ਤਿਨ ਸਿਉ ਰਾਚਿ ਮਾਚਿ ਹਿਤੁ ਲਾਇਓ ਜੋ ਕਾਮਿ ਨਹੀ ਗਾਵਾਰੀ ॥੧॥
तिन सिउ राचि माचि हितु लाइओ जो कामि नही गावारी ॥१॥
मनुष्य उनके साथ प्रेम लगाकर घुला-मिला रहता है, जो मूर्ख बिल्कुल काम नहीं आते ॥१॥
ਹਉ ਨਾਹੀ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਮੇਰਾ ਨਾ ਹਮਰੋ ਬਸੁ ਚਾਰੀ ॥
हउ नाही नाही किछु मेरा ना हमरो बसु चारी ॥
मैं कुछ भी नहीं, न ही मेरा कुछ अपना है और हमारा कोई वश नहीं चल सकता।
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਸੰਤਨ ਸੰਗਿ ਉਧਾਰੀ ॥੨॥੩੬॥੫੯॥
करन करावन नानक के प्रभ संतन संगि उधारी ॥२॥३६॥५९॥
हे नानक के प्रभु ! तू ही सब करने करवाने वाला है और संतों की संगत में ही उद्धार होता है॥ २ ॥ ३६ ॥ ५६ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮੋਹਨੀ ਮੋਹਤ ਰਹੈ ਨ ਹੋਰੀ ॥
मोहनी मोहत रहै न होरी ॥
मोहिनी माया पूरे संसार को मोहित करती है और किसी के रोकने पर भी नहीं रुकती।
ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਸਗਲ ਕੀ ਪਿਆਰੀ ਤੁਟੈ ਨ ਕਾਹੂ ਤੋਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधिक सिध सगल की पिआरी तुटै न काहू तोरी ॥१॥ रहाउ ॥
साधक, सिद्ध पुरुषों सबकी प्राण प्यारी है और किसी के तोड़ने पर भी नहीं टूटती ॥१॥रहाउ॥।
ਖਟੁ ਸਾਸਤ੍ਰ ਉਚਰਤ ਰਸਨਾਗਰ ਤੀਰਥ ਗਵਨ ਨ ਥੋਰੀ ॥
खटु सासत्र उचरत रसनागर तीरथ गवन न थोरी ॥
जिव्हा से छ: शास्त्रों का उच्चारण करने या तीर्थ यात्रा करने पर भी इसका प्रभाव कम नहीं होता।
ਪੂਜਾ ਚਕ੍ਰ ਬਰਤ ਨੇਮ ਤਪੀਆ ਊਹਾ ਗੈਲਿ ਨ ਛੋਰੀ ॥੧॥
पूजा चक्र बरत नेम तपीआ ऊहा गैलि न छोरी ॥१॥
पूजा करने वाले, माथे पर तिलक लगाने वाले, व्रत-उपवास, नियम धारण करने वाले तथा तपस्वियों का भी यह साथ नहीं छोड़ती॥१॥
ਅੰਧ ਕੂਪ ਮਹਿ ਪਤਿਤ ਹੋਤ ਜਗੁ ਸੰਤਹੁ ਕਰਹੁ ਪਰਮ ਗਤਿ ਮੋਰੀ ॥
अंध कूप महि पतित होत जगु संतहु करहु परम गति मोरी ॥
यह जगत अज्ञान के अंधे कुएं में गिरकर पतित हो रहा है। हे संत पुरुषो ! मेरी परमगति कर दो।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਨਾਨਕੁ ਭਇਓ ਮੁਕਤਾ ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਤ ਭੋਰੀ ॥੨॥੩੭॥੬੦॥
साधसंगति नानकु भइओ मुकता दरसनु पेखत भोरी ॥२॥३७॥६०॥
नानक फुरमाते हैं कि सच्चे साधुओं की संगत में किंचित दर्शन मात्र से मुक्ति प्राप्त हो जाती है॥२॥ ३७ ॥ ६० ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਕਹਾ ਕਰਹਿ ਰੇ ਖਾਟਿ ਖਾਟੁਲੀ ॥
कहा करहि रे खाटि खाटुली ॥
हे प्राणी ! धन-दौलत कमा कर तू क्या कर रहा है?
ਪਵਨਿ ਅਫਾਰ ਤੋਰ ਚਾਮਰੋ ਅਤਿ ਜਜਰੀ ਤੇਰੀ ਰੇ ਮਾਟੁਲੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पवनि अफार तोर चामरो अति जजरी तेरी रे माटुली ॥१॥ रहाउ ॥
तेरा शरीर हवा से भर कर फूल गया है और देह रूपी तेरी मटकी बहुत पुरानी हो गई है॥१॥रहाउ॥।
ਊਹੀ ਤੇ ਹਰਿਓ ਊਹਾ ਲੇ ਧਰਿਓ ਜੈਸੇ ਬਾਸਾ ਮਾਸ ਦੇਤ ਝਾਟੁਲੀ ॥
ऊही ते हरिओ ऊहा ले धरिओ जैसे बासा मास देत झाटुली ॥
जैसे बाज मॉस को झपट कर ले जाता है, उसी तरह तुम धन को छीनकर किसी अन्य जगह रख देते हो।
ਦੇਵਨਹਾਰੁ ਬਿਸਾਰਿਓ ਅੰਧੁਲੇ ਜਿਉ ਸਫਰੀ ਉਦਰੁ ਭਰੈ ਬਹਿ ਹਾਟੁਲੀ ॥੧॥
देवनहारु बिसारिओ अंधुले जिउ सफरी उदरु भरै बहि हाटुली ॥१॥
हे अंधे ! तुझे देने वाला परमात्मा भूल गया है, जैसे यात्री दुकान में बैठकर अपना पेट भर लेता है, मगर खाना देने वाले को भुला देता है॥१॥
ਸਾਦ ਬਿਕਾਰ ਬਿਕਾਰ ਝੂਠ ਰਸ ਜਹ ਜਾਨੋ ਤਹ ਭੀਰ ਬਾਟੁਲੀ ॥
साद बिकार बिकार झूठ रस जह जानो तह भीर बाटुली ॥
तू विकारों के स्वाद एवं झूठ रसों में ही मस्त है, जहाँ जाना है, वह रास्ता बहुत मुश्किल है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਮਝੁ ਰੇ ਇਆਨੇ ਆਜੁ ਕਾਲਿ ਖੁਲ੍ਹ੍ਹੈ ਤੇਰੀ ਗਾਂਠੁਲੀ ॥੨॥੩੮॥੬੧॥
कहु नानक समझु रे इआने आजु कालि खुल्है तेरी गांठुली ॥२॥३८॥६१॥
नानक कहते हैं कि हे मूर्ख ! इस तथ्य को समझ लो, आज अथवा कल तेरी मौत निश्चय है ॥२॥ ३८ ॥ ६१ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਗੁਰ ਜੀਉ ਸੰਗਿ ਤੁਹਾਰੈ ਜਾਨਿਓ ॥
गुर जीउ संगि तुहारै जानिओ ॥
हे गुरु ! तुम्हारी संगत में परम सत्य को जाना है।
ਕੋਟਿ ਜੋਧ ਉਆ ਕੀ ਬਾਤ ਨ ਪੁਛੀਐ ਤਾਂ ਦਰਗਹ ਭੀ ਮਾਨਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कोटि जोध उआ की बात न पुछीऐ तां दरगह भी मानिओ ॥१॥ रहाउ ॥
करोड़ों योद्धा घूम रहे हैं, कोई उनकी बात नहीं पूछता तो तूने ही प्रभु-दरबार में यश दिलवाया है॥१॥रहाउ॥।
ਕਵਨ ਮੂਲੁ ਪ੍ਰਾਨੀ ਕਾ ਕਹੀਐ ਕਵਨ ਰੂਪੁ ਦ੍ਰਿਸਟਾਨਿਓ ॥
कवन मूलु प्रानी का कहीऐ कवन रूपु द्रिसटानिओ ॥
यह कैसे बताया जाए कि प्राणी का मूल क्या है, किस रूप में दृष्टिगत होता है।
ਜੋਤਿ ਪ੍ਰਗਾਸ ਭਈ ਮਾਟੀ ਸੰਗਿ ਦੁਲਭ ਦੇਹ ਬਖਾਨਿਓ ॥੧॥
जोति प्रगास भई माटी संगि दुलभ देह बखानिओ ॥१॥
जब मिट्टी रूपी शरीर में प्राण-ज्योति का आलोक हो गया तो इसे दुर्लभ देह कहा जाने लगा ॥१॥
ਤੁਮ ਤੇ ਸੇਵ ਤੁਮ ਤੇ ਜਪ ਤਾਪਾ ਤੁਮ ਤੇ ਤਤੁ ਪਛਾਨਿਓ ॥
तुम ते सेव तुम ते जप तापा तुम ते ततु पछानिओ ॥
हे सद्गुरु ! तुम्हीं से सेवा, जप-तप और सार-तत्व को समझा है।
ਕਰੁ ਮਸਤਕਿ ਧਰਿ ਕਟੀ ਜੇਵਰੀ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਸਾਨਿਓ ॥੨॥੩੯॥੬੨॥
करु मसतकि धरि कटी जेवरी नानक दास दसानिओ ॥२॥३९॥६२॥
नानक का कथन है कि मुझ दासानुदास के मस्तक पर हाथ धरकर तूने मौत की जंजीर काट दी है॥२॥ ३६॥ ६२॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਦੀਓ ਸੇਵਕ ਕਉ ਨਾਮ ॥
हरि हरि दीओ सेवक कउ नाम ॥
ईश्वर ने सेवक को नाम-स्मरण दिया है।
ਮਾਨਸੁ ਕਾ ਕੋ ਬਪੁਰੋ ਭਾਈ ਜਾ ਕੋ ਰਾਖਾ ਰਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मानसु का को बपुरो भाई जा को राखा राम ॥१॥ रहाउ ॥
हे भाई ! जिसको बचाने वाला खुद परमात्मा है, फिर मनुष्य भला उसका क्या बिगाड़ सकता है।॥१॥रहाउ॥।
ਆਪਿ ਮਹਾ ਜਨੁ ਆਪੇ ਪੰਚਾ ਆਪਿ ਸੇਵਕ ਕੈ ਕਾਮ ॥
आपि महा जनु आपे पंचा आपि सेवक कै काम ॥
वह स्वयं ही प्रधान है, स्वयं ही पंच है और वह स्वयं ही सेवक के कार्य सम्पन्न करता है।
ਆਪੇ ਸਗਲੇ ਦੂਤ ਬਿਦਾਰੇ ਠਾਕੁਰ ਅੰਤਰਜਾਮ ॥੧॥
आपे सगले दूत बिदारे ठाकुर अंतरजाम ॥१॥
उस अन्तर्यामी मालिक ने स्वयं ही सब दुष्टों को खत्म कर दिया है॥ १॥
ਆਪੇ ਪਤਿ ਰਾਖੀ ਸੇਵਕ ਕੀ ਆਪਿ ਕੀਓ ਬੰਧਾਨ ॥
आपे पति राखी सेवक की आपि कीओ बंधान ॥
उसने स्वयं ही अपने सेवक की प्रतिष्ठा बचाई है और स्वयं ही स्थिरता प्रदान की है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਸੇਵਕ ਕੀ ਰਾਖੈ ਨਾਨਕ ਕੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਨ ॥੨॥੪੦॥੬੩॥
आदि जुगादि सेवक की राखै नानक को प्रभु जान ॥२॥४०॥६३॥
हे नानक ! इस तथ्य को जान लो कि युग-युग से प्रभु अपने भक्तों की रक्षा कर रहा है॥ २ ॥ ४० ॥ ६३ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਤੂ ਮੇਰੇ ਮੀਤ ਸਖਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਾਨ ॥
तू मेरे मीत सखा हरि प्रान ॥
हे पिता परमेश्वर ! तू ही मेरा मित्र, हितैषी एवं प्राण है।
ਮਨੁ ਧਨੁ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤੁਮਰਾ ਇਹੁ ਤਨੁ ਸੀਤੋ ਤੁਮਰੈ ਧਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनु धनु जीउ पिंडु सभु तुमरा इहु तनु सीतो तुमरै धान ॥१॥ रहाउ ॥
यह आत्मा, शरीर, मन एवं धन सब तुम्हारा है और तुम्हीं ने यह शरीर बनाकर दिया है॥१॥रहाउ॥।
ਤੁਮ ਹੀ ਦੀਏ ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰਾ ਤੁਮ ਹੀ ਦੀਏ ਮਾਨ ॥
तुम ही दीए अनिक प्रकारा तुम ही दीए मान ॥
तुम्हीं ने अनेक प्रकार की चीजें प्रदान की हैं, तुम्हीं ने मान-प्रतिष्ठा प्रदान की है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੁਮ ਹੀ ਪਤਿ ਰਾਖਹੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜਾਨ ॥੧॥
सदा सदा तुम ही पति राखहु अंतरजामी जान ॥१॥
हे अन्तर्यामी ! सर्वदा तू ही हमारी लाज रखता है॥१॥