ਜੀਵਨ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੁ ਇਕੋ ਸਿਮਰੀਐ ॥
जीवन पदु निरबाणु इको सिमरीऐ ॥
निर्वाण अवस्था वाली जीवन पदवी पाने के लिए एक पवित्र प्रभु की आराधना करो।
ਦੂਜੀ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਧੀਰੀਐ ॥
दूजी नाही जाइ किनि बिधि धीरीऐ ॥
दूसरा कोई स्थान नहीं, (क्योंकि) किसी दूसरे से हमारी कैसे संतुष्टि हो सकती है?
ਡਿਠਾ ਸਭੁ ਸੰਸਾਰੁ ਸੁਖੁ ਨ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ॥
डिठा सभु संसारु सुखु न नाम बिनु ॥
मैंने सारा संसार देख लिया है, ईश्वर के नाम के अलावा कोई सुख नहीं।
ਤਨੁ ਧਨੁ ਹੋਸੀ ਛਾਰੁ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ਜਨੁ ॥
तनु धनु होसी छारु जाणै कोइ जनु ॥
यह तन एवं धन नष्ट हो जाएँगे परन्तु कोई विरला पुरुष ही इसे समझता है।
ਰੰਗ ਰੂਪ ਰਸ ਬਾਦਿ ਕਿ ਕਰਹਿ ਪਰਾਣੀਆ ॥
रंग रूप रस बादि कि करहि पराणीआ ॥
हे नश्वर प्राणी ! तुम क्या कर रहे हो ? रंग-रूप एवं रस सब व्यर्थ हैं।
ਜਿਸੁ ਭੁਲਾਏ ਆਪਿ ਤਿਸੁ ਕਲ ਨਹੀ ਜਾਣੀਆ ॥
जिसु भुलाए आपि तिसु कल नही जाणीआ ॥
“(परन्तु प्राणी के भी क्या वश ?) ईश्वर जिस पुरुष को स्वयं कुमार्गगामी करता है, वह उसकी शक्ति को नहीं समझता।
ਰੰਗਿ ਰਤੇ ਨਿਰਬਾਣੁ ਸਚਾ ਗਾਵਹੀ ॥
रंगि रते निरबाणु सचा गावही ॥
जो मनुष्य पवित्र प्रभु के प्रेम में मग्न रहते हैं, वे सत्यनाम का गायन करते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਦੁਆਰਿ ਜੇ ਤੁਧੁ ਭਾਵਹੀ ॥੨॥
नानक सरणि दुआरि जे तुधु भावही ॥२॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु ! जो भी जीव तुझे अच्छे लगते हैं, वे तेरे द्वार पर शरण हेतु आ जाते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣੁ ਨ ਤਿਨੑ ਕਉ ਜੋ ਹਰਿ ਲੜਿ ਲਾਗੇ ॥
जमणु मरणु न तिन्ह कउ जो हरि लड़ि लागे ॥
जो व्यक्ति ईश्वर का सहारा लेते हैं, उनका जन्म-मरण का चक्र मिट जाता है।
ਜੀਵਤ ਸੇ ਪਰਵਾਣੁ ਹੋਏ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਿ ਜਾਗੇ ॥
जीवत से परवाणु होए हरि कीरतनि जागे ॥
जो ईश्वर के भजन कीर्तन में सचेत रहते हैं, वे इस जीवन में सत्कृत हो जाते हैं।
ਸਾਧਸੰਗੁ ਜਿਨ ਪਾਇਆ ਸੇਈ ਵਡਭਾਗੇ ॥
साधसंगु जिन पाइआ सेई वडभागे ॥
जिन लोगों को संतों की संगति प्राप्त होती है, वे बड़े भाग्यवान हैं।
ਨਾਇ ਵਿਸਰਿਐ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਣਾ ਤੂਟੇ ਕਚ ਧਾਗੇ ॥
नाइ विसरिऐ ध्रिगु जीवणा तूटे कच धागे ॥
परन्तु यदि परमेश्वर का नाम भूल जाए तो यह जीवन धिक्कार योग्य है तथा यह कच्चे धागे की भाँति टूट जाता है।
ਨਾਨਕ ਧੂੜਿ ਪੁਨੀਤ ਸਾਧ ਲਖ ਕੋਟਿ ਪਿਰਾਗੇ ॥੧੬॥
नानक धूड़ि पुनीत साध लख कोटि पिरागे ॥१६॥
हे नानक ! संतों की चरण-धूलि लाखों-करोड़ों प्रयागराज इत्यादि तीर्थो से अधिक पावन है॥ १६॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥
सलोकु मः ५ ॥
श्लोक महला ५ ॥
ਧਰਣਿ ਸੁਵੰਨੀ ਖੜ ਰਤਨ ਜੜਾਵੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਪੁਰਖੁ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ॥
धरणि सुवंनी खड़ रतन जड़ावी हरि प्रेम पुरखु मनि वुठा ॥
जिस हृदय में हरि-परमेश्वर के प्रेम का निवास है, वह हृदय ऐसा है जैसे ओस-मोतियों से जड़ित घास वाली धरती सुन्दर रंग वाली हो जाती है।
ਸਭੇ ਕਾਜ ਸੁਹੇਲੜੇ ਥੀਏ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ॥੧॥
सभे काज सुहेलड़े थीए गुरु नानकु सतिगुरु तुठा ॥१॥
हे नानक ! जिस पुरुष पर गुरु नानक प्रसन्न हो जाता है, उसके तमाम कार्य सहज ही (सफल) हो जाते हैं॥ १ ॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਫਿਰਦੀ ਫਿਰਦੀ ਦਹ ਦਿਸਾ ਜਲ ਪਰਬਤ ਬਨਰਾਇ ॥
फिरदी फिरदी दह दिसा जल परबत बनराइ ॥
दसों दिशाओं में नदियों, पर्वतों एवं जंगलों पर
ਜਿਥੈ ਡਿਠਾ ਮਿਰਤਕੋ ਇਲ ਬਹਿਠੀ ਆਇ ॥੨॥
जिथै डिठा मिरतको इल बहिठी आइ ॥२॥
उड़ती-उड़ती चील ने जहाँ शव देखा वहीं आ बैठी ॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਜਿਸੁ ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਫਲ ਲੋੜੀਅਹਿ ਸੋ ਸਚੁ ਕਮਾਵਉ ॥
जिसु सरब सुखा फल लोड़ीअहि सो सचु कमावउ ॥
मैं उस सत्य के पुंज ईश्वर का चिन्तन करूँ, जिससे सर्व सुख एवं फल माँगे जाते हैं।
ਨੇੜੈ ਦੇਖਉ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਉ ॥
नेड़ै देखउ पारब्रहमु इकु नामु धिआवउ ॥
उस पारब्रह्म को अपने साथ-साथ ही देखें और उसके नाम का ध्यान करता रहूँ।
ਹੋਇ ਸਗਲ ਕੀ ਰੇਣੁਕਾ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਸਮਾਵਉ ॥
होइ सगल की रेणुका हरि संगि समावउ ॥
मैं सबकी चरण-धूलि होकर उस ईश्वर में समा जाऊँ।
ਦੂਖੁ ਨ ਦੇਈ ਕਿਸੈ ਜੀਅ ਪਤਿ ਸਿਉ ਘਰਿ ਜਾਵਉ ॥
दूखु न देई किसै जीअ पति सिउ घरि जावउ ॥
मैं किसी भी प्राणी को दुःख न दूँ और प्रतिष्ठा से अपने वास्तविक घर में जाऊँ।
ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਾਨਕ ਸੁਣਾਵਉ ॥੧੭॥
पतित पुनीत करता पुरखु नानक सुणावउ ॥१७॥
हे नानक ! मैं दूसरों को भी सुनाता हूँ कि विश्व का रचयिता परमात्मा पतित जीवों को भी पवित्र करने वाला है॥ १७ ॥
ਸਲੋਕ ਦੋਹਾ ਮਃ ੫ ॥
सलोक दोहा मः ५ ॥
श्लोक दोहा महला ५॥
ਏਕੁ ਜਿ ਸਾਜਨੁ ਮੈ ਕੀਆ ਸਰਬ ਕਲਾ ਸਮਰਥੁ ॥
एकु जि साजनु मै कीआ सरब कला समरथु ॥
मैंने उस एक ईश्वर को अपना साजन बनाया है जो सर्वकला सम्पूर्ण है।
ਜੀਉ ਹਮਾਰਾ ਖੰਨੀਐ ਹਰਿ ਮਨ ਤਨ ਸੰਦੜੀ ਵਥੁ ॥੧॥
जीउ हमारा खंनीऐ हरि मन तन संदड़ी वथु ॥१॥
मेरी आत्मा उस पर न्यौछायर है और वह परमेश्वर ही मेरे मन एवं तन की यथार्थ दौलत है॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਜੇ ਕਰੁ ਗਹਹਿ ਪਿਆਰੜੇ ਤੁਧੁ ਨ ਛੋਡਾ ਮੂਲਿ ॥
जे करु गहहि पिआरड़े तुधु न छोडा मूलि ॥
हे मेरे प्रियतम ! यदि तू मेरा हाथ थाम ले तो मैं तुझे कभी भी छोड़ नहीं सकूंगा।
ਹਰਿ ਛੋਡਨਿ ਸੇ ਦੁਰਜਨਾ ਪੜਹਿ ਦੋਜਕ ਕੈ ਸੂਲਿ ॥੨॥
हरि छोडनि से दुरजना पड़हि दोजक कै सूलि ॥२॥
जो मनुष्य ईश्वर को त्याग देते हैं, ऐसे दुर्जन इन्सान नरक की असहनीय पीड़ा में पड़ते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸਭਿ ਨਿਧਾਨ ਘਰਿ ਜਿਸ ਦੈ ਹਰਿ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਵੈ ॥
सभि निधान घरि जिस दै हरि करे सु होवै ॥
सारे खजाने उस ईश्वर के घर में हैं। परमात्मा जो कुछ करता है, वही होता है।
ਜਪਿ ਜਪਿ ਜੀਵਹਿ ਸੰਤ ਜਨ ਪਾਪਾ ਮਲੁ ਧੋਵੈ ॥
जपि जपि जीवहि संत जन पापा मलु धोवै ॥
संतजन उसका भजन-सिमरन करके जीते हैं, और वह उनके पापों की तमाम मैल स्वच्छ कर देता है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਹਿਰਦੈ ਵਸਹਿ ਸੰਕਟ ਸਭਿ ਖੋਵੈ ॥
चरन कमल हिरदै वसहि संकट सभि खोवै ॥
ईश्वर के चरण-कमल हृदय में बसाने से तमाम संकट दूर हो जाते हैं।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਜਿਸੁ ਭੇਟੀਐ ਮਰਿ ਜਨਮਿ ਨ ਰੋਵੈ ॥
गुरु पूरा जिसु भेटीऐ मरि जनमि न रोवै ॥
जो मनुष्य पूर्ण गुरु से साक्षात्कार करता है, वह जन्म-मरण के चक्र में विलाप नहीं करता।
ਪ੍ਰਭ ਦਰਸ ਪਿਆਸ ਨਾਨਕ ਘਣੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਦੇਵੈ ॥੧੮॥
प्रभ दरस पिआस नानक घणी किरपा करि देवै ॥१८॥
नानकं को भी प्रभु के दर्शनों की तीव्र लालसा है लेकिन अपनी कृपा-दृष्टि से ही वह दर्शनों की देन प्रदान करता है॥ १८॥
ਸਲੋਕ ਡਖਣਾ ਮਃ ੫ ॥
सलोक डखणा मः ५ ॥
श्लोक डखणा महला ५॥
ਭੋਰੀ ਭਰਮੁ ਵਞਾਇ ਪਿਰੀ ਮੁਹਬਤਿ ਹਿਕੁ ਤੂ ॥
भोरी भरमु वञाइ पिरी मुहबति हिकु तू ॥
यदि तू थोड़ा-सा भी भ्रम दूर कर दे और अपने प्रियतम (परमात्मा) के साथ मुहब्बत करे
ਜਿਥਹੁ ਵੰਞੈ ਜਾਇ ਤਿਥਾਊ ਮਉਜੂਦੁ ਸੋਇ ॥੧॥
जिथहु वंञै जाइ तिथाऊ मउजूदु सोइ ॥१॥
तो जहाँ कहीं भी जाओगे, वहाँ ईश्वर तुझे मौजूद दिखेगा ॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५ ॥
ਚੜਿ ਕੈ ਘੋੜੜੈ ਕੁੰਦੇ ਪਕੜਹਿ ਖੂੰਡੀ ਦੀ ਖੇਡਾਰੀ ॥
चड़ि कै घोड़ड़ै कुंदे पकड़हि खूंडी दी खेडारी ॥
जो व्यक्ति साधारण खेल खेलना जानते हों (लेकिन) सुन्दर घोड़े पर सवार होकर बन्दूक के हत्थे पकड़ते हों
ਹੰਸਾ ਸੇਤੀ ਚਿਤੁ ਉਲਾਸਹਿ ਕੁਕੜ ਦੀ ਓਡਾਰੀ ॥੨॥
हंसा सेती चितु उलासहि कुकड़ दी ओडारी ॥२॥
(उन्हें ऐसा समझो कि) उड़ान तो मुर्गे की उड़ना जानते हों और हंसों के साथ उड़ने के लिए मन को उत्साह देते हों ॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਰਸਨਾ ਉਚਰੈ ਹਰਿ ਸ੍ਰਵਣੀ ਸੁਣੈ ਸੋ ਉਧਰੈ ਮਿਤਾ ॥
रसना उचरै हरि स्रवणी सुणै सो उधरै मिता ॥
हे मित्र ! जो व्यक्ति अपनी रसना से भगवान के नाम का उच्चारण करता है और कानों से सुनता है, ऐसे व्यक्ति का उद्धार हो जाता है।
ਹਰਿ ਜਸੁ ਲਿਖਹਿ ਲਾਇ ਭਾਵਨੀ ਸੇ ਹਸਤ ਪਵਿਤਾ ॥
हरि जसु लिखहि लाइ भावनी से हसत पविता ॥
जो हाथ श्रद्धा से भगवान का यश लिखते हैं, वे बड़े पवित्र हैं।
ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਮਜਨਾ ਸਭਿ ਪੁੰਨ ਤਿਨਿ ਕਿਤਾ ॥
अठसठि तीरथ मजना सभि पुंन तिनि किता ॥
ऐसा पुरुष अठसठ तीर्थों के स्नान का फल पा लेता है और यह मान लिया जाता है कि उसने पुण्यकर्म कर लिए हैं।
ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰ ਤੇ ਉਧਰੇ ਬਿਖਿਆ ਗੜੁ ਜਿਤਾ ॥
संसार सागर ते उधरे बिखिआ गड़ु जिता ॥
वह संसार-सागर से पार हो जाता है और माया रूपी विकारों के किले को विजय कर लेता है।