ਜੀਵਨੈ ਕੀ ਆਸ ਕਰਹਿ ਜਮੁ ਨਿਹਾਰੈ ਸਾਸਾ ॥
जीवनै की आस करहि जमु निहारै सासा ॥
तू अधिक जीवन जीने की आशा करता है परन्तु यम तेरी सांसें देख रहा है।
ਬਾਜੀਗਰੀ ਸੰਸਾਰੁ ਕਬੀਰਾ ਚੇਤਿ ਢਾਲਿ ਪਾਸਾ ॥੩॥੧॥੨੩॥
बाजीगरी संसारु कबीरा चेति ढालि पासा ॥३॥१॥२३॥
हे कबीर ! यह दुनिया तो बाजीगर का खेल है इसलिए सोच-समझकर जीवन बाजी जीतने के लिए प्रभु-सिमरन की चाल चल ॥ ३ ॥ १॥ २३ ॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥
ਤਨੁ ਰੈਨੀ ਮਨੁ ਪੁਨ ਰਪਿ ਕਰਿ ਹਉ ਪਾਚਉ ਤਤ ਬਰਾਤੀ ॥
तनु रैनी मनु पुन रपि करि हउ पाचउ तत बराती ॥
अपने तन को मैंने रंगने वाला पात्र बनाया है और फिर मन को शुभ गुणों से रंगा है। पाँच मूल तत्वों को मैंने अपना बराती बनाया है।
ਰਾਮ ਰਾਇ ਸਿਉ ਭਾਵਰਿ ਲੈਹਉ ਆਤਮ ਤਿਹ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ॥੧॥
राम राइ सिउ भावरि लैहउ आतम तिह रंगि राती ॥१॥
राम जी से मैं अपने विवाह के फेरे ले रही हूँ और मेरी आत्मा उसके प्रेम में लीन हो गई है॥ १॥
ਗਾਉ ਗਾਉ ਰੀ ਦੁਲਹਨੀ ਮੰਗਲਚਾਰਾ ॥
गाउ गाउ री दुलहनी मंगलचारा ॥
हे दुल्हन सखियो ! तुम विवाह के मंगल गीत गायन करो।
ਮੇਰੇ ਗ੍ਰਿਹ ਆਏ ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਭਤਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरे ग्रिह आए राजा राम भतारा ॥१॥ रहाउ ॥
मेरे घर में राजा राम दूल्हा बन कर आए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਨਾਭਿ ਕਮਲ ਮਹਿ ਬੇਦੀ ਰਚਿ ਲੇ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨ ਉਚਾਰਾ ॥
नाभि कमल महि बेदी रचि ले ब्रहम गिआन उचारा ॥
अपनी नाभि कमल में मैंने वेदी बनाई है और ब्रह्म-ज्ञान रूपी मंत्र उच्चरित किया है।
ਰਾਮ ਰਾਇ ਸੋ ਦੂਲਹੁ ਪਾਇਓ ਅਸ ਬਡਭਾਗ ਹਮਾਰਾ ॥੨॥
राम राइ सो दूलहु पाइओ अस बडभाग हमारा ॥२॥
मैं बड़ी भाग्यशालिनी हूँ जो राम जी को मैंने अपने दूल्हे (वर) के रूप में पाया है॥ २॥
ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਕਉਤਕ ਆਏ ਕੋਟਿ ਤੇਤੀਸ ਉਜਾਨਾਂ ॥
सुरि नर मुनि जन कउतक आए कोटि तेतीस उजानां ॥
सुर, नर, मुनिजन एवं तेतीस करोड़ देवता अपने विमानों में सवार होकर इस आश्चर्यजनक विवाह का कौतुक देखने हेतु पधारे हैं।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਮੋਹਿ ਬਿਆਹਿ ਚਲੇ ਹੈ ਪੁਰਖ ਏਕ ਭਗਵਾਨਾ ॥੩॥੨॥੨੪॥
कहि कबीर मोहि बिआहि चले है पुरख एक भगवाना ॥३॥२॥२४॥
कबीर जी कहते हैं कि एक आदिपुरुष भगवान मुझे ब्याह कर ले चले हैं।॥ ३॥ २॥ २४॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥
ਸਾਸੁ ਕੀ ਦੁਖੀ ਸਸੁਰ ਕੀ ਪਿਆਰੀ ਜੇਠ ਕੇ ਨਾਮਿ ਡਰਉ ਰੇ ॥
सासु की दुखी ससुर की पिआरी जेठ के नामि डरउ रे ॥
मैं अपनी माया रूपी सास द्वारा बहुत दुःखी हूँ तथा अपने ससुर की प्यारी हूँ लेकिन अपने जेठ मृत्यु के नाम से मैं डरती हूँ।
ਸਖੀ ਸਹੇਲੀ ਨਨਦ ਗਹੇਲੀ ਦੇਵਰ ਕੈ ਬਿਰਹਿ ਜਰਉ ਰੇ ॥੧॥
सखी सहेली ननद गहेली देवर कै बिरहि जरउ रे ॥१॥
हे मेरी सखी सहेलियो ! मेरी अज्ञानता (इन्द्रियों) रूपी ननद ने मुझे पकड़ लिया है। अपने देवर (विवेक बुद्धि) के विरह में अत्यंत जल रही हूँ॥ १॥
ਮੇਰੀ ਮਤਿ ਬਉਰੀ ਮੈ ਰਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿਓ ਕਿਨ ਬਿਧਿ ਰਹਨਿ ਰਹਉ ਰੇ ॥
मेरी मति बउरी मै रामु बिसारिओ किन बिधि रहनि रहउ रे ॥
मेरी बुद्धि बावली हो गई है, क्योंकि मैंने राम को भुला दिया है। अब मैं कैसे उपयुक्त जीवन बिता सकती हूँ।
ਸੇਜੈ ਰਮਤੁ ਨੈਨ ਨਹੀ ਪੇਖਉ ਇਹੁ ਦੁਖੁ ਕਾ ਸਉ ਕਹਉ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सेजै रमतु नैन नही पेखउ इहु दुखु का सउ कहउ रे ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा पति-परमात्मा मेरी सेज में विराजमान है परन्तु मेरे नयनों से वह मुझे दिखाई नहीं देता। यह दुःख मैं किससे व्यक्त करूं ॥ १॥ रहाउ॥
ਬਾਪੁ ਸਾਵਕਾ ਕਰੈ ਲਰਾਈ ਮਾਇਆ ਸਦ ਮਤਵਾਰੀ ॥
बापु सावका करै लराई माइआ सद मतवारी ॥
मेरा सौतेला पिता मुझ से झगड़ा करता है और माया मोहिनी सदैव नशे में मस्त रहती है।
ਬਡੇ ਭਾਈ ਕੈ ਜਬ ਸੰਗਿ ਹੋਤੀ ਤਬ ਹਉ ਨਾਹ ਪਿਆਰੀ ॥੨॥
बडे भाई कै जब संगि होती तब हउ नाह पिआरी ॥२॥
जब मैं बड़े भाई (ध्यान-मनन) की संगति करती थी तो मैं अपने प्रियतम की प्यारी थी। २॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਪੰਚ ਕੋ ਝਗਰਾ ਝਗਰਤ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
कहत कबीर पंच को झगरा झगरत जनमु गवाइआ ॥
कबीर जी कहते हैं कि कामादिक पाँचों विकारों से झगड़ा झगड़ते ही मेरा जीवन नष्ट हो गया है।
ਝੂਠੀ ਮਾਇਆ ਸਭੁ ਜਗੁ ਬਾਧਿਆ ਮੈ ਰਾਮ ਰਮਤ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੩॥੩॥੨੫॥
झूठी माइआ सभु जगु बाधिआ मै राम रमत सुखु पाइआ ॥३॥३॥२५॥
झुठी माया ने सारे जगत को बाँध लिया है परन्तु राम के नाम का भजन-सुमिरन करने से मुझे सुख प्राप्त हो गया है॥ ३॥ ३॥ २५ ॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥
ਹਮ ਘਰਿ ਸੂਤੁ ਤਨਹਿ ਨਿਤ ਤਾਨਾ ਕੰਠਿ ਜਨੇਊ ਤੁਮਾਰੇ ॥
हम घरि सूतु तनहि नित ताना कंठि जनेऊ तुमारे ॥
हे ब्राह्मण ! हमारे घर में प्रतिदिन सूत का ताना ही तनता है परन्तु तुम्हारे गले में केवल सूत का जनेऊ ही है।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਤਉ ਬੇਦ ਪੜਹੁ ਗਾਇਤ੍ਰੀ ਗੋਬਿੰਦੁ ਰਿਦੈ ਹਮਾਰੇ ॥੧॥
तुम्ह तउ बेद पड़हु गाइत्री गोबिंदु रिदै हमारे ॥१॥
तुम गायत्री-मंत्र का जाप एवं वेदों का अध्ययन करते रहते हो लेकिन हमारे हृदय में गोबिन्द निवास करता है॥ १॥
ਮੇਰੀ ਜਿਹਬਾ ਬਿਸਨੁ ਨੈਨ ਨਾਰਾਇਨ ਹਿਰਦੈ ਬਸਹਿ ਗੋਬਿੰਦਾ ॥
मेरी जिहबा बिसनु नैन नाराइन हिरदै बसहि गोबिंदा ॥
मेरी जिव्हा में विष्णु, नयनों में नारायण एवं हृदय में गोविन्द बसता है।
ਜਮ ਦੁਆਰ ਜਬ ਪੂਛਸਿ ਬਵਰੇ ਤਬ ਕਿਆ ਕਹਸਿ ਮੁਕੰਦਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जम दुआर जब पूछसि बवरे तब किआ कहसि मुकंदा ॥१॥ रहाउ ॥
हे मुकुंद ब्राह्मण ! जब यम द्वार पर कर्मों का लेखा जोखा पूछा जाएगा तो बावले तब तुम क्या कहोगे॥ १॥ रहाउ॥
ਹਮ ਗੋਰੂ ਤੁਮ ਗੁਆਰ ਗੁਸਾਈ ਜਨਮ ਜਨਮ ਰਖਵਾਰੇ ॥
हम गोरू तुम गुआर गुसाई जनम जनम रखवारे ॥
हम गौएं हैं और तुम ब्राह्मण हमारे ग्वाले बने हुए हो और जन्म-जन्म से हमारी रक्षा कर रहे हो।
ਕਬਹੂੰ ਨ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਿ ਚਰਾਇਹੁ ਕੈਸੇ ਖਸਮ ਹਮਾਰੇ ॥੨॥
कबहूं न पारि उतारि चराइहु कैसे खसम हमारे ॥२॥
परन्तु तुम कभी भी हमें चराने हेतु पार उतार नहीं लेकर गए अर्थात् कोई ब्रह्म-ज्ञान प्रदान नहीं किया। फिर तुम हमारे कैसे स्वामी हो ? ॥ २॥
ਤੂੰ ਬਾਮ੍ਹ੍ਹਨੁ ਮੈ ਕਾਸੀਕ ਜੁਲਹਾ ਬੂਝਹੁ ਮੋਰ ਗਿਆਨਾ ॥
तूं बाम्हनु मै कासीक जुलहा बूझहु मोर गिआना ॥
तुम ब्राह्मण हो तथा मैं काशी का जुलाहा हूँ। मेरी ज्ञान की बात को समझकर उसका सही उत्तर दो।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਤਉ ਜਾਚੇ ਭੂਪਤਿ ਰਾਜੇ ਹਰਿ ਸਉ ਮੋਰ ਧਿਆਨਾ ॥੩॥੪॥੨੬॥
तुम्ह तउ जाचे भूपति राजे हरि सउ मोर धिआना ॥३॥४॥२६॥
तुम जाकर राजाओं-महाराजाओं से दान मांगते फिरते हो किन्तु मेरा ध्यान हरि के चरणों में ही लीन रहता है॥ ३ ॥ ४ ॥ २६ ॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥
ਜਗਿ ਜੀਵਨੁ ਐਸਾ ਸੁਪਨੇ ਜੈਸਾ ਜੀਵਨੁ ਸੁਪਨ ਸਮਾਨੰ ॥
जगि जीवनु ऐसा सुपने जैसा जीवनु सुपन समानं ॥
जगत में जीवन ऐसा है, जैसे कि एक स्वप्न होता है। यह जीवन एक स्वप्न के समान है
ਸਾਚੁ ਕਰਿ ਹਮ ਗਾਠਿ ਦੀਨੀ ਛੋਡਿ ਪਰਮ ਨਿਧਾਨੰ ॥੧॥
साचु करि हम गाठि दीनी छोडि परम निधानं ॥१॥
परन्तु इसे सत्य मानकर हमने पकड़ लिया है और प्रभु नाम के परम खजाने को छोड़ दिया है। १॥
ਬਾਬਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਹਿਤੁ ਕੀਨੑ ॥
बाबा माइआ मोह हितु कीन्ह ॥
हे बाबा ! हम उस माया-मोह से इतना स्नेह करते हैं
ਜਿਨਿ ਗਿਆਨੁ ਰਤਨੁ ਹਿਰਿ ਲੀਨੑ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिनि गिआनु रतनु हिरि लीन्ह ॥१॥ रहाउ ॥
जिसने हमारा ज्ञान-रत्न छीन लिया है। १॥ रहाउ॥
ਨੈਨ ਦੇਖਿ ਪਤੰਗੁ ਉਰਝੈ ਪਸੁ ਨ ਦੇਖੈ ਆਗਿ ॥
नैन देखि पतंगु उरझै पसु न देखै आगि ॥
नयनों से देखता हुआ पतंगा भी दीपक की लौ से उलझ जाता है। मूर्ख कीड़ा अग्नि को नहीं देखता।
ਕਾਲ ਫਾਸ ਨ ਮੁਗਧੁ ਚੇਤੈ ਕਨਿਕ ਕਾਮਿਨਿ ਲਾਗਿ ॥੨॥
काल फास न मुगधु चेतै कनिक कामिनि लागि ॥२॥
मूर्ख मनुष्य सोने एवं कामिनी (स्त्री) में मुग्ध होकर मृत्यु के फंदे का ख्याल ही नहीं करता॥ २॥
ਕਰਿ ਬਿਚਾਰੁ ਬਿਕਾਰ ਪਰਹਰਿ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਸੋਇ ॥
करि बिचारु बिकार परहरि तरन तारन सोइ ॥
हे प्राणी ! तू सोच-विचार कर विकारों को त्याग दे, भगवान तुझे संसार-सागर से पार करवाने हेतु एक जहाज है।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਜਗਜੀਵਨੁ ਐਸਾ ਦੁਤੀਅ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥੩॥੫॥੨੭॥
कहि कबीर जगजीवनु ऐसा दुतीअ नाही कोइ ॥३॥५॥२७॥
कबीर जी कहते हैं कि जगत का जीवन प्रभु इतना महान् एवं सर्वोपरि है कि उस जैसा दूसरा कोई नहीं ॥ ३॥ ५॥ २७ ॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥