ਹਰਿ ਜਨ ਕਰਣੀ ਊਤਮ ਹੈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਜਗਿ ਬਿਸਥਾਰਿ ॥੩॥
हरि जन करणी ऊतम है हरि कीरति जगि बिसथारि ॥३॥
इसी तरह हरि-भक्तों का आचरण उत्तम है, जो पूरे जगत में हरि की कीर्ति को फैलाते हैं।॥३॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਠਾਕੁਰ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
क्रिपा क्रिपा करि ठाकुर मेरे हरि हरि हरि उर धारि ॥
हे मेरे ठाकुर ! मुझ पर कृपा करो, ताकि हरि-नाभ हृदय में धारण कर लूं।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਮਨਿ ਜਪਿਆ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰਿ ॥੪॥੯॥
नानक सतिगुरु पूरा पाइआ मनि जपिआ नामु मुरारि ॥४॥९॥
गुरु नानक का कथन है कि पूर्ण सतगुरु को पाकर मन में ईश्वर का नाम जपता रहता हूँ॥४॥६॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੨
मलार महला ३ घरु २
मलार महला ३ घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਗਿਰਹੀ ਕਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਉਦਾਸੀ ॥
इहु मनु गिरही कि इहु मनु उदासी ॥
यह मन गृहस्थी है या यह उदासी है।
ਕਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਅਵਰਨੁ ਸਦਾ ਅਵਿਨਾਸੀ ॥
कि इहु मनु अवरनु सदा अविनासी ॥
क्या यह मन वर्ण-जातियों से रहित होकर सदा अविनाशी रहता है।
ਕਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਚੰਚਲੁ ਕਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਬੈਰਾਗੀ ॥
कि इहु मनु चंचलु कि इहु मनु बैरागी ॥
क्या मन चंचल है या वैराग्यवान् है।
ਇਸੁ ਮਨ ਕਉ ਮਮਤਾ ਕਿਥਹੁ ਲਾਗੀ ॥੧॥
इसु मन कउ ममता किथहु लागी ॥१॥
जरा यह तो बताओ, इस मन को ममत्व की भावना कहाँ से लगी थी॥१॥
ਪੰਡਿਤ ਇਸੁ ਮਨ ਕਾ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
पंडित इसु मन का करहु बीचारु ॥
पण्डित जी ! इस मन का चिन्तन करके सच्ची बात बताओ और
ਅਵਰੁ ਕਿ ਬਹੁਤਾ ਪੜਹਿ ਉਠਾਵਹਿ ਭਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अवरु कि बहुता पड़हि उठावहि भारु ॥१॥ रहाउ ॥
अन्य बहुत पढ़कर भार मत उठाओ॥१॥रहाउ॥
ਮਾਇਆ ਮਮਤਾ ਕਰਤੈ ਲਾਈ ॥
माइआ ममता करतै लाई ॥
यह माया-ममता सृष्टि-कर्ता ने ही लगाई है और
ਏਹੁ ਹੁਕਮੁ ਕਰਿ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ॥
एहु हुकमु करि स्रिसटि उपाई ॥
उसने हुक्म करके सम्पूर्ण सृष्टि उत्पन्न की है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੂਝਹੁ ਭਾਈ ॥
गुर परसादी बूझहु भाई ॥
हे भाई ! गुरु की कृपा से इस रहस्य को समझ लो और
ਸਦਾ ਰਹਹੁ ਹਰਿ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ॥੨॥
सदा रहहु हरि की सरणाई ॥२॥
सदैव परमात्मा की शरण में रहो॥२॥
ਸੋ ਪੰਡਿਤੁ ਜੋ ਤਿਹਾਂ ਗੁਣਾ ਕੀ ਪੰਡ ਉਤਾਰੈ ॥
सो पंडितु जो तिहां गुणा की पंड उतारै ॥
वास्तव में पण्डित तो वही माना जाता है, जो तीन गुणों की गठरी को सिर से उतार देता है और
ਅਨਦਿਨੁ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥
अनदिनु एको नामु वखाणै ॥
दिन-रात एक ईश्वर के नाम की चर्चा करता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਓਹੁ ਦੀਖਿਆ ਲੇਇ ॥
सतिगुर की ओहु दीखिआ लेइ ॥
वह सच्चे गुरु से दीक्षा लेता है और
ਸਤਿਗੁਰ ਆਗੈ ਸੀਸੁ ਧਰੇਇ ॥
सतिगुर आगै सीसु धरेइ ॥
सतगुरु के समक्ष ही शीश अर्पण करता है।
ਸਦਾ ਅਲਗੁ ਰਹੈ ਨਿਰਬਾਣੁ ॥
सदा अलगु रहै निरबाणु ॥
वह संसार से सदा अलिप्त रहता है,
ਸੋ ਪੰਡਿਤੁ ਦਰਗਹ ਪਰਵਾਣੁ ॥੩॥
सो पंडितु दरगह परवाणु ॥३॥
ऐसा पण्डित ही परमेश्वर के दरबार में मान्य होता है॥३॥
ਸਭਨਾਂ ਮਹਿ ਏਕੋ ਏਕੁ ਵਖਾਣੈ ॥
सभनां महि एको एकु वखाणै ॥
सब लोगों में एक ईश्वर की स्तुति करता है।
ਜਾਂ ਏਕੋ ਵੇਖੈ ਤਾਂ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥
जां एको वेखै तां एको जाणै ॥
वह केवल अद्वैत प्रभु को देखता है और एक को मानता है।
ਜਾ ਕਉ ਬਖਸੇ ਮੇਲੇ ਸੋਇ ॥
जा कउ बखसे मेले सोइ ॥
जिस पर कृपा-दृष्टि करता है, उसे साथ मिला लेता है।
ਐਥੈ ਓਥੈ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੪॥
ऐथै ओथै सदा सुखु होइ ॥४॥
ऐसा व्यक्ति लोक-परलोक में सदा सुखी रहता है॥४॥
ਕਹਤ ਨਾਨਕੁ ਕਵਨ ਬਿਧਿ ਕਰੇ ਕਿਆ ਕੋਇ ॥
कहत नानकु कवन बिधि करे किआ कोइ ॥
गुरु नानक कहते हैं कि मुक्ति के लिए कोई कौन-सा तरीका अपनाए।
ਸੋਈ ਮੁਕਤਿ ਜਾ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਹੋਇ ॥
सोई मुकति जा कउ किरपा होइ ॥
दरअसल मुक्ति वही प्राप्त करता है, जिस पर प्रभु-कृपा होती है।
ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸੋਇ ॥
अनदिनु हरि गुण गावै सोइ ॥
वह दिन-रात परमात्मा के गुण गाता है और
ਸਾਸਤ੍ਰ ਬੇਦ ਕੀ ਫਿਰਿ ਕੂਕ ਨ ਹੋਇ ॥੫॥੧॥੧੦॥
सासत्र बेद की फिरि कूक न होइ ॥५॥१॥१०॥
शास्त्रों एवं वेदों की पुनः बात नहीं करता॥५॥१॥१०॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मलार महला ३ ॥
मलार महला ३ ॥
ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਜੋਨਿ ਮਨਮੁਖ ਭਰਮਾਈ ॥
भ्रमि भ्रमि जोनि मनमुख भरमाई ॥
भूल-भ्रम में फंसा हुआ स्वेच्छाचारी योनियों में भटकता रहता है।
ਜਮਕਾਲੁ ਮਾਰੇ ਨਿਤ ਪਤਿ ਗਵਾਈ ॥
जमकालु मारे नित पति गवाई ॥
यमराज उसे मारता रहता है और वह अपनी इज्जत खो देता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਜਮ ਕੀ ਕਾਣਿ ਚੁਕਾਈ ॥
सतिगुर सेवा जम की काणि चुकाई ॥
यदि सच्चे गुरु की सेवा की जाए तो मौत का डर दूर हो जाता है और
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮਿਲਿਆ ਮਹਲੁ ਘਰੁ ਪਾਈ ॥੧॥
हरि प्रभु मिलिआ महलु घरु पाई ॥१॥
हृदय-घर में ही प्रभु मिल जाता है।॥१॥
ਪ੍ਰਾਣੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
प्राणी गुरमुखि नामु धिआइ ॥
हे प्राणी ! गुरु के द्वारा हरि-नाम का मनन करो,
ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਦੁਬਿਧਾ ਖੋਇਆ ਕਉਡੀ ਬਦਲੈ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जनमु पदारथु दुबिधा खोइआ कउडी बदलै जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
यह जीवन तू दुविधा में गंवा रहा है, जो कौड़ियों के भाव जा रहा है।॥१॥रहाउ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਲਗੈ ਪਿਆਰੁ ॥
करि किरपा गुरमुखि लगै पिआरु ॥
हे ईश्वर ! कृपा करो, गुरु के द्वारा तुझसे प्रेम लगा रहे।
ਅੰਤਰਿ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਉਰਿ ਧਾਰੁ ॥
अंतरि भगति हरि हरि उरि धारु ॥
मन में ईश्वर की भक्ति धारण करो,
ਭਵਜਲੁ ਸਬਦਿ ਲੰਘਾਵਣਹਾਰੁ ॥
भवजलु सबदि लंघावणहारु ॥
शब्द-गुरु ही भयानक संसार-समुद्र से पार उतारने वाला है और
ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਦਿਸੈ ਸਚਿਆਰੁ ॥੨॥
दरि साचै दिसै सचिआरु ॥२॥
सच्चे द्वार पर जीव सत्यशील दिखाई देता है॥२॥
ਬਹੁ ਕਰਮ ਕਰੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਨਹੀ ਪਾਇਆ ॥
बहु करम करे सतिगुरु नही पाइआ ॥
मनुष्य अनेक कर्मकाण्ड करता है, पर सतगुरु को नहीं पाता और
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭਰਮਿ ਭੂਲੇ ਬਹੁ ਮਾਇਆ ॥
बिनु गुर भरमि भूले बहु माइआ ॥
गुरु के बिना धन-दौलत के लिए भ्रम में भूला रहता है।
ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਬਹੁ ਮੋਹੁ ਵਧਾਇਆ ॥
हउमै ममता बहु मोहु वधाइआ ॥
वह अपने अहम्, ममत्व एवं मोह में वृद्धि कर लेता है,
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਮਨਮੁਖਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੩॥
दूजै भाइ मनमुखि दुखु पाइआ ॥३॥
इस कारण द्वैतभाव में स्वेच्छाचारी दुख ही पाता है॥३॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਅਗਮ ਅਥਾਹਾ ॥
आपे करता अगम अथाहा ॥
ईश्वर ही कर्ता है, वह अगम्य, अथाह है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਜਪੀਐ ਸਚੁ ਲਾਹਾ ॥
गुर सबदी जपीऐ सचु लाहा ॥
गुरु के उपदेश द्वारा प्रभु का नाम जपने से सच्चा लाभ प्राप्त होता है।
ਹਾਜਰੁ ਹਜੂਰਿ ਹਰਿ ਵੇਪਰਵਾਹਾ ॥
हाजरु हजूरि हरि वेपरवाहा ॥
परमेश्वर बे-परवाह है, हमारे समीप ही है।