ਚਮਤਕਾਰ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਦਹ ਦਿਸ ਏਕੁ ਤਹ ਦ੍ਰਿਸਟਾਇਆ ॥
चमतकार प्रगासु दह दिस एकु तह द्रिसटाइआ ॥
एक प्रभु का चमत्कार एवं प्रकाश वह दसों दिशाओं में देखते हैं।
ਨਾਨਕੁ ਪਇਅੰਪੈ ਚਰਣ ਜੰਪੈ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਹਰਿ ਬਿਰਦੁ ਆਪਿ ਬਨਾਇਆ ॥੪॥੩॥੬॥
नानकु पइअंपै चरण ज्मपै भगति वछलु हरि बिरदु आपि बनाइआ ॥४॥३॥६॥
नानक वन्दना करता है कि मैं प्रभु के चरणों की आराधना करता हूँ।प्रभु ने भक्त वत्सल होने का अपना विरद् आप बनाया है॥ ४॥ ३॥ ६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਥਿਰੁ ਸੰਤਨ ਸੋਹਾਗੁ ਮਰੈ ਨ ਜਾਵਏ ॥
थिरु संतन सोहागु मरै न जावए ॥
संतजनों का सुहाग ईश्वर सदैव स्थिर है क्योंकि वह न ही मरता है और न ही कहीं जाता है।
ਜਾ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਹਰਿ ਨਾਹੁ ਸੁ ਸਦ ਹੀ ਰਾਵਏ ॥
जा कै ग्रिहि हरि नाहु सु सद ही रावए ॥
जिसके हृदय घर में प्रभु-पति बसता है, वह सदा ही उसके साथ रमण करती है।
ਅਵਿਨਾਸੀ ਅਵਿਗਤੁ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਨਵਤਨੁ ਨਿਰਮਲਾ ॥
अविनासी अविगतु सो प्रभु सदा नवतनु निरमला ॥
वह प्रभु अविनाशी एवं अविगत है और वह सदैव नूतन एवं निर्मल है।
ਨਹ ਦੂਰਿ ਸਦਾ ਹਦੂਰਿ ਠਾਕੁਰੁ ਦਹ ਦਿਸ ਪੂਰਨੁ ਸਦ ਸਦਾ ॥
नह दूरि सदा हदूरि ठाकुरु दह दिस पूरनु सद सदा ॥
ठाकुर कहीं दूर नहीं अपितु सदा आसपास है और वह सदैव ही दसों दिशाओं में मौजूद है।
ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਗਤਿ ਮਤਿ ਜਾ ਤੇ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਭਾਵਏ ॥
प्रानपति गति मति जा ते प्रिअ प्रीति प्रीतमु भावए ॥
उस प्राणपति से मुक्ति एवं सुमति प्राप्त होती है। मुझे प्रियतम की प्रीति प्रिय लगती है।
ਨਾਨਕੁ ਵਖਾਣੈ ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਜਾਣੈ ਥਿਰੁ ਸੰਤਨ ਸੋਹਾਗੁ ਮਰੈ ਨ ਜਾਵਏ ॥੧॥
नानकु वखाणै गुर बचनि जाणै थिरु संतन सोहागु मरै न जावए ॥१॥
नानक वही बखान करता है जो उसने गुरु के वचन से समझा है। संतजनों का सुहाग (प्रभु) अटल है क्योंकि वह न ही मरता है और न ही कहीं जाता है॥ १॥
ਜਾ ਕਉ ਰਾਮ ਭਤਾਰੁ ਤਾ ਕੈ ਅਨਦੁ ਘਣਾ ॥
जा कउ राम भतारु ता कै अनदु घणा ॥
जिसका पति राम है, वह अत्यंत आनंद प्राप्त करती है।
ਸੁਖਵੰਤੀ ਸਾ ਨਾਰਿ ਸੋਭਾ ਪੂਰਿ ਬਣਾ ॥
सुखवंती सा नारि सोभा पूरि बणा ॥
वही नारी सुखवंती है और उसी की पूरी शोभा बनती है।
ਮਾਣੁ ਮਹਤੁ ਕਲਿਆਣੁ ਹਰਿ ਜਸੁ ਸੰਗਿ ਸੁਰਜਨੁ ਸੋ ਪ੍ਰਭੂ ॥
माणु महतु कलिआणु हरि जसु संगि सुरजनु सो प्रभू ॥
हरि का यशगान करके वह आदर, सुख एवं कल्याण प्राप्त कर लेती है। वह चतुर प्रभु सदा उसके साथ है।
ਸਰਬ ਸਿਧਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਤਿਤੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਨਹੀ ਊਨਾ ਸਭੁ ਕਛੂ ॥
सरब सिधि नव निधि तितु ग्रिहि नही ऊना सभु कछू ॥
सर्व सिद्धियाँ एवं नवनिधियाँ उसके पास हैं। उसके घर में कोई कमी नहीं अपितु सब कुछ उसके पास है।
ਮਧੁਰ ਬਾਨੀ ਪਿਰਹਿ ਮਾਨੀ ਥਿਰੁ ਸੋਹਾਗੁ ਤਾ ਕਾ ਬਣਾ ॥
मधुर बानी पिरहि मानी थिरु सोहागु ता का बणा ॥
प्रियतम-प्रभु द्वारा आदर दिए जाने के कारण उसकी मधुरवाणी हो जाती है और उसका सुहाग भी स्थिर रहता है।
ਨਾਨਕੁ ਵਖਾਣੈ ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਜਾਣੈ ਜਾ ਕੋ ਰਾਮੁ ਭਤਾਰੁ ਤਾ ਕੈ ਅਨਦੁ ਘਣਾ ॥੨॥
नानकु वखाणै गुर बचनि जाणै जा को रामु भतारु ता कै अनदु घणा ॥२॥
नानक वही बखान करता है जो कुछ उसने गुरु के वचन द्वारा जाना है कि जिसका पति राम है, वह बड़ा आनन्द प्राप्त करती है॥ २॥
ਆਉ ਸਖੀ ਸੰਤ ਪਾਸਿ ਸੇਵਾ ਲਾਗੀਐ ॥
आउ सखी संत पासि सेवा लागीऐ ॥
हे सखी ! आओ, हम संतों के पास सेवा में जुट जाएँ।
ਪੀਸਉ ਚਰਣ ਪਖਾਰਿ ਆਪੁ ਤਿਆਗੀਐ ॥
पीसउ चरण पखारि आपु तिआगीऐ ॥
आओ, हम उसके दाने पीसें, उसके चरण धोएं और अपना अहंकार त्याग दें।
ਤਜਿ ਆਪੁ ਮਿਟੈ ਸੰਤਾਪੁ ਆਪੁ ਨਹ ਜਾਣਾਈਐ ॥
तजि आपु मिटै संतापु आपु नह जाणाईऐ ॥
अपना अहंकार त्याग देने से दुःख-संताप मिट जाता है। अपने आप का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
ਸਰਣਿ ਗਹੀਜੈ ਮਾਨਿ ਲੀਜੈ ਕਰੇ ਸੋ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥
सरणि गहीजै मानि लीजै करे सो सुखु पाईऐ ॥
हे सखी ! आओ, हम संतों की शरण ले लें, उनकी आज्ञा का पालन करें और जो कुछ भी वह करते हैं, उससे सुखी रहें।
ਕਰਿ ਦਾਸ ਦਾਸੀ ਤਜਿ ਉਦਾਸੀ ਕਰ ਜੋੜਿ ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਜਾਗੀਐ ॥
करि दास दासी तजि उदासी कर जोड़ि दिनु रैणि जागीऐ ॥
हमें खुद को दासों की दासी बनाकर मन की चिंता मिटाकर दोनों हाथ जोड़ कर दिन-रात उनकी सेवा में जागना चाहिए।
ਨਾਨਕੁ ਵਖਾਣੈ ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਜਾਣੈ ਆਉ ਸਖੀ ਸੰਤ ਪਾਸਿ ਸੇਵਾ ਲਾਗੀਐ ॥੩॥
नानकु वखाणै गुर बचनि जाणै आउ सखी संत पासि सेवा लागीऐ ॥३॥
नानक वही बखान करता है जो कुछ उसने गुरु के वचन से जाना है। हे सखी ! आओ, संतों के पास आकर हम उनकी सेवा में तत्पर हो जाएँ॥ ३॥
ਜਾ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗ ਸਿ ਸੇਵਾ ਲਾਇਆ ॥
जा कै मसतकि भाग सि सेवा लाइआ ॥
जिसके माथे पर भाग्य लिखा हुआ है, उसे ही प्रभु अपनी सेवा में लगाता है।
ਤਾ ਕੀ ਪੂਰਨ ਆਸ ਜਿਨੑ ਸਾਧਸੰਗੁ ਪਾਇਆ ॥
ता की पूरन आस जिन्ह साधसंगु पाइआ ॥
जिन्हें सत्संगति की प्राप्ति होती है, उनकी आशा पूर्ण हो जाती है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿਮਰਣ ਲਾਗਿਆ ॥
साधसंगि हरि कै रंगि गोबिंद सिमरण लागिआ ॥
सत्संगति में जीव हरि के रंग में लीन हो जाता है और गोविन्द का सिमरन करने लग जाता है।
ਭਰਮੁ ਮੋਹੁ ਵਿਕਾਰੁ ਦੂਜਾ ਸਗਲ ਤਿਨਹਿ ਤਿਆਗਿਆ ॥
भरमु मोहु विकारु दूजा सगल तिनहि तिआगिआ ॥
भ्रम, मोह, विकार एवं द्वैतवाद वह सब को त्याग देता है।
ਮਨਿ ਸਾਂਤਿ ਸਹਜੁ ਸੁਭਾਉ ਵੂਠਾ ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
मनि सांति सहजु सुभाउ वूठा अनद मंगल गुण गाइआ ॥
जब उसने आनंद से हरि का मंगल गुणगान किया तो उसके मन में सहज स्वभाव शांति आ गई।
ਨਾਨਕੁ ਵਖਾਣੈ ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਜਾਣੈ ਜਾ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗ ਸਿ ਸੇਵਾ ਲਾਇਆ ॥੪॥੪॥੭॥
नानकु वखाणै गुर बचनि जाणै जा कै मसतकि भाग सि सेवा लाइआ ॥४॥४॥७॥
नानक वही वर्णन करता है, जो उसने गुरु के वचन से जाना है कि जिसके माथे पर भाग्य लिखा होता है, वही सेवा में लगता है॥ ४॥ ४॥ ७ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੰਤਿਆ ਕਛੁ ਨ ਕਹੈ ਜਮਕਾਲੁ ॥
हरि हरि नामु जपंतिआ कछु न कहै जमकालु ॥
हरि-प्रभु का नाम जपने से यमदूत जीव को कुछ भी नहीं कहता।
ਨਾਨਕ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੁਖੀ ਹੋਇ ਅੰਤੇ ਮਿਲੈ ਗੋਪਾਲੁ ॥੧॥
नानक मनु तनु सुखी होइ अंते मिलै गोपालु ॥१॥
हे नानक ! नाम जपने से मन-तन सुखी हो जाता है और अंततः गोपाल प्रभु मिल जाता है॥ १॥
ਛੰਤ ॥
छंत ॥
छंद॥
ਮਿਲਉ ਸੰਤਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਮੋਹਿ ਉਧਾਰਿ ਲੇਹੁ ॥
मिलउ संतन कै संगि मोहि उधारि लेहु ॥
हे हरि ! संतजनों की संगति में मुझसे आकर मिलो और मेरा उद्धार कीजिए।
ਬਿਨਉ ਕਰਉ ਕਰ ਜੋੜਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੇਹੁ ॥
बिनउ करउ कर जोड़ि हरि हरि नामु देहु ॥
मैं दोनों हाथ जोड़कर विनती करता हूँ कि तुम मुझे अपना अनमोल हरि-नाम प्रदान करो।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮਾਗਉ ਚਰਣ ਲਾਗਉ ਮਾਨੁ ਤਿਆਗਉ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਦਇਆ ॥
हरि नामु मागउ चरण लागउ मानु तिआगउ तुम्ह दइआ ॥
हे हरि ! मैं तेरा नाम माँगता हूँ और तेरे चरणों में लगता हूँ यदि तुम दया करते हो तो अपना अहंकार दूर करता हूँ।
ਕਤਹੂੰ ਨ ਧਾਵਉ ਸਰਣਿ ਪਾਵਉ ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਪ੍ਰਭ ਕਰਿ ਮਇਆ ॥
कतहूं न धावउ सरणि पावउ करुणा मै प्रभ करि मइआ ॥
हे करुणामय प्रभु ! मुझ पर मेहर करो तांकि मैं तेरी शरण में पड़ा रहूँ तथा कहीं और न दौडूं।
ਸਮਰਥ ਅਗਥ ਅਪਾਰ ਨਿਰਮਲ ਸੁਣਹੁ ਸੁਆਮੀ ਬਿਨਉ ਏਹੁ ॥
समरथ अगथ अपार निरमल सुणहु सुआमी बिनउ एहु ॥
हे समर्थ ! अकथनीय, अपार एवं निर्मल स्वामी ! मेरी यह विनती सुनो।
ਕਰ ਜੋੜਿ ਨਾਨਕ ਦਾਨੁ ਮਾਗੈ ਜਨਮ ਮਰਣ ਨਿਵਾਰਿ ਲੇਹੁ ॥੧॥
कर जोड़ि नानक दानु मागै जनम मरण निवारि लेहु ॥१॥
नानक दोनों हाथ जोड़कर यह दान माँगता है, कृपा-दृष्टि करके मेरा जन्म-मरण का चक्र समाप्त कर दो ॥ १॥