Hindi Page 1181

ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बसंतु महला ५ ॥
बसंतु महला ५॥

ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਣ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਪਿੰਡ ਦੀਨੑ ॥
जीअ प्राण तुम्ह पिंड दीन्ह ॥
हे परमपिता ! यह आत्मा, प्राण, शरीर तुम्हारा दिया हुआ है,

ਮੁਗਧ ਸੁੰਦਰ ਧਾਰਿ ਜੋਤਿ ਕੀਨੑ ॥
मुगध सुंदर धारि जोति कीन्ह ॥
अपनी ज्योति स्थापित कर तूने मुझ मूर्ख को सुन्दर बना दिया है।

ਸਭਿ ਜਾਚਿਕ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਦਇਆਲ ॥
सभि जाचिक प्रभ तुम्ह दइआल ॥
हे प्रभु ! तू दया का भण्डार है और हम सभी याचक हैं,

ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਹੋਵਤ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥
नामु जपत होवत निहाल ॥१॥
तेरा नाम जपने से हम आनंद विभोर हो जाते हैं।॥१॥

ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕਾਰਣ ਕਰਣ ਜੋਗ ॥
मेरे प्रीतम कारण करण जोग ॥
हे मेरे प्रियतम ! तू करने करवाने में समर्थ है,

ਹਉ ਪਾਵਉ ਤੁਮ ਤੇ ਸਗਲ ਥੋਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ पावउ तुम ते सगल थोक ॥१॥ रहाउ ॥
हम तुम से ही सब वस्तुएँ प्राप्त करते हैं।॥१॥रहाउ॥।

ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਹੋਵਤ ਉਧਾਰ ॥
नामु जपत होवत उधार ॥
हरिनाम का जाप करने से संसार से उद्धार होता है,

ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਸੁਖ ਸਹਜ ਸਾਰ ॥
नामु जपत सुख सहज सार ॥
हरिनाम का जाप करने से सहज स्वाभाविक सुखों की प्राप्ति होती है।

ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਪਤਿ ਸੋਭਾ ਹੋਇ ॥
नामु जपत पति सोभा होइ ॥
प्रभु नाम का जाप करने से संसार में शोभा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਬਿਘਨੁ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥੨॥
नामु जपत बिघनु नाही कोइ ॥२॥
भगवान का नाम जपने से कोई विघ्न नहीं आता॥२॥

ਜਾ ਕਾਰਣਿ ਇਹ ਦੁਲਭ ਦੇਹ ॥
जा कारणि इह दुलभ देह ॥
जिस प्रभु भजन के लिए यह दुर्लभ देह प्राप्त होती है,

ਸੋ ਬੋਲੁ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇਹਿ ॥
सो बोलु मेरे प्रभू देहि ॥
वही बोल मेरे प्रभु ! मुझे प्रदान करो।

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਹਿ ਇਹੁ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥
साधसंगति महि इहु बिस्रामु ॥
हे प्रभु ! साधु संगत में यह सुख का स्थान प्राप्त हो कि

ਸਦਾ ਰਿਦੈ ਜਪੀ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੋ ਨਾਮੁ ॥੩॥
सदा रिदै जपी प्रभ तेरो नामु ॥३॥
वहां हृदय में सदा तेरे नाम का जाप होता रहे॥३॥

ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਕੋਇ ਨਾਹਿ ॥
तुझ बिनु दूजा कोइ नाहि ॥
तेरे बिना दूसरा कोई नहीं,

ਸਭੁ ਤੇਰੋ ਖੇਲੁ ਤੁਝ ਮਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥
सभु तेरो खेलु तुझ महि समाहि ॥
दुनिया में सब तेरी लीला चल रही है और सृष्टि के जीव तुझ में विलीन हो जाते हैं।

ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖਿ ਲੇ ॥
जिउ भावै तिउ राखि ले ॥
जैसे तू चाहता है, वैसे ही बचा लो।

ਸੁਖੁ ਨਾਨਕ ਪੂਰਾ ਗੁਰੁ ਮਿਲੇ ॥੪॥੪॥
सुखु नानक पूरा गुरु मिले ॥४॥४॥
नानक का मत है कि सच्चा सुख पूर्ण गुरु से ही मिलता है॥४॥४॥

ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बसंतु महला ५ ॥
बसंतु महला ५॥

ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰੀਤਮ ਮੇਰੈ ਸੰਗਿ ਰਾਇ ॥
प्रभ प्रीतम मेरै संगि राइ ॥
हे माँ! प्रियतम प्रभु मेरे संग ही बसा हुआ है,

ਜਿਸਹਿ ਦੇਖਿ ਹਉ ਜੀਵਾ ਮਾਇ ॥
जिसहि देखि हउ जीवा माइ ॥
जिसे देखकर मैं जीता हूँ,

ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਦੁਖੁ ਨ ਹੋਇ ॥
जा कै सिमरनि दुखु न होइ ॥
जिसका स्मरण करने से दुख प्रभावित नहीं करता,”

ਕਰਿ ਦਇਆ ਮਿਲਾਵਹੁ ਤਿਸਹਿ ਮੋਹਿ ॥੧॥
करि दइआ मिलावहु तिसहि मोहि ॥१॥
दया करके मुझे उससे मिला दो॥१॥

ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ਮਨ ॥
मेरे प्रीतम प्रान अधार मन ॥
हे मेरे प्रियतम ! तू ही मेरे मन एवं प्राणों का आधार है,

ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਨ ਸਭੁ ਤੇਰੋ ਧਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जीउ प्रान सभु तेरो धन ॥१॥ रहाउ ॥
यह आत्मा एवं प्राण सब तेरा धन है॥१॥रहाउ॥

ਜਾ ਕਉ ਖੋਜਹਿ ਸੁਰਿ ਨਰ ਦੇਵ ॥
जा कउ खोजहि सुरि नर देव ॥
जिसे मनुष्य एवं देवता खोज रहे हैं,

ਮੁਨਿ ਜਨ ਸੇਖ ਨ ਲਹਹਿ ਭੇਵ ॥
मुनि जन सेख न लहहि भेव ॥
मुनिजन एवं शेषनाग सरीखे जिसका रहस्य नहीं पा सके,

ਜਾ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
जा की गति मिति कही न जाइ ॥
जिसकी महिमा एवं शक्ति का वर्णन नहीं किया जा सकता,

ਘਟਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੨॥
घटि घटि घटि घटि रहिआ समाइ ॥२॥
वह सर्वशक्तिमान घट घट में व्याप्त है॥२॥

ਜਾ ਕੇ ਭਗਤ ਆਨੰਦ ਮੈ ॥
जा के भगत आनंद मै ॥
जिसके भक्त सदा आनंदमय रहते हैं,

ਜਾ ਕੇ ਭਗਤ ਕਉ ਨਾਹੀ ਖੈ ॥
जा के भगत कउ नाही खै ॥
जिसके भक्तों को कोई नुक्सान नहीं होता,

ਜਾ ਕੇ ਭਗਤ ਕਉ ਨਾਹੀ ਭੈ ॥
जा के भगत कउ नाही भै ॥
जिसके भक्तों को कोई भय नहीं,

ਜਾ ਕੇ ਭਗਤ ਕਉ ਸਦਾ ਜੈ ॥੩॥
जा के भगत कउ सदा जै ॥३॥
जिसके भक्तों की सदा जय-जयकार होती है।॥३॥

ਕਉਨ ਉਪਮਾ ਤੇਰੀ ਕਹੀ ਜਾਇ ॥
कउन उपमा तेरी कही जाइ ॥
हे प्रभु ! तेरी उपमा अवर्णनीय है,

ਸੁਖਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਰਹਿਓ ਸਮਾਇ ॥
सुखदाता प्रभु रहिओ समाइ ॥
तू पूरे संसार को सुख प्रदान करने वाला है, सर्वव्यापक है।

ਨਾਨਕੁ ਜਾਚੈ ਏਕੁ ਦਾਨੁ ॥
नानकु जाचै एकु दानु ॥
नानक केवल यही दान चाहता है कि

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੋਹਿ ਦੇਹੁ ਨਾਮੁ ॥੪॥੫॥
करि किरपा मोहि देहु नामु ॥४॥५॥
कृपा करके मुझे नाम प्रदान करो॥ ४॥ ५॥

ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बसंतु महला ५ ॥
बसंतु महला ५॥

ਮਿਲਿ ਪਾਣੀ ਜਿਉ ਹਰੇ ਬੂਟ ॥
मिलि पाणी जिउ हरे बूट ॥
जिस तरह पानी मिलने से पेड़-पौधे हरे भरे हो जाते हैं,

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਤਿਉ ਹਉਮੈ ਛੂਟ ॥
साधसंगति तिउ हउमै छूट ॥
वैसे ही साधु-पुरुषों की संगत करने से अहम् दूर हो जाता है।

ਜੈਸੀ ਦਾਸੇ ਧੀਰ ਮੀਰ ॥
जैसी दासे धीर मीर ॥
जैसे नौकर को मालिक का अवलम्ब होता है,

ਤੈਸੇ ਉਧਾਰਨ ਗੁਰਹ ਪੀਰ ॥੧॥
तैसे उधारन गुरह पीर ॥१॥
वैसे ही गुरु पीर अपने शिष्य का संसार के दुखों से उद्धार कर देता है॥१॥

ਤੁਮ ਦਾਤੇ ਪ੍ਰਭ ਦੇਨਹਾਰ ॥
तुम दाते प्रभ देनहार ॥
हे प्रभु ! एकमात्र तू ही दाता है, सम्पूर्ण जगत को देने वाला है,

ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਤਿਸੁ ਨਮਸਕਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निमख निमख तिसु नमसकार ॥१॥ रहाउ ॥
हमारा पल-पल तुझे प्रणाम है॥१॥रहाउ॥

ਜਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤਿ ਸਾਧਸੰਗੁ ॥
जिसहि परापति साधसंगु ॥
जिसे साधु-पुरुषों का संग प्राप्त होता है,

ਤਿਸੁ ਜਨ ਲਾਗਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਰੰਗੁ ॥
तिसु जन लागा पारब्रहम रंगु ॥
उसी व्यक्ति को परब्रह्म से प्रेम होता है।

ਤੇ ਬੰਧਨ ਤੇ ਭਏ ਮੁਕਤਿ ॥ ਭਗਤ ਅਰਾਧਹਿ ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ॥੨॥
ते बंधन ते भए मुकति ॥ भगत अराधहि जोग जुगति ॥२॥
वह संसार के बन्धनों से छूटकर मुक्ति पा लेता है, ऐसा भगत ईश्वर की आराधना की योग युक्ति ही अपनाता है॥२॥

ਨੇਤ੍ਰ ਸੰਤੋਖੇ ਦਰਸੁ ਪੇਖਿ ॥
नेत्र संतोखे दरसु पेखि ॥
ईश्वर के दर्शन करके नेत्र संतुष्ट हो गए हैं और

ਰਸਨਾ ਗਾਏ ਗੁਣ ਅਨੇਕ ॥
रसना गाए गुण अनेक ॥
रसना उसके ही अनंत गुण गाती है।

ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੂਝੀ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
त्रिसना बूझी गुर प्रसादि ॥
गुरु की कृपा से तृष्णा बुझ गई है और

ਮਨੁ ਆਘਾਨਾ ਹਰਿ ਰਸਹਿ ਸੁਆਦਿ ॥੩॥
मनु आघाना हरि रसहि सुआदि ॥३॥
प्रभु भजन के आनंद से मन तृप्त हो गया है॥३॥

ਸੇਵਕੁ ਲਾਗੋ ਚਰਣ ਸੇਵ ॥ ਆਦਿ ਪੁਰਖ ਅਪਰੰਪਰ ਦੇਵ ॥
सेवकु लागो चरण सेव ॥ आदि पुरख अपर्मपर देव ॥
सेवक तो उस की चरण सेवा में ही लीन रहता है जो ईश्वर अपरंपार, आदिपुरुष है ।

ਸਗਲ ਉਧਾਰਣ ਤੇਰੋ ਨਾਮੁ ॥
सगल उधारण तेरो नामु ॥
हे देवाधिदेव ! तेरा नाम संसार का उद्धार करने वाला है और

ਨਾਨਕ ਪਾਇਓ ਇਹੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥੪॥੬॥
नानक पाइओ इहु निधानु ॥४॥६॥
नानक ने यह सुखों का भण्डार पा लिया है॥४॥६॥

ਬਸੰਤੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बसंतु महला ५ ॥
बसंतु महला ५॥

ਤੁਮ ਬਡ ਦਾਤੇ ਦੇ ਰਹੇ ॥
तुम बड दाते दे रहे ॥
हे परमेश्वर ! तू ही सबसे बड़ा दाता है, सब लोगों को दे रहा है,

ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਣ ਮਹਿ ਰਵਿ ਰਹੇ ॥
जीअ प्राण महि रवि रहे ॥
आत्मा एवं प्राणों में तू ही अवस्थित है,

ਦੀਨੇ ਸਗਲੇ ਭੋਜਨ ਖਾਨ ॥
दीने सगले भोजन खान ॥
खाने के लिए सब भोजन दे रहा है,

ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨ ਇਕੁ ਗੁਨੁ ਨ ਜਾਨ ॥੧॥
मोहि निरगुन इकु गुनु न जान ॥१॥
किन्तु मुझ जैसा गुणविहीन तेरे किसी एहसान को नहीं जान पाया॥१॥

ਹਉ ਕਛੂ ਨ ਜਾਨਉ ਤੇਰੀ ਸਾਰ ॥
हउ कछू न जानउ तेरी सार ॥
मैं तेरी महानता को बिल्कुल नहीं जानता,

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