ਸੋ ਸਹੁ ਸਾਂਤਿ ਨ ਦੇਵਈ ਕਿਆ ਚਲੈ ਤਿਸੁ ਨਾਲਿ ॥
सो सहु सांति न देवई किआ चलै तिसु नालि ॥
यदि मेरा प्रभु मुझे शांति नहीं देता तो उससे मेरा क्या जोर चल सकता है ?
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਅੰਤਰਿ ਰਖੀਐ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
गुर परसादी हरि धिआईऐ अंतरि रखीऐ उर धारि ॥
(उसकी सखी उसे समझाती है कि) गुरु की कृपा से ईश्वर का ध्यान-मनन हो सकता है और उसे अपने हृदय में बसाकर रखना चाहिए।
ਨਾਨਕ ਘਰਿ ਬੈਠਿਆ ਸਹੁ ਪਾਇਆ ਜਾ ਕਿਰਪਾ ਕੀਤੀ ਕਰਤਾਰਿ ॥੧॥
नानक घरि बैठिआ सहु पाइआ जा किरपा कीती करतारि ॥१॥
नानक कहते हैं कि जब करतार की कृपा होती है तो घर बैठे ही मालिक को पाया जा सकता है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਧੰਧਾ ਧਾਵਤ ਦਿਨੁ ਗਇਆ ਰੈਣਿ ਗਵਾਈ ਸੋਇ ॥
धंधा धावत दिनु गइआ रैणि गवाई सोइ ॥
दुनिया के कार्यों में भागकर ही पूरा दिन बीत गया है और रात सो कर गंवा दी है।
ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬਿਖੁ ਖਾਇਆ ਮਨਮੁਖਿ ਚਲਿਆ ਰੋਇ ॥
कूड़ु बोलि बिखु खाइआ मनमुखि चलिआ रोइ ॥
झूठ बोल कर माया रूपी विष सेवन कर लिया है और अब मनमानी करने वाला जीव रोता पछता कर जगत् से चला गया है।
ਸਿਰੈ ਉਪਰਿ ਜਮ ਡੰਡੁ ਹੈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥
सिरै उपरि जम डंडु है दूजै भाइ पति खोइ ॥
सिर पर यम का डण्डा बज रहा है और द्वैतभाव में लगकर सारी प्रतिष्ठा गंवा दी है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕਦੇ ਨ ਚੇਤਿਓ ਫਿਰਿ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਹੋਇ ॥
हरि नामु कदे न चेतिओ फिरि आवण जाणा होइ ॥
जिसने प्रभु का नाम कभी याद नहीं किया है, उसे जन्म-मरण का चक्र दोबारा पड़ जाता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਜਮ ਡੰਡੁ ਨ ਲਾਗੈ ਕੋਇ ॥
गुर परसादी हरि मनि वसै जम डंडु न लागै कोइ ॥
गुरु की कृपा से जिसके मन में प्रभु बस जाता है, उसे यम का डण्डा कोई नहीं लगता।
ਨਾਨਕ ਸਹਜੇ ਮਿਲਿ ਰਹੈ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੨॥
नानक सहजे मिलि रहै करमि परापति होइ ॥२॥
नानक कहते हैं कि वह सहजावस्था में सत्य से मिला रहता है परन्तु यह सहजावस्था प्रभु-कृपा से ही प्राप्त होती है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਇਕਿ ਆਪਣੀ ਸਿਫਤੀ ਲਾਇਅਨੁ ਦੇ ਸਤਿਗੁਰ ਮਤੀ ॥
इकि आपणी सिफती लाइअनु दे सतिगुर मती ॥
परमेश्वर ने किसी को सतगुरु की मत देकर अपनी स्तुति करने में लगाया हुआ है।
ਇਕਨਾ ਨੋ ਨਾਉ ਬਖਸਿਓਨੁ ਅਸਥਿਰੁ ਹਰਿ ਸਤੀ ॥
इकना नो नाउ बखसिओनु असथिरु हरि सती ॥
उसने कुछ महापुरुषों को नाम प्रदान करके सत्य में स्थिर किंया हुआ है।
ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੋ ਹੁਕਮਿ ਕਰਹਿ ਭਗਤੀ ॥
पउणु पाणी बैसंतरो हुकमि करहि भगती ॥
वायु देवता, वरुण देवता एवं अग्नि देव सभी उसके हुक्म में ही भक्ति करते हैं।
ਏਨਾ ਨੋ ਭਉ ਅਗਲਾ ਪੂਰੀ ਬਣਤ ਬਣਤੀ ॥
एना नो भउ अगला पूरी बणत बणती ॥
इन देवताओं की परमात्मा पर पूर्ण निष्ठा है और जगत् की पूर्ण रचना बनी हुई है।
ਸਭੁ ਇਕੋ ਹੁਕਮੁ ਵਰਤਦਾ ਮੰਨਿਐ ਸੁਖੁ ਪਾਈ ॥੩॥
सभु इको हुकमु वरतदा मंनिऐ सुखु पाई ॥३॥
सब पर परमेश्वर का हुक्म ही कार्यशील है और उसके आदेश का पालन करने से ही सुख उपलब्ध होता है॥ ३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਕਬੀਰ ਕਸਉਟੀ ਰਾਮ ਕੀ ਝੂਠਾ ਟਿਕੈ ਨ ਕੋਇ ॥
कबीर कसउटी राम की झूठा टिकै न कोइ ॥
हे कबीर ! राम की कसौटी ऐसी है कि कोई भी झूठा आदमी उस पर नहीं टिक पाता।
ਰਾਮ ਕਸਉਟੀ ਸੋ ਸਹੈ ਜੋ ਮਰਜੀਵਾ ਹੋਇ ॥੧॥
राम कसउटी सो सहै जो मरजीवा होइ ॥१॥
जो मरजिवा (जीवनमुक्त) होता है, वही राम की कसौटी पर खरा उतरता है ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਕਿਉ ਕਰਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਮਾਰੀਐ ਕਿਉ ਕਰਿ ਮਿਰਤਕੁ ਹੋਇ ॥
किउ करि इहु मनु मारीऐ किउ करि मिरतकु होइ ॥
इस मन को कैसे मारा जा सकता है और जीव कैसे लालसाओं की ओर से मृतक हो जाए ?
ਕਹਿਆ ਸਬਦੁ ਨ ਮਾਨਈ ਹਉਮੈ ਛਡੈ ਨ ਕੋਇ ॥
कहिआ सबदु न मानई हउमै छडै न कोइ ॥
कोई भी अभिमान को नहीं छोड़ता और न ही शब्द-गुरु का पालन करता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਉਮੈ ਛੁਟੈ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤੁ ਸੋ ਹੋਇ ॥
गुर परसादी हउमै छुटै जीवन मुकतु सो होइ ॥
गुरु की कृपा से जिसका अभिमान छूट जाता है, वही जीवन्मुक्त होता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਸ ਨੋ ਬਖਸੇ ਤਿਸੁ ਮਿਲੈ ਤਿਸੁ ਬਿਘਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ਕੋਇ ॥੨॥
नानक जिस नो बखसे तिसु मिलै तिसु बिघनु न लागै कोइ ॥२॥
नानक कहते हैं कि परमात्मा जिस पर अपनी कृपा करता है, उसे ही मुक्ति मिली है और फिर उसे कोई विघ्न नहीं आता ॥२॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਜੀਵਤ ਮਰਣਾ ਸਭੁ ਕੋ ਕਹੈ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਕਿਉ ਹੋਇ ॥
जीवत मरणा सभु को कहै जीवन मुकति किउ होइ ॥
जीवित ही मरने की बातें तो हर कोई करता है परन्तु जीवन-मुक्ति कैसे होती है ?
ਭੈ ਕਾ ਸੰਜਮੁ ਜੇ ਕਰੇ ਦਾਰੂ ਭਾਉ ਲਾਏਇ ॥
भै का संजमु जे करे दारू भाउ लाएइ ॥
यदि जीव परमात्मा के आस्था रूपी भय का संयम धारण करे और प्रेम की औषधि का उपयोग करे और
ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸੁਖ ਸਹਜੇ ਬਿਖੁ ਭਵਜਲੁ ਨਾਮਿ ਤਰੇਇ ॥
अनदिनु गुण गावै सुख सहजे बिखु भवजलु नामि तरेइ ॥
नित्य उसका गुणगान करे तो सहज स्वभाव ही सुखपूर्वक नाम द्वारा विष रूपी भवसागर से पार हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥੩॥
नानक गुरमुखि पाईऐ जा कउ नदरि करेइ ॥३॥
हे नानक ! जिस पर उसकी करुणा-दृष्टि होती है, वह जीवन-मुक्ति प्राप्त कर लेता है ॥ ३ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਰਚਾਇਓਨੁ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਵਰਤਾਰਾ ॥
दूजा भाउ रचाइओनु त्रै गुण वरतारा ॥
ईश्वर ने द्वैतभाव पैदा किया है और दुनिया भर में त्रिगुणात्मक माया का प्रसार है।
ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸੁ ਉਪਾਇਅਨੁ ਹੁਕਮਿ ਕਮਾਵਨਿ ਕਾਰਾ ॥
ब्रहमा बिसनु महेसु उपाइअनु हुकमि कमावनि कारा ॥
ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश-ये त्रेिदेव परमात्मा ने ही उत्पन्न किए हैं और वे हुक्म से ही कार्य करते हैं।
ਪੰਡਿਤ ਪੜਦੇ ਜੋਤਕੀ ਨਾ ਬੂਝਹਿ ਬੀਚਾਰਾ ॥
पंडित पड़दे जोतकी ना बूझहि बीचारा ॥
पण्डित एवं ज्योतिषी ग्रंथ पढ़ते रहते हैं परन्तु उन्हें यथार्थ ज्ञान की सूझ नहीं होती।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੇਰਾ ਖੇਲੁ ਹੈ ਸਚੁ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ॥
सभु किछु तेरा खेलु है सचु सिरजणहारा ॥
हे सच्चे सृजनहार ! यह सारी दुनिया तेरा खेल है।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਬਖਸਿ ਲੈਹਿ ਸਚਿ ਸਬਦਿ ਸਮਾਈ ॥੪॥
जिसु भावै तिसु बखसि लैहि सचि सबदि समाई ॥४॥
जिसे तू चाहता है, उसे मुक्त कर देता है और वह सच्चे शब्द में विलीन हो जाता है॥ ४ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
सलोकु मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਮਨ ਕਾ ਝੂਠਾ ਝੂਠੁ ਕਮਾਵੈ ॥
मन का झूठा झूठु कमावै ॥
मन का झूठा आदमी सदा झूठ का ही कार्य करता है।
ਮਾਇਆ ਨੋ ਫਿਰੈ ਤਪਾ ਸਦਾਵੈ ॥
माइआ नो फिरै तपा सदावै ॥
वह स्वयं को तपस्वी कहलाता है किन्तु धन के लिए इधर-उधर घूमता रहता है।
ਭਰਮੇ ਭੂਲਾ ਸਭਿ ਤੀਰਥ ਗਹੈ ॥
भरमे भूला सभि तीरथ गहै ॥
भ्रम में भूला हुआ वह सभी तीर्थों में रटन करता रहता है,
ਓਹੁ ਤਪਾ ਕੈਸੇ ਪਰਮ ਗਤਿ ਲਹੈ ॥
ओहु तपा कैसे परम गति लहै ॥
किन्तु ऐसा तपस्वी कैसे परमगति प्राप्त कर सकता है ?
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਕੋ ਸਚੁ ਕਮਾਵੈ ॥
गुर परसादी को सचु कमावै ॥
हे नानक ! गुरु के आशीर्वाद से जो सत्य की साधना करता है,
ਨਾਨਕ ਸੋ ਤਪਾ ਮੋਖੰਤਰੁ ਪਾਵੈ ॥੧॥
नानक सो तपा मोखंतरु पावै ॥१॥
ऐसा तपस्वी ही मोक्ष प्राप्त करता है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਸੋ ਤਪਾ ਜਿ ਇਹੁ ਤਪੁ ਘਾਲੇ ॥
सो तपा जि इहु तपु घाले ॥
सच्चा तपस्वी वही है जो ऐसा तप करता है की
ਸਤਿਗੁਰ ਨੋ ਮਿਲੈ ਸਬਦੁ ਸਮਾਲੇ ॥
सतिगुर नो मिलै सबदु समाले ॥
सतगुरु से साक्षात्कार कर शब्द-साधना की तपस्या करता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਇਹੁ ਤਪੁ ਪਰਵਾਣੁ ॥
सतिगुर की सेवा इहु तपु परवाणु ॥
सतगुरु की सेवा रूपी तपस्या ही परमात्मा को मंजूर होती है।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਤਪਾ ਦਰਗਹਿ ਪਾਵੈ ਮਾਣੁ ॥੨॥
नानक सो तपा दरगहि पावै माणु ॥२॥
हे नानक ! ऐसा तपस्वी ही सत्य के दरबार में शोभा प्राप्त करता है। २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਰਾਤਿ ਦਿਨਸੁ ਉਪਾਇਅਨੁ ਸੰਸਾਰ ਕੀ ਵਰਤਣਿ ॥
राति दिनसु उपाइअनु संसार की वरतणि ॥
दुनिया का कार्य-व्यवहार करने के लिए परमात्मा ने रात और दिन पैदा किए हैं।