ਇਨ ਬਿਧਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਇ ॥
इन बिधि इहु मनु हरिआ होइ ॥
इस तरीके से यह मन हरा-भरा हो जाता है
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਉਮੈ ਕਢੈ ਧੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि नामु जपै दिनु राती गुरमुखि हउमै कढै धोइ ॥१॥ रहाउ ॥
यदि दिन-रात परमात्मा का जाप किया जाए, गुरु अहम् की मैल को साफ कर दे तो॥१॥रहाउ॥।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਣੀ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥
सतिगुर बाणी सबदु सुणाए ॥
सतगुरु ने वाणी से शब्द सुनाया है,
ਇਹੁ ਜਗੁ ਹਰਿਆ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਏ ॥੨॥
इहु जगु हरिआ सतिगुर भाए ॥२॥
सतगुरु के निर्देशानुसार यह जगत खिल उठा है॥२॥
ਫਲ ਫੂਲ ਲਾਗੇ ਜਾਂ ਆਪੇ ਲਾਏ ॥
फल फूल लागे जां आपे लाए ॥
जब स्वयं लगाता है तो ही सृष्टि रूपी पेड़ को फल फूल लगते हैं और
ਮੂਲਿ ਲਗੈ ਤਾਂ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਏ ॥੩॥
मूलि लगै तां सतिगुरु पाए ॥३॥
मूल प्रभु से प्रेम करने से ही सतगुरु की प्राप्ति होती है।॥३॥
ਆਪਿ ਬਸੰਤੁ ਜਗਤੁ ਸਭੁ ਵਾੜੀ ॥
आपि बसंतु जगतु सभु वाड़ी ॥
समूचा जगत बगीचा है और वसंत रूप में वही विद्यमान है।
ਨਾਨਕ ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਭਗਤਿ ਨਿਰਾਲੀ ॥੪॥੫॥੧੭॥
नानक पूरै भागि भगति निराली ॥४॥५॥१७॥
नानक का मत है कि पूर्ण भाग्यशाली को ही निराली भक्ति प्राप्त होती है।॥४॥५॥ १७॥
ਬਸੰਤੁ ਹਿੰਡੋਲ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੨
बसंतु हिंडोल महला ३ घरु २
बसंतु हिंडोल महला ३ घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਵਿਟਹੁ ਵਾਰਿਆ ਭਾਈ ਗੁਰ ਸਬਦ ਵਿਟਹੁ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
गुर की बाणी विटहु वारिआ भाई गुर सबद विटहु बलि जाई ॥
हे भाई ! मैं गुरु की वाणी पर कुर्बान हूँ, गुरु के उपदेश पर हरदम बलिहारी जाता हूँ।
ਗੁਰੁ ਸਾਲਾਹੀ ਸਦ ਅਪਣਾ ਭਾਈ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਈ ॥੧॥
गुरु सालाही सद अपणा भाई गुर चरणी चितु लाई ॥१॥
मैं सदैव अपने गुरु की स्तुति करता हूँ और गुरु के चरणों में ही दिल लगाता हूँ॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
मेरे मन राम नामि चितु लाइ ॥
हे मेरे मन ! राम नाम में ही दिल लगाना,
ਮਨੁ ਤਨੁ ਤੇਰਾ ਹਰਿਆ ਹੋਵੈ ਇਕੁ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਫਲੁ ਪਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनु तनु तेरा हरिआ होवै इकु हरि नामा फलु पाइ ॥१॥ रहाउ ॥
तेरा मन तन हरा भरा हो जाएगा और हरिनाम रूपी फल प्राप्त हो जाएगा॥१॥रहाउ॥।
ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਸੇ ਉਬਰੇ ਭਾਈ ਹਰਿ ਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆਇ ॥
गुरि राखे से उबरे भाई हरि रसु अम्रितु पीआइ ॥
हे भाई ! जिनकी गुरु ने रक्षा की है, वे बच गए हैं और उन्होंने हरिनाम रस रूपी अमृत का ही पान किया है।
ਵਿਚਹੁ ਹਉਮੈ ਦੁਖੁ ਉਠਿ ਗਇਆ ਭਾਈ ਸੁਖੁ ਵੁਠਾ ਮਨਿ ਆਇ ॥੨॥
विचहु हउमै दुखु उठि गइआ भाई सुखु वुठा मनि आइ ॥२॥
उनके अन्तर्मन में से अहम् का दुख निवृत्त हो गया है और मन में सुख ही सुख बस गया है॥२॥
ਧੁਰਿ ਆਪੇ ਜਿਨੑਾ ਨੋ ਬਖਸਿਓਨੁ ਭਾਈ ਸਬਦੇ ਲਇਅਨੁ ਮਿਲਾਇ ॥
धुरि आपे जिन्हा नो बखसिओनु भाई सबदे लइअनु मिलाइ ॥
हे भाई ! जिन पर प्रारम्भ से ईश्वर ने बख्शिश कर दी है, उन्हें शब्द द्वारा मिला लिया है।
ਧੂੜਿ ਤਿਨੑਾ ਕੀ ਅਘੁਲੀਐ ਭਾਈ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇ ॥੩॥
धूड़ि तिन्हा की अघुलीऐ भाई सतसंगति मेलि मिलाइ ॥३॥
उनकी चरणरज से बन्धनों से छुटकारा हो जाता है और संतों की संगत में ईश्वर से मिलाप हो जाता है।॥३॥
ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਰੇ ਆਪਿ ਭਾਈ ਜਿਨਿ ਹਰਿਆ ਕੀਆ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
आपि कराए करे आपि भाई जिनि हरिआ कीआ सभु कोइ ॥
जिसने बनाकर सृष्टि को प्रफुल्लित किया है, करवाता भी प्रभु स्वयं ही है और स्वयं ही करता है।
ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਤਨਿ ਸੁਖੁ ਸਦ ਵਸੈ ਭਾਈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਵਾ ਹੋਇ ॥੪॥੧॥੧੮॥੧੨॥੧੮॥੩੦॥
नानक मनि तनि सुखु सद वसै भाई सबदि मिलावा होइ ॥४॥१॥१८॥१२॥१८॥३०॥
नानक का कथन है कि हे भाई ! शब्द-गुरु द्वारा जिसका परब्रह्म से मिलाप हो जाता है, उसके मन तन में सर्वदा सुख अवस्थित रहता है।॥४॥१॥१८॥१२॥१८॥३०॥
ਰਾਗੁ ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧ ਇਕ ਤੁਕੇ
रागु बसंतु महला ४ घरु १ इक तुके
रागु बसंतु महला ४ घरु १ इक तुके
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਜਿਉ ਪਸਰੀ ਸੂਰਜ ਕਿਰਣਿ ਜੋਤਿ ॥
जिउ पसरी सूरज किरणि जोति ॥
ज्यों सूर्य की किरणों का उजाला सब जगह फैला हुआ है,
ਤਿਉ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਮਈਆ ਓਤਿ ਪੋਤਿ ॥੧॥
तिउ घटि घटि रमईआ ओति पोति ॥१॥
त्यों परमात्मा प्रत्येक शरीर में ओत-प्रोत है॥१॥
ਏਕੋ ਹਰਿ ਰਵਿਆ ਸ੍ਰਬ ਥਾਇ ॥
एको हरि रविआ स्रब थाइ ॥
एकमात्र परमात्मा हर जगह पर विद्यमान है,
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮਿਲੀਐ ਮੇਰੀ ਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर सबदी मिलीऐ मेरी माइ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरी माँ! गुरु के उपदेश से ही उससे मिलाप होता है॥१॥रहाउ॥।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਅੰਤਰਿ ਏਕੋ ਹਰਿ ਸੋਇ ॥
घटि घटि अंतरि एको हरि सोइ ॥
घट घट में एक परमात्मा ही व्याप्त है और
ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਇਕੁ ਪ੍ਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੨॥
गुरि मिलिऐ इकु प्रगटु होइ ॥२॥
गुरु के साक्षात्कार से वह प्रगट हो जाता है।॥२॥
ਏਕੋ ਏਕੁ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥
एको एकु रहिआ भरपूरि ॥
विश्व भर में एक प्रभु ही स्थित है,
ਸਾਕਤ ਨਰ ਲੋਭੀ ਜਾਣਹਿ ਦੂਰਿ ॥੩॥
साकत नर लोभी जाणहि दूरि ॥३॥
परन्तु प्रभु से विमुख लोभी व्यक्ति उसे दूर समझते हैं।॥३॥
ਏਕੋ ਏਕੁ ਵਰਤੈ ਹਰਿ ਲੋਇ ॥
एको एकु वरतै हरि लोइ ॥
एक ईश्वर ही संसार में कार्यशील है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਏਕੋੁ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੪॥੧॥
नानक हरि एको करे सु होइ ॥४॥१॥
नानक का मत है केि अद्वितीय परमेश्वर जो करता है, वह निश्चय होता है॥४॥१॥
ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बसंतु महला ४ ॥
बसंतु महला ४॥
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਦੁਇ ਸਦੇ ਪਏ ॥
रैणि दिनसु दुइ सदे पए ॥
रात और दिन दोनों ही मौत का बुलावा दे रहे हैं,
ਮਨ ਹਰਿ ਸਿਮਰਹੁ ਅੰਤਿ ਸਦਾ ਰਖਿ ਲਏ ॥੧॥
मन हरि सिमरहु अंति सदा रखि लए ॥१॥
हे मन ! परमात्मा का चिन्तन कर लो, क्योंकि अंत में यही बचाता है॥१॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਚੇਤਿ ਸਦਾ ਮਨ ਮੇਰੇ ॥
हरि हरि चेति सदा मन मेरे ॥
हे मेरे मन ! सर्वदा परमात्मा का मनन करो,
ਸਭੁ ਆਲਸੁ ਦੂਖ ਭੰਜਿ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰਮਤਿ ਗਾਵਹੁ ਗੁਣ ਪ੍ਰਭ ਕੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सभु आलसु दूख भंजि प्रभु पाइआ गुरमति गावहु गुण प्रभ केरे ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के सदुपदेश द्वारा प्रभु का स्तुतिगान करो, सब आलस्य एवं दुख दर्द दूर होकर प्रभु प्राप्त हो जाएगा।॥१॥रहाउ॥।
ਮਨਮੁਖ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਹਉਮੈ ਮੁਏ ॥
मनमुख फिरि फिरि हउमै मुए ॥
मनमुख जीव पुनः पुनः अहंकार की वजह से मरते हैं,