ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੀ ਬੇਨਤੀ ਸੁਣੀ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ॥
भगत जना की बेनती सुणी प्रभि आपि ॥
प्रभु ने स्वयं ही अपने भक्तजनों की विनती सुनी है।
ਰੋਗ ਮਿਟਾਇ ਜੀਵਾਲਿਅਨੁ ਜਾ ਕਾ ਵਡ ਪਰਤਾਪੁ ॥੧॥
रोग मिटाइ जीवालिअनु जा का वड परतापु ॥१॥
जिसका सारे जगत् में बड़ा प्रताप है, उसने रोग मिटाकर बालक को जीवनदान दिया है॥ १॥
ਦੋਖ ਹਮਾਰੇ ਬਖਸਿਅਨੁ ਅਪਣੀ ਕਲ ਧਾਰੀ ॥
दोख हमारे बखसिअनु अपणी कल धारी ॥
अपनी शक्ति द्वारा उसने हमारे सब दोष माफ कर दिए हैं।
ਮਨ ਬਾਂਛਤ ਫਲ ਦਿਤਿਅਨੁ ਨਾਨਕ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੨॥੧੬॥੮੦॥
मन बांछत फल दितिअनु नानक बलिहारी ॥२॥१६॥८०॥
हे नानक उसने मुझे मनोवांछित फल प्रदान किया है, में उस पर बार बार बलिहारी जाता हूँ। ॥२॥१६॥८०॥
ਰਾਗੁ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਦੁਪਦੇ ਘਰੁ ੬
रागु बिलावलु महला ५ चउपदे दुपदे घरु ६
रागु बिलावलु महला ५ चउपदे दुपदे घरु ६
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮੇਰੇ ਮੋਹਨ ਸ੍ਰਵਨੀ ਇਹ ਨ ਸੁਨਾਏ ॥
मेरे मोहन स्रवनी इह न सुनाए ॥
हे मेरे मोहन ! वे मेरे कानों में मुझे कभी न सुनाओ
ਸਾਕਤ ਗੀਤ ਨਾਦ ਧੁਨਿ ਗਾਵਤ ਬੋਲਤ ਬੋਲ ਅਜਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साकत गीत नाद धुनि गावत बोलत बोल अजाए ॥१॥ रहाउ ॥
जो मायावी जीव अभद्र गीतों के स्वर एवं ध्वनियाँ गाते हैं और व्यर्थ बोल बोलते हैं ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੇਵਤ ਸੇਵਿ ਸੇਵਿ ਸਾਧ ਸੇਵਉ ਸਦਾ ਕਰਉ ਕਿਰਤਾਏ ॥
सेवत सेवि सेवि साध सेवउ सदा करउ किरताए ॥
जीवन में सदैव यही कार्य करूँ कि एकाग्रचित होकर साधुओं की सेवा करता रहूँ।
ਅਭੈ ਦਾਨੁ ਪਾਵਉ ਪੁਰਖ ਦਾਤੇ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੧॥
अभै दानु पावउ पुरख दाते मिलि संगति हरि गुण गाए ॥१॥
हे दाता ! मैं तुझसे अभयदान प्राप्त करूँ और सत्संगति में मिलकर तेरा ही गुणगान करता रहूँ॥ १॥
ਰਸਨਾ ਅਗਹ ਅਗਹ ਗੁਨ ਰਾਤੀ ਨੈਨ ਦਰਸ ਰੰਗੁ ਲਾਏ ॥
रसना अगह अगह गुन राती नैन दरस रंगु लाए ॥
हे प्रभो ! मेरी जीभ तेरे अनंत गुणों में लीन रहे और नयन तेरे दर्शनों के प्रेम में लगे रहें।
ਹੋਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦੀਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਮੋਹਿ ਚਰਣ ਰਿਦੈ ਵਸਾਏ ॥੨॥
होहु क्रिपाल दीन दुख भंजन मोहि चरण रिदै वसाए ॥२॥
हे दीनों के दुखनाशक ! कृपालु हो जाओ और अपने चरण-कमल मेरे हृदय में बसाओ ॥ २॥
ਸਭਹੂ ਤਲੈ ਤਲੈ ਸਭ ਊਪਰਿ ਏਹ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਦ੍ਰਿਸਟਾਏ ॥
सभहू तलै तलै सभ ऊपरि एह द्रिसटि द्रिसटाए ॥
मुझे ऐसी दृष्टि दिखाओ कि मैं खुद को सबसे विनीत समझें और सबको खुद से ऊँचा समझें।
ਅਭਿਮਾਨੁ ਖੋਇ ਖੋਇ ਖੋਇ ਖੋਈ ਹਉ ਮੋ ਕਉ ਸਤਿਗੁਰ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥੩॥
अभिमानु खोइ खोइ खोइ खोई हउ मो कउ सतिगुर मंत्रु द्रिड़ाए ॥३॥
सतगुरु ने मुझे नाममंत्र दृढ़ करवाया है और मेरा अभिमान बिल्कुल दूर हो गया है॥ ३॥
ਅਤੁਲੁ ਅਤੁਲੁ ਅਤੁਲੁ ਨਹ ਤੁਲੀਐ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਕਿਰਪਾਏ ॥
अतुलु अतुलु अतुलु नह तुलीऐ भगति वछलु किरपाए ॥
हे भक्तवत्सल, हे कृपानिधि ! तू अतुलनीय है और तेरे गुणों को तोला नहीं जा सकता।
ਜੋ ਜੋ ਸਰਣਿ ਪਰਿਓ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਅਭੈ ਦਾਨੁ ਸੁਖ ਪਾਏ ॥੪॥੧॥੮੧॥
जो जो सरणि परिओ गुर नानक अभै दानु सुख पाए ॥४॥१॥८१॥
नानक कहते हैं कि जो जो गुरु की शरण में आया है, उसने अभयदान एवं सुख पा लिया है।४॥ १॥ ८१॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਤੂ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੈ ॥
प्रभ जी तू मेरे प्रान अधारै ॥
हे प्रभु ! तू मेरे प्राणों का आधार है,
ਨਮਸਕਾਰ ਡੰਡਉਤਿ ਬੰਦਨਾ ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਜਾਉ ਬਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नमसकार डंडउति बंदना अनिक बार जाउ बारै ॥१॥ रहाउ ॥
इसलिए मैं तुझे दण्डवत प्रणाम एवं वंदना करता हूँ और तुझ पर अनेक बार बलिहारी जाता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਸੋਵਤ ਜਾਗਤ ਇਹੁ ਮਨੁ ਤੁਝਹਿ ਚਿਤਾਰੈ ॥
ऊठत बैठत सोवत जागत इहु मनु तुझहि चितारै ॥
उठते-बैठते, सोते-जागते मेरा यह मन तुझे ही याद करता रहे।
ਸੂਖ ਦੂਖ ਇਸੁ ਮਨ ਕੀ ਬਿਰਥਾ ਤੁਝ ਹੀ ਆਗੈ ਸਾਰੈ ॥੧॥
सूख दूख इसु मन की बिरथा तुझ ही आगै सारै ॥१॥
मैं अपने सुख-दुख और इस मन की व्यथा तेरे समक्ष ही वर्णन करता हूँ॥ १॥
ਤੂ ਮੇਰੀ ਓਟ ਬਲ ਬੁਧਿ ਧਨੁ ਤੁਮ ਹੀ ਤੁਮਹਿ ਮੇਰੈ ਪਰਵਾਰੈ ॥
तू मेरी ओट बल बुधि धनु तुम ही तुमहि मेरै परवारै ॥
तू मेरी ओट, बल, बुद्धि, धन इत्यादि सबकुछ है, और तुम ही मेरा परिवार हो।
ਜੋ ਤੁਮ ਕਰਹੁ ਸੋਈ ਭਲ ਹਮਰੈ ਪੇਖਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਚਰਨਾਰੈ ॥੨॥੨॥੮੨॥
जो तुम करहु सोई भल हमरै पेखि नानक सुख चरनारै ॥२॥२॥८२॥
नानक कहते हैं कि जो तुम करते हो, वही मेरे लिए भला है तथा तुम्हारे चरणों को देखकर मुझे सुख मिलता है॥ २ ॥ २॥ ८२ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਸੁਨੀਅਤ ਪ੍ਰਭ ਤਉ ਸਗਲ ਉਧਾਰਨ ॥
सुनीअत प्रभ तउ सगल उधारन ॥
हे प्रभु ! सुना है कि तू सब जीवों का उद्धार करने वाला है।
ਮੋਹ ਮਗਨ ਪਤਿਤ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰਾਨੀ ਐਸੇ ਮਨਹਿ ਬਿਸਾਰਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मोह मगन पतित संगि प्रानी ऐसे मनहि बिसारन ॥१॥ रहाउ ॥
मोह में मग्न होकर पतित प्राणियों के संग रहकर हमने मन से तुझे भुला दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਚਿ ਬਿਖਿਆ ਲੇ ਗ੍ਰਾਹਜੁ ਕੀਨੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮਨ ਤੇ ਡਾਰਨ ॥
संचि बिखिआ ले ग्राहजु कीनी अम्रितु मन ते डारन ॥
हमने माया रूपी विष को संचित करके जकड़ कर पकड़ रखा है किन्तु नामामृत को मन से हटा दिया है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਰਤੁ ਨਿੰਦਾ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਬਿਦਾਰਨ ॥੧॥
काम क्रोध लोभ रतु निंदा सतु संतोखु बिदारन ॥१॥
हम काम, क्रोध एवं निंदा में लीन रहते हैं लेकिन सत्य एवं संतोष को त्याग चुके हैं।॥ १॥
ਇਨ ਤੇ ਕਾਢਿ ਲੇਹੁ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਹਾਰਿ ਪਰੇ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਸਾਰਨ ॥
इन ते काढि लेहु मेरे सुआमी हारि परे तुम्ह सारन ॥
हे मेरे स्वामी ! मुझे इन विकारों से बाहर निकाल लो, मैं हार कर तेरी शरण में आ गया हूँ।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਪ੍ਰਭ ਪਹਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਰੰਕ ਤਾਰਨ ॥੨॥੩॥੮੩॥
नानक की बेनंती प्रभ पहि साधसंगि रंक तारन ॥२॥३॥८३॥
नानक की प्रभु से विनती है कि मुझ निर्धन को साध-संगत द्वारा संसार-सागर से तार दो ॥ २॥ ३ ॥ ८३ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਸੰਤਨ ਕੈ ਸੁਨੀਅਤ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਬਾਤ ॥
संतन कै सुनीअत प्रभ की बात ॥
संतजनों के सान्निध्य में प्रभु की कथा ही सुनी जाती है।
ਕਥਾ ਕੀਰਤਨੁ ਆਨੰਦ ਮੰਗਲ ਧੁਨਿ ਪੂਰਿ ਰਹੀ ਦਿਨਸੁ ਅਰੁ ਰਾਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कथा कीरतनु आनंद मंगल धुनि पूरि रही दिनसु अरु राति ॥१॥ रहाउ ॥
वहाँ दिन-रात कथा-कीर्तन, आनंद एवं मंगल ध्वनि होती रहती है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨੇ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨੇ ਨਾਮ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ॥
करि किरपा अपने प्रभि कीने नाम अपुने की कीनी दाति ॥
कृपा करके प्रभु ने अपना सेवक बना लिया है और अपने नाम का दान प्रदान कर दिया है।
ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਇਸੁ ਤਨ ਤੇ ਜਾਤ ॥੧॥
आठ पहर गुन गावत प्रभ के काम क्रोध इसु तन ते जात ॥१॥
अब आठ प्रहर प्रभु का गुणानुवाद करने से काम, क्रोध इस तन से दूर हो गए हैं।॥ १॥