Hindi Page 135

ਮਨਿ ਤਨਿ ਪਿਆਸ ਦਰਸਨ ਘਣੀ ਕੋਈ ਆਣਿ ਮਿਲਾਵੈ ਮਾਇ ॥
मनि तनि पिआस दरसन घणी कोई आणि मिलावै माइ ॥
मेरे मन एवं तन में ईश्वर के दर्शनों की अधिकतर तृष्णा है। हे मेरी जननी ! कोई संत आकर मुझे उससे मिला दे।

ਸੰਤ ਸਹਾਈ ਪ੍ਰੇਮ ਕੇ ਹਉ ਤਿਨ ਕੈ ਲਾਗਾ ਪਾਇ ॥
संत सहाई प्रेम के हउ तिन कै लागा पाइ ॥
मैं संतों के चरणों में लगा हूँ क्योंकि संत प्रभु से प्रेम करने वालों की सहायता करते हैं।

ਵਿਣੁ ਪ੍ਰਭ ਕਿਉ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਦੂਜੀ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥
विणु प्रभ किउ सुखु पाईऐ दूजी नाही जाइ ॥
परमेश्वर के बिना सुख की उपलब्धि हेतु अन्य कोई स्थान नहीं है।

ਜਿੰਨ੍ਹ੍ਹੀ ਚਾਖਿਆ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਸੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਰਹੇ ਆਘਾਇ ॥
जिंन्ही चाखिआ प्रेम रसु से त्रिपति रहे आघाइ ॥
जिन्होंने प्रभु प्रेम का अमृतपान किया है, वह तृप्त एवं संतुष्ट रहते हैं।

ਆਪੁ ਤਿਆਗਿ ਬਿਨਤੀ ਕਰਹਿ ਲੇਹੁ ਪ੍ਰਭੂ ਲੜਿ ਲਾਇ ॥
आपु तिआगि बिनती करहि लेहु प्रभू लड़ि लाइ ॥
अपना अहंकार त्याग कर वह प्रार्थना करते हैं, ‘हे ईश्वर ! हमें अपने दामन के साथ लगा लो।’

ਜੋ ਹਰਿ ਕੰਤਿ ਮਿਲਾਈਆ ਸਿ ਵਿਛੁੜਿ ਕਤਹਿ ਨ ਜਾਇ ॥
जो हरि कंति मिलाईआ सि विछुड़ि कतहि न जाइ ॥
जिन जीव-स्त्रियों को प्रभु पति ने अपने साथ मिला लिया है, वह कदापि जुदा होकर अन्य कहीं भी नहीं जाती।

ਪ੍ਰਭ ਵਿਣੁ ਦੂਜਾ ਕੋ ਨਹੀ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸਰਣਾਇ ॥                                                                                
प्रभ विणु दूजा को नही नानक हरि सरणाइ ॥
हे नानक ! भगवान की शरण लो, क्योंकि उस प्रभु के अलावा अन्य कोई भी शरण देने में समर्थ नहीं है।

ਅਸੂ ਸੁਖੀ ਵਸੰਦੀਆ ਜਿਨਾ ਮਇਆ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥੮॥
असू सुखी वसंदीआ जिना मइआ हरि राइ ॥८॥
आश्विन के महीने में जिन पर परमेश्वर की दया होती है, वह बहुत सुखपूर्वक रहती हैं।॥ ८ ॥

ਕਤਿਕਿ ਕਰਮ ਕਮਾਵਣੇ ਦੋਸੁ ਨ ਕਾਹੂ ਜੋਗੁ ॥
कतिकि करम कमावणे दोसु न काहू जोगु ॥
कार्तिक माह में हे प्राणी ! पूर्व जन्मों में किए शुभ-अशुभ कर्मों के फल भोगने ही पड़ते हैं। अत: किसी अन्य पर दोष लगाना न्यायसंगत नहीं।

ਪਰਮੇਸਰ ਤੇ ਭੁਲਿਆਂ ਵਿਆਪਨਿ ਸਭੇ ਰੋਗ ॥
परमेसर ते भुलिआं विआपनि सभे रोग ॥
पारब्रह्म-प्रभु को विस्मृत करके मनुष्य को समस्त रोग लग जाते हैं।

ਵੇਮੁਖ ਹੋਏ ਰਾਮ ਤੇ ਲਗਨਿ ਜਨਮ ਵਿਜੋਗ ॥
वेमुख होए राम ते लगनि जनम विजोग ॥
जो व्यक्ति राम से विमुख हो जाते हैं, वे जन्म-जन्म के लिए जुदा हो जाते हैं।

ਖਿਨ ਮਹਿ ਕਉੜੇ ਹੋਇ ਗਏ ਜਿਤੜੇ ਮਾਇਆ ਭੋਗ ॥
खिन महि कउड़े होइ गए जितड़े माइआ भोग ॥
जितने भी भोगने वाले पदार्थ हैं, वह एक क्षण में ही उसके लिए कड़वे हो जाते हैं।

ਵਿਚੁ ਨ ਕੋਈ ਕਰਿ ਸਕੈ ਕਿਸ ਥੈ ਰੋਵਹਿ ਰੋਜ ॥
विचु न कोई करि सकै किस थै रोवहि रोज ॥
फिर अपने रोज के दुःख किसके समक्ष रोएँ ? जुदाई को दूर करने के लिए कोई भी मध्यस्थ नहीं बनता।

ਕੀਤਾ ਕਿਛੂ ਨ ਹੋਵਈ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਸੰਜੋਗ ॥
कीता किछू न होवई लिखिआ धुरि संजोग ॥
मनुष्य के करने से कुछ भी नहीं हो सकता, यदि प्रारम्भ से ही मनुष्य की किस्मत में ऐसा संयोग लिखा हुआ था।

ਵਡਭਾਗੀ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮਿਲੈ ਤਾਂ ਉਤਰਹਿ ਸਭਿ ਬਿਓਗ ॥
वडभागी मेरा प्रभु मिलै तां उतरहि सभि बिओग ॥
सौभाग्य से मेरा प्रभु मिल जाता है तो जुदाई के समूह दुख दूर हो जाते हैं।

ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖਿ ਲੇਹਿ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬ ਬੰਦੀ ਮੋਚ ॥
नानक कउ प्रभ राखि लेहि मेरे साहिब बंदी मोच ॥
नानक का कथन है कि हे मेरे प्रभु ! तू जीवों को माया के बंधनों से मुक्त करने वाला है इसलिए नानक को भी बंधनों से मुक्त कर दो।

ਕਤਿਕ ਹੋਵੈ ਸਾਧਸੰਗੁ ਬਿਨਸਹਿ ਸਭੇ ਸੋਚ ॥੯॥
कतिक होवै साधसंगु बिनसहि सभे सोच ॥९॥
यदि कार्तिक के महीने में संतों की संगति हो जाए तो समस्त चिंताएँ मिट जाती हैं ॥९॥

ਮੰਘਿਰਿ ਮਾਹਿ ਸੋਹੰਦੀਆ ਹਰਿ ਪਿਰ ਸੰਗਿ ਬੈਠੜੀਆਹ ॥
मंघिरि माहि सोहंदीआ हरि पिर संगि बैठड़ीआह ॥
मार्गशीर्ष महीने में जीव-स्त्रियाँ भगवान के साथ बैठी भजन करती हुई बहुत सुन्दर लगती हैं।

ਤਿਨ ਕੀ ਸੋਭਾ ਕਿਆ ਗਣੀ ਜਿ ਸਾਹਿਬਿ ਮੇਲੜੀਆਹ ॥
तिन की सोभा किआ गणी जि साहिबि मेलड़ीआह ॥
उनकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती, जिनको ईश्वर ने अपने साथ मिला लिया है।

ਤਨੁ ਮਨੁ ਮਉਲਿਆ ਰਾਮ ਸਿਉ ਸੰਗਿ ਸਾਧ ਸਹੇਲੜੀਆਹ ॥
तनु मनु मउलिआ राम सिउ संगि साध सहेलड़ीआह ॥
अपनी सत्संगी सहेलियों के साथ सत्संग में मिलकर राम का सिमरन करने से मेरा मन एवं तन प्रफुल्लित हो गया है।

ਸਾਧ ਜਨਾ ਤੇ ਬਾਹਰੀ ਸੇ ਰਹਨਿ ਇਕੇਲੜੀਆਹ ॥
साध जना ते बाहरी से रहनि इकेलड़ीआह ॥
जो जीव-स्त्रियाँ संतजनों की संगति से वंचित रहती हैं, वे पति-प्रभु से जुदा होने के कारण अकेली रहती हैं।

ਤਿਨ ਦੁਖੁ ਨ ਕਬਹੂ ਉਤਰੈ ਸੇ ਜਮ ਕੈ ਵਸਿ ਪੜੀਆਹ ॥ 
तिन दुखु न कबहू उतरै से जम कै वसि पड़ीआह ॥
उनका पति-प्रभु से जुदाई का दु:ख कभी दूर नहीं होता और वह यमदूत के पंजे में फंस जाती हैं।

ਜਿਨੀ ਰਾਵਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣਾ ਸੇ ਦਿਸਨਿ ਨਿਤ ਖੜੀਆਹ ॥
जिनी राविआ प्रभु आपणा से दिसनि नित खड़ीआह ॥
जिन्होंने अपने ईश्वर के साथ रमण किया है, वह उसकी सेवा में सदैव खड़ी दिखती हैं।

ਰਤਨ ਜਵੇਹਰ ਲਾਲ ਹਰਿ ਕੰਠਿ ਤਿਨਾ ਜੜੀਆਹ ॥
रतन जवेहर लाल हरि कंठि तिना जड़ीआह ॥
उनका कण्ठ प्रभु-नाम रुपी रत्न-जवाहर, माणिकों तथा हीरों से जड़ित हुआ है।

ਨਾਨਕ ਬਾਂਛੈ ਧੂੜਿ ਤਿਨ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣੀ ਦਰਿ ਪੜੀਆਹ ॥
नानक बांछै धूड़ि तिन प्रभ सरणी दरि पड़ीआह ॥
हे नानक ! वह उनके चरणों की धूलि का अभिलाषी है, जो ईश्वर के दरबार पर उसकी शरण में पड़े हैं।

ਮੰਘਿਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਆਰਾਧਣਾ ਬਹੁੜਿ ਨ ਜਨਮੜੀਆਹ ॥੧੦॥
मंघिरि प्रभु आराधणा बहुड़ि न जनमड़ीआह ॥१०॥
जो लोग मार्गशीर्ष महीने में ईश्वर की आराधना करते हैं, वह मुड़ कर जीवन-मृत्यु के बंधन में नहीं पड़ते और मुक्त हो जाते हैं। ॥१० ॥

ਪੋਖਿ ਤੁਖਾਰੁ ਨ ਵਿਆਪਈ ਕੰਠਿ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਨਾਹੁ ॥
पोखि तुखारु न विआपई कंठि मिलिआ हरि नाहु ॥
पोष के महीने में हरि-प्रभु जिस जीव-स्त्री को उसके गले से लगकर मिलता है, उसे शीत नहीं लगती।

ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਚਰਨਾਰਬਿੰਦ ਦਰਸਨਿ ਲਗੜਾ ਸਾਹੁ ॥
मनु बेधिआ चरनारबिंद दरसनि लगड़ा साहु ॥
प्रभु के चरण-कमलों का प्रेम उसके मन को बांधकर रखता है और उसकी सुरति मालिक-प्रभु के दर्शनों में लगी रहती है।

ਓਟ ਗੋਵਿੰਦ ਗੋਪਾਲ ਰਾਇ ਸੇਵਾ ਸੁਆਮੀ ਲਾਹੁ ॥
ओट गोविंद गोपाल राइ सेवा सुआमी लाहु ॥
वह गोविन्द गोपाल का सहारा लेती हैं और अपने स्वामी की सेवा करके नाम रूपी लाभ प्राप्त करती है।

ਬਿਖਿਆ ਪੋਹਿ ਨ ਸਕਈ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਗੁਣ ਗਾਹੁ ॥
बिखिआ पोहि न सकई मिलि साधू गुण गाहु ॥
विष रूपी माया उसे प्रभावित नहीं कर सकती और वह संतों से मिलकर भगवान की महिमा गायन करती रहती है।

ਜਹ ਤੇ ਉਪਜੀ ਤਹ ਮਿਲੀ ਸਚੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਮਾਹੁ ॥
जह ते उपजी तह मिली सची प्रीति समाहु ॥
वह जिस प्रभु से उत्पन्न हुई है, उसे मिलकर उसके प्रेम में लीन रहती है।

ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੀਨੀ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਬਹੁੜਿ ਨ ਵਿਛੁੜੀਆਹੁ ॥
करु गहि लीनी पारब्रहमि बहुड़ि न विछुड़ीआहु ॥
पारब्रह्म प्रभु ने उसका हाथ पकड़ लिया है, वह पुनः जुदा नहीं होती।

ਬਾਰਿ ਜਾਉ ਲਖ ਬੇਰੀਆ ਹਰਿ ਸਜਣੁ ਅਗਮ ਅਗਾਹੁ ॥
बारि जाउ लख बेरीआ हरि सजणु अगम अगाहु ॥
मैं लाख बार अपने अगम्य एवं अगोचर साजन हरि पर कुर्बान जाता हूँ।

ਸਰਮ ਪਈ ਨਾਰਾਇਣੈ ਨਾਨਕ ਦਰਿ ਪਈਆਹੁ ॥
सरम पई नाराइणै नानक दरि पईआहु ॥
हे नानक ! जो जीव-स्त्रियाँ नारायण के द्वार पर नतमस्तक हो गई हैं, वह उनकी लाज-प्रतिष्ठा रखता है।

ਪੋਖੁ ਸੋੁਹੰਦਾ ਸਰਬ ਸੁਖ ਜਿਸੁ ਬਖਸੇ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ॥੧੧॥
पोखु सोहंदा सरब सुख जिसु बखसे वेपरवाहु ॥११॥
पोष महीना उसके लिए सुन्दर एवं सर्वसुख प्रदान करने वाला है, जिसको बेपरवाह परमेश्वर क्षमा कर देता है॥ ११॥

ਮਾਘਿ ਮਜਨੁ ਸੰਗਿ ਸਾਧੂਆ ਧੂੜੀ ਕਰਿ ਇਸਨਾਨੁ ॥
माघि मजनु संगि साधूआ धूड़ी करि इसनानु ॥
माघ के महीने में साधुओं की चरणरज में स्नान करने को तीर्थ स्थलों के स्नान तुल्य समझो।

ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਸੁਣਿ ਸਭਨਾ ਨੋ ਕਰਿ ਦਾਨੁ ॥
हरि का नामु धिआइ सुणि सभना नो करि दानु ॥
भगवान के नाम का ध्यान करो एवं उसे सुनो तथा दूसरों को भी नाम का दान दो।

ਜਨਮ ਕਰਮ ਮਲੁ ਉਤਰੈ ਮਨ ਤੇ ਜਾਇ ਗੁਮਾਨੁ ॥
जनम करम मलु उतरै मन ते जाइ गुमानु ॥
नाम-सिमरन से जन्म-जन्मान्तरों की दुष्कर्मों की मलिनता दूर हो जाती है और मन का अहंकार दूर हो जाता है।

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