ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਸੁ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਮਾਨੈ ਹੁਕਮੁ ਸਮਾਇਦਾ ॥੯॥
गुरमुखि होइ सु हुकमु पछाणै मानै हुकमु समाइदा ॥९॥
जो गुरुमुख होता है, वही ईश्वर के हुक्म को पहचानता और मानकर उसके हुक्म में ही समा जाता है।॥ ९॥
ਹੁਕਮੇ ਆਇਆ ਹੁਕਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥
हुकमे आइआ हुकमि समाइआ ॥
प्रत्येक जीव ईश्वर के हुक्म से ही पैदा हुआ है और हुक्म से ही उसमें विलीन हो गया है।
ਹੁਕਮੇ ਦੀਸੈ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
हुकमे दीसै जगतु उपाइआ ॥
समूचा दृष्टिमान जगत् उसके हुक्म से ही उत्पन्न हुआ है।
ਹੁਕਮੇ ਸੁਰਗੁ ਮਛੁ ਪਇਆਲਾ ਹੁਕਮੇ ਕਲਾ ਰਹਾਇਦਾ ॥੧੦॥
हुकमे सुरगु मछु पइआला हुकमे कला रहाइदा ॥१०॥
उसके हुक्म में स्वर्गलोक, मृत्युलोक एवं पाताललोक की रचना हुई और हुक्म से ही उसने इनमें शक्ति स्थित की॥ १०॥
ਹੁਕਮੇ ਧਰਤੀ ਧਉਲ ਸਿਰਿ ਭਾਰੰ ॥
हुकमे धरती धउल सिरि भारं ॥
ईश्वर के हुक्म में ही धर्म रूपी बेल ने सिर पर धरती का भार उठाया हुआ है।
ਹੁਕਮੇ ਪਉਣ ਪਾਣੀ ਗੈਣਾਰੰ ॥
हुकमे पउण पाणी गैणारं ॥
उसके हुक्म से ही पवन एवं पानी कार्यशील हैं।
ਹੁਕਮੇ ਸਿਵ ਸਕਤੀ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਹੁਕਮੇ ਖੇਲ ਖੇਲਾਇਦਾ ॥੧੧॥
हुकमे सिव सकती घरि वासा हुकमे खेल खेलाइदा ॥११॥
उसके हुक्म में ही शिव (जीव) ने शक्ति (माया) के घर में वास किया हुआ है और हुक्म में ही जीवन रूपो खेल खेलाता है॥ ११॥
ਹੁਕਮੇ ਆਡਾਣੇ ਆਗਾਸੀ ॥
हुकमे आडाणे आगासी ॥
हुक्म में आकाश का प्रसार है,
ਹੁਕਮੇ ਜਲ ਥਲ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਵਾਸੀ ॥
हुकमे जल थल त्रिभवण वासी ॥
उसके हुक्म में ही तीनों लोकों के वासी जीव जल एवं थल में रहते हैं।
ਹੁਕਮੇ ਸਾਸ ਗਿਰਾਸ ਸਦਾ ਫੁਨਿ ਹੁਕਮੇ ਦੇਖਿ ਦਿਖਾਇਦਾ ॥੧੨॥
हुकमे सास गिरास सदा फुनि हुकमे देखि दिखाइदा ॥१२॥
उसके हुक्म में ही जीव सॉस-ग्रास लेता है और पुनः हुक्म में ही देखता एवं दिखाता है॥ १२॥
ਹੁਕਮਿ ਉਪਾਏ ਦਸ ਅਉਤਾਰਾ ॥
हुकमि उपाए दस अउतारा ॥
ईश्वर के हुक्म के अन्तर्गत ही दस अवतार (मच्छ, कच्छ, वाराह, नृसिंह, वामन, राम, कृष्ण, परशुराम इत्यादि) पैदा हुए और
ਦੇਵ ਦਾਨਵ ਅਗਣਤ ਅਪਾਰਾ ॥
देव दानव अगणत अपारा ॥
हुक्म में ही असंख्य देव-दानव उत्पन्न किए।
ਮਾਨੈ ਹੁਕਮੁ ਸੁ ਦਰਗਹ ਪੈਝੈ ਸਾਚਿ ਮਿਲਾਇ ਸਮਾਇਦਾ ॥੧੩॥
मानै हुकमु सु दरगह पैझै साचि मिलाइ समाइदा ॥१३॥
जो उसके हुक्म को मानता है वही उसके दरबार में शोभा का पात्र बनता है और परम-सत्य में ही विलीन हो जाता है॥ १३॥
ਹੁਕਮੇ ਜੁਗ ਛਤੀਹ ਗੁਦਾਰੇ ॥
हुकमे जुग छतीह गुदारे ॥
हुक्म में ही ईश्वर ने छत्तीस युग शून्य समाधि में व्यतीत कर दिए।
ਹੁਕਮੇ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਵੀਚਾਰੇ ॥
हुकमे सिध साधिक वीचारे ॥
चिंतनशील सिध-साधक उसके हुक्म से ही पैदा हुए हैं।
ਆਪਿ ਨਾਥੁ ਨਥੀਂ ਸਭ ਜਾ ਕੀ ਬਖਸੇ ਮੁਕਤਿ ਕਰਾਇਦਾ ॥੧੪॥
आपि नाथु नथीं सभ जा की बखसे मुकति कराइदा ॥१४॥
वह सृष्टि का मालिक है और सब उसके नियंत्रण में है। जिस पर कृपा करता है, उसे मुक्त कर देता है॥ १४॥
ਕਾਇਆ ਕੋਟੁ ਗੜੈ ਮਹਿ ਰਾਜਾ ॥
काइआ कोटु गड़ै महि राजा ॥
शरीर रूपी किले में मन राजा है।
ਨੇਬ ਖਵਾਸ ਭਲਾ ਦਰਵਾਜਾ ॥
नेब खवास भला दरवाजा ॥
कर्मन्द्रियाँ एवं ज्ञानेन्द्रियाँ इसके नायब एवं खास सेवक हैं और मुंह इसका दरवाजा है।
ਮਿਥਿਆ ਲੋਭੁ ਨਾਹੀ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਲਬਿ ਪਾਪਿ ਪਛੁਤਾਇਦਾ ॥੧੫॥
मिथिआ लोभु नाही घरि वासा लबि पापि पछुताइदा ॥१५॥
किन्तु मिथ्या लोभ के कारण जीव को सच्चे घर में वास नहीं मिलता और लालच, पाप के कारण पछताता है॥ १५॥
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਨਗਰ ਮਹਿ ਕਾਰੀ ॥
सतु संतोखु नगर महि कारी ॥
सत्य एवं संतोष भी शरीर रूपी नगर में अधिकारी हैं,
ਜਤੁ ਸਤੁ ਸੰਜਮੁ ਸਰਣਿ ਮੁਰਾਰੀ ॥
जतु सतु संजमु सरणि मुरारी ॥
जो यतीत्व, सदाचार एवं संयम द्वारा मन रूपी राजा को ईश्वर की शरण में जाने के लिए प्रेरित करते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਮਿਲੈ ਜਗਜੀਵਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਪਤਿ ਪਾਇਦਾ ॥੧੬॥੪॥੧੬॥
नानक सहजि मिलै जगजीवनु गुर सबदी पति पाइदा ॥१६॥४॥१६॥
हे नानक ! ईश्वर सहज स्वभाव ही मिलता है और शब्द-गुरु द्वारा ही जीव को सम्मान प्राप्त होता है॥१६॥४॥१६॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥
ਸੁੰਨ ਕਲਾ ਅਪਰੰਪਰਿ ਧਾਰੀ ॥
सुंन कला अपर्मपरि धारी ॥
ईश्वर ने सर्वप्रथम शून्य समाधि धारण की थी,
ਆਪਿ ਨਿਰਾਲਮੁ ਅਪਰ ਅਪਾਰੀ ॥
आपि निरालमु अपर अपारी ॥
वह अपरंपार स्वयं निर्लिप्त था।
ਆਪੇ ਕੁਦਰਤਿ ਕਰਿ ਕਰਿ ਦੇਖੈ ਸੁੰਨਹੁ ਸੁੰਨੁ ਉਪਾਇਦਾ ॥੧॥
आपे कुदरति करि करि देखै सुंनहु सुंनु उपाइदा ॥१॥
वह स्वयं ही कुदरत को उत्पन्न कर करके देखता है और शून्य समाधि में शून्य से सब उत्पन्न करता है॥ १॥
ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਸੁੰਨੈ ਤੇ ਸਾਜੇ ॥
पउणु पाणी सुंनै ते साजे ॥
शून्य से उसने पवन-पानी का निर्माण किया,
ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਇ ਕਾਇਆ ਗੜ ਰਾਜੇ ॥
स्रिसटि उपाइ काइआ गड़ राजे ॥
सृष्टि उत्पन्न करके शरीर रूपी किले में मन रूपी राजा को पैदा किया।
ਅਗਨਿ ਪਾਣੀ ਜੀਉ ਜੋਤਿ ਤੁਮਾਰੀ ਸੁੰਨੇ ਕਲਾ ਰਹਾਇਦਾ ॥੨॥
अगनि पाणी जीउ जोति तुमारी सुंने कला रहाइदा ॥२॥
हे ईश्वर ! अग्नि, पानी एवं जीव में तुम्हारी ही ज्योति है और समूची शक्ति शून्य में ही स्थिर की हुई है । २॥
ਸੁੰਨਹੁ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸੁ ਉਪਾਏ ॥
सुंनहु ब्रहमा बिसनु महेसु उपाए ॥
शून्य से ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश उत्पन्न किए,
ਸੁੰਨੇ ਵਰਤੇ ਜੁਗ ਸਬਾਏ ॥
सुंने वरते जुग सबाए ॥
सभी युग शून्य में ही बीत गए।
ਇਸੁ ਪਦ ਵੀਚਾਰੇ ਸੋ ਜਨੁ ਪੂਰਾ ਤਿਸੁ ਮਿਲੀਐ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਦਾ ॥੩॥
इसु पद वीचारे सो जनु पूरा तिसु मिलीऐ भरमु चुकाइदा ॥३॥
इस पद को जो व्यक्ति विचार लेता है, वही पूर्ण ज्ञानी है और उससे मिलकर भ्रम दूर हो जाता है।॥ ३॥
ਸੁੰਨਹੁ ਸਪਤ ਸਰੋਵਰ ਥਾਪੇ ॥
सुंनहु सपत सरोवर थापे ॥
शून्य में ही परमेश्वर ने सात सरोवर (पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, मन-बुद्धि) बनाए,”
ਜਿਨਿ ਸਾਜੇ ਵੀਚਾਰੇ ਆਪੇ ॥
जिनि साजे वीचारे आपे ॥
जिसने इसे बनाया है, वह स्वयं ही इनका विचार करता है।
ਤਿਤੁ ਸਤ ਸਰਿ ਮਨੂਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਵੈ ਫਿਰਿ ਬਾਹੁੜਿ ਜੋਨਿ ਨ ਪਾਇਦਾ ॥੪॥
तितु सत सरि मनूआ गुरमुखि नावै फिरि बाहुड़ि जोनि न पाइदा ॥४॥
जिस गुरुमुख का मन इन सात सरोवरों में स्नान करता है, वह पुनः योनि-चक्र में नहीं पड़ता॥ ४॥
ਸੁੰਨਹੁ ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਗੈਣਾਰੇ ॥
सुंनहु चंदु सूरजु गैणारे ॥
शून्य से ही उसने चाँद, सूर्य एवं गगन बनाए और
ਤਿਸ ਕੀ ਜੋਤਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸਾਰੇ ॥
तिस की जोति त्रिभवण सारे ॥
उसकी ज्योति तीनों लोकों में फैली हुई है।
ਸੁੰਨੇ ਅਲਖ ਅਪਾਰ ਨਿਰਾਲਮੁ ਸੁੰਨੇ ਤਾੜੀ ਲਾਇਦਾ ॥੫॥
सुंने अलख अपार निरालमु सुंने ताड़ी लाइदा ॥५॥
अलख, अपार निर्लिप्त परमात्मा स्वयं भी शून्य में ही समाया हुआ है और शून्य में ही समाधि लगाता है॥ ५॥
ਸੁੰਨਹੁ ਧਰਤਿ ਅਕਾਸੁ ਉਪਾਏ ॥
सुंनहु धरति अकासु उपाए ॥
शून्य से ही धरती एवं आकाश उत्पन्न किए और
ਬਿਨੁ ਥੰਮਾ ਰਾਖੇ ਸਚੁ ਕਲ ਪਾਏ ॥
बिनु थमा राखे सचु कल पाए ॥
बिना स्तम्भ के अपनी सत्य की शक्ति से स्थित किया हुआ है।
ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸਾਜਿ ਮੇਖੁਲੀ ਮਾਇਆ ਆਪਿ ਉਪਾਇ ਖਪਾਇਦਾ ॥੬॥
त्रिभवण साजि मेखुली माइआ आपि उपाइ खपाइदा ॥६॥
उसने तीनों लोकों की रचना करके उन्हें माया रूपी रस्सी से बांध रखा है और वह स्वयं ही पैदा करके नष्ट भी कर देता है॥ ६॥
ਸੁੰਨਹੁ ਖਾਣੀ ਸੁੰਨਹੁ ਬਾਣੀ ॥
सुंनहु खाणी सुंनहु बाणी ॥
शून्य से ही जीवों की उत्पत्ति के चारों स्रोत अस्तित्व में आए और शून्य से ही चारों वाणियों आई।
ਸੁੰਨਹੁ ਉਪਜੀ ਸੁੰਨਿ ਸਮਾਣੀ ॥
सुंनहु उपजी सुंनि समाणी ॥
ये सब शून्य से उत्पन्न होकर शून्य में ही विलीन हो गए।
ਉਤਭੁਜੁ ਚਲਤੁ ਕੀਆ ਸਿਰਿ ਕਰਤੈ ਬਿਸਮਾਦੁ ਸਬਦਿ ਦੇਖਾਇਦਾ ॥੭॥
उतभुजु चलतु कीआ सिरि करतै बिसमादु सबदि देखाइदा ॥७॥
करतार ने अपने शब्द द्वारा वनस्पति की रचना करके एक बड़ी अद्भुत लीला कर दिखाई है॥ ७॥
ਸੁੰਨਹੁ ਰਾਤਿ ਦਿਨਸੁ ਦੁਇ ਕੀਏ ॥
सुंनहु राति दिनसु दुइ कीए ॥
दिन और रात दोनों ही उसने शून्य से उत्पन्न किए और
ਓਪਤਿ ਖਪਤਿ ਸੁਖਾ ਦੁਖ ਦੀਏ ॥
ओपति खपति सुखा दुख दीए ॥
इसी से जीवों को जन्म-मरण, दुख-सुख दिए हैं।
ਸੁਖ ਦੁਖ ਹੀ ਤੇ ਅਮਰੁ ਅਤੀਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਜ ਘਰੁ ਪਾਇਦਾ ॥੮॥
सुख दुख ही ते अमरु अतीता गुरमुखि निज घरु पाइदा ॥८॥
गुरुमुख सुख-दुख से रहित होकर अमर हो गया और उसने अपने सच्चे घर में स्थान पा लिया ॥८॥