ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮਿਲਿ ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਤੇ ਮਗਨ ਭਏ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੨॥੨੫॥੪੮॥
कहु नानक मिलि संतसंगति ते मगन भए लिव लाई ॥२॥२५॥४८॥
हे नानक ! संतों की संगत में मिलकर मैं प्रभु के ध्यान में मग्न रहता हूँ॥२॥ २५॥ ४८ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਅਪਨਾ ਮੀਤੁ ਸੁਆਮੀ ਗਾਈਐ ॥
अपना मीतु सुआमी गाईऐ ॥
अपने मित्र स्वामी का स्तुतिगान करो,
ਆਸ ਨ ਅਵਰ ਕਾਹੂ ਕੀ ਕੀਜੈ ਸੁਖਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आस न अवर काहू की कीजै सुखदाता प्रभु धिआईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
किसी अन्य की आशा मत करो, सुखदाता प्रभु का चिंतन करो॥१॥ रहाउ॥।
ਸੂਖ ਮੰਗਲ ਕਲਿਆਣ ਜਿਸਹਿ ਘਰਿ ਤਿਸ ਹੀ ਸਰਣੀ ਪਾਈਐ ॥
सूख मंगल कलिआण जिसहि घरि तिस ही सरणी पाईऐ ॥
जिसके घर सुख ही सुख-मंगल एवं कल्याण है, उसकी शरण में आओ।
ਤਿਸਹਿ ਤਿਆਗਿ ਮਾਨੁਖੁ ਜੇ ਸੇਵਹੁ ਤਉ ਲਾਜ ਲੋਨੁ ਹੋਇ ਜਾਈਐ ॥੧॥
तिसहि तिआगि मानुखु जे सेवहु तउ लाज लोनु होइ जाईऐ ॥१॥
उसे त्याग कर यदि मनुष्य की सेवा करोगे तो लज्जित होकर मरोगे॥१॥
ਏਕ ਓਟ ਪਕਰੀ ਠਾਕੁਰ ਕੀ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਮਤਿ ਬੁਧਿ ਪਾਈਐ ॥
एक ओट पकरी ठाकुर की गुर मिलि मति बुधि पाईऐ ॥
एक मालिक का आसरा पकड़ा है और गुरु को मिलकर उत्तम बुद्धि प्राप्त हुई है।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਮਿਲਿਆ ਸਗਲ ਚੁਕੀ ਮੁਹਤਾਈਐ ॥੨॥੨੬॥੪੯॥
गुण निधान नानक प्रभु मिलिआ सगल चुकी मुहताईऐ ॥२॥२६॥४९॥
हे नानक ! गुणों का भण्डार प्रभु मिल गया है, जिससे लोगों की मोहताजी समाप्त हो गई है॥२॥ २६ ॥ ४६ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਓਟ ਸਤਾਣੀ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਮੇਰੈ ॥
ओट सताणी प्रभ जीउ मेरै ॥
मेरे प्रभु की शरण बहुत मजबूत है।
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨ ਲਿਆਵਉ ਅਵਰ ਕਾਹੂ ਕਉ ਮਾਣਿ ਮਹਤਿ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
द्रिसटि न लिआवउ अवर काहू कउ माणि महति प्रभ तेरै ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! तेरे बड़प्पन एवं महानता की वजह से किसी अन्य को नजर में नहीं लाता॥१॥रहाउ॥।
ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਓ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੈ ਕਾਢਿ ਲੀਆ ਬਿਖੁ ਘੇਰੈ ॥
अंगीकारु कीओ प्रभि अपुनै काढि लीआ बिखु घेरै ॥
प्रभु ने साथ देकर विकारों के घेरे से निकाल लिया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਅਉਖਧੁ ਮੁਖਿ ਦੀਨੋ ਜਾਇ ਪਇਆ ਗੁਰ ਪੈਰੈ ॥੧॥
अम्रित नामु अउखधु मुखि दीनो जाइ पइआ गुर पैरै ॥१॥
जब गुरु के पैरों में पड़ा तो उसने मुँह में हरि-नामामृत की औषधि प्रदान की॥१॥
ਕਵਨ ਉਪਮਾ ਕਹਉ ਏਕ ਮੁਖ ਨਿਰਗੁਣ ਕੇ ਦਾਤੇਰੈ ॥
कवन उपमा कहउ एक मुख निरगुण के दातेरै ॥
हे निर्गुणों के दाता ! एक मुख में से तेरी क्या महिमा गा सकता हूँ।
ਕਾਟਿ ਸਿਲਕ ਜਉ ਅਪੁਨਾ ਕੀਨੋ ਨਾਨਕ ਸੂਖ ਘਨੇਰੈ ॥੨॥੨੭॥੫੦॥
काटि सिलक जउ अपुना कीनो नानक सूख घनेरै ॥२॥२७॥५०॥
नानक की विनती है कि अगर बन्धनों को काटकर मुझे अपना बना लो तो अनेक सुख प्राप्त होंगे ॥२॥ २७ ॥ ५० ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰਤ ਦੂਖ ਬਿਨਾਸੀ ॥
प्रभ सिमरत दूख बिनासी ॥
प्रभु का सिमरन करने से दुखों का अंत हो जाता है।
ਭਇਓ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਜੀਅ ਸੁਖਦਾਤਾ ਹੋਈ ਸਗਲ ਖਲਾਸੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भइओ क्रिपालु जीअ सुखदाता होई सगल खलासी ॥१॥ रहाउ ॥
जीवों को सुख देने वाला जब कृपालु होता है तो सब बन्धनों से मुक्ति मिल जाती है।॥१॥
ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਊ ਸੂਝੈ ਪ੍ਰਭ ਬਿਨੁ ਕਹੁ ਕੋ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਜਾਸੀ ॥
अवरु न कोऊ सूझै प्रभ बिनु कहु को किसु पहि जासी ॥
प्रभु के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं सूझता, फिर भला किसके पास प्रार्थना की जा सकती है।
ਜਿਉ ਜਾਣਹੁ ਤਿਉ ਰਾਖਹੁ ਠਾਕੁਰ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੁਮ ਹੀ ਪਾਸੀ ॥੧॥
जिउ जाणहु तिउ राखहु ठाकुर सभु किछु तुम ही पासी ॥१॥
हे मालिक ! जैसे ठीक समझते हो, वैसे ही रखो, हमारा सब कुछ तुम्हारे पास है॥१॥
ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖੇ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੇ ਸਦ ਜੀਵਨ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥
हाथ देइ राखे प्रभि अपुने सद जीवन अबिनासी ॥
अविनाशी प्रभु ने हाथ देकर रक्षा की है, वह सदा जीवन देने वाला है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਹੈ ਕਾਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸੀ ॥੨॥੨੮॥੫੧॥
कहु नानक मनि अनदु भइआ है काटी जम की फासी ॥२॥२८॥५१॥
नानक फुरमाते हैं कि उसने यम का फंदा काट दिया है और मन में आनंद उत्पन्न हो गया है॥२॥२८॥५१॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮੇਰੋ ਮਨੁ ਜਤ ਕਤ ਤੁਝਹਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ॥
मेरो मनु जत कत तुझहि सम्हारै ॥
मेरा मन हर वक्त तुझे ही याद करता है।
ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਦੀਨ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਜਿਉ ਜਾਨਹਿ ਤਿਉ ਪਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हम बारिक दीन पिता प्रभ मेरे जिउ जानहि तिउ पारै ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे पिता प्रभु ! हम दीन बच्चे हैं, जैसे उचित समझो, वैसे पार उतार दो ॥१॥रहाउ॥।
ਜਬ ਭੁਖੌ ਤਬ ਭੋਜਨੁ ਮਾਂਗੈ ਅਘਾਏ ਸੂਖ ਸਘਾਰੈ ॥
जब भुखौ तब भोजनु मांगै अघाए सूख सघारै ॥
जब भूख लगती है, तब भोजन मांगते हैं और तुम हमें तृप्त करके सुख ही सुख देते हो।
ਤਬ ਅਰੋਗ ਜਬ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਬਸਤੌ ਛੁਟਕਤ ਹੋਇ ਰਵਾਰੈ ॥੧॥
तब अरोग जब तुम संगि बसतौ छुटकत होइ रवारै ॥१॥
जब तुम्हारे साथ रहते हैं, तब आरोग्य होते हैं, लेकिन साथ छूटने से धूल हो जाते हैं।॥१॥
ਕਵਨ ਬਸੇਰੋ ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੋ ਥਾਪਿਉ ਥਾਪਨਹਾਰੈ ॥
कवन बसेरो दास दासन को थापिउ थापनहारै ॥
हे बनाने वाले ! तूने ही हमें बनाया है, तेरे दासों के दास को तेरे सिवा कहाँ रहना है।
ਨਾਮੁ ਨ ਬਿਸਰੈ ਤਬ ਜੀਵਨੁ ਪਾਈਐ ਬਿਨਤੀ ਨਾਨਕ ਇਹ ਸਾਰੈ ॥੨॥੨੯॥੫੨॥
नामु न बिसरै तब जीवनु पाईऐ बिनती नानक इह सारै ॥२॥२९॥५२॥
नानक विनती करते हैं कि हे प्रभु ! हमारे लिए यही उपयोगी है कि तेरा नाम न भूले, इससे ही तो जीवन प्राप्त होता है।॥२॥ २६ ॥ ५२ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮਨ ਤੇ ਭੈ ਭਉ ਦੂਰਿ ਪਰਾਇਓ ॥
मन ते भै भउ दूरि पराइओ ॥
मन से भय-संकट दूर हो गया है,
ਲਾਲ ਦਇਆਲ ਗੁਲਾਲ ਲਾਡਿਲੇ ਸਹਜਿ ਸਹਜਿ ਗੁਨ ਗਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लाल दइआल गुलाल लाडिले सहजि सहजि गुन गाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
प्यारे, लाडले, दयालु परमेश्वर का ही यशोगान किया है।॥१॥रहाउ॥।
ਗੁਰ ਬਚਨਾਤਿ ਕਮਾਤ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਬਹੁਰਿ ਨ ਕਤਹੂ ਧਾਇਓ ॥
गुर बचनाति कमात क्रिपा ते बहुरि न कतहू धाइओ ॥
गुरु के वचनों अनुसार जीवन-आचरण अपनाया है और उसकी कृपा से पुनः कहीं ओर नहीं दौड़ता
ਰਹਤ ਉਪਾਧਿ ਸਮਾਧਿ ਸੁਖ ਆਸਨ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਪਾਇਓ ॥੧॥
रहत उपाधि समाधि सुख आसन भगति वछलु ग्रिहि पाइओ ॥१॥
इससे सब उपाधियों से रहित हो गया हूँ, सुख समाधि में लीन हूँ और हृदय-घर में भक्तवत्सल प्रभु को पा लिया है॥१॥
ਨਾਦ ਬਿਨੋਦ ਕੋਡ ਆਨੰਦਾ ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਓ ॥
नाद बिनोद कोड आनंदा सहजे सहजि समाइओ ॥
नाद, विनोद एवं आनंदपूर्वक सहजावस्था में तल्लीन हूँ।
ਕਰਨਾ ਆਪਿ ਕਰਾਵਨ ਆਪੇ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਆਪਾਇਓ ॥੨॥੩੦॥੫੩॥
करना आपि करावन आपे कहु नानक आपि आपाइओ ॥२॥३०॥५३॥
हे नानक ! ईश्वर सर्वस्व है, वह स्वयं ही कर रहा है और स्वयं ही करवाने वाला है॥२॥३०॥५३॥