ਕਬ ਚੰਦਨਿ ਕਬ ਅਕਿ ਡਾਲਿ ਕਬ ਉਚੀ ਪਰੀਤਿ ॥
कब चंदनि कब अकि डालि कब उची परीति ॥
यह कभी स्वर्ग रूपी चंदन के वृक्ष और कभी नरक रूपी आक की डाली पर बैठता है। यह कभी भगवान से भी प्रेम कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮਿ ਚਲਾਈਐ ਸਾਹਿਬ ਲਗੀ ਰੀਤਿ ॥੨॥
नानक हुकमि चलाईऐ साहिब लगी रीति ॥२॥
हे नानक ! भगवान प्राणियों को अपनी इच्छानुसार चलाता है। यह रीति आदिकाल से प्रचलित है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਕੇਤੇ ਕਹਹਿ ਵਖਾਣ ਕਹਿ ਕਹਿ ਜਾਵਣਾ ॥
केते कहहि वखाण कहि कहि जावणा ॥
कितने ही लोग भगवान के गुणों का बखान कर रहे हैं और कितने ही लोग बखान कर करके दुनिया से चले गए हैं।
ਵੇਦ ਕਹਹਿ ਵਖਿਆਣ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਵਣਾ ॥
वेद कहहि वखिआण अंतु न पावणा ॥
वेद भगवान के गुणों का बखान करते हैं परन्तु उसके गुणों का अंत नहीं पा सकते।
ਪੜਿਐ ਨਾਹੀ ਭੇਦੁ ਬੁਝਿਐ ਪਾਵਣਾ ॥
पड़िऐ नाही भेदु बुझिऐ पावणा ॥
पढ़ने से उसका भेद नहीं पाया जा सकता। उसका भेद ज्ञान से ही पाया जाता है।
ਖਟੁ ਦਰਸਨ ਕੈ ਭੇਖਿ ਕਿਸੈ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਾ ॥
खटु दरसन कै भेखि किसै सचि समावणा ॥
षट्दर्शन के छः मत हैं परन्तु उनके द्वारा कोई विरला पुरुष ही परमात्मा में लीन होता है।
ਸਚਾ ਪੁਰਖੁ ਅਲਖੁ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਵਣਾ ॥
सचा पुरखु अलखु सबदि सुहावणा ॥
जिस प्राणी ने गुरु की शिक्षा से सच्चा अलख पुरुष पाया है, वह शोभायमान है।
ਮੰਨੇ ਨਾਉ ਬਿਸੰਖ ਦਰਗਹ ਪਾਵਣਾ ॥
मंने नाउ बिसंख दरगह पावणा ॥
जिन्होंने अनन्त ईश्वर के नाम का चिंतन-मनन किया है, वह उसके दरबार में जाता है।
ਖਾਲਕ ਕਉ ਆਦੇਸੁ ਢਾਢੀ ਗਾਵਣਾ ॥
खालक कउ आदेसु ढाढी गावणा ॥
मैं ढाडी (गायक) हूँ और सृष्टि के सृजनहार को प्रणाम करता उसका यशोगान करता रहता हूँ।
ਨਾਨਕ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਏਕੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਾ ॥੨੧॥
नानक जुगु जुगु एकु मंनि वसावणा ॥२१॥
हे नानक ! वह एक ईश्वर प्रत्येक युग में विद्यमान है और उसे ही अपने मन में बसाना चाहिए ॥ २१॥
ਸਲੋਕੁ ਮਹਲਾ ੨ ॥
सलोकु महला २ ॥
श्लोक महला २॥
ਮੰਤ੍ਰੀ ਹੋਇ ਅਠੂਹਿਆ ਨਾਗੀ ਲਗੈ ਜਾਇ ॥
मंत्री होइ अठूहिआ नागी लगै जाइ ॥
यदि कोई आदमी मन्त्र तो बिच्छू का जानता हो, लेकिन सपों को जाकर पकड़ ले
ਆਪਣ ਹਥੀ ਆਪਣੈ ਦੇ ਕੂਚਾ ਆਪੇ ਲਾਇ ॥
आपण हथी आपणै दे कूचा आपे लाइ ॥
तो वह अपने हाथों से स्वयं अपने आपको अग्नि का लूका लगा लेता है।
ਹੁਕਮੁ ਪਇਆ ਧੁਰਿ ਖਸਮ ਕਾ ਅਤੀ ਹੂ ਧਕਾ ਖਾਇ ॥
हुकमु पइआ धुरि खसम का अती हू धका खाइ ॥
आदिकाल से ही ईश्वर का यह हुक्म हुआ है कि जो बुरा करता है वह भारी ठोकर खाता है।
ਗੁਰਮੁਖ ਸਿਉ ਮਨਮੁਖੁ ਅੜੈ ਡੁਬੈ ਹਕਿ ਨਿਆਇ ॥
गुरमुख सिउ मनमुखु अड़ै डुबै हकि निआइ ॥
जो मनमुख इन्सान गुरमुख से विरोध करता है, वह नष्ट हो जाता है। यही सच्चा न्याय है।
ਦੁਹਾ ਸਿਰਿਆ ਆਪੇ ਖਸਮੁ ਵੇਖੈ ਕਰਿ ਵਿਉਪਾਇ ॥
दुहा सिरिआ आपे खसमु वेखै करि विउपाइ ॥
लोक एवं परलोक दोनों तरफ का न्याय करने वाला मालिक-प्रभु स्वयं ही न्याय करके देखता है।
ਨਾਨਕ ਏਵੈ ਜਾਣੀਐ ਸਭ ਕਿਛੁ ਤਿਸਹਿ ਰਜਾਇ ॥੧॥
नानक एवै जाणीऐ सभ किछु तिसहि रजाइ ॥१॥
हे नानक ! इसे इस तरह समझो कि सबकुछ परमात्मा की इच्छानुसार ही हो रहा है॥ १॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २॥
ਨਾਨਕ ਪਰਖੇ ਆਪ ਕਉ ਤਾ ਪਾਰਖੁ ਜਾਣੁ ॥
नानक परखे आप कउ ता पारखु जाणु ॥
हे नानक ! यदि मनुष्य अपने आप को परखे, केवल तभी उसे पारखी समझो।
ਰੋਗੁ ਦਾਰੂ ਦੋਵੈ ਬੁਝੈ ਤਾ ਵੈਦੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥
रोगु दारू दोवै बुझै ता वैदु सुजाणु ॥
यदि मनुष्य रोग एवं औषधि दोनों को समझता हो तो ही वह चतुर वैद्य है।
ਵਾਟ ਨ ਕਰਈ ਮਾਮਲਾ ਜਾਣੈ ਮਿਹਮਾਣੁ ॥
वाट न करई मामला जाणै मिहमाणु ॥
मानव को चाहिए कि वह इस दुनिया में स्वयं को एक अतिथि समझे तथा धर्म-मार्ग पर चलता हुआ दूसरों से विवाद मत करे।
ਮੂਲੁ ਜਾਣਿ ਗਲਾ ਕਰੇ ਹਾਣਿ ਲਾਏ ਹਾਣੁ ॥
मूलु जाणि गला करे हाणि लाए हाणु ॥
वह जगत् के मूल प्रभु को समझकर दूसरों से प्रभु बारे विचार-विमर्श करे। वह दुनिया में नाम-सिमरन:करने आया है तथा उसे कामादिक हानिकारक पापों को नष्ट कर देना चाहिए।
ਲਬਿ ਨ ਚਲਈ ਸਚਿ ਰਹੈ ਸੋ ਵਿਸਟੁ ਪਰਵਾਣੁ ॥
लबि न चलई सचि रहै सो विसटु परवाणु ॥
जो लालच के मार्ग पर नहीं चलता और सत्य में वास करता है, वह मध्यस्थ ही प्रभु के दरबार में स्वीकृत होता है।
ਸਰੁ ਸੰਧੇ ਆਗਾਸ ਕਉ ਕਿਉ ਪਹੁਚੈ ਬਾਣੁ ॥
सरु संधे आगास कउ किउ पहुचै बाणु ॥
यदि बाण आकाश को मारा जाए, वह बाण किस तरह वहाँ पहुँच सकता है ?
ਅਗੈ ਓਹੁ ਅਗੰਮੁ ਹੈ ਵਾਹੇਦੜੁ ਜਾਣੁ ॥੨॥
अगै ओहु अगमु है वाहेदड़ु जाणु ॥२॥
ऊपर वह आकाश अगम्य है, इसलिए समझ लीजिए कि बाण उलटकर बाण चलाने वाले पर ही लगेगा ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਨਾਰੀ ਪੁਰਖ ਪਿਆਰੁ ਪ੍ਰੇਮਿ ਸੀਗਾਰੀਆ ॥
नारी पुरख पिआरु प्रेमि सीगारीआ ॥
जीव-स्त्रियाँ अपने प्रभु-पति से मुहब्बत करती हैं और उन्होंने प्रेम का श्रृंगार किया हुआ है।
ਕਰਨਿ ਭਗਤਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ਨ ਰਹਨੀ ਵਾਰੀਆ ॥
करनि भगति दिनु राति न रहनी वारीआ ॥
दिन-रात वह प्रभु की भक्ति करती हैं और भक्ति करने से वह रुकती नहीं।
ਮਹਲਾ ਮੰਝਿ ਨਿਵਾਸੁ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰੀਆ ॥
महला मंझि निवासु सबदि सवारीआ ॥
परमेश्वर के मन्दिर में उनका निवास है और प्रभु के नाम से वह संवरी हुई हैं।
ਸਚੁ ਕਹਨਿ ਅਰਦਾਸਿ ਸੇ ਵੇਚਾਰੀਆ ॥
सचु कहनि अरदासि से वेचारीआ ॥
वह विनीत होकर सच्चे हृदय से प्रार्थना करती हैं।
ਸੋਹਨਿ ਖਸਮੈ ਪਾਸਿ ਹੁਕਮਿ ਸਿਧਾਰੀਆ ॥
सोहनि खसमै पासि हुकमि सिधारीआ ॥
वह अपने स्वामी के पास सुन्दर लगती हैं और पति-प्रभु के हुक्म में उसके पास पहुँची हैं।
ਸਖੀ ਕਹਨਿ ਅਰਦਾਸਿ ਮਨਹੁ ਪਿਆਰੀਆ ॥
सखी कहनि अरदासि मनहु पिआरीआ ॥
वह प्रभु को श्रद्धा से प्रेम करती है। वे सभी सखियां प्रभु के समक्ष प्रार्थना करती हैं।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਵਾਸੁ ਫਿਟੁ ਸੁ ਜੀਵਿਆ ॥
बिनु नावै ध्रिगु वासु फिटु सु जीविआ ॥
प्रभु-नाम के बिना मनुष्य का जीवन धिक्कार-योग्य है और उसका निवास भी धिक्कार योग्य है।
ਸਬਦਿ ਸਵਾਰੀਆਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵਿਆ ॥੨੨॥
सबदि सवारीआसु अम्रितु पीविआ ॥२२॥
जो जीव-स्त्री नाम द्वारा संवर गई है उसने ही नाम रूपी अमृत पान कर लिया है॥ २२॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १ ॥
ਮਾਰੂ ਮੀਹਿ ਨ ਤ੍ਰਿਪਤਿਆ ਅਗੀ ਲਹੈ ਨ ਭੁਖ ॥
मारू मीहि न त्रिपतिआ अगी लहै न भुख ॥
जैसे मरुस्थल वर्षा से तृप्त नहीं होता वैसे ही अग्नि की भूख लकड़ियों से दूर नहीं होती।
ਰਾਜਾ ਰਾਜਿ ਨ ਤ੍ਰਿਪਤਿਆ ਸਾਇਰ ਭਰੇ ਕਿਸੁਕ ॥
राजा राजि न त्रिपतिआ साइर भरे किसुक ॥
कोई भी सम्राट साम्राज्य से तृप्त नहीं होता और सागर को कभी कोई नहीं भर सका।
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਕੀ ਕੇਤੀ ਪੁਛਾ ਪੁਛ ॥੧॥
नानक सचे नाम की केती पुछा पुछ ॥१॥
हे नानक ! भक्तजनों को सत्य नाम की कितनी भूख लगी रहती है, वह बताई नहीं जा सकती अर्थात् भक्त नाम जप-जप कर तृप्त ही नहीं होते॥१॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
महला २ ॥
महला २॥
ਨਿਹਫਲੰ ਤਸਿ ਜਨਮਸਿ ਜਾਵਤੁ ਬ੍ਰਹਮ ਨ ਬਿੰਦਤੇ ॥
निहफलं तसि जनमसि जावतु ब्रहम न बिंदते ॥
जब तक इन्सान को परमेश्वर का ज्ञान नहीं होता उसका जीवन व्यर्थ है।
ਸਾਗਰੰ ਸੰਸਾਰਸਿ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਤਰਹਿ ਕੇ ॥
सागरं संसारसि गुर परसादी तरहि के ॥
गुरु की कृपा से विरले पुरुष ही संसार सागर से पार होते हैं।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ਹੈ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਬੀਚਾਰਿ ॥
करण कारण समरथु है कहु नानक बीचारि ॥
नानक विचार कर कहते हैं कि परमेश्वर सब कार्य करने में समर्थ है।
ਕਾਰਣੁ ਕਰਤੇ ਵਸਿ ਹੈ ਜਿਨਿ ਕਲ ਰਖੀ ਧਾਰਿ ॥੨॥
कारणु करते वसि है जिनि कल रखी धारि ॥२॥
जगत् का कारण सृजनहार प्रभु के वश में है और प्रभु की कला ने इस जगत् को धारण किया हुआ है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਖਸਮੈ ਕੈ ਦਰਬਾਰਿ ਢਾਢੀ ਵਸਿਆ ॥
खसमै कै दरबारि ढाढी वसिआ ॥
भाट (यशोगान करने वाला) प्रभु के दरबार में वास करता है।
ਸਚਾ ਖਸਮੁ ਕਲਾਣਿ ਕਮਲੁ ਵਿਗਸਿਆ ॥
सचा खसमु कलाणि कमलु विगसिआ ॥
सत्यस्वरूप परमेश्वर की महिमा गायन करने से उसका हृदय कमल प्रफुल्लित हो गया है।
ਖਸਮਹੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇ ਮਨਹੁ ਰਹਸਿਆ ॥
खसमहु पूरा पाइ मनहु रहसिआ ॥
ईश्वर से पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने से अपने हृदय में वह परम प्रसन्न हो गया है।
ਦੁਸਮਨ ਕਢੇ ਮਾਰਿ ਸਜਣ ਸਰਸਿਆ ॥
दुसमन कढे मारि सजण सरसिआ ॥
उसने अपने ह्रदय में काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार इत्यादि शत्रुओं को मार कर बाहर निकाल दिया है और उसके सज्जन-सत्य, संतोष, दया एवं धर्म इत्यादि प्रसन्न हो गए हैं।
ਸਚਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਸਚਾ ਮਾਰਗੁ ਦਸਿਆ ॥
सचा सतिगुरु सेवनि सचा मारगु दसिआ ॥
सच्चे सतिगुरु ने उसे प्रभु-मिलन का सन्मार्ग बता दिया है।