ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨੈ ਨਾਇ ਲਾਏ ਸਰਬ ਸੂਖ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰੀ ਰਜਾਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा अपुनै नाइ लाए सरब सूख प्रभ तुमरी रजाइ ॥ रहाउ ॥
हे स्वामी ! कृपा करके तुम जीवों को अपने नाम के साथ लगाते हो और जीवों को सर्व सुख तेरी रज़ा में ही प्राप्त होते हैं।॥ रहाउ॥
ਸੰਗਿ ਹੋਵਤ ਕਉ ਜਾਨਤ ਦੂਰਿ ॥
संगि होवत कउ जानत दूरि ॥
जो पुरुष करीब रहने वाले भगवान को दूर समझता है,”
ਸੋ ਜਨੁ ਮਰਤਾ ਨਿਤ ਨਿਤ ਝੂਰਿ ॥੨॥
सो जनु मरता नित नित झूरि ॥२॥
वह सदैव ही दुखी होता हुआ मर जाता है।॥ २॥
ਜਿਨਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਦੀਆ ਤਿਸੁ ਚਿਤਵਤ ਨਾਹਿ ॥
जिनि सभु किछु दीआ तिसु चितवत नाहि ॥
जिस भगवान ने सब कुछ दिया है, उसे मनुष्य याद नहीं करता।
ਮਹਾ ਬਿਖਿਆ ਮਹਿ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਜਾਹਿ ॥੩॥
महा बिखिआ महि दिनु रैनि जाहि ॥३॥
उसके दिन-रात महाविष रूपी माया में लीन होकर बीत जाते हैं॥ ३ ॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰਹੁ ਏਕ ॥
कहु नानक प्रभु सिमरहु एक ॥
हे नानक ! केवल प्रभु का सुमिरन करो।
ਗਤਿ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਟੇਕ ॥੪॥੩॥੯੭॥
गति पाईऐ गुर पूरे टेक ॥४॥३॥९७॥
पूर्ण गुरु की टेक (शरण) लेने से गति प्राप्त हो जाती है॥ ४ ॥ ३ ॥ ६७ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸਭੁ ਹਰਿਆ ॥
नामु जपत मनु तनु सभु हरिआ ॥
भगवान का नाम जपने से मन-तन खिल गया है।
ਕਲਮਲ ਦੋਖ ਸਗਲ ਪਰਹਰਿਆ ॥੧॥
कलमल दोख सगल परहरिआ ॥१॥
उसके तमाम पाप एवं दोष दूर हो गए हैं।॥ १॥
ਸੋਈ ਦਿਵਸੁ ਭਲਾ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
सोई दिवसु भला मेरे भाई ॥
हे मेरे भाई ! वह दिन बड़ा शुभ है,”
ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਇ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि गुन गाइ परम गति पाई ॥ रहाउ ॥
जब भगवान का गुणगान करने से परमगति मिल जाती है॥ रहाउ॥
ਸਾਧ ਜਨਾ ਕੇ ਪੂਜੇ ਪੈਰ ॥
साध जना के पूजे पैर ॥
साधजनों के चरणों की पूजा करने से
ਮਿਟੇ ਉਪਦ੍ਰਹ ਮਨ ਤੇ ਬੈਰ ॥੨॥
मिटे उपद्रह मन ते बैर ॥२॥
मन से हर प्रकार की मुसीबतें एवं वैर मिट गए हैं।॥ २॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਮਿਲਿ ਝਗਰੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
गुर पूरे मिलि झगरु चुकाइआ ॥
पूर्ण गुरु को मिलने से विकारों का झगड़ा मिट गया है और
ਪੰਚ ਦੂਤ ਸਭਿ ਵਸਗਤਿ ਆਇਆ ॥੩॥
पंच दूत सभि वसगति आइआ ॥३॥
सभी कामादिक पाँच शत्रु-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार वश में आ गए हैं।॥ ३॥
ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ॥
जिसु मनि वसिआ हरि का नामु ॥
जिसके मन में हरि का नाम निवास करता है
ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਊਪਰਿ ਕੁਰਬਾਨ ॥੪॥੪॥੯੮॥
नानक तिसु ऊपरि कुरबान ॥४॥४॥९८॥
नानक उस पर कुर्बान जाता है ॥ ४ ॥ ४ ॥ ६८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਗਾਵਿ ਲੇਹਿ ਤੂ ਗਾਵਨਹਾਰੇ ॥
गावि लेहि तू गावनहारे ॥
हे गवैये ! तू भगवान का गुणगान किया कर,”
ਜੀਅ ਪਿੰਡ ਕੇ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੇ ॥
जीअ पिंड के प्रान अधारे ॥
जो सब की आत्मा, शरीर एवं प्राणों का आधार है।
ਜਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਵਹਿ ॥
जा की सेवा सरब सुख पावहि ॥
जिसकी सेवा करने से सर्व-सुख प्राप्त हो जाते हैं।
ਅਵਰ ਕਾਹੂ ਪਹਿ ਬਹੁੜਿ ਨ ਜਾਵਹਿ ॥੧॥
अवर काहू पहि बहुड़ि न जावहि ॥१॥
तब तुझे किसी दूसरे के पास जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी।॥ १॥
ਸਦਾ ਅਨੰਦ ਅਨੰਦੀ ਸਾਹਿਬੁ ਗੁਨ ਨਿਧਾਨ ਨਿਤ ਨਿਤ ਜਾਪੀਐ ॥
सदा अनंद अनंदी साहिबु गुन निधान नित नित जापीऐ ॥
मेरा मालिक सदैव आनंद में आनंदित रहता है। उस गुणों के भण्डार प्रभु का नित्य जाप करते रहना चाहिए।
ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਸੁ ਸੰਤ ਪਿਆਰੇ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮਨਿ ਵਾਸੀਐ ॥ ਰਹਾਉ ॥
बलिहारी तिसु संत पिआरे जिसु प्रसादि प्रभु मनि वासीऐ ॥ रहाउ ॥
मैं उस प्रिय संत पर बलिहारी जाता हूँ, जिसकी दया से प्रभु हृदय में निवास कर लेता है॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕਾ ਦਾਨੁ ਨਿਖੂਟੈ ਨਾਹੀ ॥
जा का दानु निखूटै नाही ॥
जिसका दिया हुआ दान कभी कम नहीं होता,”
ਭਲੀ ਭਾਤਿ ਸਭ ਸਹਜਿ ਸਮਾਹੀ ॥
भली भाति सभ सहजि समाही ॥
उसे याद करने वाले भलीभांति सहज सुख में लीन हो सकते हैं।
ਜਾ ਕੀ ਬਖਸ ਨ ਮੇਟੈ ਕੋਈ ॥
जा की बखस न मेटै कोई ॥
जिसके दान को कोई भी मिटा नहीं सकता,”
ਮਨਿ ਵਾਸਾਈਐ ਸਾਚਾ ਸੋਈ ॥੨॥
मनि वासाईऐ साचा सोई ॥२॥
उस सत्यस्वरूप प्रभु को अपने मन में बसाओ ॥ २॥
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਗ੍ਰਿਹ ਜਾ ਕੈ ਪੂਰਨ ॥
सगल समग्री ग्रिह जा कै पूरन ॥
जिसके घर में समस्त सामग्री भरपूर है,”
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਦੂਖ ਨ ਝੂਰਨ ॥
प्रभ के सेवक दूख न झूरन ॥
उस प्रभु के सेवक कभी दु:ख में पश्चाताप नहीं करते।
ਓਟਿ ਗਹੀ ਨਿਰਭਉ ਪਦੁ ਪਾਈਐ ॥
ओटि गही निरभउ पदु पाईऐ ॥
उसकी शरण लेने से निर्भय पद प्राप्त हो जाता है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸੋ ਗੁਨ ਨਿਧਿ ਗਾਈਐ ॥੩॥
सासि सासि सो गुन निधि गाईऐ ॥३॥
हे प्राणी ! श्वास-श्वास से उस गुणों के भण्डार प्रभु की स्तुति करनी चाहिए॥ ३॥
ਦੂਰਿ ਨ ਹੋਈ ਕਤਹੂ ਜਾਈਐ ॥
दूरि न होई कतहू जाईऐ ॥
वह प्राणी से दूर नहीं और कहीं नहीं जाता।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ॥
नदरि करे ता हरि हरि पाईऐ ॥
यदि वह अपनी कृपा-दृष्टि करे तो ही हरि-परमेश्वर का नाम प्राप्त होता है।
ਅਰਦਾਸਿ ਕਰੀ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥
अरदासि करी पूरे गुर पासि ॥
मैं पूर्ण गुरु के पास प्रार्थना करता हूँ।
ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਹਰਿ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ॥੪॥੫॥੯੯॥
नानकु मंगै हरि धनु रासि ॥४॥५॥९९॥
नानक हरि-नाम रूपी धन की पूँजी माँगता है॥ ४॥ ५॥ ६६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਮਿਟਿਆ ਤਨ ਕਾ ਦੂਖ ॥
प्रथमे मिटिआ तन का दूख ॥
सर्वप्रथम मेरे तन का दु:ख मिटा है और
ਮਨ ਸਗਲ ਕਉ ਹੋਆ ਸੂਖੁ ॥
मन सगल कउ होआ सूखु ॥
तदुपरांत मन को सर्व सुख प्राप्त हो गया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰ ਦੀਨੋ ਨਾਉ ॥
करि किरपा गुर दीनो नाउ ॥
गुरु ने कृपा करके मुझे हरि का नाम दिया है।
ਬਲਿ ਬਲਿ ਤਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕਉ ਜਾਉ ॥੧॥
बलि बलि तिसु सतिगुर कउ जाउ ॥१॥
मैं उस सच्चे गुरु पर बलिहारी जाता हूँ॥ १॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਓ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
गुरु पूरा पाइओ मेरे भाई ॥
हे मेरे भाई ! मैंने पूर्ण गुरु को पा लिया है।
ਰੋਗ ਸੋਗ ਸਭ ਦੂਖ ਬਿਨਾਸੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
रोग सोग सभ दूख बिनासे सतिगुर की सरणाई ॥ रहाउ ॥
सच्चे गुरु की शरण लेने से मेरे तमाम रोग, शोक एवं दुःख विनष्ट हो गए हैं। रहाउ॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਹਿਰਦੈ ਵਸਾਏ ॥
गुर के चरन हिरदै वसाए ॥
गुरु के चरण मैंने अपने हृदय में बसाए हैं और
ਮਨ ਚਿੰਤਤ ਸਗਲੇ ਫਲ ਪਾਏ ॥
मन चिंतत सगले फल पाए ॥
मुझे मनोवांछित फल प्राप्त हो गए हैं।
ਅਗਨਿ ਬੁਝੀ ਸਭ ਹੋਈ ਸਾਂਤਿ ॥
अगनि बुझी सभ होई सांति ॥
मेरी तृष्णाग्नि बुझ गई है और मेरे अन्तर्मन में सम्पूर्ण शांति है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰਿ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ॥੨॥
करि किरपा गुरि कीनी दाति ॥२॥
गुरु ने कृपा करके मुझे प्रभु-नाम की देन प्रदान की है॥ २॥
ਨਿਥਾਵੇ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਨੋ ਥਾਨੁ ॥
निथावे कउ गुरि दीनो थानु ॥
गुरु ने निराश्रित को आश्रय दिया है।
ਨਿਮਾਨੇ ਕਉ ਗੁਰਿ ਕੀਨੋ ਮਾਨੁ ॥
निमाने कउ गुरि कीनो मानु ॥
मानहीन को गुरु ने सम्मान प्रदान किया है।
ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਸੇਵਕ ਕਰਿ ਰਾਖੇ ॥
बंधन काटि सेवक करि राखे ॥
गुरु ने बन्धन काट कर अपने सेवक की हर प्रकार से रक्षा की है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਨੀ ਰਸਨਾ ਚਾਖੇ ॥੩॥
अम्रित बानी रसना चाखे ॥३॥
अमृत वाणी अब मैं अपनी रसना से चखता हूँ॥ ३॥
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਪੂਜ ਗੁਰ ਚਰਨਾ ॥
वडै भागि पूज गुर चरना ॥
अहोभाग्य से ही मैंने गुरु के चरणों की पूजा की है।
ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਪਾਈ ਪ੍ਰਭ ਸਰਨਾ ॥
सगल तिआगि पाई प्रभ सरना ॥
सब कुछ त्याग कर मैंने प्रभु की शरण ली है।