ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਪ੍ਰਭ ਰੇਨ ਪਗ ਸਾਧਾ ॥੪॥੩॥੨੭॥
नानकु मंगै दानु प्रभ रेन पग साधा ॥४॥३॥२७॥
हे प्रभु ! नानक तुझसे तेरे साधुओं की चरणरज का दान माँगता है ॥४॥३॥२७॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਜਿਨਿ ਤੁਮ ਭੇਜੇ ਤਿਨਹਿ ਬੁਲਾਏ ਸੁਖ ਸਹਜ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਆਉ ॥
जिनि तुम भेजे तिनहि बुलाए सुख सहज सेती घरि आउ ॥
जिस परमात्मा ने तुझे दुनिया में भेजा है, उसने ही अब तुझे वापिस बुला लिया है। अंतः सुख एवं आनंदपूर्वक अपने मूल घर (परमात्मा के चरणों) में वापिस आ जाओ।
ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਗੁਨ ਗਾਉ ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਨਿਹਚਲ ਰਾਜੁ ਕਮਾਉ ॥੧॥
अनद मंगल गुन गाउ सहज धुनि निहचल राजु कमाउ ॥१॥
आनंदपूर्वक मधुर ध्वनि में प्रभु-महिमा के मंगल गीत गायन करो और इस शरीर रूपी नगरी पर अटल राज करो॥ १॥
ਤੁਮ ਘਰਿ ਆਵਹੁ ਮੇਰੇ ਮੀਤ ॥
तुम घरि आवहु मेरे मीत ॥
हे मेरे मित्र ! तुम अपने मूल घर में वापिस आ जाओ।
ਤੁਮਰੇ ਦੋਖੀ ਹਰਿ ਆਪਿ ਨਿਵਾਰੇ ਅਪਦਾ ਭਈ ਬਿਤੀਤ ॥ ਰਹਾਉ ॥
तुमरे दोखी हरि आपि निवारे अपदा भई बितीत ॥ रहाउ ॥
तुम्हारे वैरियों-कामवासना, क्रोध, लालच, मोह एवं अहंकार को भगवान ने स्वयं ही तुझसे दूर कर दिया है तथा तेरी विपत्ति का समय अब बीत गया है॥ रहाउ ॥
ਪ੍ਰਗਟ ਕੀਨੇ ਪ੍ਰਭ ਕਰਨੇਹਾਰੇ ਨਾਸਨ ਭਾਜਨ ਥਾਕੇ ॥
प्रगट कीने प्रभ करनेहारे नासन भाजन थाके ॥
रचयिता प्रभु ने तुझे दुनिया में लोकप्रिय कर दिया है और अब तेरी भाग-दौड़ खत्म हो गई है।
ਘਰਿ ਮੰਗਲ ਵਾਜਹਿ ਨਿਤ ਵਾਜੇ ਅਪੁਨੈ ਖਸਮਿ ਨਿਵਾਜੇ ॥੨॥
घरि मंगल वाजहि नित वाजे अपुनै खसमि निवाजे ॥२॥
अब तेरे घर में नित्य ही खुशी की अनहद ध्वनियों वाले बाजे बजते रहते हैं और तेरे अपने मालिक ने तुझे सत्कृत किया है॥ २॥
ਅਸਥਿਰ ਰਹਹੁ ਡੋਲਹੁ ਮਤ ਕਬਹੂ ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਅਧਾਰਿ ॥
असथिर रहहु डोलहु मत कबहू गुर कै बचनि अधारि ॥
गुरु की वाणी के आधार पर स्थिर होकर रहो और कभी भी विचलित मत होना।
ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਸਗਲ ਭੂ ਮੰਡਲ ਮੁਖ ਊਜਲ ਦਰਬਾਰ ॥੩॥
जै जै कारु सगल भू मंडल मुख ऊजल दरबार ॥३॥
सारा जगत तेरी जय-जयकार करेगा और तूं उज्ज्वल मुख से प्रभु के दरबार में सम्मानपूर्वक जाएगा॥ ३॥
ਜਿਨ ਕੇ ਜੀਅ ਤਿਨੈ ਹੀ ਫੇਰੇ ਆਪੇ ਭਇਆ ਸਹਾਈ ॥
जिन के जीअ तिनै ही फेरे आपे भइआ सहाई ॥
जिसने ये जीव उत्पन्न किए हैं, उसने ही इन्हें भटका कर फिर से सन्मार्ग लगाया है और वह स्वयं ही इनका सहायक बन गया है।
ਅਚਰਜੁ ਕੀਆ ਕਰਨੈਹਾਰੈ ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਵਡਿਆਈ ॥੪॥੪॥੨੮॥
अचरजु कीआ करनैहारै नानक सचु वडिआई ॥४॥४॥२८॥
हे नानक ! रचयिता प्रभु ने एक अद्भुत लीला रची है और उसकी बड़ाई सदैव सत्य है ॥४॥ ४॥ २८॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੬
धनासरी महला ५ घरु ६
धनासरी महला ५ घर ६ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸੁਨਹੁ ਸੰਤ ਪਿਆਰੇ ਬਿਨਉ ਹਮਾਰੇ ਜੀਉ ॥
सुनहु संत पिआरे बिनउ हमारे जीउ ॥
हे प्यारे संतजनो ! मेरी विनती ध्यानपूर्वक सुनो;
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਕਾਹੂ ਜੀਉ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि बिनु मुकति न काहू जीउ ॥ रहाउ ॥
भगवान के सिमरन के बिना किसी को भी मुक्ति नहीं मिलती ॥ रहाउ ॥
ਮਨ ਨਿਰਮਲ ਕਰਮ ਕਰਿ ਤਾਰਨ ਤਰਨ ਹਰਿ ਅਵਰਿ ਜੰਜਾਲ ਤੇਰੈ ਕਾਹੂ ਨ ਕਾਮ ਜੀਉ ॥
मन निरमल करम करि तारन तरन हरि अवरि जंजाल तेरै काहू न काम जीउ ॥
हे मेरे मन ! शुभ एवं पवित्र कर्म करो, भगवान तो भवसागर में से पार करवाने वाला जहाज है; अन्य झंझट-जंजाल तेरे किसी काम नहीं आने।
ਜੀਵਨ ਦੇਵਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸੇਵਾ ਇਹੁ ਉਪਦੇਸੁ ਮੋ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਨਾ ਜੀਉ ॥੧॥
जीवन देवा पारब्रहम सेवा इहु उपदेसु मो कउ गुरि दीना जीउ ॥१॥
गुरु ने मुझे यह उपदेश दिया है कि अपने जीवन में परब्रह्म-गुरुदेव की ही उपासना करो।॥ १॥
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਨ ਲਾਈਐ ਹੀਤੁ ਜਾ ਕੋ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਬੀਤੁ ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਓਹੁ ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲੈ ॥
तिसु सिउ न लाईऐ हीतु जा को किछु नाही बीतु अंत की बार ओहु संगि न चालै ॥
उससे स्नेह नहीं करना चाहिए, जिसकी अपनी कुछ भी हस्ती न हो चूंकि वह जीवन के अंतिम क्षणों में मनुष्य के साथ नहीं जाता।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਤੂ ਆਰਾਧ ਹਰਿ ਕੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਾਧ ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤੇਰੇ ਬੰਧਨ ਛੂਟੈ ॥੨॥
मनि तनि तू आराध हरि के प्रीतम साध जा कै संगि तेरे बंधन छूटै ॥२॥
तू अपने मन एवं तन में भगवान की आराधना कर, उसके प्रियतम साधुओं की संगति करने से तेरे माया के तमाम बन्धन समाप्त हो जाएँगे ॥२॥
ਗਹੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸਰਨ ਹਿਰਦੈ ਕਮਲ ਚਰਨ ਅਵਰ ਆਸ ਕਛੁ ਪਟਲੁ ਨ ਕੀਜੈ ॥
गहु पारब्रहम सरन हिरदै कमल चरन अवर आस कछु पटलु न कीजै ॥
उस परब्रह्म की शरण लो और अपने हृदय में चरण कमल का ध्यान करो। उसके सिवाय किसी अन्य सहारे की कुछ भी आशा मत करो।
ਸੋਈ ਭਗਤੁ ਗਿਆਨੀ ਧਿਆਨੀ ਤਪਾ ਸੋਈ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਕੀਜੈ ॥੩॥੧॥੨੯॥
सोई भगतु गिआनी धिआनी तपा सोई नानक जा कउ किरपा कीजै ॥३॥१॥२९॥
हे नानक ! जिस पर भगवान कृपा करता है, वास्तव में वही भक्त, वही ज्ञानी, ध्यानी एवं तपस्वी है ॥ ३॥ १॥ २६ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
धनासरी महला ५ ॥
ਮੇਰੇ ਲਾਲ ਭਲੋ ਰੇ ਭਲੋ ਰੇ ਭਲੋ ਹਰਿ ਮੰਗਨਾ ॥
मेरे लाल भलो रे भलो रे भलो हरि मंगना ॥
हे मेरे प्रिय ! भगवान का नाम माँगना बड़ा उत्तम एवं भला है।
ਦੇਖਹੁ ਪਸਾਰਿ ਨੈਨ ਸੁਨਹੁ ਸਾਧੂ ਕੇ ਬੈਨ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਚਿਤਿ ਰਾਖੁ ਸਗਲ ਹੈ ਮਰਨਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
देखहु पसारि नैन सुनहु साधू के बैन प्रानपति चिति राखु सगल है मरना ॥ रहाउ ॥
हे भाई ! अपने नेत्र खोलकर भलीभांति देखो एवं साधु के अनमोल वचन सुनो। अपने प्राणों के पति प्रभु को अपने हृदय में बसाकर रखो, चूंकि सभी ने एक न एक दिन अवश्य मृत्यु को प्राप्त होना है॥रहाउ ॥
ਚੰਦਨ ਚੋਆ ਰਸ ਭੋਗ ਕਰਤ ਅਨੇਕੈ ਬਿਖਿਆ ਬਿਕਾਰ ਦੇਖੁ ਸਗਲ ਹੈ ਫੀਕੇ ਏਕੈ ਗੋਬਿਦ ਕੋ ਨਾਮੁ ਨੀਕੋ ਕਹਤ ਹੈ ਸਾਧ ਜਨ ॥
चंदन चोआ रस भोग करत अनेकै बिखिआ बिकार देखु सगल है फीके एकै गोबिद को नामु नीको कहत है साध जन ॥
तुम अपने शरीर पर चंदन एवं इत्र लगाते हो, स्वादिष्ट पदार्थ खाते हो तथा अनेकों विषय-विकार भोगते हो, देख लो, ये सभी रस फीके हैं। साधुजन कहते हैं कि परमात्मा का नाम ही सर्वोत्तम है।
ਤਨੁ ਧਨੁ ਆਪਨ ਥਾਪਿਓ ਹਰਿ ਜਪੁ ਨ ਨਿਮਖ ਜਾਪਿਓ ਅਰਥੁ ਦ੍ਰਬੁ ਦੇਖੁ ਕਛੁ ਸੰਗਿ ਨਾਹੀ ਚਲਨਾ ॥੧॥
तनु धनु आपन थापिओ हरि जपु न निमख जापिओ अरथु द्रबु देखु कछु संगि नाही चलना ॥१॥
तुम अपने शरीर एवं धन को अपना समझते हो और भगवान का भजन सिमरन एक क्षण भर के लिए भी नहीं करते।देख लो, यह धन-संपत्ति एवं दौलत कुछ भी तेरे साथ नहीं जाना॥ १॥
ਜਾ ਕੋ ਰੇ ਕਰਮੁ ਭਲਾ ਤਿਨਿ ਓਟ ਗਹੀ ਸੰਤ ਪਲਾ ਤਿਨ ਨਾਹੀ ਰੇ ਜਮੁ ਸੰਤਾਵੈ ਸਾਧੂ ਕੀ ਸੰਗਨਾ ॥
जा को रे करमु भला तिनि ओट गही संत पला तिन नाही रे जमु संतावै साधू की संगना ॥
जिस मनुष्य की अच्छी किस्मत है, वही संतों की शरण लेता है। संतों की संगति करने से मृत्यु कदापि पीड़ित नहीं करती।
ਪਾਇਓ ਰੇ ਪਰਮ ਨਿਧਾਨੁ ਮਿਟਿਓ ਹੈ ਅਭਿਮਾਨੁ ਏਕੈ ਨਿਰੰਕਾਰ ਨਾਨਕ ਮਨੁ ਲਗਨਾ ॥੨॥੨॥੩੦॥
पाइओ रे परम निधानु मिटिओ है अभिमानु एकै निरंकार नानक मनु लगना ॥२॥२॥३०॥
हे नानक ! उसने नाम रूपी परम खजाना प्राप्त कर लिया है, उसका अभिमान मिट गया है और मन एक निराकार प्रभु से लग गया है ॥२॥२॥३०॥