ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਏਕੈ ਭਾਰੋਸਉ ਬੰਧਨ ਕਾਟਨਹਾਰੁ ਗੁਰੁ ਮੇਰੋ ॥੨॥੬॥੨੫॥
कहु नानक एकै भारोसउ बंधन काटनहारु गुरु मेरो ॥२॥६॥२५॥
हे नानक ! मुझे तो केवल सब बन्धन काटने वाले मेरे गुरु पर ही भरोसा है॥२॥६॥२५॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਬਿਖੈ ਦਲੁ ਸੰਤਨਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੈ ਗਾਹਿਓ ॥
बिखै दलु संतनि तुम्हरै गाहिओ ॥
मैंने तुम्हारे भक्तजनों की मदद से विषय-विकारों के दल को कुचल दिया है।
ਤੁਮਰੀ ਟੇਕ ਭਰੋਸਾ ਠਾਕੁਰ ਸਰਨਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ਆਹਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तुमरी टेक भरोसा ठाकुर सरनि तुम्हारी आहिओ ॥१॥ रहाउ ॥
हे ठाकुर ! तुम्हारा ही आसरा एवं भरोसा है, तुम्हारी शरण में आया हूँ॥१॥रहाउ॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਮਹਾ ਪਰਾਛਤ ਦਰਸਨੁ ਭੇਟਿ ਮਿਟਾਹਿਓ ॥
जनम जनम के महा पराछत दरसनु भेटि मिटाहिओ ॥
तुम्हारे दर्शनों से जन्म-जन्म के बड़े पाप-दोष मिट गए हैं।
ਭਇਓ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਅਨਦ ਉਜੀਆਰਾ ਸਹਜਿ ਸਮਾਧਿ ਸਮਾਹਿਓ ॥੧॥
भइओ प्रगासु अनद उजीआरा सहजि समाधि समाहिओ ॥१॥
मन में आनंद के उजाले से प्रकाश हो गया है, स्वाभाविक समाधि में लीन हूँ॥१॥
ਕਉਨੁ ਕਹੈ ਤੁਮ ਤੇ ਕਛੁ ਨਾਹੀ ਤੁਮ ਸਮਰਥ ਅਥਾਹਿਓ ॥
कउनु कहै तुम ते कछु नाही तुम समरथ अथाहिओ ॥
तुम सर्वशक्तिमान एवं अथाह हो, फिर भला कौन कहता है कि तुम से कुछ नहीं होता।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਰੰਗ ਰੂਪ ਰਸ ਨਾਮੁ ਨਾਨਕ ਲੈ ਲਾਹਿਓ ॥੨॥੭॥੨੬॥
क्रिपा निधान रंग रूप रस नामु नानक लै लाहिओ ॥२॥७॥२६॥
नानक विनती करते हैं कि हे कृपा के भण्डार ! तुम्हारे नाम से सब रंग, रूप एवं रस इत्यादि प्राप्त हो गए हैं।॥२॥७॥२६॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਬੂਡਤ ਪ੍ਰਾਨੀ ਹਰਿ ਜਪਿ ਧੀਰੈ ॥
बूडत प्रानी हरि जपि धीरै ॥
डूबते हुए प्राणी को ईश्वर के जाप से ही धैर्य प्राप्त होता है।
ਬਿਨਸੈ ਮੋਹੁ ਭਰਮੁ ਦੁਖੁ ਪੀਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिनसै मोहु भरमु दुखु पीरै ॥१॥ रहाउ ॥
फिर मोह, भ्रम एवं उसके दुखों की पीड़ा समाप्त हो जाती है।॥१॥रहाउ॥
ਸਿਮਰਉ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨਾ ॥
सिमरउ दिनु रैनि गुर के चरना ॥
मैं दिन-रात गुरु के चरणों का स्मरण करता हूँ,
ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਤੁਮਰੀ ਸਰਨਾ ॥੧॥
जत कत पेखउ तुमरी सरना ॥१॥
जिधर देखता हूँ, तुम्हारी शरण पाता हूँ॥१॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਇਆ ॥
संत प्रसादि हरि के गुन गाइआ ॥
संतों की कृपा से ईश्वर का गुणगान किया है।
ਗੁਰ ਭੇਟਤ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥੮॥੨੭॥
गुर भेटत नानक सुखु पाइआ ॥२॥८॥२७॥
हे नानक ! गुरु को मिल कर सुख पा लिया है॥२॥८॥२७॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਮਨਹਿ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥
सिमरत नामु मनहि सुखु पाईऐ ॥
ईश्वर के नाम-स्मरण से मन में सुख प्राप्त होता है।
ਸਾਧ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साध जना मिलि हरि जसु गाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
अतः साधु-महात्मा जनों के साथ मिलकर भगवान का यश गाना चाहिए॥१॥रहाउ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਰਿਦੈ ਬਸੇਰੋ ॥
करि किरपा प्रभ रिदै बसेरो ॥
हे प्रभु ! कृपा करके हृदय में बसे रहो,
ਚਰਨ ਸੰਤਨ ਕੈ ਮਾਥਾ ਮੇਰੋ ॥੧॥
चरन संतन कै माथा मेरो ॥१॥
मेरा माथा संतों के चरणों में पड़ा हुआ है।॥१॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕਉ ਸਿਮਰਹੁ ਮਨਾਂ ॥
पारब्रहम कउ सिमरहु मनां ॥
मन में परब्रह्म का चिंतन करो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਸੁ ਸੁਨਾਂ ॥੨॥੯॥੨੮॥
गुरमुखि नानक हरि जसु सुनां ॥२॥९॥२८॥
नानक का कथन है कि गुरु से परमात्मा का यश सुनो॥२॥६॥२८॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚਰਨ ਪ੍ਰਭ ਪਰਸਨ ॥
मेरे मन प्रीति चरन प्रभ परसन ॥
मेरे मन में प्रभु के चरण स्पर्श की प्रीति लगी हुई है।
ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਭੋਜਨਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਨੀ ਅਖੀਅਨ ਕਉ ਸੰਤੋਖੁ ਪ੍ਰਭ ਦਰਸਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रसना हरि हरि भोजनि त्रिपतानी अखीअन कउ संतोखु प्रभ दरसन ॥१॥ रहाउ ॥
यह जिह्म हरिनाम भोजन से तृप्त हो गई है और प्रभु के दर्शनों से आँखों को संतोष प्राप्त हुआ है॥१॥रहाउ॥
ਕਰਨਨਿ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਜਸੁ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕਲਮਲ ਦੋਖ ਸਗਲ ਮਲ ਹਰਸਨ ॥
करननि पूरि रहिओ जसु प्रीतम कलमल दोख सगल मल हरसन ॥
कानों में प्रियतम प्रभु का यश भर रहा है, जिसके फलस्वरूप सब पाप-दोष दूर हो गए हैं।
ਪਾਵਨ ਧਾਵਨ ਸੁਆਮੀ ਸੁਖ ਪੰਥਾ ਅੰਗ ਸੰਗ ਕਾਇਆ ਸੰਤ ਸਰਸਨ ॥੧॥
पावन धावन सुआमी सुख पंथा अंग संग काइआ संत सरसन ॥१॥
यह पैर स्वामी की ओर दौड़ते हैं, जो सुख का रास्ता है और यह शरीर संतों के संग खिला रहता है।॥१॥
ਸਰਨਿ ਗਹੀ ਪੂਰਨ ਅਬਿਨਾਸੀ ਆਨ ਉਪਾਵ ਥਕਿਤ ਨਹੀ ਕਰਸਨ ॥
सरनि गही पूरन अबिनासी आन उपाव थकित नही करसन ॥
अन्य उपायों से थक कर सब छोड़कर पूर्ण अविनाशी प्रभु की शरण ली है।
ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੀਏ ਨਾਨਕ ਜਨ ਅਪਨੇ ਅੰਧ ਘੋਰ ਸਾਗਰ ਨਹੀ ਮਰਸਨ ॥੨॥੧੦॥੨੯॥
करु गहि लीए नानक जन अपने अंध घोर सागर नही मरसन ॥२॥१०॥२९॥
हे नानक ! ईश्वर ने अपने सेवक का हाथ थामकर बचा लिया है और अब वह भयानक संसार-सागर में नहीं डूबता॥२॥१०॥२६॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਕੁਹਕਤ ਕਪਟ ਖਪਟ ਖਲ ਗਰਜਤ ਮਰਜਤ ਮੀਚੁ ਅਨਿਕ ਬਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कुहकत कपट खपट खल गरजत मरजत मीचु अनिक बरीआ ॥१॥ रहाउ ॥
जिनके अन्तर्मन में नष्ट करने वाला कपट चिल्लाता है, कामादिक दुष्ट गर्जता है, ऐसे लोग अनेक बार मृत्यु को प्राप्त होते हैं।॥१॥रहाउ॥
ਅਹੰ ਮਤ ਅਨ ਰਤ ਕੁਮਿਤ ਹਿਤ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪੇਖਤ ਭ੍ਰਮਤ ਲਾਖ ਗਰੀਆ ॥੧॥
अहं मत अन रत कुमित हित प्रीतम पेखत भ्रमत लाख गरीआ ॥१॥
मैं अभिमान एवं अन्य रसों में लीन हूँ। दुष्टों से प्रेम बनाया हुआ है। हे प्रियतम प्रभु ! तुम देख ही रहे हो कि मैं लाखों गलियों में भटक रहा हूँ॥१॥
ਅਨਿਤ ਬਿਉਹਾਰ ਅਚਾਰ ਬਿਧਿ ਹੀਨਤ ਮਮ ਮਦ ਮਾਤ ਕੋਪ ਜਰੀਆ ॥
अनित बिउहार अचार बिधि हीनत मम मद मात कोप जरीआ ॥
मेरा आचरण व्यवहार बुरा है, मैं अनियमित जीवन बिताता हूँ और ममता के नशे में मस्त होकर क्रोध की अग्नि में जलता रहता हूँ।
ਕਰੁਣ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੋੁਪਾਲ ਦੀਨ ਬੰਧੁ ਨਾਨਕ ਉਧਰੁ ਸਰਨਿ ਪਰੀਆ ॥੨॥੧੧॥੩੦॥
करुण क्रिपाल गोपाल दीन बंधु नानक उधरु सरनि परीआ ॥२॥११॥३०॥
हे परमेश्वर ! तू करुणामय, कृपालु एवं दीनों का हमदर्द है, नानक तेरी शरण में पड़ा है, उद्धार कर दो॥२॥११॥३०॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਮਾਨ ਦਾਤਾ ॥
जीअ प्रान मान दाता ॥
परमात्मा हमें जीवन, प्राण एवं मान-सम्मान देने वाला है।
ਹਰਿ ਬਿਸਰਤੇ ਹੀ ਹਾਨਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि बिसरते ही हानि ॥१॥ रहाउ ॥
उस दाता प्रभु को भुलाने से हानि ही होती है।॥१॥रहाउ॥
ਗੋਬਿੰਦ ਤਿਆਗਿ ਆਨ ਲਾਗਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੋ ਡਾਰਿ ਭੂਮਿ ਪਾਗਹਿ ॥
गोबिंद तिआगि आन लागहि अम्रितो डारि भूमि पागहि ॥
ईश्वर को त्याग कर अन्य भौतिक पदार्थों में लगने वाले लोग अमृत को फॅककर धूल ही चाटते हैं।
ਬਿਖੈ ਰਸ ਸਿਉ ਆਸਕਤ ਮੂੜੇ ਕਾਹੇ ਸੁਖ ਮਾਨਿ ॥੧॥
बिखै रस सिउ आसकत मूड़े काहे सुख मानि ॥१॥
मूर्ख लोग विषय-विकारों के रस में आसक्त रहते हैं, फिर भला कैसे सुख पा सकते हैं।॥१॥