ਅਹੰਬੁਧਿ ਦੁਰਮਤਿ ਹੈ ਮੈਲੀ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭਵਜਲਿ ਫੇਰਾ ॥੩॥
अह्मबुधि दुरमति है मैली बिनु गुर भवजलि फेरा ॥३॥
अहम् से भरी हुई बुद्धि मलिन है, गुरु के बिना संसार-सागर का चक्र लगा रहता है॥३॥
ਹੋਮ ਜਗ ਜਪ ਤਪ ਸਭਿ ਸੰਜਮ ਤਟਿ ਤੀਰਥਿ ਨਹੀ ਪਾਇਆ ॥
होम जग जप तप सभि संजम तटि तीरथि नही पाइआ ॥
होम, यज्ञ, जप-तप, संयम एवं तट-तीर्थ से ईश्वर प्राप्त नहीं होता।
ਮਿਟਿਆ ਆਪੁ ਪਏ ਸਰਣਾਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਨਕ ਜਗਤੁ ਤਰਾਇਆ ॥੪॥੧॥੧੪॥
मिटिआ आपु पए सरणाई गुरमुखि नानक जगतु तराइआ ॥४॥१॥१४॥
नानक का फुरमान है कि यदि अहम्-भावना को मिटाकर गुरु की शरण में आया जाए तो जगत से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।॥४॥१॥१४॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਬਨ ਮਹਿ ਪੇਖਿਓ ਤ੍ਰਿਣ ਮਹਿ ਪੇਖਿਓ ਗ੍ਰਿਹਿ ਪੇਖਿਓ ਉਦਾਸਾਏ ॥
बन महि पेखिओ त्रिण महि पेखिओ ग्रिहि पेखिओ उदासाए ॥
वनों में देखा, तृण में ढूंढा, गृहस्थी एवं उदासीन में देखा,
ਦੰਡਧਾਰ ਜਟਧਾਰੈ ਪੇਖਿਓ ਵਰਤ ਨੇਮ ਤੀਰਥਾਏ ॥੧॥
दंडधार जटधारै पेखिओ वरत नेम तीरथाए ॥१॥
दण्डी, जटाधारी योगियों, व्रत, नियम एवं तीर्थों में उसे खोजा॥१॥
ਸੰਤਸੰਗਿ ਪੇਖਿਓ ਮਨ ਮਾਏਂ ॥
संतसंगि पेखिओ मन माएं ॥
मगर जब संतों का संग पाया तो उसे मन में ही देख लिया।
ਊਭ ਪਇਆਲ ਸਰਬ ਮਹਿ ਪੂਰਨ ਰਸਿ ਮੰਗਲ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऊभ पइआल सरब महि पूरन रसि मंगल गुण गाए ॥१॥ रहाउ ॥
आकाश-पाताल सबमें पूर्ण रूप से व्याप्त ईश्वर के ही गुण गाए हैं॥१॥ रहाउ॥
ਜੋਗ ਭੇਖ ਸੰਨਿਆਸੈ ਪੇਖਿਓ ਜਤਿ ਜੰਗਮ ਕਾਪੜਾਏ ॥
जोग भेख संनिआसै पेखिओ जति जंगम कापड़ाए ॥
योगियों, वेषधारी, सन्यासी, ब्रह्मचारी, दिगम्बर, कापड़िए के रूप में उसे ढूंढा,
ਤਪੀ ਤਪੀਸੁਰ ਮੁਨਿ ਮਹਿ ਪੇਖਿਓ ਨਟ ਨਾਟਿਕ ਨਿਰਤਾਏ ॥੨॥
तपी तपीसुर मुनि महि पेखिओ नट नाटिक निरताए ॥२॥
तपस्वी, तपीश्वर, मुनियों, नाट्य, नाटक, नृत्य में उसको खोजा॥२॥
ਚਹੁ ਮਹਿ ਪੇਖਿਓ ਖਟ ਮਹਿ ਪੇਖਿਓ ਦਸ ਅਸਟੀ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਾਏ ॥
चहु महि पेखिओ खट महि पेखिओ दस असटी सिम्रिताए ॥
चार वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों में उसकी खोज-पड़ताल की।
ਸਭ ਮਿਲਿ ਏਕੋ ਏਕੁ ਵਖਾਨਹਿ ਤਉ ਕਿਸ ਤੇ ਕਹਉ ਦੁਰਾਏ ॥੩॥
सभ मिलि एको एकु वखानहि तउ किस ते कहउ दुराए ॥३॥
सब ने मिलकर केवल उस एक का ही बखान किया है, तब वह किससे दूर कहा जा सकता है॥३॥
ਅਗਹ ਅਗਹ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਨਹ ਕੀਮ ਕੀਮ ਕੀਮਾਏ ॥
अगह अगह बेअंत सुआमी नह कीम कीम कीमाए ॥
परमात्मा अगम्य, अपहुँच, बेअंत है, उसकी कीमत को आंका नहीं जा सकता।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕੈ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ਜਿਹ ਘਟਿ ਪਰਗਟੀਆਏ ॥੪॥੨॥੧੫॥
जन नानक तिन कै बलि बलि जाईऐ जिह घटि परगटीआए ॥४॥२॥१५॥
जिसके दिल में ईश्वर प्रगट हो गया है, नानक तो उस पर बलिहारी जाता है।॥४॥२॥ १५॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਨਿਕਟਿ ਬੁਝੈ ਸੋ ਬੁਰਾ ਕਿਉ ਕਰੈ ॥
निकटि बुझै सो बुरा किउ करै ॥
ईश्वर को समीप माननेवाला किसी का बुरा कैसे कर सकता है ?
ਬਿਖੁ ਸੰਚੈ ਨਿਤ ਡਰਤਾ ਫਿਰੈ ॥
बिखु संचै नित डरता फिरै ॥
परन्तु पापों का जहर इकट्ठा करने वाला नित्य डरता रहता है।
ਹੈ ਨਿਕਟੇ ਅਰੁ ਭੇਦੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
है निकटे अरु भेदु न पाइआ ॥
ईश्वर निकट ही है, मगर इसका रहस्य प्राप्त नहीं होता,
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸਭ ਮੋਹੀ ਮਾਇਆ ॥੧॥
बिनु सतिगुर सभ मोही माइआ ॥१॥
वास्तव में सतगुरु के बिना सब लोग माया में मोहित रहते हैं।॥१॥
ਨੇੜੈ ਨੇੜੈ ਸਭੁ ਕੋ ਕਹੈ ॥
नेड़ै नेड़ै सभु को कहै ॥
हर साधारण व्यक्ति उसे निकट ही बताता है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭੇਦੁ ਵਿਰਲਾ ਕੋ ਲਹੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि भेदु विरला को लहै ॥१॥ रहाउ ॥
मगर कोई विरला ही गुरु से इस रहस्य को प्राप्त करता है।॥१॥ रहाउ॥
ਨਿਕਟਿ ਨ ਦੇਖੈ ਪਰ ਗ੍ਰਿਹਿ ਜਾਇ ॥
निकटि न देखै पर ग्रिहि जाइ ॥
जो उसे निकट नहीं देखते, वे पराये घर ही जाते हैं।
ਦਰਬੁ ਹਿਰੈ ਮਿਥਿਆ ਕਰਿ ਖਾਇ ॥
दरबु हिरै मिथिआ करि खाइ ॥
वे धन-दौलत छीनकर झूठा जीवन बिताते हैं।
ਪਈ ਠਗਉਰੀ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਨ ਜਾਨਿਆ ॥
पई ठगउरी हरि संगि न जानिआ ॥
वे माया में ठगकर ईश्वर को आस-पास नहीं समझते और
ਬਾਝੁ ਗੁਰੂ ਹੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨਿਆ ॥੨॥
बाझु गुरू है भरमि भुलानिआ ॥२॥
गुरु के बिना भ्रम में भूले रहते हैं।॥२॥
ਨਿਕਟਿ ਨ ਜਾਨੈ ਬੋਲੈ ਕੂੜੁ ॥
निकटि न जानै बोलै कूड़ु ॥
जो प्रभु को पास नहीं मानता, वह झूठ ही बोलता है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਮੂਠਾ ਹੈ ਮੂੜੁ ॥
माइआ मोहि मूठा है मूड़ु ॥
दरअसल मूर्ख व्यक्ति माया के मोह में ठगा हुआ है।
ਅੰਤਰਿ ਵਸਤੁ ਦਿਸੰਤਰਿ ਜਾਇ ॥
अंतरि वसतु दिसंतरि जाइ ॥
सच्ची वस्तु तो अन्तर्मन में ही है, मगर वह दूर-दूर जाकर ढूंढता है।
ਬਾਝੁ ਗੁਰੂ ਹੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇ ॥੩॥
बाझु गुरू है भरमि भुलाइ ॥३॥
गुरु बिना वह भ्रम में भूला हुआ है।॥३॥
ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਕਰਮੁ ਲਿਖਿਆ ਲਿਲਾਟ ॥
जिसु मसतकि करमु लिखिआ लिलाट ॥
जिसके भाग्य में लिखा होता है, वही सतगुरु की सेवा करता है और
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਖੁਲ੍ਹ੍ਹੇ ਕਪਾਟ ॥
सतिगुरु सेवे खुल्हे कपाट ॥
उसके मन के कपाट खुल जाते हैं।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਨਿਕਟੇ ਸੋਇ ॥
अंतरि बाहरि निकटे सोइ ॥
अन्तर-बाहर और समीप ईश्वर ही है,
ਜਨ ਨਾਨਕ ਆਵੈ ਨ ਜਾਵੈ ਕੋਇ ॥੪॥੩॥੧੬॥
जन नानक आवै न जावै कोइ ॥४॥३॥१६॥
हे नानक ! वह कहीं आता-जाता नहीं॥४॥३॥ १६॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਜਿਸੁ ਤੂ ਰਾਖਹਿ ਤਿਸੁ ਕਉਨੁ ਮਾਰੈ ॥
जिसु तू राखहि तिसु कउनु मारै ॥
हे प्रभु ! जिसे तू बचाने वाला है, उसे भला कौन मार सकता है?
ਸਭ ਤੁਝ ਹੀ ਅੰਤਰਿ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰੈ ॥
सभ तुझ ही अंतरि सगल संसारै ॥
समूचा संसार तेरे अधीन है।
ਕੋਟਿ ਉਪਾਵ ਚਿਤਵਤ ਹੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥
कोटि उपाव चितवत है प्राणी ॥
प्राणी बेशक कितने ही उपाय सोचता रहता है,
ਸੋ ਹੋਵੈ ਜਿ ਕਰੈ ਚੋਜ ਵਿਡਾਣੀ ॥੧॥
सो होवै जि करै चोज विडाणी ॥१॥
मगर होता वही है, जो परमात्मा करता है॥१॥
ਰਾਖਹੁ ਰਾਖਹੁ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥
राखहु राखहु किरपा धारि ॥
हे भगवान! कृपा कर के रक्षा करो,
ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਤੇਰੈ ਦਰਵਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरी सरणि तेरै दरवारि ॥१॥ रहाउ ॥
हम तेरे दरबार में तेरी शरण आए हैं॥१॥रहाउ॥
ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਨਿਰਭਉ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
जिनि सेविआ निरभउ सुखदाता ॥
जिसने सुखदाता निर्भय प्रभु की उपासना की है,
ਤਿਨਿ ਭਉ ਦੂਰਿ ਕੀਆ ਏਕੁ ਪਰਾਤਾ ॥
तिनि भउ दूरि कीआ एकु पराता ॥
उसका भय दूर हो गया है और उसने एक ब्रह्म को पहचान लिया है।
ਜੋ ਤੂ ਕਰਹਿ ਸੋਈ ਫੁਨਿ ਹੋਇ ॥
जो तू करहि सोई फुनि होइ ॥
हे परब्रह्म ! जो तू करता है, वही होता है,
ਮਾਰੈ ਨ ਰਾਖੈ ਦੂਜਾ ਕੋਇ ॥੨॥
मारै न राखै दूजा कोइ ॥२॥
तेरे अतिरिक्त कोई दूसरा मारने अथवा बचाने वाला नहीं॥२॥
ਕਿਆ ਤੂ ਸੋਚਹਿ ਮਾਣਸ ਬਾਣਿ ॥
किआ तू सोचहि माणस बाणि ॥
हे मनुष्य ! स्वभावानुसार तू क्या सोचता है?
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥
अंतरजामी पुरखु सुजाणु ॥
अन्तर्यामी प्रभु बड़ा समझदार है।
ਏਕ ਟੇਕ ਏਕੋ ਆਧਾਰੁ ॥
एक टेक एको आधारु ॥
केवल वही हमारा आसरा है और एकमात्र वही सबका आधार है,
ਸਭ ਕਿਛੁ ਜਾਣੈ ਸਿਰਜਣਹਾਰੁ ॥੩॥
सभ किछु जाणै सिरजणहारु ॥३॥
वह सृजनहार सब कुछ जानता है॥३॥
ਜਿਸੁ ਊਪਰਿ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਕਰਤਾਰੁ ॥
जिसु ऊपरि नदरि करे करतारु ॥
जिस पर ईश्वर मेहर करता है,