Hindi Page 486

ਰਾਮ ਰਸਾਇਨ ਪੀਓ ਰੇ ਦਗਰਾ ॥੩॥੪॥
राम रसाइन पीओ रे दगरा ॥३॥४॥
हे दगावाज ! राम-नाम रूपी अमृत का पान कर॥ ३॥ ४॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜਿ ਚੀਨੑਸੀ ਆਸਾ ਤੇ ਨ ਭਾਵਸੀ ॥
पारब्रहमु जि चीन्हसी आसा ते न भावसी ॥
जो आदमी पारब्रह्म को पहचान लेता है, उसे अन्य आशाएँ अच्छी नहीं लगती।

ਰਾਮਾ ਭਗਤਹ ਚੇਤੀਅਲੇ ਅਚਿੰਤ ਮਨੁ ਰਾਖਸੀ ॥੧॥
रामा भगतह चेतीअले अचिंत मनु राखसी ॥१॥
जो भक्त राम की भक्ति को मन में याद करता है, राम उसे चिंता से बचाकर रखता है॥ १॥

ਕੈਸੇ ਮਨ ਤਰਹਿਗਾ ਰੇ ਸੰਸਾਰੁ ਸਾਗਰੁ ਬਿਖੈ ਕੋ ਬਨਾ ॥
कैसे मन तरहिगा रे संसारु सागरु बिखै को बना ॥
हे मेरे मन ! तुम विषय-विकारों के जल से भरे हुए संसार-सागर को कैसे पार करोगे ?

ਝੂਠੀ ਮਾਇਆ ਦੇਖਿ ਕੈ ਭੂਲਾ ਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
झूठी माइआ देखि कै भूला रे मना ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे मन ! मिथ्या सांसारिक पदार्थों को देख कर तुम कुमार्गगामी हो गए हो।॥ १॥ रहाउ॥

ਛੀਪੇ ਕੇ ਘਰਿ ਜਨਮੁ ਦੈਲਾ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੁ ਭੈਲਾ ॥
छीपे के घरि जनमु दैला गुर उपदेसु भैला ॥
हे प्रभु ! तूने चाहे मुझे छीपी के घर में जन्म प्रदान किया है परन्तु गुरु का उपदेश मुझे मिल गया है।

ਸੰਤਹ ਕੈ ਪਰਸਾਦਿ ਨਾਮਾ ਹਰਿ ਭੇਟੁਲਾ ॥੨॥੫॥
संतह कै परसादि नामा हरि भेटुला ॥२॥५॥
संतजनों की कृपा से नामदेव को हरि मिल गया है॥ २ ॥ ५ ॥

ਆਸਾ ਬਾਣੀ ਸ੍ਰੀ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀਉ ਕੀ
आसा बाणी स्री रविदास जीउ की
आसा बाणी श्री रविदास जीउ की

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਮ੍ਰਿਗ ਮੀਨ ਭ੍ਰਿੰਗ ਪਤੰਗ ਕੁੰਚਰ ਏਕ ਦੋਖ ਬਿਨਾਸ ॥
म्रिग मीन भ्रिंग पतंग कुंचर एक दोख बिनास ॥
मृग , मछली, भँवरा, पतंगा एवं हाथी सभी का एक दोष के फलस्वरुप विनाश हो जाता है।

ਪੰਚ ਦੋਖ ਅਸਾਧ ਜਾ ਮਹਿ ਤਾ ਕੀ ਕੇਤਕ ਆਸ ॥੧॥
पंच दोख असाध जा महि ता की केतक आस ॥१॥
जिस व्यक्ति के भीतर पाँच असाध्य दोष विद्यमान हैं, उसकी क्या आशा की जा सकती है? ॥ १॥

ਮਾਧੋ ਅਬਿਦਿਆ ਹਿਤ ਕੀਨ ॥
माधो अबिदिआ हित कीन ॥
हे माधो ! मनुष्य का प्रेम अविद्या से है।

ਬਿਬੇਕ ਦੀਪ ਮਲੀਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिबेक दीप मलीन ॥१॥ रहाउ ॥
उसके विवेक का दीपक मैला हो गया है॥ १॥ रहाउ॥

ਤ੍ਰਿਗਦ ਜੋਨਿ ਅਚੇਤ ਸੰਭਵ ਪੁੰਨ ਪਾਪ ਅਸੋਚ ॥
त्रिगद जोनि अचेत स्मभव पुंन पाप असोच ॥
तिर्यग्योनि तो अचेत (विचारहीन) है तथा पुण्य एवं पाप के बारे में सोचना उनके लिए संभव नहीं।

ਮਾਨੁਖਾ ਅਵਤਾਰ ਦੁਲਭ ਤਿਹੀ ਸੰਗਤਿ ਪੋਚ ॥੨॥
मानुखा अवतार दुलभ तिही संगति पोच ॥२॥
मानव जन्म बहुत दुर्लभ है परन्तु इसकी संगति भी नीच है अर्थात् वह कामादिक विकारों से संलग्न रहता है॥ २॥

ਜੀਅ ਜੰਤ ਜਹਾ ਜਹਾ ਲਗੁ ਕਰਮ ਕੇ ਬਸਿ ਜਾਇ ॥
जीअ जंत जहा जहा लगु करम के बसि जाइ ॥
जीव-जन्तु जहाँ कहीं भी हैं, वे अपने पूर्व जन्म के कर्मो अनुसार जन्म लेते हैं।

ਕਾਲ ਫਾਸ ਅਬਧ ਲਾਗੇ ਕਛੁ ਨ ਚਲੈ ਉਪਾਇ ॥੩॥
काल फास अबध लागे कछु न चलै उपाइ ॥३॥
काल की फाँसी अचूक है, उससे बचने का कोई उपाय नहीं ॥ ३॥

ਰਵਿਦਾਸ ਦਾਸ ਉਦਾਸ ਤਜੁ ਭ੍ਰਮੁ ਤਪਨ ਤਪੁ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ॥
रविदास दास उदास तजु भ्रमु तपन तपु गुर गिआन ॥
हे दास रविदास ! तू विरक्त होकर अपना भ्रम त्याग दे और गुरु के ज्ञान की तपस्या कर।

ਭਗਤ ਜਨ ਭੈ ਹਰਨ ਪਰਮਾਨੰਦ ਕਰਹੁ ਨਿਦਾਨ ॥੪॥੧॥
भगत जन भै हरन परमानंद करहु निदान ॥४॥१॥
हे भक्तजनों के भय नाश करने वाले परमानंद प्रभु ! आप ही कुछ निदान कीजिए॥ ४॥ १॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਸੰਤ ਤੁਝੀ ਤਨੁ ਸੰਗਤਿ ਪ੍ਰਾਨ ॥
संत तुझी तनु संगति प्रान ॥
हे देवाधिदेव ! संतजन तेरा तन है और उनकी संगति प्राण है।

ਸਤਿਗੁਰ ਗਿਆਨ ਜਾਨੈ ਸੰਤ ਦੇਵਾ ਦੇਵ ॥੧॥
सतिगुर गिआन जानै संत देवा देव ॥१॥
सतिगुरु के ज्ञान द्वारा मैंने उन संतजनों को जान लिया है॥ १॥

ਸੰਤ ਚੀ ਸੰਗਤਿ ਸੰਤ ਕਥਾ ਰਸੁ ॥ ਸੰਤ ਪ੍ਰੇਮ ਮਾਝੈ ਦੀਜੈ ਦੇਵਾ ਦੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संत ची संगति संत कथा रसु ॥ संत प्रेम माझै दीजै देवा देव ॥१॥ रहाउ ॥
संतजनों की संगति, संतजनों की कथा का रस एवं संतजनों का प्रेम प्रदान कीजिए, हे देवों के देव ! ॥ १॥ रहाउ॥

ਸੰਤ ਆਚਰਣ ਸੰਤ ਚੋ ਮਾਰਗੁ ਸੰਤ ਚ ਓਲ੍ਹਗ ਓਲ੍ਹਗਣੀ ॥੨॥
संत आचरण संत चो मारगु संत च ओल्हग ओल्हगणी ॥२॥
हे देवाधिदेव ! संतजनों का आचरण, संतजनों का मार्ग एवं संतजनों के सेवकों की सेवा मुझे प्रदान कीजिए॥ २॥

ਅਉਰ ਇਕ ਮਾਗਉ ਭਗਤਿ ਚਿੰਤਾਮਣਿ ॥
अउर इक मागउ भगति चिंतामणि ॥
हे प्रभु ! मैं तुझसे एक अन्य दान मांगता हूँ। दया करके मुझे भक्ति की चिंतामणि प्रदान करें।

ਜਣੀ ਲਖਾਵਹੁ ਅਸੰਤ ਪਾਪੀ ਸਣਿ ॥੩॥
जणी लखावहु असंत पापी सणि ॥३॥
मुझे दुष्ट एवं पापी लोगों के दर्शन मत करवाना॥ ३॥

ਰਵਿਦਾਸੁ ਭਣੈ ਜੋ ਜਾਣੈ ਸੋ ਜਾਣੁ ॥
रविदासु भणै जो जाणै सो जाणु ॥
रविदास कहता है कि वास्तव में बुद्धिमान-ज्ञानी वही है जो जानता है कि

ਸੰਤ ਅਨੰਤਹਿ ਅੰਤਰੁ ਨਾਹੀ ॥੪॥੨॥
संत अनंतहि अंतरु नाही ॥४॥२॥
संत एवं भगवान में कोई अन्तर नहीं ॥ ४॥ २॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਤੁਮ ਚੰਦਨ ਹਮ ਇਰੰਡ ਬਾਪੁਰੇ ਸੰਗਿ ਤੁਮਾਰੇ ਬਾਸਾ ॥
तुम चंदन हम इरंड बापुरे संगि तुमारे बासा ॥
हे परमात्मा ! तुम चंदन हो और हम बेचारे एरंड का पेड़ हैं परन्तु तुम्हारी संगति में रहते हैं,

ਨੀਚ ਰੂਖ ਤੇ ਊਚ ਭਏ ਹੈ ਗੰਧ ਸੁਗੰਧ ਨਿਵਾਸਾ ॥੧॥
नीच रूख ते ऊच भए है गंध सुगंध निवासा ॥१॥
जिससे एक नीच पेड़ से ऊँचे (श्रेष्ठ) हो गए हैं। तेरी मीठी सुगन्ध हमारे भीतर निवास करती है॥ १॥

ਮਾਧਉ ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਰਨਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥
माधउ सतसंगति सरनि तुम्हारी ॥
हे माधव ! हमने तेरी सत्संगति की शरण ली है।

ਹਮ ਅਉਗਨ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਉਪਕਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हम अउगन तुम्ह उपकारी ॥१॥ रहाउ ॥
हम अवगुणी हैं और तुम उपकारी हो॥ १॥ रहाउ॥

ਤੁਮ ਮਖਤੂਲ ਸੁਪੇਦ ਸਪੀਅਲ ਹਮ ਬਪੁਰੇ ਜਸ ਕੀਰਾ ॥
तुम मखतूल सुपेद सपीअल हम बपुरे जस कीरा ॥
तुम सफेद एवं पीले रेशम का धागा हो और हम बेचारे कीड़े की भाँति हैं।

ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਰਹੀਐ ਮਾਧਉ ਜੈਸੇ ਮਧੁਪ ਮਖੀਰਾ ॥੨॥
सतसंगति मिलि रहीऐ माधउ जैसे मधुप मखीरा ॥२॥
हे माधव ! हम सत्संगति में ऐसे मिले रहें जैसे मधुमक्खियाँ शहद के छते से मिली रहती हैं।॥ २॥

ਜਾਤੀ ਓਛਾ ਪਾਤੀ ਓਛਾ ਓਛਾ ਜਨਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥
जाती ओछा पाती ओछा ओछा जनमु हमारा ॥
हमारी जाति-पाति ओछी (नीच) है और जन्म भी ओछा (नीच) है।

ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਕੀ ਸੇਵ ਨ ਕੀਨੀ ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਚਮਾਰਾ ॥੩॥੩॥
राजा राम की सेव न कीनी कहि रविदास चमारा ॥३॥३॥
रविदास चमार कहता है कि सब कुछ ओछा (नीच) होने के साथ ही हमने राजा राम की सेवा-भक्ति भी नहीं की॥ ३॥ ३॥

ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥

ਕਹਾ ਭਇਓ ਜਉ ਤਨੁ ਭਇਓ ਛਿਨੁ ਛਿਨੁ ॥
कहा भइओ जउ तनु भइओ छिनु छिनु ॥
हे प्रभु ! तो क्या हुआ ? यदि मेरे तन के टुकड़े-टुकड़े भी हो जाएँ, मुझे कोई भय नहीं।

ਪ੍ਰੇਮੁ ਜਾਇ ਤਉ ਡਰਪੈ ਤੇਰੋ ਜਨੁ ॥੧॥
प्रेमु जाइ तउ डरपै तेरो जनु ॥१॥
तेरे सेवक को तो यही भय है कि कहीं तेरा प्रेम दूर न हो जाए॥ १॥

ਤੁਝਹਿ ਚਰਨ ਅਰਬਿੰਦ ਭਵਨ ਮਨੁ ॥
तुझहि चरन अरबिंद भवन मनु ॥
तेरे चरण-कमल ही मेरे मन का भवन है।

ਪਾਨ ਕਰਤ ਪਾਇਓ ਪਾਇਓ ਰਾਮਈਆ ਧਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पान करत पाइओ पाइओ रामईआ धनु ॥१॥ रहाउ ॥
तेरे नामामृत का पान करने से मुझे राम-धन प्राप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ॥

ਸੰਪਤਿ ਬਿਪਤਿ ਪਟਲ ਮਾਇਆ ਧਨੁ ॥
स्मपति बिपति पटल माइआ धनु ॥
संपति, विपत्ति, माया एवं धन इत्यादि सभी छल-कपट ही हैं।

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