ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਕਰੀ ਕਿਰਪਾ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥
बिनवंति नानक प्रभि करी किरपा पूरा सतिगुरु पाइआ ॥२॥
नानक विनती करते हैं किं प्रभु ने कृपा की है, जिससे पूर्ण सतगुरु प्राप्त हो गया है॥ २॥
ਮਿਲਿ ਰਹੀਐ ਪ੍ਰਭ ਸਾਧ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਸੁਨੀਐ ਰਾਮ ॥
मिलि रहीऐ प्रभ साध जना मिलि हरि कीरतनु सुनीऐ राम ॥
प्रभु के साधुजनों के संग मिलकर रहना चाहिए और भगवान का भजन-कीर्तन सुनना चाहिए।
ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭੂ ਦਾਮੋਦਰ ਮਾਧੋ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ਗੁਨੀਐ ਰਾਮ ॥
दइआल प्रभू दामोदर माधो अंतु न पाईऐ गुनीऐ राम ॥
हे दयालु प्रभु, हे दामोदर, हे माधव ! तेरी महिमा का अन्त नहीं पाया जा सकता।
ਦਇਆਲ ਦੁਖ ਹਰ ਸਰਣਿ ਦਾਤਾ ਸਗਲ ਦੋਖ ਨਿਵਾਰਣੋ ॥
दइआल दुख हर सरणि दाता सगल दोख निवारणो ॥
हे दीनदयाल ! तू दुखनाशक, शरण देने में समर्थ एवं सब दोष निवारण करने वाला है।
ਮੋਹ ਸੋਗ ਵਿਕਾਰ ਬਿਖੜੇ ਜਪਤ ਨਾਮ ਉਧਾਰਣੋ ॥
मोह सोग विकार बिखड़े जपत नाम उधारणो ॥
तेरा नाम जपने से मोह, शोक एवं विषम विकारों से उद्धार हो जाता है।
ਸਭਿ ਜੀਅ ਤੇਰੇ ਪ੍ਰਭੂ ਮੇਰੇ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਭ ਰੇਣ ਥੀਵਾ ॥
सभि जीअ तेरे प्रभू मेरे करि किरपा सभ रेण थीवा ॥
हे मेरे प्रभु! सब जीव तेरे ही पैदा किए हुए हैं, ऐसी कृपा करो कि मैं सबकी चरण-धूलि बना रहूँ।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਮਇਆ ਕੀਜੈ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਜਪਿ ਜੀਵਾ ॥੩॥
बिनवंति नानक प्रभ मइआ कीजै नामु तेरा जपि जीवा ॥३॥
नानक विनती करते हैं कि दया करो, चूंकि तेरा नाम जपकर ही जीना है॥ ३॥
ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਪ੍ਰਭਿ ਭਗਤ ਜਨਾ ਅਪਣੀ ਚਰਣੀ ਲਾਏ ਰਾਮ ॥
राखि लीए प्रभि भगत जना अपणी चरणी लाए राम ॥
प्रभु ने भक्तजनों की रक्षा करके उन्हें अपने चरणों से लगा लिया है।
ਆਠ ਪਹਰ ਅਪਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰਹ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਰਾਮ ॥
आठ पहर अपना प्रभु सिमरह एको नामु धिआए राम ॥
वे आठों प्रहर प्रभु का सिमरन करते रहते हैं और केवल उसके नाम का ही भजन करते हैं।
ਧਿਆਇ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਤਰੇ ਭਵਜਲ ਰਹੇ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ॥
धिआइ सो प्रभु तरे भवजल रहे आवण जाणा ॥
सो प्रभु का भजन करके वे संसार-सागर से पार हो जाते हैं और उनका आवागमन मिट जाता है।
ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਕਲਿਆਣ ਕੀਰਤਨੁ ਪ੍ਰਭ ਲਗਾ ਮੀਠਾ ਭਾਣਾ ॥
सदा सुखु कलिआण कीरतनु प्रभ लगा मीठा भाणा ॥
परमात्मा का भजन-कीर्तन करने से ही उन्हें कल्याण एवं सदैव सुख मिलता है और प्रभु की रज़ा ही उन्हें मीठी लगी है।
ਸਭ ਇਛ ਪੁੰਨੀ ਆਸ ਪੂਰੀ ਮਿਲੇ ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਰਿਆ ॥
सभ इछ पुंनी आस पूरी मिले सतिगुर पूरिआ ॥
पूर्ण सतगुरु से मिलकर उनकी हर प्रकार की आशा एवं मनोकामनाएं पूरी हो गई हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਮੇਲੇ ਫਿਰਿ ਨਾਹੀ ਦੂਖ ਵਿਸੂਰਿਆ ॥੪॥੩॥
बिनवंति नानक प्रभि आपि मेले फिरि नाही दूख विसूरिआ ॥४॥३॥
नानक विनती करते हैं कि जिन्हें प्रभु ने अपने साथ मिला लिया है, फिर उन्हें कोई दुख-दर्द प्रभावित नहीं करता ॥ ४॥ ३॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ ॥
रामकली महला ५ छंत ॥
रामकली महला ५ छंत ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਰਣਾਗਤੀ ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਗੁਣ ਗਾਮ ॥
चरन कमल सरणागती अनद मंगल गुण गाम ॥
प्रभु के चरण-कमल की शरण में आकर आनंद-मंगल रूपी गुणगान करना चाहिए।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਆਰਾਧੀਐ ਬਿਪਤਿ ਨਿਵਾਰਣ ਰਾਮ ॥੧॥
नानक प्रभु आराधीऐ बिपति निवारण राम ॥१॥
हे नानक ! प्रभु की आराधना करो, चूंकि वह हर विपत्ति का निवारण करने वाला है॥ १॥
ਛੰਤੁ ॥
छंतु ॥
छंद॥
ਪ੍ਰਭ ਬਿਪਤਿ ਨਿਵਾਰਣੋ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਜੀਉ ॥
प्रभ बिपति निवारणो तिसु बिनु अवरु न कोइ जीउ ॥
प्रभु प्रत्येक विपत्ति का निवारण करने वाला है और उसके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਸਿਮਰੀਐ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਸੋਇ ਜੀਉ ॥
सदा सदा हरि सिमरीऐ जलि थलि महीअलि सोइ जीउ ॥
सदैव परमेश्वर का सिमरन करना चाहिए क्योंकि समुद्र, पृथ्वी एवं नभ में वही स्थित है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਇਕ ਨਿਮਖ ਮਨਹੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ॥
जलि थलि महीअलि पूरि रहिआ इक निमख मनहु न वीसरै ॥
उसे एक क्षण भर भी मन से भुलाना नहीं चाहिए, जो समुद्र, पृथ्वी एवं गगन सब जगह मौजूद है।
ਗੁਰ ਚਰਨ ਲਾਗੇ ਦਿਨ ਸਭਾਗੇ ਸਰਬ ਗੁਣ ਜਗਦੀਸਰੈ ॥
गुर चरन लागे दिन सभागे सरब गुण जगदीसरै ॥
वह दिन भाग्यशाली है, जब गुरु-चरणों में मन लगा है, हे जगदीश्वर ! तू सर्वगुण सम्पन्न है।
ਕਰਿ ਸੇਵ ਸੇਵਕ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣੀ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਹੋਇ ਜੀਉ ॥
करि सेव सेवक दिनसु रैणी तिसु भावै सो होइ जीउ ॥
सेवक बनकर दिन-रात उसकी उपासना करते रहो, जो उसे मंजूर है, वही होता है।
ਬਲਿ ਜਾਇ ਨਾਨਕੁ ਸੁਖਹ ਦਾਤੇ ਪਰਗਾਸੁ ਮਨਿ ਤਨਿ ਹੋਇ ਜੀਉ ॥੧॥
बलि जाइ नानकु सुखह दाते परगासु मनि तनि होइ जीउ ॥१॥
हे सुखों के दाता ! नानक तुझ पर बलिहारी जाता है, क्योंकि तेरी कृपा से मन-तन में प्रकाश होता है। १॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੁਖੀ ਬਿਨਸੀ ਦੁਤੀਆ ਸੋਚ ॥
हरि सिमरत मनु तनु सुखी बिनसी दुतीआ सोच ॥
भगवान का सिमरन करने से मन-तन सुखी हो जाता है और सब परेशानियाँ दूर हो जाती हैं।
ਨਾਨਕ ਟੇਕ ਗੋੁਪਾਲ ਕੀ ਗੋਵਿੰਦ ਸੰਕਟ ਮੋਚ ॥੧॥
नानक टेक गोपाल की गोविंद संकट मोच ॥१॥
हे नानक ! ईश्वर का आसरा लो, जो हर संकट से छुटकारा दिलाने वाला है॥ १॥
ਛੰਤੁ ॥
छंतु ॥
छंद॥
ਭੈ ਸੰਕਟ ਕਾਟੇ ਨਾਰਾਇਣ ਦਇਆਲ ਜੀਉ ॥
भै संकट काटे नाराइण दइआल जीउ ॥
दयालु नारायण ने सब भय एवं संकट काट दिए हैं।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਆਨੰਦ ਗਾਏ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਜੀਉ ॥
हरि गुण आनंद गाए प्रभ दीना नाथ प्रतिपाल जीउ ॥
हमने आनंद से प्रभु का गुणगान किया है, वह दीननाथ एवं सबका प्रतिपालक है।
ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਅਚੁਤ ਪੁਰਖੁ ਏਕੋ ਤਿਸਹਿ ਸਿਉ ਰੰਗੁ ਲਾਗਾ ॥
प्रतिपाल अचुत पुरखु एको तिसहि सिउ रंगु लागा ॥
एक अच्युत परमपुरुष परमेश्वर ही हमारा प्रतिपालक है और उसके संग मन लीन हो गया है।
ਕਰ ਚਰਨ ਮਸਤਕੁ ਮੇਲਿ ਲੀਨੇ ਸਦਾ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗਾ ॥
कर चरन मसतकु मेलि लीने सदा अनदिनु जागा ॥
जबसे उसके चरणों में अपना माथा टेका एवं हाथों से प्रार्थना की है, उसने मुझे अपने साथ मिला लिया है और रात-दिन मोह माया से जाग्रत रहता हूँ।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਗ੍ਰਿਹੁ ਥਾਨੁ ਤਿਸ ਕਾ ਤਨੁ ਜੋਬਨੁ ਧਨੁ ਮਾਲੁ ਜੀਉ ॥
जीउ पिंडु ग्रिहु थानु तिस का तनु जोबनु धनु मालु जीउ ॥
यह प्राण, शरीर, घर, स्थान, तन, यौवन एवं धन संपत्ति परमात्मा की देन है।
ਸਦ ਸਦਾ ਬਲਿ ਜਾਇ ਨਾਨਕੁ ਸਰਬ ਜੀਆ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਜੀਉ ॥੨॥
सद सदा बलि जाइ नानकु सरब जीआ प्रतिपाल जीउ ॥२॥
नानक सर्वदा उस पर बलिहारी जाता है, जो सब जीवों का प्रतिपालक है॥ २ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਰਸਨਾ ਉਚਰੈ ਹਰਿ ਹਰੇ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਵਖਿਆਨ ॥
रसना उचरै हरि हरे गुण गोविंद वखिआन ॥
यह रसना ‘हरि-हरि’ ही जपती है और गोविंद के गुणों का बखान करती है।
ਨਾਨਕ ਪਕੜੀ ਟੇਕ ਏਕ ਪਰਮੇਸਰੁ ਰਖੈ ਨਿਦਾਨ ॥੧॥
नानक पकड़ी टेक एक परमेसरु रखै निदान ॥१॥
हे नानक ! एक परमेश्वर की शरण ले ली है, जो अन्तिम समय छुटकारा दिलाता है।॥ १॥
ਛੰਤੁ ॥
छंतु ॥
छंद ॥
ਸੋ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭੁ ਰਖਕੋ ਅੰਚਲਿ ਤਾ ਕੈ ਲਾਗੁ ਜੀਉ ॥
सो सुआमी प्रभु रखको अंचलि ता कै लागु जीउ ॥
सो स्वामी प्रभु हम सबका रक्षक है, इसलिए उसके आँचल में लग जाओ।
ਭਜੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਦਇਆਲ ਦੇਵ ਮਨ ਕੀ ਮਤਿ ਤਿਆਗੁ ਜੀਉ ॥
भजु साधू संगि दइआल देव मन की मति तिआगु जीउ ॥
अपने मन की मति त्याग कर साधुजनों की संगति में दयालु परमात्मा का भजन करो।