भोगता है॥ २॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਤੂੰ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਅਤਿ ਵਡਾ ਤੁਹਿ ਜੇਵਡੁ ਤੂੰ ਵਡ ਵਡੇ ॥
तूं सचा साहिबु अति वडा तुहि जेवडु तूं वड वडे ॥
हे परमात्मा ! तू ही सच्चा मालिक है जो सबसे महान है तथा तुझ जैसा तू स्वयं ही महान है, अन्य कोई नहीं।

ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਮੇਲਹਿ ਸੋ ਤੁਧੁ ਮਿਲੈ ਤੂੰ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਲੈਹਿ ਲੇਖਾ ਛਡੇ ॥
जिसु तूं मेलहि सो तुधु मिलै तूं आपे बखसि लैहि लेखा छडे ॥
जिसे तू अपने साथ मिलाता है, वही तुझसे मिलता है। तू स्वयं ही उसका लेखा छोड़कर उसे क्षमा कर देता है।

ਜਿਸ ਨੋ ਤੂੰ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ਸੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਮਨੁ ਗਡ ਗਡੇ ॥
जिस नो तूं आपि मिलाइदा सो सतिगुरु सेवे मनु गड गडे ॥
जिसे तू आप मिलाता है, वही मन लगाकर सतिगुरु की सेवा करता है।

ਤੂੰ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੁ ਤੂ ਸਭੁ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਚੰਮੁ ਤੇਰਾ ਹਡੇ ॥
तूं सचा साहिबु सचु तू सभु जीउ पिंडु चमु तेरा हडे ॥
हे प्रभु ! तू सत्य है, तू सच्चा मालिक है, जीवों का सब कुछ-प्राण, शरीर, त्वचा, अस्थि-तेरा ही दिया हुआ है।

ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਖੁ ਤੂੰ ਸਚਿਆ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਆਸ ਤੇਰੀ ਵਡ ਵਡੇ ॥੩੩॥੧॥ ਸੁਧੁ ॥
जिउ भावै तिउ रखु तूं सचिआ नानक मनि आस तेरी वड वडे ॥३३॥१॥ सुधु ॥
हे सत्यस्वरूप परमात्मा ! जैसे तुझे उपयुक्त लगता है, वैसे ही हमें रख लो, नानक के मन में तेरी ही आशा है॥ ३३॥ १॥ शुद्ध ॥

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