ਗੁਨ ਗੋਪਾਲ ਉਚਾਰੁ ਰਸਨਾ ਟੇਵ ਏਹ ਪਰੀ ॥੧॥
गुन गोपाल उचारु रसना टेव एह परी ॥१॥
वैसे ही जिव्हा प्रभु के गुणों का उच्चारण करने में लगी हुई है॥ १॥
ਮਹਾ ਨਾਦ ਕੁਰੰਕ ਮੋਹਿਓ ਬੇਧਿ ਤੀਖਨ ਸਰੀ ॥
महा नाद कुरंक मोहिओ बेधि तीखन सरी ॥
जैसे मधुर संगीत की धुन से मोहित होकर मृग तीरों से बिंध जाता है,”
ਪ੍ਰਭ ਚਰਨ ਕਮਲ ਰਸਾਲ ਨਾਨਕ ਗਾਠਿ ਬਾਧਿ ਧਰੀ ॥੨॥੧॥੯॥
प्रभ चरन कमल रसाल नानक गाठि बाधि धरी ॥२॥१॥९॥
वैसे ही नानक ने प्रभु चरण-कमल के रस से गांठ बाँध ली हैI॥ २॥ १॥ ९॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥
ਪ੍ਰੀਤਮ ਬਸਤ ਰਿਦ ਮਹਿ ਖੋਰ ॥
प्रीतम बसत रिद महि खोर ॥
हे प्रियतम ! मेरे हृदय में अवगुण बस रहे हैं,”
ਭਰਮ ਭੀਤਿ ਨਿਵਾਰਿ ਠਾਕੁਰ ਗਹਿ ਲੇਹੁ ਅਪਨੀ ਓਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भरम भीति निवारि ठाकुर गहि लेहु अपनी ओर ॥१॥ रहाउ ॥
हे मालिक ! भ्रम की दीवार गिराकर अपनी ओर झुका लो॥१॥ रहाउ॥
ਅਧਿਕ ਗਰਤ ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰ ਕਰਿ ਦਇਆ ਚਾਰਹੁ ਧੋਰ ॥
अधिक गरत संसार सागर करि दइआ चारहु धोर ॥
संसार-सागर में बहुत गर्त है, दया कर पार करवा दो।
ਸੰਤਸੰਗਿ ਹਰਿ ਚਰਨ ਬੋਹਿਥ ਉਧਰਤੇ ਲੈ ਮੋਰ ॥੧॥
संतसंगि हरि चरन बोहिथ उधरते लै मोर ॥१॥
संतों के संग हरि-चरणों के जहाज़ द्वारा मेरा उद्धार कर लो॥ १॥
ਗਰਭ ਕੁੰਟ ਮਹਿ ਜਿਨਹਿ ਧਾਰਿਓ ਨਹੀ ਬਿਖੈ ਬਨ ਮਹਿ ਹੋਰ ॥
गरभ कुंट महि जिनहि धारिओ नही बिखै बन महि होर ॥
जिसने गर्भ कुण्ड में से बचाया है, विषय-विकारों में भी अन्य कोई नहीं बचाने वाला।
ਹਰਿ ਸਕਤ ਸਰਨ ਸਮਰਥ ਨਾਨਕ ਆਨ ਨਹੀ ਨਿਹੋਰ ॥੨॥੨॥੧੦॥
हरि सकत सरन समरथ नानक आन नही निहोर ॥२॥२॥१०॥
नानक निष्ठापूर्वक मानते हुए कहते हैं कि परमेश्वर की शरण अति प्रबल एवं समर्थ है और उसके सिवा किसी अन्य का कोई सहारा नहीं॥ २॥ २॥ १०॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥
ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਰਾਮ ਬਖਾਨੁ ॥
रसना राम राम बखानु ॥
हे सज्जनो, जिव्हा से राम नाम का जाप करो,”
ਗੁਨ ਗੋੁਪਾਲ ਉਚਾਰੁ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਭਏ ਕਲਮਲ ਹਾਨ ॥ ਰਹਾਉ ॥
गुन गोपाल उचारु दिनु रैनि भए कलमल हान ॥ रहाउ ॥
हरदम ईश्वर का स्तुतिगान करने से पाप-दोष नष्ट हो जाते हैं।॥ रहाउ॥
ਤਿਆਗਿ ਚਲਨਾ ਸਗਲ ਸੰਪਤ ਕਾਲੁ ਸਿਰ ਪਰਿ ਜਾਨੁ ॥
तिआगि चलना सगल स्मपत कालु सिर परि जानु ॥
दुनियावी सुख-संपत्ति को निश्चय ही त्याग जाना है; अतः मौत को सिर पर अपरिहार्य मानो।
ਮਿਥਨ ਮੋਹ ਦੁਰੰਤ ਆਸਾ ਝੂਠੁ ਸਰਪਰ ਮਾਨੁ ॥੧॥
मिथन मोह दुरंत आसा झूठु सरपर मानु ॥१॥
मिथ्या मोह एवं बुरी आशा को झूठा ही समझना॥१॥
ਸਤਿ ਪੁਰਖ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਰਿਦੈ ਧਾਰਹੁ ਧਿਆਨੁ ॥
सति पुरख अकाल मूरति रिदै धारहु धिआनु ॥
सत्यपुरुष अकालमूर्ति परमेश्वर का ह्रदय में ध्यान करो।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਲਾਭੁ ਨਾਨਕ ਬਸਤੁ ਇਹ ਪਰਵਾਨੁ ॥੨॥੩॥੧੧॥
नामु निधानु लाभु नानक बसतु इह परवानु ॥२॥३॥११॥
नानक का कथन है कि सुखनिधान हरिनाम वस्तु का लाभ प्राप्त करो, यही मान्य है॥ २॥ ३॥ ११॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕੋ ਆਧਾਰੁ ॥
हरि के नाम को आधारु ॥
हरिनाम ही हमारा एकमात्र आसरा है,”
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਨ ਕਛੁ ਬਿਆਪੈ ਸੰਤਸੰਗਿ ਬਿਉਹਾਰੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥
कलि कलेस न कछु बिआपै संतसंगि बिउहारु ॥ रहाउ ॥
संतों के संग व्यवहार करने से कलह-कलेश बिल्कुल प्रभावित नहीं करते॥ रहाउ॥
ਕਰਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਆਪਿ ਰਾਖਿਓ ਨਹ ਉਪਜਤਉ ਬੇਕਾਰੁ ॥
करि अनुग्रहु आपि राखिओ नह उपजतउ बेकारु ॥
जिसे प्रभु आप कृपा करके बचाता है, उस पर कोई दुःख-विकार प्रभाव नहीं डालता।
ਜਿਸੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ਸਿਮਰੈ ਤਿਸੁ ਦਹਤ ਨਹ ਸੰਸਾਰੁ ॥੧॥
जिसु परापति होइ सिमरै तिसु दहत नह संसारु ॥१॥
जिसे ईश्वर का सुमिरन प्राप्त हो जाता है, उसे संसार की जलन या पीड़ा तंग नहीं करती॥१॥
ਸੁਖ ਮੰਗਲ ਆਨੰਦ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਚਰਨ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਾਰੁ ॥
सुख मंगल आनंद हरि हरि प्रभ चरन अम्रित सारु ॥
ईश्वर सुखों का कोष एवं आनंदस्रोत है और उसके चरण अमृत समान हैं।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਰਨਾਗਤੀ ਤੇਰੇ ਸੰਤਨਾ ਕੀ ਛਾਰੁ ॥੨॥੪॥੧੨॥
नानक दास सरनागती तेरे संतना की छारु ॥२॥४॥१२॥
हे प्रभु ! दास नानक तेरी शरणागत है और तेरे संतजनों की धूल मात्र है।॥ २॥४॥ १२॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਸ੍ਰੋਤ ॥
हरि के नाम बिनु ध्रिगु स्रोत ॥
हरिनाम-संकीर्तन सुने बिना कान धिक्कार योग्य हैं।
ਜੀਵਨ ਰੂਪ ਬਿਸਾਰਿ ਜੀਵਹਿ ਤਿਹ ਕਤ ਜੀਵਨ ਹੋਤ ॥ ਰਹਾਉ ॥
जीवन रूप बिसारि जीवहि तिह कत जीवन होत ॥ रहाउ ॥
जीवन रूप परमेश्वर को भुलाकर जीने वाले व्यक्तियों का क्या जीना है ?॥ रहाउ॥
ਖਾਤ ਪੀਤ ਅਨੇਕ ਬਿੰਜਨ ਜੈਸੇ ਭਾਰ ਬਾਹਕ ਖੋਤ ॥
खात पीत अनेक बिंजन जैसे भार बाहक खोत ॥
वे अनेक प्रकार के व्यंजन खाते-पीते भी जैसे भार ढोने वाले गधे हैं।
ਆਠ ਪਹਰ ਮਹਾ ਸ੍ਰਮੁ ਪਾਇਆ ਜੈਸੇ ਬਿਰਖ ਜੰਤੀ ਜੋਤ ॥੧॥
आठ पहर महा स्रमु पाइआ जैसे बिरख जंती जोत ॥१॥
वे जुते बैल की मानिंद आठ पहर कोल्हू में सख्त मेहनत करते रहते हैं।॥ १॥
ਤਜਿ ਗੋੁਪਾਲ ਜਿ ਆਨ ਲਾਗੇ ਸੇ ਬਹੁ ਪ੍ਰਕਾਰੀ ਰੋਤ ॥
तजि गोपाल जि आन लागे से बहु प्रकारी रोत ॥
ईश्वर को तजकर जो कर्मकाण्डों में लीन हो जाते हैं, वे बहुत प्रकार से रोते हैं।
ਕਰ ਜੋਰਿ ਨਾਨਕ ਦਾਨੁ ਮਾਗੈ ਹਰਿ ਰਖਉ ਕੰਠਿ ਪਰੋਤ ॥੨॥੫॥੧੩॥
कर जोरि नानक दानु मागै हरि रखउ कंठि परोत ॥२॥५॥१३॥
नानक हाथ जोड़कर यही दान माँगता है कि हे प्रभु ! अपने गले से लगाकर रखना॥ २॥५॥ १३॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥
ਸੰਤਹ ਧੂਰਿ ਲੇ ਮੁਖਿ ਮਲੀ ॥
संतह धूरि ले मुखि मली ॥
अगर संतजनों की चरणरज मुख पर लगाई जाए,”
ਗੁਣਾ ਅਚੁਤ ਸਦਾ ਪੂਰਨ ਨਹ ਦੋਖ ਬਿਆਪਹਿ ਕਲੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
गुणा अचुत सदा पूरन नह दोख बिआपहि कली ॥ रहाउ ॥
सदैव पूर्ण अटल ओंकार का स्तुतिगान किया जाए तो कलियुग के दोष भी नहीं सताते॥ रहाउ॥
ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਕਾਰਜ ਸਰਬ ਪੂਰਨ ਈਤ ਊਤ ਨ ਹਲੀ ॥
गुर बचनि कारज सरब पूरन ईत ऊत न हली ॥
गुरु के वचनानुसार सब कार्य पूर्ण हो जाते हैं और इससे मन इधर-उधर विचलित नहीं होता।
ਪ੍ਰਭ ਏਕ ਅਨਿਕ ਸਰਬਤ ਪੂਰਨ ਬਿਖੈ ਅਗਨਿ ਨ ਜਲੀ ॥੧॥
प्रभ एक अनिक सरबत पूरन बिखै अगनि न जली ॥१॥
प्रभु एक ही है, सबमें परिपूर्ण है, उसकी सत्ता को मानने से विकारों की अग्नि नहीं जलाती॥ १॥
ਗਹਿ ਭੁਜਾ ਲੀਨੋ ਦਾਸੁ ਅਪਨੋ ਜੋਤਿ ਜੋਤੀ ਰਲੀ ॥
गहि भुजा लीनो दासु अपनो जोति जोती रली ॥
हे ईश्वर ! बांह पकड़कर दास को अपने संग मिला लो और आत्म-ज्योति को परम-ज्योति में मिला लो।
ਪ੍ਰਭ ਚਰਨ ਸਰਨ ਅਨਾਥੁ ਆਇਓ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਚਲੀ ॥੨॥੬॥੧੪॥
प्रभ चरन सरन अनाथु आइओ नानक हरि संगि चली ॥२॥६॥१४॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! यह अनाथ तेरी चरण-शरण में आया है, अपने संग मिला लो॥ २॥ ६॥ १४॥
ਕੇਦਾਰਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
केदारा महला ५ ॥
केदारा महला ५॥