ਗੁਰਮੁਖਾ ਮਨਿ ਪਰਤੀਤਿ ਹੈ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੀ ॥੧॥
गुरमुखा मनि परतीति है गुरि पूरै नामि समाणी ॥१॥
गुरुमुखों के मन में पूर्ण निष्ठा है, पूर्ण गुरु के द्वारा वे नाम-स्मरण में ही विलीन रहते हैं।॥१॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਮਨਿ ਭਾਣੀ ॥
मन मेरे मै हरि हरि कथा मनि भाणी ॥
हे मेरे मन ! मुझे हरि की कथा ही प्रिय लगती है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਨਿਤ ਸਦਾ ਕਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि कथा नित सदा करि गुरमुखि अकथ कहाणी ॥१॥ रहाउ ॥
मैं नित्य हरिकथा करता हूँ और यह अकथनीय कथा ही मुझे प्रिय है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੈ ਮਨੁ ਤਨੁ ਖੋਜਿ ਢੰਢੋਲਿਆ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥
मै मनु तनु खोजि ढंढोलिआ किउ पाईऐ अकथ कहाणी ॥
मैंने मन-तन से खोज कर ढूंढा है कि अकथनीय कथा क्योंकर प्राप्त होती है।
ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਪਾਇਆ ਸੁਣਿ ਅਕਥ ਕਥਾ ਮਨਿ ਭਾਣੀ ॥
संत जना मिलि पाइआ सुणि अकथ कथा मनि भाणी ॥
“(उत्तर-) संतजनों से मिलकर ही इसे पाया जा सकता है, अकथनीय कथा सुनकर मन को प्यारी लगी है।
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਹਰਿ ਮੈ ਮੇਲੇ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਣੀ ॥੨॥
मेरै मनि तनि नामु अधारु हरि मै मेले पुरखु सुजाणी ॥२॥
मेरे मन-तन में हरि-नाम का ही आधार है और यह मुझे चतुर, परमपुरुष प्रभु से मिला देता है॥ २॥
ਗੁਰ ਪੁਰਖੈ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਾਇ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਿ ਸੁਰਤੀ ਸੁਰਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥
गुर पुरखै पुरखु मिलाइ प्रभ मिलि सुरती सुरति समाणी ॥
महापुरुष गुरु ने परमपुरुष परमात्मा से मिला दिया है और मेरी आत्म-ज्योति परमज्योति में विलीन हो गई है।
ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਣੀ ॥
वडभागी गुरु सेविआ हरि पाइआ सुघड़ सुजाणी ॥
अहोभाग्य से गुरु की सेवा की है, जिसके फलस्वरूप चतुर, सर्वज्ञाता ईश्वर को पा लिया है।
ਮਨਮੁਖ ਭਾਗ ਵਿਹੂਣਿਆ ਤਿਨ ਦੁਖੀ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥੩॥
मनमुख भाग विहूणिआ तिन दुखी रैणि विहाणी ॥३॥
मनमुख दुर्भाग्यशाली हैं, जिनकी जीवन-रात्रि दुखों में ही व्यतीत होती है॥ ३॥
ਹਮ ਜਾਚਿਕ ਦੀਨ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਿਆ ਮੁਖਿ ਦੀਜੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ॥
हम जाचिक दीन प्रभ तेरिआ मुखि दीजै अम्रित बाणी ॥
हे भगवान् ! हम तेरे दीन याचक हैं, कृपा करके मुख में अमृत-वाणी डाल दीजिए।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਮਿਤ੍ਰੁ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਣੀ ॥
सतिगुरु मेरा मित्रु प्रभ हरि मेलहु सुघड़ सुजाणी ॥
हे सतगुरु मित्र ! मुझे चतुर प्रभु से मिला दो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਰਣਾਗਤੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੀ ॥੪॥੩॥੫॥
जन नानक सरणागती करि किरपा नामि समाणी ॥४॥३॥५॥
दास नानक तेरी शरण में आया है, इसलिए कृपा करो ताकि वह हरि-नाम स्मरण में समाया रहे॥ ४॥ ३॥ ५॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੪ ॥
मारू महला ४ ॥
मारू महला ४॥
ਹਰਿ ਭਾਉ ਲਗਾ ਬੈਰਾਗੀਆ ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਮਨਿ ਰਾਖੁ ॥
हरि भाउ लगा बैरागीआ वडभागी हरि मनि राखु ॥
जिस भाग्यशाली का ईश्वर से वैराग्यपूर्ण प्रेम लगा है, उसने मन में ही उसे बसा लिया है।
ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਸਰਧਾ ਊਪਜੈ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖੁ ॥
मिलि संगति सरधा ऊपजै गुर सबदी हरि रसु चाखु ॥
सुसंगति में मिलने से ही श्रद्धा उत्पन्न होती है, गुरु के शब्द द्वारा हरि-नाम का स्वाद चखा जा सकता है।
ਸਭੁ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਇਆ ਗੁਰਬਾਣੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਭਾਖੁ ॥੧॥
सभु मनु तनु हरिआ होइआ गुरबाणी हरि गुण भाखु ॥१॥
गुरु की वाणी द्वारा प्रभु का गुणानुवाद करने से तन-मन विकसित हो गया है॥ १॥
ਮਨ ਪਿਆਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਰਸੁ ਚਾਖੁ ॥
मन पिआरिआ मित्रा हरि हरि नाम रसु चाखु ॥
हे प्यारे मित्र मन ! हरि नामामृत का स्वाद वखो।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਪਤਿ ਰਾਖੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरि पूरै हरि पाइआ हलति पलति पति राखु ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है और लोक-परलोक में वही लाज रखता है। १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਚਾਖੁ ॥
हरि हरि नामु धिआईऐ हरि कीरति गुरमुखि चाखु
गुरमुख बन ईश्वर का मनन करो, हरि-भजन का आनंद लो।
ਤਨੁ ਧਰਤੀ ਹਰਿ ਬੀਜੀਐ ਵਿਚਿ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖੁ ॥
तनु धरती हरि बीजीऐ विचि संगति हरि प्रभ राखु ॥
तन रूपी धरती में हरि-नाम बोना चाहिए, सत्संग में प्रभु को याद करो।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖੁ ॥੨॥
अम्रितु हरि हरि नामु है गुरि पूरै हरि रसु चाखु ॥२॥
हरि का नाम अमृत के समान है और पूर्ण गुरु द्वारा हरि-नाम रस का स्वाद प्राप्त करो॥ २॥
ਮਨਮੁਖ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭਰਿ ਰਹੇ ਮਨਿ ਆਸਾ ਦਹ ਦਿਸ ਬਹੁ ਲਾਖੁ ॥
मनमुख त्रिसना भरि रहे मनि आसा दह दिस बहु लाखु ॥
स्वेच्छाचारी तृष्णा से भरे रहते हैं, उनके मन में लाखों ही तीव्र लालसा होती है, इसलिए वे दसों दिशाओं में भागते रहते हैं।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਦੇ ਵਿਚਿ ਬਿਸਟਾ ਮਨਮੁਖ ਰਾਖੁ ॥
बिनु नावै ध्रिगु जीवदे विचि बिसटा मनमुख राखु ॥
नाम के बिना जीना धिक्कार योग्य है, स्वेच्छाचारी विष्ठा में ही पड़े रहते हैं।
ਓਇ ਆਵਹਿ ਜਾਹਿ ਭਵਾਈਅਹਿ ਬਹੁ ਜੋਨੀ ਦੁਰਗੰਧ ਭਾਖੁ ॥੩॥
ओइ आवहि जाहि भवाईअहि बहु जोनी दुरगंध भाखु ॥३॥
वे आवागमन में भटकते रहते हैं और विविध योनियों की दुर्गध सेवन करते हैं।३॥
ਤ੍ਰਾਹਿ ਤ੍ਰਾਹਿ ਸਰਣਾਗਤੀ ਹਰਿ ਦਇਆ ਧਾਰਿ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖੁ ॥
त्राहि त्राहि सरणागती हरि दइआ धारि प्रभ राखु ॥
हे परमात्मा, त्राहिमाम्! त्राहिमाम् !! मैं तेरी शरण में आया हूँ, दया करके मेरी रक्षा करो।
ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਮੇਲਾਪੁ ਕਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਪਤਿ ਸਾਖੁ ॥
संतसंगति मेलापु करि हरि नामु मिलै पति साखु ॥
मुझे संतों की संगति में मिला दो, ताकि हरि-नाम मिल जाए और दुनिया में मेरी लाज बनी रहे।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮਤਿ ਭਾਖੁ ॥੪॥੪॥੬॥
हरि हरि नामु धनु पाइआ जन नानक गुरमति भाखु ॥४॥४॥६॥
हे नानक ! गुरु-मतानुसार हरि-नाम रूपी धन प्राप्त हो गया है। ४॥ ४॥ ६॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੫
मारू महला ४ घरु ५
मारू महला ४ घरु ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
हरि हरि भगति भरे भंडारा ॥
ईश्वर की भक्ति के भण्डार भरे हुए हैं,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਾਮੁ ਕਰੇ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥
गुरमुखि रामु करे निसतारा ॥
परमात्मा गुरुमुख का ही उद्धार करता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਸੋ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਜੀਉ ॥੧॥
जिस नो क्रिपा करे मेरा सुआमी सो हरि के गुण गावै जीउ ॥१॥
जिस पर मेरा स्वामी कृपा करता है, वही उसके गुण गाता है॥ १॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਬਨਵਾਲੀ ॥
हरि हरि क्रिपा करे बनवाली ॥
ईश्वर ही कृपा करता है,
ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਮਾਲੀ ॥
हरि हिरदै सदा सदा समाली ॥
अतः सदैव उसे स्मरण करो,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮੇਰੇ ਜੀਅੜੇ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਛਡਾਵੈ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि नामु जपहु मेरे जीअड़े जपि हरि हरि नामु छडावै जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे मन ! हरि-नाम जपो, हरि-नाम जपने से बन्धनों से छुटकारा होता है ॥१॥ रहाउ ॥