Hindi Page 619

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜਪਿ ਸਦਾ ਨਿਹਾਲ ॥ ਰਹਾਉ ॥
पारब्रहमु जपि सदा निहाल ॥ रहाउ ॥
अपने परब्रह्म-प्रभु का जाप करने से मैं सदा निहाल रहता हूँ॥ रहाउ॥

ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਸੋਈ ॥
अंतरि बाहरि थान थनंतरि जत कत पेखउ सोई ॥
अन्दर-बाहर, देश-दिशांतर जगत में जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, उधर ही भगवान मौजूद है।

ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਪਾਇਓ ਵਡਭਾਗੀ ਤਿਸੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੨॥੧੧॥੩੯॥
नानक गुरु पाइओ वडभागी तिसु जेवडु अवरु न कोई ॥२॥११॥३९॥
हे नानक ! बड़ी किस्मत से मुझे ऐसा गुरु प्राप्त हुआ है कि उस जैसा महान् दूसरा कोई नहीं ॥ २॥ ११॥ ३६॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਸੂਖ ਮੰਗਲ ਕਲਿਆਣ ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਚਰਣ ਨਿਹਾਰਿਆ ॥
सूख मंगल कलिआण सहज धुनि प्रभ के चरण निहारिआ ॥
प्रभु के सुन्दर चरणों के दर्शन करने से सुख, मंगल, कल्याण एवं सहज ध्वनि की उपलब्धि हो गई है।

ਰਾਖਨਹਾਰੈ ਰਾਖਿਓ ਬਾਰਿਕੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਤਾਪੁ ਉਤਾਰਿਆ ॥੧॥
राखनहारै राखिओ बारिकु सतिगुरि तापु उतारिआ ॥१॥
रखवाले परमात्मा ने बालक हरिगोविंद की रक्षा की है और सतगुरु ने उसका ताप निवृत्त कर दिया है॥ १॥

ਉਬਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ॥
उबरे सतिगुर की सरणाई ॥
उस सतगुरु की शरण में बच गया हूं,

ਜਾ ਕੀ ਸੇਵ ਨ ਬਿਰਥੀ ਜਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
जा की सेव न बिरथी जाई ॥ रहाउ ॥
जिसकी की हुई सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती ॥ रहाउ ॥

ਘਰ ਮਹਿ ਸੂਖ ਬਾਹਰਿ ਫੁਨਿ ਸੂਖਾ ਪ੍ਰਭ ਅਪੁਨੇ ਭਏ ਦਇਆਲਾ ॥
घर महि सूख बाहरि फुनि सूखा प्रभ अपुने भए दइआला ॥
जब अपना प्रभु दयालु हो गया तो घर में सुख और बाहर भी सुख ही सुख हो गया।

ਨਾਨਕ ਬਿਘਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ਕੋਊ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਹੋਆ ਕਿਰਪਾਲਾ ॥੨॥੧੨॥੪੦॥
नानक बिघनु न लागै कोऊ मेरा प्रभु होआ किरपाला ॥२॥१२॥४०॥
हे नानक ! अब मुझे कोई भी विघ्न नहीं लगता, क्योंकि मेरा प्रभु मुझ पर कृपालु हो गया है॥ २॥ १२॥ ४०॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਭਇਆ ਮਨਿ ਉਦਮੁ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਜਸੁ ਗਾਈ ॥
साधू संगि भइआ मनि उदमु नामु रतनु जसु गाई ॥
साधु की संगत करने से मेरे मन में उद्यम उत्पन्न हो गया है और मैंने नाम-रत्न का यश गायन किया है।

ਮਿਟਿ ਗਈ ਚਿੰਤਾ ਸਿਮਰਿ ਅਨੰਤਾ ਸਾਗਰੁ ਤਰਿਆ ਭਾਈ ॥੧॥
मिटि गई चिंता सिमरि अनंता सागरु तरिआ भाई ॥१॥
हे भाई ! परमेश्वर का सिमरन करने से मेरी चिन्ता मिट गई है और संसार-सागर से तर गया हूँ॥ १॥

ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਣ ਵਸਾਈ ॥
हिरदै हरि के चरण वसाई ॥
अपने हृदय में मैंने भगवान के चरणों को बसा लिया है।

ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਉਪਜੀ ਰੋਗਾ ਘਾਣਿ ਮਿਟਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
सुखु पाइआ सहज धुनि उपजी रोगा घाणि मिटाई ॥ रहाउ ॥
अब मुझे सुख प्राप्त हो गया है, सहज ध्वनि मेरे भीतर गूंज रही है एवं रोगों के समुदाय नष्ट हो गए हैं।॥ रहाउ ॥

ਕਿਆ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਆਖਿ ਵਖਾਣਾ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥
किआ गुण तेरे आखि वखाणा कीमति कहणु न जाई ॥
हे ईश्वर ! तेरे कौन-कौन से गुणों का मैं बखान करूँ ? तेरा तो मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।

ਨਾਨਕ ਭਗਤ ਭਏ ਅਬਿਨਾਸੀ ਅਪੁਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਭਇਆ ਸਹਾਈ ॥੨॥੧੩॥੪੧॥
नानक भगत भए अबिनासी अपुना प्रभु भइआ सहाई ॥२॥१३॥४१॥
हे नानक ! जब अपना प्रभु सहायक बन गया तो भक्त भी अविनाशी हो गए हैं।॥ २॥ १३॥ ४१॥

ਸੋਰਠਿ ਮਃ ੫ ॥
सोरठि मः ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਗਏ ਕਲੇਸ ਰੋਗ ਸਭਿ ਨਾਸੇ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੈ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥
गए कलेस रोग सभि नासे प्रभि अपुनै किरपा धारी ॥
मेरे प्रभु ने अपनी कृपा की तो मेरे समस्त दुःख-क्लेश एवं रोग नाश हो गए।

ਆਠ ਪਹਰ ਆਰਾਧਹੁ ਸੁਆਮੀ ਪੂਰਨ ਘਾਲ ਹਮਾਰੀ ॥੧॥
आठ पहर आराधहु सुआमी पूरन घाल हमारी ॥१॥
आठ प्रहर भगवान की आराधना करो चूंकि हमारी साधना भी पूर्ण हो गई है॥ १॥

ਹਰਿ ਜੀਉ ਤੂ ਸੁਖ ਸੰਪਤਿ ਰਾਸਿ ॥
हरि जीउ तू सुख स्मपति रासि ॥
हे पूज्य परमेश्वर ! तू ही हमारी सुख-संपत्ति एवं पूंजी है।

ਰਾਖਿ ਲੈਹੁ ਭਾਈ ਮੇਰੇ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਆਗੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥ ਰਹਾਉ ॥
राखि लैहु भाई मेरे कउ प्रभ आगै अरदासि ॥ रहाउ ॥
मेरी प्रभु के समक्ष यही प्रार्थना है कि हे मेरे प्रियतम ! मुझे दुखों से बचा लो॥ रहाउ॥

ਜੋ ਮਾਗਉ ਸੋਈ ਸੋਈ ਪਾਵਉ ਅਪਨੇ ਖਸਮ ਭਰੋਸਾ ॥
जो मागउ सोई सोई पावउ अपने खसम भरोसा ॥
जो कुछ भी मैं माँगता हूँ, वही कुछ मुझे प्राप्त हो जाता है, मुझे तो अपने मालिक पर ही भरोसा है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਓ ਮਿਟਿਓ ਸਗਲ ਅੰਦੇਸਾ ॥੨॥੧੪॥੪੨॥
कहु नानक गुरु पूरा भेटिओ मिटिओ सगल अंदेसा ॥२॥१४॥४२॥
नानक का कथन है कि पूर्ण गुरु से भेंट हो जाने से मेरी समस्त चिन्ताएँ मिट गई है॥ २॥ १४॥ ४२॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਪਨਾ ਸਗਲਾ ਦੂਖੁ ਮਿਟਾਇਆ ॥
सिमरि सिमरि गुरु सतिगुरु अपना सगला दूखु मिटाइआ ॥
अपने गुरु सतगुरु का सिमरन करके मैंने अपने समस्त दु:खों-क्लेशों को मिटा लिया है।

ਤਾਪ ਰੋਗ ਗਏ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਮਨ ਇਛੇ ਫਲ ਪਾਇਆ ॥੧॥
ताप रोग गए गुर बचनी मन इछे फल पाइआ ॥१॥
गुरु के वचनों द्वारा ताप एवं रोग दूर हो गए हैं तथा मुझे मनोवांछित फल की प्राप्ति हो गई है ॥१॥

ਮੇਰਾ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
मेरा गुरु पूरा सुखदाता ॥
मेरा पूर्ण गुरु सुखों का दाता है।

ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਸੁਆਮੀ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
करण कारण समरथ सुआमी पूरन पुरखु बिधाता ॥ रहाउ ॥
वह समस्त कार्य करने एवं कराने वाला, सर्वकला समर्थ स्वामी एवं पूर्ण पुरुष विधाता है॥ रहाउ॥

ਅਨੰਦ ਬਿਨੋਦ ਮੰਗਲ ਗੁਣ ਗਾਵਹੁ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਭਏ ਦਇਆਲਾ ॥
अनंद बिनोद मंगल गुण गावहु गुर नानक भए दइआला ॥
हे नानक ! अब आप आनंद करो, खुशियाँ मनाओ और प्रभु की स्तुति के मंगल गीत गायन करो, चूंकि गुरु आप पर दयालु हो गया है।

ਜੈ ਜੈ ਕਾਰ ਭਏ ਜਗ ਭੀਤਰਿ ਹੋਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਰਖਵਾਲਾ ॥੨॥੧੫॥੪੩॥
जै जै कार भए जग भीतरि होआ पारब्रहमु रखवाला ॥२॥१५॥४३॥
सारी दुनिया में जय-जयकार हो रही है, चूंकि परब्रह्म मेरा रखवाला हो गया है ॥२॥१५॥ ४३॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਹਮਰੀ ਗਣਤ ਨ ਗਣੀਆ ਕਾਈ ਅਪਣਾ ਬਿਰਦੁ ਪਛਾਣਿ ॥
हमरी गणत न गणीआ काई अपणा बिरदु पछाणि ॥
परमात्मा ने हमारे कर्मों की गणना नहीं की और अपने विरद् को पहचान कर हमें क्षमा कर दिया है।

ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖੇ ਕਰਿ ਅਪੁਨੇ ਸਦਾ ਸਦਾ ਰੰਗੁ ਮਾਣਿ ॥੧॥
हाथ देइ राखे करि अपुने सदा सदा रंगु माणि ॥१॥
उसने अपना हाथ देकर मुझे अपना समझता हुए मेरी रक्षा की है और अब मैं उसके प्रेम का हमेशा आनंद प्राप्त करता रहता हूँ॥ १॥

ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਦ ਮਿਹਰਵਾਣ ॥
साचा साहिबु सद मिहरवाण ॥
मेरा सच्चा परमेश्वर सदैव ही मेहरबान है।

ਬੰਧੁ ਪਾਇਆ ਮੇਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹੋਈ ਸਰਬ ਕਲਿਆਣ ॥ ਰਹਾਉ ॥
बंधु पाइआ मेरै सतिगुरि पूरै होई सरब कलिआण ॥ रहाउ ॥
मेरे पूर्ण सतगुरु ने दु:खों-संकटों पर अंकुश लगाया है और अब सर्व कल्याण हो गया है॥ रहाउ॥

ਜੀਉ ਪਾਇ ਪਿੰਡੁ ਜਿਨਿ ਸਾਜਿਆ ਦਿਤਾ ਪੈਨਣੁ ਖਾਣੁ ॥
जीउ पाइ पिंडु जिनि साजिआ दिता पैनणु खाणु ॥
जिस ईश्वर ने प्राण डाल कर मेरे शरीर की रचना की है और वस्त्र एवं भोजन प्रदान किया है; उसने स्वयं ही अपने दास की लाज बचा ली है।

ਅਪਣੇ ਦਾਸ ਕੀ ਆਪਿ ਪੈਜ ਰਾਖੀ ਨਾਨਕ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੨॥੧੬॥੪੪॥
अपणे दास की आपि पैज राखी नानक सद कुरबाणु ॥२॥१६॥४४॥
नानक तो उस पर सदा कुर्बान जाता है॥ ॥२॥१६॥४४॥

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