ਬਨਿ ਤਿਨਿ ਪਰਬਤਿ ਹੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ॥
बनि तिनि परबति है पारब्रहमु ॥
पारब्रह्म-प्रभु वनों, तृणों एवं पर्वतों में व्यापक है।
ਜੈਸੀ ਆਗਿਆ ਤੈਸਾ ਕਰਮੁ ॥
जैसी आगिआ तैसा करमु ॥
जैसी उसकी आज्ञा होती है, वैसे ही जीव के कर्म हैं।
ਪਉਣ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰ ਮਾਹਿ ॥
पउण पाणी बैसंतर माहि ॥
भगवान पवन, जल एवं अग्नि में विद्यमान है।
ਚਾਰਿ ਕੁੰਟ ਦਹ ਦਿਸੇ ਸਮਾਹਿ ॥
चारि कुंट दह दिसे समाहि ॥
वह चारों तरफ और दसों दिशाओं में समाया हुआ है।
ਤਿਸ ਤੇ ਭਿੰਨ ਨਹੀ ਕੋ ਠਾਉ ॥
तिस ते भिंन नही को ठाउ ॥
उससे भिन्न कोई स्थान नहीं।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਪਾਉ ॥੨॥
गुर प्रसादि नानक सुखु पाउ ॥२
गुरु की कृपा से नानक ने सुख पा लिया है॥ २॥
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਮਹਿ ਦੇਖੁ ॥
बेद पुरान सिम्रिति महि देखु ॥
उस भगवान को वेद, पुराण एवं स्मृतियों में देखो।
ਸਸੀਅਰ ਸੂਰ ਨਖੵਤ੍ਰ ਮਹਿ ਏਕੁ ॥
ससीअर सूर नख्यत्र महि एकु ॥
चन्द्रमा, सूर्य एवं तारों में वही एक ईश्वर है।
ਬਾਣੀ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਭੁ ਕੋ ਬੋਲੈ ॥
बाणी प्रभ की सभु को बोलै ॥
प्रत्येक जीव प्रभु की वाणी बोलता है।
ਆਪਿ ਅਡੋਲੁ ਨ ਕਬਹੂ ਡੋਲੈ ॥
आपि अडोलु न कबहू डोलै ॥
वह अटल है और कभी विचलित नहीं होता।
ਸਰਬ ਕਲਾ ਕਰਿ ਖੇਲੈ ਖੇਲ ॥
सरब कला करि खेलै खेल ॥
सर्व कला रचकर (सृष्टि का) खेल खेलता है।
ਮੋਲਿ ਨ ਪਾਈਐ ਗੁਣਹ ਅਮੋਲ ॥
मोलि न पाईऐ गुणह अमोल ॥
उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता, (क्योंकि) उसके गुण अमूल्य हैं।
ਸਰਬ ਜੋਤਿ ਮਹਿ ਜਾ ਕੀ ਜੋਤਿ ॥
सरब जोति महि जा की जोति ॥
ईश्वर की ज्योति समस्त ज्योतियों में प्रज्वलित है।
ਧਾਰਿ ਰਹਿਓ ਸੁਆਮੀ ਓਤਿ ਪੋਤਿ ॥
धारि रहिओ सुआमी ओति पोति ॥
प्रभु ने संसार का ताना-बाना अपने वश में किया हुआ है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਭਰਮ ਕਾ ਨਾਸੁ ॥
गुर परसादि भरम का नासु ॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से जिसके भ्रम का नाश हो जाता है,
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਮਹਿ ਏਹੁ ਬਿਸਾਸੁ ॥੩॥
नानक तिन महि एहु बिसासु ॥३॥
उसके भीतर यह दृढ़ विश्वास बन जाता है ॥३॥
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕਾ ਪੇਖਨੁ ਸਭੁ ਬ੍ਰਹਮ ॥
संत जना का पेखनु सभु ब्रहम ॥
संतजन हर जगह पर भगवान को ही देखते हैं।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਸਭਿ ਧਰਮ ॥
संत जना कै हिरदै सभि धरम ॥
संतजनों के मन में सब धर्म ही होता है।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਸੁਨਹਿ ਸੁਭ ਬਚਨ ॥
संत जना सुनहि सुभ बचन ॥
संतजन शुभ वचन सुनते हैं।
ਸਰਬ ਬਿਆਪੀ ਰਾਮ ਸੰਗਿ ਰਚਨ ॥
सरब बिआपी राम संगि रचन ॥
वे सर्वव्यापक राम में लीन रहते हैं।
ਜਿਨਿ ਜਾਤਾ ਤਿਸ ਕੀ ਇਹ ਰਹਤ ॥
जिनि जाता तिस की इह रहत ॥
जिस जिस संत-धर्मात्मा ने (ईश्वर को) समझ लिया है, उसका जीवन-आचरण ही यह बन जाता है।
ਸਤਿ ਬਚਨ ਸਾਧੂ ਸਭਿ ਕਹਤ ॥
सति बचन साधू सभि कहत ॥
साधु सदैव सत्य वचन करता है।
ਜੋ ਜੋ ਹੋਇ ਸੋਈ ਸੁਖੁ ਮਾਨੈ ॥
जो जो होइ सोई सुखु मानै ॥
जो कुछ भी होता है, वह इसे सुख मानता है।
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨਹਾਰੁ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਨੈ ॥
करन करावनहारु प्रभु जानै ॥
यह जानता है कि प्रभु समस्त कार्य करने वाला एवं कराने वाला है।
ਅੰਤਰਿ ਬਸੇ ਬਾਹਰਿ ਭੀ ਓਹੀ ॥
अंतरि बसे बाहरि भी ओही ॥
संतजनों हेतु ईश्वर भीतर-बाहर सर्वत्र बसता है।
ਨਾਨਕ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਸਭ ਮੋਹੀ ॥੪॥
नानक दरसनु देखि सभ मोही ॥४॥
हे नानक ! उसके दर्शन करके हरेक व्यक्ति मुग्ध हो जाता है ॥४॥
ਆਪਿ ਸਤਿ ਕੀਆ ਸਭੁ ਸਤਿ ॥
आपि सति कीआ सभु सति ॥
ईश्वर सत्य है और उसकी सृष्टि-रचना भी सत्य है।
ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਭ ਤੇ ਸਗਲੀ ਉਤਪਤਿ ॥
तिसु प्रभ ते सगली उतपति ॥
उस परमेश्वर से समूचा जगत् उत्पन्न हुआ है।
ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਕਰੇ ਬਿਸਥਾਰੁ ॥
तिसु भावै ता करे बिसथारु ॥
जब उसे भला लगता है तो वह सृष्टि का प्रसार कर देता है।
ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਏਕੰਕਾਰੁ ॥
तिसु भावै ता एकंकारु ॥
यदि एक ईश्वर को उपयुक्त लगे तो वह स्वयं ही एक रूप हो जाता है।
ਅਨਿਕ ਕਲਾ ਲਖੀ ਨਹ ਜਾਇ ॥
अनिक कला लखी नह जाइ ॥
उसकी अनेक कलाएँ (शक्तियां) हैं, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥
जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥
जिस किसी को वह चाहता है, उसे अपने साथ मिला लेता है।
ਕਵਨ ਨਿਕਟਿ ਕਵਨ ਕਹੀਐ ਦੂਰਿ ॥
कवन निकटि कवन कहीऐ दूरि ॥
वह पारब्रह्म किसी से दूर एवं किसी से निकट कहा जा सकता है ?
ਆਪੇ ਆਪਿ ਆਪ ਭਰਪੂਰਿ ॥
आपे आपि आप भरपूरि ॥
लेकिन ईश्वर स्वयं ही सर्वव्यापक है।
ਅੰਤਰਗਤਿ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਜਨਾਏ ॥
अंतरगति जिसु आपि जनाए ॥
हे नानक ! वह उस मनुष्य को (अपनी सर्वव्यापकता की) सूझ देता है,
ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਜਨ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ॥੫॥
नानक तिसु जन आपि बुझाए ॥५॥
जिसे (ईश्वर) स्वयं भीतरी उच्च अवस्था सुझा देता है ॥५॥
ਸਰਬ ਭੂਤ ਆਪਿ ਵਰਤਾਰਾ ॥
सरब भूत आपि वरतारा ॥
सारी दुनिया के लोगों में परमात्मा स्वयं ही मौजूद है।
ਸਰਬ ਨੈਨ ਆਪਿ ਪੇਖਨਹਾਰਾ ॥
सरब नैन आपि पेखनहारा ॥
सर्व नयनों द्वारा वह स्वयं ही देख रहा है।
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਜਾ ਕਾ ਤਨਾ ॥
सगल समग्री जा का तना ॥
यह सारी सृष्टि-रचना उसका शरीर है।
ਆਪਨ ਜਸੁ ਆਪ ਹੀ ਸੁਨਾ ॥
आपन जसु आप ही सुना ॥
वह अपनी महिमा स्वयं ही सुनता है।
ਆਵਨ ਜਾਨੁ ਇਕੁ ਖੇਲੁ ਬਨਾਇਆ ॥
आवन जानु इकु खेलु बनाइआ ॥
लोगों का आवागमन (जन्म-मरण) ईश्वर ने एक खेल रचा है।
ਆਗਿਆਕਾਰੀ ਕੀਨੀ ਮਾਇਆ ॥
आगिआकारी कीनी माइआ ॥
माया को उसने अपना आज्ञाकारी बनाया हुआ है।
ਸਭ ਕੈ ਮਧਿ ਅਲਿਪਤੋ ਰਹੈ ॥
सभ कै मधि अलिपतो रहै ॥
सबके भीतर होता हुआ भी प्रभु निर्लिप्त रहता है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਹਣਾ ਸੁ ਆਪੇ ਕਹੈ ॥
जो किछु कहणा सु आपे कहै ॥
जो कुछ कहना होता है, वह स्वयं ही कहता है।
ਆਗਿਆ ਆਵੈ ਆਗਿਆ ਜਾਇ ॥
आगिआ आवै आगिआ जाइ ॥
उसकी आज्ञानुसार प्राणी (दुनिया में) जन्म लेता है और आज्ञानुसार प्राण त्याग देता है।
ਨਾਨਕ ਜਾ ਭਾਵੈ ਤਾ ਲਏ ਸਮਾਇ ॥੬॥
नानक जा भावै ता लए समाइ ॥६॥
हे नानक ! जब उसे लुभाता है तो वह प्राणी को अपने साथ मिला लेता है॥ ६॥
ਇਸ ਤੇ ਹੋਇ ਸੁ ਨਾਹੀ ਬੁਰਾ ॥
इस ते होइ सु नाही बुरा ॥
भगवान द्वारा जो कुछ भी होता है, दुनिया के लिए बुरा नहीं होता।
ਓਰੈ ਕਹਹੁ ਕਿਨੈ ਕਛੁ ਕਰਾ ॥
ओरै कहहु किनै कछु करा ॥
कहो, उस भगवान के अलावा कभी किसी ने कुछ किया है ?
ਆਪਿ ਭਲਾ ਕਰਤੂਤਿ ਅਤਿ ਨੀਕੀ ॥
आपि भला करतूति अति नीकी ॥
ईश्वर स्वयं भला है और सबसे भले उसके कर्म हैं।
ਆਪੇ ਜਾਨੈ ਅਪਨੇ ਜੀ ਕੀ ॥
आपे जानै अपने जी की ॥
अपने हृदय की बात वह स्वयं ही जानता है।
ਆਪਿ ਸਾਚੁ ਧਾਰੀ ਸਭ ਸਾਚੁ ॥
आपि साचु धारी सभ साचु ॥
वह स्वयं सत्य है और उसकी सृष्टि-रचना भी सत्य है।
ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਆਪਨ ਸੰਗਿ ਰਾਚੁ ॥
ओति पोति आपन संगि राचु ॥
ताने-वाने की भाँति उसने स्वयं सृष्टि को अपने साथ मिलाया हुआ है।
ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
ता की गति मिति कही न जाइ ॥
उसकी गति एवं विस्तार व्यक्त नहीं किए जा सकते।
ਦੂਸਰ ਹੋਇ ਤ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥
दूसर होइ त सोझी पाइ ॥
यदि कोई दूसरा उस समान होता तो बह उसको समझ सकता।
ਤਿਸ ਕਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਪਰਵਾਨੁ ॥
तिस का कीआ सभु परवानु ॥
ईश्वर का किया हुआ लोगों को स्वीकार करना पड़ता है
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਜਾਨੁ ॥੭॥
गुर प्रसादि नानक इहु जानु ॥७॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से यह तथ्य समझो ॥ ७ ॥
ਜੋ ਜਾਨੈ ਤਿਸੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
जो जानै तिसु सदा सुखु होइ ॥
जो व्यक्ति ईश्वर को समझता है, उसे सदैव सुख मिलता है।
ਆਪਿ ਮਿਲਾਇ ਲਏ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥
आपि मिलाइ लए प्रभु सोइ ॥
वह ईश्वर उसे अपने साथ मिला लेता है।
ਓਹੁ ਧਨਵੰਤੁ ਕੁਲਵੰਤੁ ਪਤਿਵੰਤੁ ॥
ओहु धनवंतु कुलवंतु पतिवंतु ॥
वह धनवान, कुलवान एवं मान-प्रतिष्ठा वाला बन जाता है।
ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਜਿਸੁ ਰਿਦੈ ਭਗਵੰਤੁ ॥
जीवन मुकति जिसु रिदै भगवंतु ॥
जिस जीव के हृदय में भगवान बसता है, वह जीवित ही मुक्ति पा लेता है।
ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਜਨੁ ਆਇਆ ॥
धंनु धंनु धंनु जनु आइआ ॥
उस महापुरुष का दुनिया में जन्म लेना धन्य-धन्य है,