ਜਿਨ ਸੰਤਨ ਜਾਨਿਆ ਤੂ ਠਾਕੁਰ ਤੇ ਆਏ ਪਰਵਾਨ ॥
जिन संतन जानिआ तू ठाकुर ते आए परवान ॥
हे ठाकुर ! जिन सज्जनों ने तुझे जान लिया है, उनका जन्म सफल हो गया है।
ਜਨ ਕਾ ਸੰਗੁ ਪਾਈਐ ਵਡਭਾਗੀ ਨਾਨਕ ਸੰਤਨ ਕੈ ਕੁਰਬਾਨ ॥੨॥੪੧॥੬੪॥
जन का संगु पाईऐ वडभागी नानक संतन कै कुरबान ॥२॥४१॥६४॥
नानक फुरमाते हैं कि संतजनों की संगत उत्तम भाग्य से ही प्राप्त होती है और मैं तो संतों पर कुर्बान जाता हूँ॥२॥ ४१ ॥ ६४ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਕਰਹੁ ਗਤਿ ਦਇਆਲ ਸੰਤਹੁ ਮੋਰੀ ॥
करहु गति दइआल संतहु मोरी ॥
हे दयालु संतो ! मेरी मुक्ति करो;
ਤੁਮ ਸਮਰਥ ਕਾਰਨ ਕਰਨਾ ਤੂਟੀ ਤੁਮ ਹੀ ਜੋਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तुम समरथ कारन करना तूटी तुम ही जोरी ॥१॥ रहाउ ॥
तुम करने-करवाने में समर्थ हो और मेरी टूटी प्रीति को तुम्हीं ने जोड़ा है॥१॥रहाउ॥।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਬਿਖਈ ਤੁਮ ਤਾਰੇ ਸੁਮਤਿ ਸੰਗਿ ਤੁਮਾਰੈ ਪਾਈ ॥
जनम जनम के बिखई तुम तारे सुमति संगि तुमारै पाई ॥
जन्म-जन्मांतर के विकारी जीवों को तुमने संसार-सागर से तार दिया है और तुम्हारी संगत में सुमति प्राप्त की है।
ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮਤੇ ਪ੍ਰਭ ਬਿਸਰਤ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਹਰਿ ਗਾਈ ॥੧॥
अनिक जोनि भ्रमते प्रभ बिसरत सासि सासि हरि गाई ॥१॥
जो प्रभु को भुलाकर अनेक योनियों में घूम रहे थे, अब वे श्वास-श्वास हरि का कीर्तिगान कर रहे हैं।॥१॥
ਜੋ ਜੋ ਸੰਗਿ ਮਿਲੇ ਸਾਧੂ ਕੈ ਤੇ ਤੇ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤਾ ॥
जो जो संगि मिले साधू कै ते ते पतित पुनीता ॥
जो जो साधु पुरुषों की संगत में सम्मिलित हुए, वे पतित से पावन हो गए।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕੇ ਵਡਭਾਗਾ ਤਿਨਿ ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਜੀਤਾ ॥੨॥੪੨॥੬੫॥
कहु नानक जा के वडभागा तिनि जनमु पदारथु जीता ॥२॥४२॥६५॥
हे नानक ! जो भाग्यशाली है, उसने मानव-जन्म जीत लिया है ॥२॥ ४२॥ ६५ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਠਾਕੁਰ ਬਿਨਤੀ ਕਰਨ ਜਨੁ ਆਇਓ ॥
ठाकुर बिनती करन जनु आइओ ॥
हे ठाकुर ! दास तेरे पास विनती करने आया है।
ਸਰਬ ਸੂਖ ਆਨੰਦ ਸਹਜ ਰਸ ਸੁਨਤ ਤੁਹਾਰੋ ਨਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब सूख आनंद सहज रस सुनत तुहारो नाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
तुम्हारा नाम-कीर्तन सुनने से सर्व सुख, आनंद एवं स्वाभाविक रस प्राप्त होता है।॥१॥रहाउ॥।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਸੂਖ ਕੇ ਸਾਗਰ ਜਸੁ ਸਭ ਮਹਿ ਜਾ ਕੋ ਛਾਇਓ ॥
क्रिपा निधान सूख के सागर जसु सभ महि जा को छाइओ ॥
हे कृपानिधान ! तू सुखों का सागर है, समूचे विश्व में तेरा यश फैला हुआ है।
ਸੰਤਸੰਗਿ ਰੰਗ ਤੁਮ ਕੀਏ ਅਪਨਾ ਆਪੁ ਦ੍ਰਿਸਟਾਇਓ ॥੧॥
संतसंगि रंग तुम कीए अपना आपु द्रिसटाइओ ॥१॥
संतों के संग तुम ही आनंद करते हो और अपना आप प्रगट करते हो ॥१॥
ਨੈਨਹੁ ਸੰਗਿ ਸੰਤਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਚਰਨ ਝਾਰੀ ਕੇਸਾਇਓ ॥
नैनहु संगि संतन की सेवा चरन झारी केसाइओ ॥
इन नयनों से संतों की सेवा में तल्लीन हूँ और बालों से उनके ही चरण झाड़ता हूँ।
ਆਠ ਪਹਰ ਦਰਸਨੁ ਸੰਤਨ ਕਾ ਸੁਖੁ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਪਾਇਓ ॥੨॥੪੩॥੬੬॥
आठ पहर दरसनु संतन का सुखु नानक इहु पाइओ ॥२॥४३॥६६॥
हे नानक ! आठ प्रहर संतों का दर्शन यही परम सुख पाया है॥२॥४३॥ ६६॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਜਾ ਕੀ ਰਾਮ ਨਾਮ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
जा की राम नाम लिव लागी ॥
जिसकी परमात्मा के नाम में लगन लगी रहती है,
ਸਜਨੁ ਸੁਰਿਦਾ ਸੁਹੇਲਾ ਸਹਜੇ ਸੋ ਕਹੀਐ ਬਡਭਾਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सजनु सुरिदा सुहेला सहजे सो कहीऐ बडभागी ॥१॥ रहाउ ॥
दरअसल वही सज्जन, हमसफर, स्वाभाविक सुखी एवं भाग्यशाली माना जाता है॥१॥रहाउ॥।
ਰਹਿਤ ਬਿਕਾਰ ਅਲਪ ਮਾਇਆ ਤੇ ਅਹੰਬੁਧਿ ਬਿਖੁ ਤਿਆਗੀ ॥
रहित बिकार अलप माइआ ते अह्मबुधि बिखु तिआगी ॥
वह विकारों से रहित रहता है, मोह-माया से निर्लिप्त रहकर अहंकार बुद्धि के जहर को त्याग देता है।
ਦਰਸ ਪਿਆਸ ਆਸ ਏਕਹਿ ਕੀ ਟੇਕ ਹੀਐਂ ਪ੍ਰਿਅ ਪਾਗੀ ॥੧॥
दरस पिआस आस एकहि की टेक हीऐं प्रिअ पागी ॥१॥
प्रियतम के प्रेम में लीन हृदय केवल उसका ही आसरा चाहता है और उसके दर्शनों की प्यास ही मेरी आशा है॥ १ ॥
ਅਚਿੰਤ ਸੋਇ ਜਾਗਨੁ ਉਠਿ ਬੈਸਨੁ ਅਚਿੰਤ ਹਸਤ ਬੈਰਾਗੀ ॥
अचिंत सोइ जागनु उठि बैसनु अचिंत हसत बैरागी ॥
अब निश्चिंत होकर उठना, बैठना, जागना हो गया है और निश्चिंत होकर हँसते-खेलते हुए वैराग्यवान रहते हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਜਗਤੁ ਠਗਾਨਾ ਸੁ ਮਾਇਆ ਹਰਿ ਜਨ ਠਾਗੀ ॥੨॥੪੪॥੬੭॥
कहु नानक जिनि जगतु ठगाना सु माइआ हरि जन ठागी ॥२॥४४॥६७॥
हे नानक ! जिसने पूरे जगत को ठग लिया है, उस माया को हरि-भक्तों ने ठग लिया है ॥२॥४४॥६७॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਅਬ ਜਨ ਊਪਰਿ ਕੋ ਨ ਪੁਕਾਰੈ ॥
अब जन ऊपरि को न पुकारै ॥
अब इस सेवक के खिलाफ कोई दोषारोपण या शिकायत नहीं करता।
ਪੂਕਾਰਨ ਕਉ ਜੋ ਉਦਮੁ ਕਰਤਾ ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਤਾ ਕਉ ਮਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूकारन कउ जो उदमु करता गुरु परमेसरु ता कउ मारै ॥१॥ रहाउ ॥
जो भी शिकायत करने की कोशिश करता है, गुरु परमेश्वर उसे सजा देता है॥१॥रहाउ॥।
ਨਿਰਵੈਰੈ ਸੰਗਿ ਵੈਰੁ ਰਚਾਵੈ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਓਹੁ ਹਾਰੈ ॥
निरवैरै संगि वैरु रचावै हरि दरगह ओहु हारै ॥
जो सज्जनों के साथ शत्रुता करता है, वह ईश्वर के दरबार में हारता है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਜਨ ਕੀ ਪੈਜ ਸਵਾਰੈ ॥੧॥
आदि जुगादि प्रभ की वडिआई जन की पैज सवारै ॥१॥
युग-युग से प्रभु की कीर्ति है कि वह भक्तजनों की लाज बचाता आया है॥१॥
ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਸਗਲ ਭਉ ਮਿਟਿਆ ਚਰਨ ਕਮਲ ਆਧਾਰੈ ॥
निरभउ भए सगल भउ मिटिआ चरन कमल आधारै ॥
हर भय मिट गया है, निर्भय हो गए हैं और प्रभु के चरण कमल ही हमारा आसरा है।
ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਜਪਿਓ ਨਾਉ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਗਟ ਭਇਓ ਸੰਸਾਰੈ ॥੨॥੪੫॥੬੮॥
गुर कै बचनि जपिओ नाउ नानक प्रगट भइओ संसारै ॥२॥४५॥६८॥
नानक का कथन है कि गुरु के वचनों से नाम का जाप किया है और संसार में उसका नाम प्रख्यात हो गया है॥ २ ॥ ४५ ॥ ६८ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਹਰਿ ਜਨ ਛੋਡਿਆ ਸਗਲਾ ਆਪੁ ॥
हरि जन छोडिआ सगला आपु ॥
प्रभु-भक्त ने अहम्-भाव को बिल्कुल त्याग दिया है।
ਜਿਉ ਜਾਨਹੁ ਤਿਉ ਰਖਹੁ ਗੁਸਾਈ ਪੇਖਿ ਜੀਵਾਂ ਪਰਤਾਪੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिउ जानहु तिउ रखहु गुसाई पेखि जीवां परतापु ॥१॥ रहाउ ॥
हे मालिक ! ज्यों उचित समझते हो, त्यों ही हमें रखो, तुम्हारा यश देखकर ही जीवन पा रहे हैं।॥१॥रहाउ॥।
ਗੁਰ ਉਪਦੇਸਿ ਸਾਧ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਬਿਨਸਿਓ ਸਗਲ ਸੰਤਾਪੁ ॥
गुर उपदेसि साध की संगति बिनसिओ सगल संतापु ॥
गुरु के उपदेश व साधुओं की संगत में सारा दुख-संताप समाप्त हो गया है।
ਮਿਤ੍ਰ ਸਤ੍ਰ ਪੇਖਿ ਸਮਤੁ ਬੀਚਾਰਿਓ ਸਗਲ ਸੰਭਾਖਨ ਜਾਪੁ ॥੧॥
मित्र सत्र पेखि समतु बीचारिओ सगल स्मभाखन जापु ॥१॥
हमने मित्र एवं शत्रु को एक समान मानकर यही चिन्तन किया है कि सज्जनों से वार्तालाप ही जाप है॥१॥
ਤਪਤਿ ਬੁਝੀ ਸੀਤਲ ਆਘਾਨੇ ਸੁਨਿ ਅਨਹਦ ਬਿਸਮ ਭਏ ਬਿਸਮਾਦ ॥
तपति बुझी सीतल आघाने सुनि अनहद बिसम भए बिसमाद ॥
मेरी जलन बुझ गई है, मन शीतल व तृप्त हो गया है, अनाहद ध्वनि सुनकर विस्मित हो गया हूँ।
ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਸਾਚਾ ਪੂਰਨ ਪੂਰੇ ਨਾਦ ॥੨॥੪੬॥੬੯॥
अनदु भइआ नानक मनि साचा पूरन पूरे नाद ॥२॥४६॥६९॥
हे नानक ! पूर्ण नाम को सुनकर मन सच्चा व आनंदमय हो गया है॥ २॥ ४६ ॥ ६६ ॥