ਸੋ ਬੂਝੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸੁ ਮੁਕਤੁ ਭਇਆ ॥
सो बूझै जिसु आपि बुझाए गुर कै सबदि सु मुकतु भइआ ॥
इस भेद को वही बुझता है, जिसे परमात्मा स्वयं ज्ञान देता है और गुरु के शब्द द्वारा ही जीव मुक्त हुआ है।
ਨਾਨਕ ਤਾਰੇ ਤਾਰਣਹਾਰਾ ਹਉਮੈ ਦੂਜਾ ਪਰਹਰਿਆ ॥੨੫॥
नानक तारे तारणहारा हउमै दूजा परहरिआ ॥२५॥
नानक कहते हैं कि जिसने अपने अभिमान एवं द्वैतभाव को त्याग दिया हैं, तारनहार परमेश्वर ने स्वयं ही उसका उद्धार कर दिया है ॥२५॥
ਮਨਮੁਖਿ ਭੂਲੈ ਜਮ ਕੀ ਕਾਣਿ ॥
मनमुखि भूलै जम की काणि ॥
मनमुखी जीव भूलकर यम का मोहताज बना रहता है।
ਪਰ ਘਰੁ ਜੋਹੈ ਹਾਣੇ ਹਾਣਿ ॥
पर घरु जोहै हाणे हाणि ॥
वह पराई नारी की ओर देखता है, जिस कारण उसे सिर्फ नुक्सान ही उठाना पड़ता है।
ਮਨਮੁਖਿ ਭਰਮਿ ਭਵੈ ਬੇਬਾਣਿ ॥
मनमुखि भरमि भवै बेबाणि ॥
स्वेछाचारी जीव भ्रम में जादू-टोने के चक्कर में भटकते रहते हैं।
ਵੇਮਾਰਗਿ ਮੂਸੈ ਮੰਤ੍ਰਿ ਮਸਾਣਿ ॥
वेमारगि मूसै मंत्रि मसाणि ॥
ऐसे वाममार्ग वाले मनुष्य तुटे जा रहे हैं और श्मशान में मंत्र पढ़कर भूतों-प्रेतों की ही पूजा करते हैं।
ਸਬਦੁ ਨ ਚੀਨੈ ਲਵੈ ਕੁਬਾਣਿ ॥
सबदु न चीनै लवै कुबाणि ॥
वह शब्द की पहचान नहीं करते और अशिष्ट भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਾਚਿ ਰਤੇ ਸੁਖੁ ਜਾਣਿ ॥੨੬॥
नानक साचि रते सुखु जाणि ॥२६॥
हे नानक ! जो व्यक्ति सत्य में लीन रहते हैं, उन्हें ही सुख उपलब्ध होता है ॥२६॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੇ ਕਾ ਭਉ ਪਾਵੈ ॥
गुरमुखि साचे का भउ पावै ॥
(गुरु नानक देव जी सिद्धों को गुरुमुख के गुण बताते हुए कहते हैं कि) गुरुमुख जीव अपने मन में सच्चे परमात्मा का भय बनाकर रखता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਾਣੀ ਅਘੜੁ ਘੜਾਵੈ ॥
गुरमुखि बाणी अघड़ु घड़ावै ॥
गुरु की वाणी द्वारा असाध्य मन को वशीभूत कर लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਰਮਲ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥
गुरमुखि निरमल हरि गुण गावै ॥
वह निर्मल भावना से परमात्मा का गुणगान करता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਵਿਤ੍ਰੁ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਵੈ ॥
गुरमुखि पवित्रु परम पदु पावै ॥
पवित्र परमपद को प्राप्त कर लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰੋਮਿ ਰੋਮਿ ਹਰਿ ਧਿਆਵੈ ॥
गुरमुखि रोमि रोमि हरि धिआवै ॥
वह अपने रोम-रोम से ईश्वर का ध्यान करता रहता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥੨੭॥
नानक गुरमुखि साचि समावै ॥२७॥
हे नानक ! इस प्रकार गुरुमुख परम-सत्य में ही विलीन हो जाता है॥ २७॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਚੈ ਬੇਦ ਬੀਚਾਰੀ ॥
गुरमुखि परचै बेद बीचारी ॥
गुरुमुख सत्य में ही लीन रहता है और वह वेदों का ज्ञाता बन जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਚੈ ਤਰੀਐ ਤਾਰੀ ॥
गुरमुखि परचै तरीऐ तारी ॥
वह ईश्वर में लीन रहकर भवसागर से पार हो जाता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਚੈ ਸੁ ਸਬਦਿ ਗਿਆਨੀ ॥
गुरमुखि परचै सु सबदि गिआनी ॥
सत्य में लीन रहकर शब्द का ज्ञाता बन जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਚੈ ਅੰਤਰ ਬਿਧਿ ਜਾਨੀ ॥
गुरमुखि परचै अंतर बिधि जानी ॥
वह सत्य में प्रवृत्त रहकर मन की विधि को जान लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਅਲਖ ਅਪਾਰੁ ॥
गुरमुखि पाईऐ अलख अपारु ॥
वह अलख-अपार परमात्मा को प्राप्त कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰੁ ॥੨੮॥
नानक गुरमुखि मुकति दुआरु ॥२८॥
हे नानक ! गुरुमुख को मुक्ति का द्वार प्राप्त हो जाता है ॥२८॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਕਥੁ ਕਥੈ ਬੀਚਾਰਿ ॥
गुरमुखि अकथु कथै बीचारि ॥
गुरुमुख विचार कर अकथनीय सत्य का ही कथन करता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਬਹੈ ਸਪਰਵਾਰਿ ॥
गुरमुखि निबहै सपरवारि ॥
परिवार में रहते हुए ही उसकी परमात्मा से प्रीति अंत तक निभ जाती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਪੀਐ ਅੰਤਰਿ ਪਿਆਰਿ ॥
गुरमुखि जपीऐ अंतरि पिआरि ॥
वह अपने मन में श्रद्धा-प्रेम से प्रभु का ही जाप करता रहता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਸਬਦਿ ਅਚਾਰਿ ॥
गुरमुखि पाईऐ सबदि अचारि ॥
शब्द द्वारा शुभ-आचरण बनाकर ब्रह्मा को प्राप्त कर लेता है।
ਸਬਦਿ ਭੇਦਿ ਜਾਣੈ ਜਾਣਾਈ ॥
सबदि भेदि जाणै जाणाई ॥
शब्द के भेद को जानने वाला गुरुमुख सत्य को जान लेता है और दूसरों को भी इसका ज्ञान देता है।
ਨਾਨਕ ਹਉਮੈ ਜਾਲਿ ਸਮਾਈ ॥੨੯॥
नानक हउमै जालि समाई ॥२९॥
हे नानक ! वह अपने अहम् को जलाकर सत्य में ही विलीन हो जाता है ॥२६॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਧਰਤੀ ਸਾਚੈ ਸਾਜੀ ॥
गुरमुखि धरती साचै साजी ॥
(गुरु जी सिद्धों को बताते हैं कि) गुरुमुख के लिए परमात्मा ने यह धरती बनाई है।
ਤਿਸ ਮਹਿ ਓਪਤਿ ਖਪਤਿ ਸੁ ਬਾਜੀ ॥
तिस महि ओपति खपति सु बाजी ॥
उसने इस धरती में जीवों की उत्पति एवं प्रलय की अपनी एक लीला रची हुई है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਰਪੈ ਰੰਗੁ ਲਾਇ ॥
गुर कै सबदि रपै रंगु लाइ ॥
जो जीव गुरु के शब्द में लीन होकर परमात्मा का रंग लगा लेता है,
ਸਾਚਿ ਰਤਉ ਪਤਿ ਸਿਉ ਘਰਿ ਜਾਇ ॥
साचि रतउ पति सिउ घरि जाइ ॥
वह सत्य में रत होकर शोभा सहित अपने घर पहुँचता है।
ਸਾਚ ਸਬਦ ਬਿਨੁ ਪਤਿ ਨਹੀ ਪਾਵੈ ॥
साच सबद बिनु पति नही पावै ॥
सच्चे शब्द के बिना कोई भी सत्य के दरबार में सम्मान का पात्र नहीं बनता।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕਿਉ ਸਾਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥੩੦॥
नानक बिनु नावै किउ साचि समावै ॥३०॥
हे नानक ! नाम के बिना जीव कैसे सत्य में विलीन हो सकता है ॥३०॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਸਟ ਸਿਧੀ ਸਭਿ ਬੁਧੀ ॥
गुरमुखि असट सिधी सभि बुधी ॥
गुरुमुख को सुमति एवं आठ सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਵਜਲੁ ਤਰੀਐ ਸਚ ਸੁਧੀ ॥
गुरमुखि भवजलु तरीऐ सच सुधी ॥
वह सत्य का ज्ञान होने के कारण भवसागर को पार कर लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਰ ਅਪਸਰ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥
गुरमुखि सर अपसर बिधि जाणै ॥
वह शुभ एवं अशुभ कर्म की विधि को जान लेता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਵਿਰਤਿ ਨਰਵਿਰਤਿ ਪਛਾਣੈ ॥
गुरमुखि परविरति नरविरति पछाणै ॥
अंतर्मुखी ज्ञान एवं बहिर्मुखी कर्म होने के मार्ग को पहचान लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਾਰੇ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੇ ॥
गुरमुखि तारे पारि उतारे ॥
वह अपने संगियों को संसार-सागर से पार करवा देता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੩੧॥
नानक गुरमुखि सबदि निसतारे ॥३१॥
हे नानक ! गुरुमुख शब्द द्वारा ही उनका निस्तार करवाता है॥ ३१॥
ਨਾਮੇ ਰਾਤੇ ਹਉਮੈ ਜਾਇ ॥
नामे राते हउमै जाइ ॥
(गुरु जी उपदेश देते हैं कि) परमात्मा के नाम में लीन होने से आत्माभिमान दूर हो जाता है।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਚਿ ਰਹੇ ਸਮਾਇ ॥
नामि रते सचि रहे समाइ ॥
नाम में प्रवृत्त रहने वाला जीव सत्य में ही समाया रहता है।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਬੀਚਾਰੁ ॥
नामि रते जोग जुगति बीचारु ॥
हरि-नाम में रत रहने वाले को योग-युक्ति का ज्ञान हो जाता है।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਪਾਵਹਿ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥
नामि रते पावहि मोख दुआरु ॥
प्रभु-नाम में लीन रहने वाला जीव मोक्ष-द्वार प्राप्त कर लेता है और
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੋਝੀ ਹੋਇ ॥
नामि रते त्रिभवण सोझी होइ ॥
नाम में लीन रहने से तीनों लोकों का ज्ञान हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੩੨॥
नानक नामि रते सदा सुखु होइ ॥३२॥
हे नानक ! नाम में लीन रहने से सदा सुख प्राप्त होता है॥ ३२॥
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਿਧ ਗੋਸਟਿ ਹੋਇ ॥
नामि रते सिध गोसटि होइ ॥
ईश्वर के नाम में लीन रहने से ही सिद्ध गोष्ठी सफल हो जाती है।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਤਪੁ ਹੋਇ ॥
नामि रते सदा तपु होइ ॥
नाम में प्रवृत्त रहने से ही तपस्या हो जाती है।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਚੁ ਕਰਣੀ ਸਾਰੁ ॥
नामि रते सचु करणी सारु ॥
नाम में लीन रहना ही सच्ची करनी है और
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਗੁਣ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰੁ ॥
नामि रते गुण गिआन बीचारु ॥
नाम में रत रहना ही परमात्मा के गुणों और ज्ञान का विचारं है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਬੋਲੈ ਸਭੁ ਵੇਕਾਰੁ ॥
बिनु नावै बोलै सभु वेकारु ॥
नाम के बिना बोलना सब बेकार है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਤਿਨ ਕਉ ਜੈਕਾਰੁ ॥੩੩॥
नानक नामि रते तिन कउ जैकारु ॥३३॥
हे नानक ! नाम में लीन रहने वाले महापुरुषों को उनका प्रणाम है ॥३३॥
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਨਾਮੁ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
पूरे गुर ते नामु पाइआ जाइ ॥
पूर्ण गुरु से ही नाम प्राप्त होता है और
ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਸਚਿ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥
जोग जुगति सचि रहै समाइ ॥
सत्य में लीन रहना ही योग की सच्ची युक्ति है।
ਬਾਰਹ ਮਹਿ ਜੋਗੀ ਭਰਮਾਏ ਸੰਨਿਆਸੀ ਛਿਅ ਚਾਰਿ ॥
बारह महि जोगी भरमाए संनिआसी छिअ चारि ॥
योगी अपने बारह सम्प्रदायों में भटकते रहते हैं और सन्यासी अपने दस सम्प्रदायों में भटकते रहते हैं।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਜੋ ਮਰਿ ਜੀਵੈ ਸੋ ਪਾਏ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥
गुर कै सबदि जो मरि जीवै सो पाए मोख दुआरु ॥
जो व्यक्ति गुरु के शब्द द्वारा जीवन्मुक्त हो जाता है, उसे मोक्ष द्वार प्राप्त हो जाता है।