ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਅਖੀ ਪ੍ਰੇਮਿ ਕਸਾਈਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਿਖੰਨੑਿ ॥
अखी प्रेमि कसाईआ हरि हरि नामु पिखंन्हि ॥
ये आँखें हरि-प्रेम में अनुरक्त हैं और प्रभु को देखती रहती हैं।
ਜੇ ਕਰਿ ਦੂਜਾ ਦੇਖਦੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਢਿ ਦਿਚੰਨੑਿ ॥੨॥
जे करि दूजा देखदे जन नानक कढि दिचंन्हि ॥२॥
हे नानक ! यदि प्रभु के सिवा किसी अन्य को देखती हैं, तो ऐसी आँखों को निकाल देना चाहिए॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਨੋ ਅਪਰੰਪਰੁ ਸੋਈ ॥
जलि थलि महीअलि पूरनो अपर्मपरु सोई ॥
जल, धरती, आकाश सर्वत्र ईश्वर ही व्याप्त है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਦਾ ਜੋ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਈ ॥
जीअ जंत प्रतिपालदा जो करे सु होई ॥
वह जीव-जन्तु सबका पोषण करता है और जो करता है, वही होता है।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਭ੍ਰਾਤ ਮੀਤ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਨਹੀ ਕੋਈ ॥
मात पिता सुत भ्रात मीत तिसु बिनु नही कोई ॥
वही हमारा माता-पिता, पुत्र, भाई एवं मित्र है, उसके सिवा अन्य कोई हमदर्द नहीं।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਅੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਜਪਿਅਹੁ ਜਨ ਕੋਈ ॥
घटि घटि अंतरि रवि रहिआ जपिअहु जन कोई ॥
वह घट घट में रमण कर रहा है और कोई विरला भक्त ही उसका जाप करता है।
ਸਗਲ ਜਪਹੁ ਗੋਪਾਲ ਗੁਨ ਪਰਗਟੁ ਸਭ ਲੋਈ ॥੧੩॥
सगल जपहु गोपाल गुन परगटु सभ लोई ॥१३॥
सभी परमात्मा का स्तुतिगान करो, सब लोकों में वही विद्यमान है॥ १३॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲੇ ਸਿ ਸਜਣਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਪਾਇਆ ਰੰਗੁ ॥
गुरमुखि मिले सि सजणा हरि प्रभ पाइआ रंगु ॥
जिसे सज्जन गुरु मिलता है, उसे ही प्रभु का प्रेम प्राप्त होता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿ ਤੂ ਲੁਡਿ ਲੁਡਿ ਦਰਗਹਿ ਵੰਞੁ ॥੧॥
जन नानक नामु सलाहि तू लुडि लुडि दरगहि वंञु ॥१॥
नानक का कथन है कि परमात्मा की स्तुति करो एवं खुशी-खुशी प्रभु के दरबार में जाओ॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਹਰਿ ਤੂਹੈ ਦਾਤਾ ਸਭਸ ਦਾ ਸਭਿ ਜੀਅ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥
हरि तूहै दाता सभस दा सभि जीअ तुम्हारे ॥
हे ईश्वर ! एकमात्र तू ही सबका दाता है, सभी जीव तुम्हारे हैं।
ਸਭਿ ਤੁਧੈ ਨੋ ਆਰਾਧਦੇ ਦਾਨੁ ਦੇਹਿ ਪਿਆਰੇ ॥
सभि तुधै नो आराधदे दानु देहि पिआरे ॥
सब लोग तुम्हारी आराधना करते हैं, हे प्यारे ! तू ही देने वाला है।
ਹਰਿ ਦਾਤੈ ਦਾਤਾਰਿ ਹਥੁ ਕਢਿਆ ਮੀਹੁ ਵੁਠਾ ਸੈਸਾਰੇ ॥
हरि दातै दातारि हथु कढिआ मीहु वुठा सैसारे ॥
दाता प्रभु ने देने के लिए हाथ निकाला तो संसार में वर्षा होने लगी।
ਅੰਨੁ ਜੰਮਿਆ ਖੇਤੀ ਭਾਉ ਕਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥
अंनु जमिआ खेती भाउ करि हरि नामु सम्हारे ॥
प्रेम की खेती करने वालों के अन्तर्मन में नाम रूपो अन्न उत्पन्न हुआ, सब प्रभु का नाम-स्मरण कर रहे हैं।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੇ ॥੨॥
जनु नानकु मंगै दानु प्रभ हरि नामु अधारे ॥२॥
नानक का कथन है कि मैं तो हरिनाम का ही आसरा मांगता हूँ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਇਛਾ ਮਨ ਕੀ ਪੂਰੀਐ ਜਪੀਐ ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ॥
इछा मन की पूरीऐ जपीऐ सुख सागरु ॥
सुखों के सागर ईश्वर का जाप करने से मन की हर कामना पूरी होती है।
ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਨ ਅਰਾਧੀਅਹਿ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਰਤਨਾਗਰੁ ॥
हरि के चरन अराधीअहि गुर सबदि रतनागरु ॥
परमात्मा के चरणों की आराधना करो, गुरु का शब्द रत्नों का भण्डार है।
ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਉਧਾਰੁ ਹੋਇ ਫਾਟੈ ਜਮ ਕਾਗਰੁ ॥
मिलि साधू संगि उधारु होइ फाटै जम कागरु ॥
साधु पुरुषों की संगत में मुक्ति प्राप्त होती है और यमराज का हिसाब खत्म हो जाता है।
ਜਨਮ ਪਦਾਰਥੁ ਜੀਤੀਐ ਜਪਿ ਹਰਿ ਬੈਰਾਗਰੁ ॥
जनम पदारथु जीतीऐ जपि हरि बैरागरु ॥
प्रेम की मूर्ति परमात्मा का भजन करने से जीवन सार्थक होता है।
ਸਭਿ ਪਵਹੁ ਸਰਨਿ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੀ ਬਿਨਸੈ ਦੁਖ ਦਾਗਰੁ ॥੧੪॥
सभि पवहु सरनि सतिगुरू की बिनसै दुख दागरु ॥१४॥
सभी गुरु की शरण में पड़ो, इससे तमाम दुख-तकलीफें नष्ट हो जाती हैं।॥ १४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਹਉ ਢੂੰਢੇਂਦੀ ਸਜਣਾ ਸਜਣੁ ਮੈਡੈ ਨਾਲਿ ॥
हउ ढूंढेंदी सजणा सजणु मैडै नालि ॥
मैं सज्जन प्रभु को ढूंढती फिरती हूँ, परन्तु प्यारा सज्जन तो मेरे आसपास ही है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖੀਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੇਹਿ ਦਿਖਾਲਿ ॥੧॥
जन नानक अलखु न लखीऐ गुरमुखि देहि दिखालि ॥१॥
हे नानक ! वह अदृष्ट है, दिखाई नहीं देता और गुरु ही उसके दर्शन करवाता है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਈ ਤਿਨਿ ਸਚੈ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਰਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥
नानक प्रीति लाई तिनि सचै तिसु बिनु रहणु न जाई ॥
नानक का कथन है कि सच्चे प्रभु से ऐसा प्रेम लगाया है कि उसके बिना अब रहा नहीं जाता।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਰਸਿ ਰਸਨ ਰਸਾਈ ॥੨॥
सतिगुरु मिलै त पूरा पाईऐ हरि रसि रसन रसाई ॥२॥
सतगुरु से साक्षात्कार हो जाए तो पूर्ण परमेश्वर प्राप्त होता है और रसना हरि के गुणगान में लीन रहती है।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਕੋਈ ਗਾਵੈ ਕੋ ਸੁਣੈ ਕੋ ਉਚਰਿ ਸੁਨਾਵੈ ॥
कोई गावै को सुणै को उचरि सुनावै ॥
कोई जिज्ञासु हरि के गुण गाता है, कोई श्रद्धालु हरि-संकीर्तन सुनता है, कोई परम भक्त नामोच्चारण करके जिज्ञासुओं को सुनाता है।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਮਲੁ ਉਤਰੈ ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਪਾਵੈ ॥
जनम जनम की मलु उतरै मन चिंदिआ पावै ॥
इसके फलस्वरूप सब की जन्म-जन्म की पापों की मैल दूर होती है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
ਆਵਣੁ ਜਾਣਾ ਮੇਟੀਐ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥
आवणु जाणा मेटीऐ हरि के गुण गावै ॥
परमात्मा के गुणानुवाद से आवागमन मिट जाता है।
ਆਪਿ ਤਰਹਿ ਸੰਗੀ ਤਰਾਹਿ ਸਭ ਕੁਟੰਬੁ ਤਰਾਵੈ ॥
आपि तरहि संगी तराहि सभ कुट्मबु तरावै ॥
हरि-भक्त स्वयं तो संसार-सागर से तैरता ही है, अपने संगी-साथियों एवं पूरे परिवार को पार करवा देता है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਜੋ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ॥੧੫॥੧॥ ਸੁਧੁ ॥
जनु नानकु तिसु बलिहारणै जो मेरे हरि प्रभ भावै ॥१५॥१॥ सुधु ॥
गुरु नानक का फुरमान है कि जो मेरे प्रभु को अच्छा लगता है, उस पर मैं सदैव बलिहारी जाता हूँ॥ १५॥ १॥शुद्ध अर्थात् मूल से मिलाप किया हुआ है।
ਰਾਗੁ ਕਾਨੜਾ ਬਾਣੀ ਨਾਮਦੇਵ ਜੀਉ ਕੀ
रागु कानड़ा बाणी नामदेव जीउ की
रागु कानड़ा बाणी नामदेव जीउ की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਐਸੋ ਰਾਮ ਰਾਇ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
ऐसो राम राइ अंतरजामी ॥
अन्तर्यामी परमेश्वर ऐसे दृष्टिगत होता है,
ਜੈਸੇ ਦਰਪਨ ਮਾਹਿ ਬਦਨ ਪਰਵਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जैसे दरपन माहि बदन परवानी ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे दर्पण में चेहरा स्पष्ट दिखाई देता है॥ १॥रहाउ॥
ਬਸੈ ਘਟਾ ਘਟ ਲੀਪ ਨ ਛੀਪੈ ॥
बसै घटा घट लीप न छीपै ॥
वह घट घट में व्याप्त है, उसे मोह-माया का कोई दोष नहीं लगता ।
ਬੰਧਨ ਮੁਕਤਾ ਜਾਤੁ ਨ ਦੀਸੈ ॥੧॥
बंधन मुकता जातु न दीसै ॥१॥
वह संसार के बन्धनों से मुक्त है, शाश्वत है।॥ १॥
ਪਾਨੀ ਮਾਹਿ ਦੇਖੁ ਮੁਖੁ ਜੈਸਾ ॥
पानी माहि देखु मुखु जैसा ॥
जिस तरह पानी में मुख साफ दिखाई देता है,
ਨਾਮੇ ਕੋ ਸੁਆਮੀ ਬੀਠਲੁ ਐਸਾ ॥੨॥੧॥
नामे को सुआमी बीठलु ऐसा ॥२॥१॥
नामदेव का स्वामी प्रभु भी ऐसे ही साक्षात् दिखाई देता है॥ २॥१॥