Hindi Page 1025

ਨਾਵਹੁ ਭੁਲੀ ਚੋਟਾ ਖਾਏ ॥
नावहु भुली चोटा खाए ॥
ईश्वर को विस्मृत करने वाली जीव-स्त्री बहुत कष्ट सहन करती है और

ਬਹੁਤੁ ਸਿਆਣਪ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਏ ॥
बहुतु सिआणप भरमु न जाए ॥
अनेक चतुराईयाँ करने से भी उसका भ्रम दूर नहीं होता।

ਪਚਿ ਪਚਿ ਮੁਏ ਅਚੇਤ ਨ ਚੇਤਹਿ ਅਜਗਰਿ ਭਾਰਿ ਲਦਾਈ ਹੇ ॥੮॥
पचि पचि मुए अचेत न चेतहि अजगरि भारि लदाई हे ॥८॥
मूर्ख व्यक्ति परमात्मा को याद नहीं करते, अतः दुखी ही हुए हैं और उन्होंने पापों का भार लाद लिया है॥ ८॥

ਬਿਨੁ ਬਾਦ ਬਿਰੋਧਹਿ ਕੋਈ ਨਾਹੀ ॥
बिनु बाद बिरोधहि कोई नाही ॥
वैर-विरोध से कोई खाली नहीं है,

ਮੈ ਦੇਖਾਲਿਹੁ ਤਿਸੁ ਸਾਲਾਹੀ ॥
मै देखालिहु तिसु सालाही ॥
अगर कोई इससे बचा हुआ है तो मुझे दिखा दो, मैं उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करूँगा।

ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪਿ ਮਿਲੈ ਜਗਜੀਵਨੁ ਹਰਿ ਸਿਉ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ਹੇ ॥੯॥
मनु तनु अरपि मिलै जगजीवनु हरि सिउ बणत बणाई हे ॥९॥
मन-तन अर्पण करने से ही परमात्मा मिलता है, भगवान से प्रीति बनी रहती है॥ ९॥

ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕੋਇ ਨ ਪਾਵੈ ॥
प्रभ की गति मिति कोइ न पावै ॥
प्रभु की गति एवं महिमा कोई भी जान नहीं सकता।

ਜੇ ਕੋ ਵਡਾ ਕਹਾਇ ਵਡਾਈ ਖਾਵੈ ॥
जे को वडा कहाइ वडाई खावै ॥
अगर कोई कहता है कि मैं ही बड़ा हूँ तो उसका आत्माभिमान उसे मिटा देता है।

ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਤੋਟਿ ਨ ਦਾਤੀ ਸਗਲੀ ਤਿਨਹਿ ਉਪਾਈ ਹੇ ॥੧੦॥
साचे साहिब तोटि न दाती सगली तिनहि उपाई हे ॥१०॥
सच्चे परमेश्वर की देन में कोई कमी नहीं, सारी दुनिया उसने ही पैदा की है॥ १०॥

ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਵੇਪਰਵਾਹੇ ॥
वडी वडिआई वेपरवाहे ॥
उस बेपरवाह की महिमा बहुत बड़ी है,

ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਦਾਨੁ ਸਮਾਹੇ ॥
आपि उपाए दानु समाहे ॥
वह स्वयं ही जीवों को पैदा करके उन्हें लिए भोजन देता है।

ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਦੂਰਿ ਨਹੀ ਦਾਤਾ ਮਿਲਿਆ ਸਹਜਿ ਰਜਾਈ ਹੇ ॥੧੧॥
आपि दइआलु दूरि नही दाता मिलिआ सहजि रजाई हे ॥११॥
वह दयालु दाता कहीं दूर नहीं है और वह सहज ही अपनी मर्जी से है॥ ११॥

ਇਕਿ ਸੋਗੀ ਇਕਿ ਰੋਗਿ ਵਿਆਪੇ ॥
इकि सोगी इकि रोगि विआपे ॥
दुनिया में कोई शोकग्रस्त है तो कोई रोगग्रस्त है।

ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੇ ਸੁ ਆਪੇ ਆਪੇ ॥
जो किछु करे सु आपे आपे ॥
जो कुछ करता है, वह स्वेच्छा से ही करता है।

ਭਗਤਿ ਭਾਉ ਗੁਰ ਕੀ ਮਤਿ ਪੂਰੀ ਅਨਹਦਿ ਸਬਦਿ ਲਖਾਈ ਹੇ ॥੧੨॥
भगति भाउ गुर की मति पूरी अनहदि सबदि लखाई हे ॥१२॥
यदि गुरु की शिक्षा द्वारा भगवान की भक्ति की जाए तो अनाहत शब्द का अनुभव हो जाता है॥ १२॥

ਇਕਿ ਨਾਗੇ ਭੂਖੇ ਭਵਹਿ ਭਵਾਏ ॥
इकि नागे भूखे भवहि भवाए ॥
कुछ नंगे-भूखे इधर-उधर भटकते रहते हैं,

ਇਕਿ ਹਠੁ ਕਰਿ ਮਰਹਿ ਨ ਕੀਮਤਿ ਪਾਏ ॥
इकि हठु करि मरहि न कीमति पाए ॥
कुछ हठपूकि प्राण त्याग देते हैं और अमूल्य जन्म का महत्व नहीं समझते।

ਗਤਿ ਅਵਿਗਤ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੈ ਬੂਝੈ ਸਬਦੁ ਕਮਾਈ ਹੇ ॥੧੩॥
गति अविगत की सार न जाणै बूझै सबदु कमाई हे ॥१३॥
वे भले बुरे का महत्व नहीं जानते, परन्तु जो शब्द की साधना करते हैं, वही इस रहस्य को बूझते हैं।॥ १३॥

ਇਕਿ ਤੀਰਥਿ ਨਾਵਹਿ ਅੰਨੁ ਨ ਖਾਵਹਿ ॥
इकि तीरथि नावहि अंनु न खावहि ॥
कोई तीथों में स्नान करता है तो कोई व्रत उपवास रखता है,

ਇਕਿ ਅਗਨਿ ਜਲਾਵਹਿ ਦੇਹ ਖਪਾਵਹਿ ॥
इकि अगनि जलावहि देह खपावहि ॥
कुछ लोग धूनियाँ तपाकर शरीर को कष्ट देते हैं।

ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਪਾਰਿ ਲੰਘਾਈ ਹੇ ॥੧੪॥
राम नाम बिनु मुकति न होई कितु बिधि पारि लंघाई हे ॥१४॥
राम नाम के बिना किसी की भी मुक्ति संभव नहीं, तो फिर किस विधि द्वारा पार हुआ जा सकता है॥ १४॥

ਗੁਰਮਤਿ ਛੋਡਹਿ ਉਝੜਿ ਜਾਈ ॥
गुरमति छोडहि उझड़ि जाई ॥
कुछ व्यक्ति गुरुमत को छोड़कर पथभ्रष्ट हो जाते हैं।

ਮਨਮੁਖਿ ਰਾਮੁ ਨ ਜਪੈ ਅਵਾਈ ॥
मनमुखि रामु न जपै अवाई ॥
स्वेच्छाचारी जीव राम नाम का जाप नहीं करता,

ਪਚਿ ਪਚਿ ਬੂਡਹਿ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵਹਿ ਕੂੜਿ ਕਾਲੁ ਬੈਰਾਈ ਹੇ ॥੧੫॥
पचि पचि बूडहि कूड़ु कमावहि कूड़ि कालु बैराई हे ॥१५॥
झूठ कमाता है, दुखी होकर डूबता है और झूठ के कारण यम भी उसका वैरी हो जाता है।॥ १५॥

ਹੁਕਮੇ ਆਵੈ ਹੁਕਮੇ ਜਾਵੈ ॥
हुकमे आवै हुकमे जावै ॥
हुक्म से ही जीव का जन्म-मरण होता है

ਬੂਝੈ ਹੁਕਮੁ ਸੋ ਸਾਚਿ ਸਮਾਵੈ ॥
बूझै हुकमु सो साचि समावै ॥
जो हुक्म के रहस्य को जान लेता है, वह सत्य में विलीन हो जाता है।

ਨਾਨਕ ਸਾਚੁ ਮਿਲੈ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਾਰ ਕਮਾਈ ਹੇ ॥੧੬॥੫॥
नानक साचु मिलै मनि भावै गुरमुखि कार कमाई हे ॥१६॥५॥
हे नानक ! सत्यस्वरूप परमात्मा उसे ही मिलता है, जिसे मन में प्यारा लगता है और गुरुमुख बनकर नाम-सिमरन का कर्म करता है॥ १६॥ ५॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥
आपे करता पुरखु बिधाता ॥
परमात्मा स्वयं संसार का रचयिता पुरुष विधाता है,

ਜਿਨਿ ਆਪੇ ਆਪਿ ਉਪਾਇ ਪਛਾਤਾ ॥
जिनि आपे आपि उपाइ पछाता ॥
जिसने स्वयं जीवों को पैदा करके पहचान दी है।

ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਆਪੇ ਸੇਵਕੁ ਆਪੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ਹੇ ॥੧॥
आपे सतिगुरु आपे सेवकु आपे स्रिसटि उपाई हे ॥१॥
सतगुरु एवं सेवक भी वही है और उसने स्वयं ही सृष्टि उत्पन्न की है॥ १॥

ਆਪੇ ਨੇੜੈ ਨਾਹੀ ਦੂਰੇ ॥
आपे नेड़ै नाही दूरे ॥
वह हमारे निकट ही है, कहीं दूर नहीं।

ਬੂਝਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇ ਜਨ ਪੂਰੇ ॥
बूझहि गुरमुखि से जन पूरे ॥
जिन्होंने गुरु के सान्निध्य में रहकर इस रहस्य को बूझ लिया है, वही पूर्ण पुरुष हैं।

ਤਿਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਅਹਿਨਿਸਿ ਲਾਹਾ ਗੁਰ ਸੰਗਤਿ ਏਹ ਵਡਾਈ ਹੇ ॥੨॥
तिन की संगति अहिनिसि लाहा गुर संगति एह वडाई हे ॥२॥
गुरु-संगति की यही कीर्ति है कि उनकी संगति में रहने से नित्य लाभ ही लाभ मिलता है॥ २॥

ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਸੰਤ ਭਲੇ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੇ ॥
जुगि जुगि संत भले प्रभ तेरे ॥
हे प्यारे प्रभु ! तेरे संतजन युग-युग भले हैं,

ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਰਸਨ ਰਸੇਰੇ ॥
हरि गुण गावहि रसन रसेरे ॥
जो प्रेमपूर्वक तेरे गुण गाते रहते हैं।

ਉਸਤਤਿ ਕਰਹਿ ਪਰਹਰਿ ਦੁਖੁ ਦਾਲਦੁ ਜਿਨ ਨਾਹੀ ਚਿੰਤ ਪਰਾਈ ਹੇ ॥੩॥
उसतति करहि परहरि दुखु दालदु जिन नाही चिंत पराई हे ॥३॥
वे तेरा स्तुतिगान करके दुख-दारिद्रय से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें कोई पराई चिंता नहीं है॥ ३॥

ਓਇ ਜਾਗਤ ਰਹਹਿ ਨ ਸੂਤੇ ਦੀਸਹਿ ॥
ओइ जागत रहहि न सूते दीसहि ॥
वे सदा मोह-माया से सतर्क रहते हैं और मोह की निद्रा में दिखाई नहीं देते।

ਸੰਗਤਿ ਕੁਲ ਤਾਰੇ ਸਾਚੁ ਪਰੀਸਹਿ ॥
संगति कुल तारे साचु परीसहि ॥
वे सत्य-नाम ही वितरित करते हैं और अपने संगियों एवं वंशावलि का उद्धार कर देते हैं।

ਕਲਿਮਲ ਮੈਲੁ ਨਾਹੀ ਤੇ ਨਿਰਮਲ ਓਇ ਰਹਹਿ ਭਗਤਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ਹੇ ॥੪॥
कलिमल मैलु नाही ते निरमल ओइ रहहि भगति लिव लाई हे ॥४॥
वे सदैव निर्मल हैं, उन्हें पापों की मैल स्पर्श नहीं करती और उनकी प्रभु-भक्ति में ही लगन लगी रहती है।॥ ४॥

ਬੂਝਹੁ ਹਰਿ ਜਨ ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਣੀ ॥
बूझहु हरि जन सतिगुर बाणी ॥
हे भक्तजनो ! सतगुरु की वाणी को समझो,

ਏਹੁ ਜੋਬਨੁ ਸਾਸੁ ਹੈ ਦੇਹ ਪੁਰਾਣੀ ॥
एहु जोबनु सासु है देह पुराणी ॥
यह यौवन, श्वास एवं शरीर पुराना हो जाना है अर्थात् नाशवान है।

ਆਜੁ ਕਾਲਿ ਮਰਿ ਜਾਈਐ ਪ੍ਰਾਣੀ ਹਰਿ ਜਪੁ ਜਪਿ ਰਿਦੈ ਧਿਆਈ ਹੇ ॥੫॥
आजु कालि मरि जाईऐ प्राणी हरि जपु जपि रिदै धिआई हे ॥५॥
आज अथवा कल एक न एक दिन प्राणी ने मृत्यु को प्राप्त हो जाना है, इसलिए भगवान का जाप कर लो और हृदय में उसका ही ध्यान करो॥ ५॥

ਛੋਡਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ਕੂੜ ਕਬਾੜਾ ॥
छोडहु प्राणी कूड़ कबाड़ा ॥
हे प्राणी ! झूठी बातों को छोड़ दो, झूठे आदमी को काल पछाड़ कर मारता है।

ਕੂੜੁ ਮਾਰੇ ਕਾਲੁ ਉਛਾਹਾੜਾ ॥
कूड़ु मारे कालु उछाहाड़ा ॥
ईश्वर से विमुख जीव झूठ में फँसकर नष्ट हो जाता है।

ਸਾਕਤ ਕੂੜਿ ਪਚਹਿ ਮਨਿ ਹਉਮੈ ਦੁਹੁ ਮਾਰਗਿ ਪਚੈ ਪਚਾਈ ਹੇ ॥੬॥
साकत कूड़ि पचहि मनि हउमै दुहु मारगि पचै पचाई हे ॥६॥
उसके मन में अहम् ही बना रहता है और दैतभाव के मार्ग पर चलकर वह समाप्त हो जाता है ॥६॥

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