ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥੪॥੨੫॥੩੮॥
करि किरपा नानक सुखु पाए ॥४॥२५॥३८॥
नानक की विनती है कि हे प्रभु ! कृपा करो, ताकि सुख प्राप्त हो॥४॥ २५॥ ३८॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਰਹਾ ਕਲਿ ਮਾਹਿ ॥
तेरी टेक रहा कलि माहि ॥
हे मालिक ! इस घोर कलियुग में तेरे आसरे ही रहता हूँ और
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਹਿ ॥
तेरी टेक तेरे गुण गाहि ॥
तेरे आसरे तेरे ही गुण गाता हूँ।
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਨ ਪੋਹੈ ਕਾਲੁ ॥
तेरी टेक न पोहै कालु ॥
तेरी टेक पाने से मृत्यु भी मुझे स्पर्श नहीं करती,
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਬਿਨਸੈ ਜੰਜਾਲੁ ॥੧॥
तेरी टेक बिनसै जंजालु ॥१॥
तेरा आसरा पाने से सब जंजाल नष्ट हो गए हैं।॥१॥
ਦੀਨ ਦੁਨੀਆ ਤੇਰੀ ਟੇਕ ॥
दीन दुनीआ तेरी टेक ॥
दीन-दुनिया को तेरा ही अवलम्ब है और
ਸਭ ਮਹਿ ਰਵਿਆ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सभ महि रविआ साहिबु एक ॥१॥ रहाउ ॥
सब में केवल मालिक ही व्याप्त है॥१॥ रहाउ॥
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਕਰਉ ਆਨੰਦ ॥
तेरी टेक करउ आनंद ॥
तेरे आसरे ही आनंद करता हूँ और
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਜਪਉ ਗੁਰ ਮੰਤ ॥
तेरी टेक जपउ गुर मंत ॥
तेरे आसरे ही गुरु-मंत्र जपता हूँ।
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਤਰੀਐ ਭਉ ਸਾਗਰੁ ॥
तेरी टेक तरीऐ भउ सागरु ॥
तेरे आसरे ही संसार-सागर से पार हुआ जाता है।
ਰਾਖਣਹਾਰੁ ਪੂਰਾ ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ॥੨॥
राखणहारु पूरा सुख सागरु ॥२॥
संसार का रखवाला परमेश्वर पूर्ण सुखों का सागर है।॥२॥
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਨਾਹੀ ਭਉ ਕੋਇ ॥
तेरी टेक नाही भउ कोइ ॥
तेरा सहारा पाने से कोई भय नहीं,
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਸਾਚਾ ਸੋਇ ॥
अंतरजामी साचा सोइ ॥
परमसत्य परमेश्वर मन की सब भावनाओं को जाननेवाला है।
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਤੇਰਾ ਮਨਿ ਤਾਣੁ ॥
तेरी टेक तेरा मनि ताणु ॥
हे प्रभु ! तेरी टेक ही मन का बल है और
ਈਹਾਂ ਊਹਾਂ ਤੂ ਦੀਬਾਣੁ ॥੩॥
ईहां ऊहां तू दीबाणु ॥३॥
यहॉ (इहलोक) वहाँ (परलोक) तू ही हमारा सहारा है।३॥
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਤੇਰਾ ਭਰਵਾਸਾ ॥
तेरी टेक तेरा भरवासा ॥
केवल तेरा ही आसरा है और तेरा ही भरोसा है,
ਸਗਲ ਧਿਆਵਹਿ ਪ੍ਰਭ ਗੁਣਤਾਸਾ ॥
सगल धिआवहि प्रभ गुणतासा ॥
अतः सब लोग गुणागार प्रभु का ध्यान करते हैं।
ਜਪਿ ਜਪਿ ਅਨਦੁ ਕਰਹਿ ਤੇਰੇ ਦਾਸਾ ॥
जपि जपि अनदु करहि तेरे दासा ॥
तेरे भक्त तेरा नाम जप-जपकर आनंद कर रहे हैं।
ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਸਾਚੇ ਗੁਣਤਾਸਾ ॥੪॥੨੬॥੩੯॥
सिमरि नानक साचे गुणतासा ॥४॥२६॥३९॥
नानक की विनती है कि सच्चे गुणों के भण्डार परमात्मा का स्मरण करो॥४॥ २६॥ ३६॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਛੋਡੀ ਪਰਾਈ ਨਿੰਦਾ ॥
प्रथमे छोडी पराई निंदा ॥
पहले पराई निन्दा करना छोड़ दिया तो
ਉਤਰਿ ਗਈ ਸਭ ਮਨ ਕੀ ਚਿੰਦਾ ॥
उतरि गई सभ मन की चिंदा ॥
इससे मन की सारी चिंता दूर हो गई।
ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਸਭੁ ਕੀਨੋ ਦੂਰਿ ॥
लोभु मोहु सभु कीनो दूरि ॥
इस प्रकार लोभ-मोह इत्यादि सबको दूर कर दिया तो
ਪਰਮ ਬੈਸਨੋ ਪ੍ਰਭ ਪੇਖਿ ਹਜੂਰਿ ॥੧॥
परम बैसनो प्रभ पेखि हजूरि ॥१॥
प्रभु को आसपास देखकर परम वैष्णव हुए॥१॥
ਐਸੋ ਤਿਆਗੀ ਵਿਰਲਾ ਕੋਇ ॥
ऐसो तिआगी विरला कोइ ॥
संसार में ऐसा कोई विरला ही त्यागी है,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਜਨੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि नामु जपै जनु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
वही व्यक्ति प्रभु नाम का जाप करता है॥१॥ रहाउ॥
ਅਹੰਬੁਧਿ ਕਾ ਛੋਡਿਆ ਸੰਗੁ ॥
अह्मबुधि का छोडिआ संगु ॥
जब अहम् बुद्धि का साथ छोड़ा तो
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਕਾ ਉਤਰਿਆ ਰੰਗੁ ॥
काम क्रोध का उतरिआ रंगु ॥
काम-क्रोध का रंग उतर गया।
ਨਾਮ ਧਿਆਏ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥
नाम धिआए हरि हरि हरे ॥
हरि-नाम का ध्यान
ਸਾਧ ਜਨਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਨਿਸਤਰੇ ॥੨॥
साध जना कै संगि निसतरे ॥२॥
साधु-पुरुषों के संग कर मुक्त हो गए॥२॥
ਬੈਰੀ ਮੀਤ ਹੋਏ ਸੰਮਾਨ ॥
बैरी मीत होए समान ॥
अब दुश्मन एवं दोस्त दोनों समान हो गए हैं और
ਸਰਬ ਮਹਿ ਪੂਰਨ ਭਗਵਾਨ ॥
सरब महि पूरन भगवान ॥
सब में पूर्ण रूप से भगवान ही दिखाई दे रहा है।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਆਗਿਆ ਮਾਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
प्रभ की आगिआ मानि सुखु पाइआ ॥
प्रभु की आज्ञा को मानकर सच्चा सुख प्राप्त किया है और
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥੩॥
गुरि पूरै हरि नामु द्रिड़ाइआ ॥३॥
पूर्ण गुरु ने हरि-नाम का जाप ही मन में दृढ़ करवाया है॥३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸੁ ਰਾਖੈ ਆਪਿ ॥
करि किरपा जिसु राखै आपि ॥
कृपा करके जिसकी वह स्वयं रक्षा करता है,
ਸੋਈ ਭਗਤੁ ਜਪੈ ਨਾਮ ਜਾਪ ॥
सोई भगतु जपै नाम जाप ॥
वही भक्त प्रभु-नाम का जाप करता है।
ਮਨਿ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਗੁਰ ਤੇ ਮਤਿ ਲਈ ॥
मनि प्रगासु गुर ते मति लई ॥
हे नानक ! गुरु से शिक्षा पाकर जिसके मन में आलोक हो गया है,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੀ ਪੂਰੀ ਪਈ ॥੪॥੨੭॥੪੦॥
कहु नानक ता की पूरी पई ॥४॥२७॥४०॥
उसी का जीवन-सफर पूर्ण सफल हो गया है॥४॥ २७॥ ४०॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਸੁਖੁ ਨਾਹੀ ਬਹੁਤੈ ਧਨਿ ਖਾਟੇ ॥
सुखु नाही बहुतै धनि खाटे ॥
अधिकाधिक धन-दौलत कमाने में भी सुख नहीं है,
ਸੁਖੁ ਨਾਹੀ ਪੇਖੇ ਨਿਰਤਿ ਨਾਟੇ ॥
सुखु नाही पेखे निरति नाटे ॥
नृत्य अथवा नाटक देखकर भी सुख नहीं मिलता।
ਸੁਖੁ ਨਾਹੀ ਬਹੁ ਦੇਸ ਕਮਾਏ ॥
सुखु नाही बहु देस कमाए ॥
बहुत सारे देशों को जीतने में भी सुख नहीं,
ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੧॥
सरब सुखा हरि हरि गुण गाए ॥१॥
दरअसल प्रभु के गुण गाने से ही सर्व सुख प्राप्त होते हैं॥१॥
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਲਹਹੁ ॥
सूख सहज आनंद लहहु ॥
परम सुख एवं सच्चा आनंद ही खोजो,
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਪਾਈਐ ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕਹਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधसंगति पाईऐ वडभागी गुरमुखि हरि हरि नामु कहहु ॥१॥ रहाउ ॥
बड़े भाग्य से साधु पुरुषों की संगत प्राप्त होती है। गुरुमुख बनकर प्रभु-नाम का यशगान करो॥१॥ रहाउ॥
ਬੰਧਨ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਬਨਿਤਾ ॥
बंधन मात पिता सुत बनिता ॥
माता-पिता, पुत्र अथवा पत्नी मात्र बन्धनों में फँसाए रखते हैं।
ਬੰਧਨ ਕਰਮ ਧਰਮ ਹਉ ਕਰਤਾ ॥
बंधन करम धरम हउ करता ॥
अहम्-भावना में किए गए धर्म-कर्म बन्धन बन जाते हैं।
ਬੰਧਨ ਕਾਟਨਹਾਰੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ॥
बंधन काटनहारु मनि वसै ॥
सब बन्धन काटनेवाला ईश्वर मन में बसता है,
ਤਉ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ਨਿਜ ਘਰਿ ਬਸੈ ॥੨॥
तउ सुखु पावै निज घरि बसै ॥२॥
तो ही सुख प्राप्त होता है और अपने सच्चे घर (प्रभु) में जीव बसा रहता है।॥२॥
ਸਭਿ ਜਾਚਿਕ ਪ੍ਰਭ ਦੇਵਨਹਾਰ ॥
सभि जाचिक प्रभ देवनहार ॥
केवल प्रभु ही देनेवाला है, सभी उसके मात्र भिखारी हैं।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਬੇਅੰਤ ਅਪਾਰ ॥
गुण निधान बेअंत अपार ॥
वह बे-अन्त, अपार एवं गुणों का भण्डार है।
ਜਿਸ ਨੋ ਕਰਮੁ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ॥
जिस नो करमु करे प्रभु अपना ॥
जिस पर प्रभु अपनी कृपा करता है,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਤਿਨੈ ਜਨਿ ਜਪਨਾ ॥੩॥
हरि हरि नामु तिनै जनि जपना ॥३॥
वही प्रभु-नाम का जाप करता है॥३॥
ਗੁਰ ਅਪਨੇ ਆਗੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥
गुर अपने आगै अरदासि ॥
हमारी अपने गुरु के समक्ष प्रार्थना है कि
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪੁਰਖ ਗੁਣਤਾਸਿ ॥
करि किरपा पुरख गुणतासि ॥
हे परमपुरुष, गुणों के भण्डार ! कृपा करो।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤੁਮਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥
कहु नानक तुमरी सरणाई ॥
नानक का कथन है कि हे मालिक ! तुम्हारी शरण में आ गया हूँ,
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਖਹੁ ਗੁਸਾਈ ॥੪॥੨੮॥੪੧॥
जिउ भावै तिउ रखहु गुसाई ॥४॥२८॥४१॥
जैसे तू चाहता है, वैसे ही मुझे रखना॥४॥ २८॥ ४१॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਤਿਆਗਿਓ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ॥
गुर मिलि तिआगिओ दूजा भाउ ॥
गुरु से साक्षात्कार कर द्वैतभाव को त्याग दिया है,”