Hindi Page 662

ਜਿਨਿ ਮਨੁ ਰਾਖਿਆ ਅਗਨੀ ਪਾਇ ॥
जिनि मनु राखिआ अगनी पाइ ॥
जिसने माँ के गर्भ की अग्नि में पैदा करके हमारे मन की रक्षा की है।

ਵਾਜੈ ਪਵਣੁ ਆਖੈ ਸਭ ਜਾਇ ॥੨॥
वाजै पवणु आखै सभ जाइ ॥२॥
उस परमात्मा की कृपा से जीवन-साँसें चलती हैं और जीव परस्पर बातचीत करता है ॥२॥

ਜੇਤਾ ਮੋਹੁ ਪਰੀਤਿ ਸੁਆਦ ॥
जेता मोहु परीति सुआद ॥
जितना भी मोह, प्रेम एवं स्वाद है,

ਸਭਾ ਕਾਲਖ ਦਾਗਾ ਦਾਗ ॥
सभा कालख दागा दाग ॥
ये सभी हमारे मन को लगे हुए कालिख के केवल दाग ही हैं।

ਦਾਗ ਦੋਸ ਮੁਹਿ ਚਲਿਆ ਲਾਇ ॥
दाग दोस मुहि चलिआ लाइ ॥
जो मनुष्य अपने चेहरे पर पापों के धब्बे लगवा कर दुनिया से चल देता है,

ਦਰਗਹ ਬੈਸਣ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥੩॥
दरगह बैसण नाही जाइ ॥३॥
उसे प्रभु के दरबार में बैठने हेतु स्थान नहीं मिलता॥३॥

ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਆਖਣੁ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ॥
करमि मिलै आखणु तेरा नाउ ॥
हे परमात्मा, तेरा नाम तेरी कृपा से ही सिमरन हेतु मिलता है,

ਜਿਤੁ ਲਗਿ ਤਰਣਾ ਹੋਰੁ ਨਹੀ ਥਾਉ ॥
जितु लगि तरणा होरु नही थाउ ॥
जिससे लग कर जीव भवसागर से पार हो जाता है और इस भवसागर में डूबने से बचने के लिए नाम के अतिरिक्त दूसरा कोई सहारा नहीं है।

ਜੇ ਕੋ ਡੂਬੈ ਫਿਰਿ ਹੋਵੈ ਸਾਰ ॥
जे को डूबै फिरि होवै सार ॥
यदि कोई भवसागर में डूब भी जाए तो नाम द्वारा उसकी पुनः संभाल हो जाती है।

ਨਾਨਕ ਸਾਚਾ ਸਰਬ ਦਾਤਾਰ ॥੪॥੩॥੫॥
नानक साचा सरब दातार ॥४॥३॥५॥
हे नानक ! परम-सत्य परमेश्वर सब जीवों को देने वाला है ॥४॥३॥५॥

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
धनासरी महला १ ॥
धनासरी महला १ ॥

ਚੋਰੁ ਸਲਾਹੇ ਚੀਤੁ ਨ ਭੀਜੈ ॥
चोरु सलाहे चीतु न भीजै ॥
यदि चोर किसी व्यक्ति की सराहना करे तो उसका चित्त प्रसन्न नहीं होता।

ਜੇ ਬਦੀ ਕਰੇ ਤਾ ਤਸੂ ਨ ਛੀਜੈ ॥
जे बदी करे ता तसू न छीजै ॥
परन्तु यदि चोर उसकी बुराई करे तो उसकी इज्जत तिनका भर भी कम नहीं होती।

ਚੋਰ ਕੀ ਹਾਮਾ ਭਰੇ ਨ ਕੋਇ ॥
चोर की हामा भरे न कोइ ॥
चोर की जिम्मेदारी कोई भी नहीं लेता।

ਚੋਰੁ ਕੀਆ ਚੰਗਾ ਕਿਉ ਹੋਇ ॥੧॥
चोरु कीआ चंगा किउ होइ ॥१॥
जिसे भगवान ने चोर बना दिया, वह मनुष्य भला कैसे हो सकता है।॥१॥

ਸੁਣਿ ਮਨ ਅੰਧੇ ਕੁਤੇ ਕੂੜਿਆਰ ॥
सुणि मन अंधे कुते कूड़िआर ॥
हे ज्ञानहीन, लालची एवं झूठे मन ! ध्यानपूर्वक सुन,

ਬਿਨੁ ਬੋਲੇ ਬੂਝੀਐ ਸਚਿਆਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिनु बोले बूझीऐ सचिआर ॥१॥ रहाउ ॥
तेरे बिना बोले ही वह सच्चा परमेश्वर तेरे मन की भावना को जानता है ॥१॥ रहाउ ॥

ਚੋਰੁ ਸੁਆਲਿਉ ਚੋਰੁ ਸਿਆਣਾ ॥
चोरु सुआलिउ चोरु सिआणा ॥
चोर चाहे सुन्दर एवं अक्लमंद हो परन्तु

ਖੋਟੇ ਕਾ ਮੁਲੁ ਏਕੁ ਦੁਗਾਣਾ ॥
खोटे का मुलु एकु दुगाणा ॥
उस दुराचारी का मूल्य एक कौड़ी जितना ही होता है।

ਜੇ ਸਾਥਿ ਰਖੀਐ ਦੀਜੈ ਰਲਾਇ ॥
जे साथि रखीऐ दीजै रलाइ ॥
यदि उसे गुणवानों में मिलाकर रख दिया जाए तो

ਜਾ ਪਰਖੀਐ ਖੋਟਾ ਹੋਇ ਜਾਇ ॥੨॥
जा परखीऐ खोटा होइ जाइ ॥२॥
परखने पर वह खोटा ही पाया जाता है।॥२॥

ਜੈਸਾ ਕਰੇ ਸੁ ਤੈਸਾ ਪਾਵੈ ॥
जैसा करे सु तैसा पावै ॥
सच तो यही है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही उसका फल प्राप्त करता है।

ਆਪਿ ਬੀਜਿ ਆਪੇ ਹੀ ਖਾਵੈ ॥
आपि बीजि आपे ही खावै ॥
वह शुभाशुभ कर्मों का बीज बोकर स्वयं ही उसका फल खाता है।

ਜੇ ਵਡਿਆਈਆ ਆਪੇ ਖਾਇ ॥
जे वडिआईआ आपे खाइ ॥
यदि वह स्वयं ही अपनी प्रशंसा करे तो

ਜੇਹੀ ਸੁਰਤਿ ਤੇਹੈ ਰਾਹਿ ਜਾਇ ॥੩॥
जेही सुरति तेहै राहि जाइ ॥३॥
जैसे उसकी समझ होती है, वैसे मार्ग पर वह चलता है॥३॥

ਜੇ ਸਉ ਕੂੜੀਆ ਕੂੜੁ ਕਬਾੜੁ ॥
जे सउ कूड़ीआ कूड़ु कबाड़ु ॥
यदि वह अपने झूठ को छिपाने हेतु सैकड़ों झूठी बातें करे,

ਭਾਵੈ ਸਭੁ ਆਖਉ ਸੰਸਾਰੁ ॥
भावै सभु आखउ संसारु ॥
चाहे सारी दुनिया उसे भला पुरुष कहे तो भी वह सत्य के दरबार में मंजूर नहीं होता।

ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਅਧੀ ਪਰਵਾਣੁ ॥
तुधु भावै अधी परवाणु ॥
हे प्रभु ! यदि तुझे उपयुक्त लगे तो एक साधारण पुरुष भी परवान हो जाता है।

ਨਾਨਕ ਜਾਣੈ ਜਾਣੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥੪॥੪॥੬॥
नानक जाणै जाणु सुजाणु ॥४॥४॥६॥
हे नानक ! वह चतुर एवं अन्तर्यामी प्रभु सर्वज्ञाता है।॥४॥४॥६॥

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
धनासरी महला १ ॥
धनासरी महला १ ॥

ਕਾਇਆ ਕਾਗਦੁ ਮਨੁ ਪਰਵਾਣਾ ॥
काइआ कागदु मनु परवाणा ॥
मानव की यह काया कागज है और मन इस पर लिखा हुक्म उसकी किस्मत है।

ਸਿਰ ਕੇ ਲੇਖ ਨ ਪੜੈ ਇਆਣਾ ॥
सिर के लेख न पड़ै इआणा ॥
परन्तु नादान मानव अपने मस्तक पर लिखी हुई किस्मत के लेख को नहीं पढ़ता।

ਦਰਗਹ ਘੜੀਅਹਿ ਤੀਨੇ ਲੇਖ ॥
दरगह घड़ीअहि तीने लेख ॥
उस भगवान के दरबार में तीन प्रकार की किस्मत के लेख लिखे जाते हैं।

ਖੋਟਾ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ਵੇਖੁ ॥੧॥
खोटा कामि न आवै वेखु ॥१॥
देख लो, खोटा सिक्का वहाँ किसी काम नहीं आता ॥१॥

ਨਾਨਕ ਜੇ ਵਿਚਿ ਰੁਪਾ ਹੋਇ ॥
नानक जे विचि रुपा होइ ॥
हे नानक ! यदि सिक्के पर चाँदी हो तो

ਖਰਾ ਖਰਾ ਆਖੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
खरा खरा आखै सभु कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
हर कोई उस सिक्के को खरा-खरा कहता है ॥१॥ रहाउ ॥

ਕਾਦੀ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਮਲੁ ਖਾਇ ॥
कादी कूड़ु बोलि मलु खाइ ॥
काजी कचहरी में झूठा न्याय सुना कर हराम का धन खाता है।

ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਨਾਵੈ ਜੀਆ ਘਾਇ ॥
ब्राहमणु नावै जीआ घाइ ॥
ब्राह्मण अपने इष्ट देवता को बलि देने के लिए जीव-हत्या करके अपने पाप उतारने हेतु तीर्थ पर जाकर स्नान करता है।

ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਨ ਜਾਣੈ ਅੰਧੁ ॥
जोगी जुगति न जाणै अंधु ॥
अन्धा अर्थात् ज्ञानहीन योगी योग साधना की युक्ति नहीं जानता।

ਤੀਨੇ ਓਜਾੜੇ ਕਾ ਬੰਧੁ ॥੨॥
तीने ओजाड़े का बंधु ॥२॥
काजी, ब्राह्मण एवं योगी यह तीनों ही जीवों हेतु विनाश का बंधन हैं॥ २॥

ਸੋ ਜੋਗੀ ਜੋ ਜੁਗਤਿ ਪਛਾਣੈ ॥
सो जोगी जो जुगति पछाणै ॥
सच्चा योगी वही है, जो प्रभु-मिलन की युक्ति को समझता है और

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥
गुर परसादी एको जाणै ॥
जो गुरु की कृपा से एक ईश्वर को जानता है।

ਕਾਜੀ ਸੋ ਜੋ ਉਲਟੀ ਕਰੈ ॥
काजी सो जो उलटी करै ॥
काजी वही है, जो अपनी मनोवृति को विकारों से बदल लेता है और

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ॥
गुर परसादी जीवतु मरै ॥
जो गुरु की कृपा से अपने अहंत्व को मार देता है।

ਸੋ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਜੋ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰੈ ॥
सो ब्राहमणु जो ब्रहमु बीचारै ॥
वास्तविक ब्राह्मण वही है, जो ब्रह्म का चिंतन करता है।

ਆਪਿ ਤਰੈ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਤਾਰੈ ॥੩॥
आपि तरै सगले कुल तारै ॥३॥
वह भवसागर में से स्वयं तो पार होता ही है और अपने समस्त वंश को भी पार करवा देता है ॥३॥

ਦਾਨਸਬੰਦੁ ਸੋਈ ਦਿਲਿ ਧੋਵੈ ॥
दानसबंदु सोई दिलि धोवै ॥
वही आदमी अक्लमंद है, जो अपने मन को स्वच्छ करता है।

ਮੁਸਲਮਾਣੁ ਸੋਈ ਮਲੁ ਖੋਵੈ ॥
मुसलमाणु सोई मलु खोवै ॥
वास्तविक मुसलमान वही है, जो अपने मन की अपवित्रता को दूर करता है।

ਪੜਿਆ ਬੂਝੈ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥
पड़िआ बूझै सो परवाणु ॥
वही मनुष्य विद्वान है, जो सत्य को समझता है और ऐसा मनुष्य प्रभु को स्वीकार हो जाता है।

ਜਿਸੁ ਸਿਰਿ ਦਰਗਹ ਕਾ ਨੀਸਾਣੁ ॥੪॥੫॥੭॥
जिसु सिरि दरगह का नीसाणु ॥४॥५॥७॥
ऐसा मनुष्य वही होता है, जिसके माथे पर सत्य के दरबार की स्वीकृति का चिन्ह लगा होता ॥४॥५॥७॥

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੩
धनासरी महला १ घरु ३
धनासरी महला १ घरु ३

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਕਾਲੁ ਨਾਹੀ ਜੋਗੁ ਨਾਹੀ ਨਾਹੀ ਸਤ ਕਾ ਢਬੁ ॥
कालु नाही जोगु नाही नाही सत का ढबु ॥
यह योग्य समय नहीं है, इस युग में योग-साधना नहीं हो सकती और सत्य-साधना के मार्ग पर भी चला नहीं जा सकता।

ਥਾਨਸਟ ਜਗ ਭਰਿਸਟ ਹੋਏ ਡੂਬਤਾ ਇਵ ਜਗੁ ॥੧॥
थानसट जग भरिसट होए डूबता इव जगु ॥१॥
जगत के सभी पूजा-स्थल भ्रष्ट हो गए हैं और यूं समूचा जगत ही तृष्णाग्नि के समुद्र में डूबता जा रहा है॥१॥

ਕਲ ਮਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਾਰੁ ॥
कल महि राम नामु सारु ॥
इस कलियुग में राम का नाम सभी धर्म-कर्मों से श्रेष्ठ साधन है।

ਅਖੀ ਤ ਮੀਟਹਿ ਨਾਕ ਪਕੜਹਿ ਠਗਣ ਕਉ ਸੰਸਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अखी त मीटहि नाक पकड़हि ठगण कउ संसारु ॥१॥ रहाउ ॥
दुनिया को धोखा देने के लिए पाखण्डी ब्राह्मण अपनी ऑखे मिटकर अपना नाक पकड़ कर कहता है।॥१॥ रहाउ ॥

ਆਂਟ ਸੇਤੀ ਨਾਕੁ ਪਕੜਹਿ ਸੂਝਤੇ ਤਿਨਿ ਲੋਅ ॥
आंट सेती नाकु पकड़हि सूझते तिनि लोअ ॥
समाधिस्थ होकर पाखण्डी अपने अँगूठे एवं दोनो ऊंगलियों से अपने नाक को पकड़ कर कहता है कि मुझे आकाश, पाताल एवं पृथ्वी ये तीनों लोक दिखाई देते हैं।

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