Hindi Page 498

ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸਿ ਮਾਤਾ ॥
आठ पहर हरि के गुन गावै भगति प्रेम रसि माता ॥
मैं आठ प्रहर हरि का गुणगान करता रहता हूँ एवं प्रेम-भक्ति द्वारा हरि रस में मस्त रहता हूँ।

ਹਰਖ ਸੋਗ ਦੁਹੁ ਮਾਹਿ ਨਿਰਾਲਾ ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਪਛਾਤਾ ॥੨॥
हरख सोग दुहु माहि निराला करणैहारु पछाता ॥२॥
हर्ष एवं शोक दोनों में निर्लेप रहता हूँ तथा अपने रचयिता को पहचान लिया है॥ २॥

ਜਿਸ ਕਾ ਸਾ ਤਿਨ ਹੀ ਰਖਿ ਲੀਆ ਸਗਲ ਜੁਗਤਿ ਬਣਿ ਆਈ ॥
जिस का सा तिन ही रखि लीआ सगल जुगति बणि आई ॥
मैं जिस प्रभु का सेवक बना था, उतने ही मेरी रक्षा की है और मेरी सभी युक्तियाँ सम्पन्न हो गई हैं।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਪੁਰਖ ਦਇਆਲਾ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥੩॥੧॥੯॥
कहु नानक प्रभ पुरख दइआला कीमति कहणु न जाई ॥३॥१॥९॥
हे नानक ! उस दयालु प्रभु (की दयालता) का मूल्यांकन नहीं बताया जा सकता ॥३॥१॥९॥

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਪਦੇ ਘਰੁ ੨
गूजरी महला ५ दुपदे घरु २
गूजरी महला ५ दुपदे घरु २

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਪਤਿਤ ਪਵਿਤ੍ਰ ਲੀਏ ਕਰਿ ਅਪੁਨੇ ਸਗਲ ਕਰਤ ਨਮਸਕਾਰੋ ॥
पतित पवित्र लीए करि अपुने सगल करत नमसकारो ॥
ईश्वर ने पतितों को भी पवित्र-पावन करके अपना बना लिया है और सारी दुनिया उन्हें प्रणाम करती है।

ਬਰਨੁ ਜਾਤਿ ਕੋਊ ਪੂਛੈ ਨਾਹੀ ਬਾਛਹਿ ਚਰਨ ਰਵਾਰੋ ॥੧॥
बरनु जाति कोऊ पूछै नाही बाछहि चरन रवारो ॥१॥
अब कोई भी उनके वर्ण एवं जाति के बारे में नहीं पूछता, लोग उनकी चरण-धूलि के अभिलाषी बने हुए हैं।॥ १॥

ਠਾਕੁਰ ਐਸੋ ਨਾਮੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੋ ॥
ठाकुर ऐसो नामु तुम्हारो ॥
हे ठाकुर ! तेरे नाम का ऐसा तेज-प्रताप है कि

ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕੋ ਧਣੀ ਕਹੀਜੈ ਜਨ ਕੋ ਅੰਗੁ ਨਿਰਾਰੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल स्रिसटि को धणी कहीजै जन को अंगु निरारो ॥१॥ रहाउ ॥
तू समूची सृष्टि का मालिक कहलवाता है तथा अपने भक्तजनों का निराला ही पक्ष करता है॥ १॥ रहाउ ॥

ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਬੁਧਿ ਪਾਈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਆਧਾਰੋ ॥
साधसंगि नानक बुधि पाई हरि कीरतनु आधारो ॥
सत्संगति में नानक को बुद्धि प्राप्त हो गई है और हरि का भजन-कीर्तन करना उसका जीवन का आधार है।

ਨਾਮਦੇਉ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨੁ ਕਬੀਰ ਦਾਸਰੋ ਮੁਕਤਿ ਭਇਓ ਚੰਮਿਆਰੋ ॥੨॥੧॥੧੦॥
नामदेउ त्रिलोचनु कबीर दासरो मुकति भइओ चमिआरो ॥२॥१॥१०॥
हरि-कीर्तन से ही नामदेव, त्रिलोचन, कबीरदास एवं रविदास चमार भी मुक्ति प्राप्त कर गए हैं। २॥ १॥ १० ॥

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५

ਹੈ ਨਾਹੀ ਕੋਊ ਬੂਝਨਹਾਰੋ ਜਾਨੈ ਕਵਨੁ ਭਤਾ ॥
है नाही कोऊ बूझनहारो जानै कवनु भता ॥
उस परमात्मा को बूझने वाला कोई भी नहीं, उसकी युक्तियों को कौन जान सकता है।

ਸਿਵ ਬਿਰੰਚਿ ਅਰੁ ਸਗਲ ਮੋਨਿ ਜਨ ਗਹਿ ਨ ਸਕਾਹਿ ਗਤਾ ॥੧॥
सिव बिरंचि अरु सगल मोनि जन गहि न सकाहि गता ॥१॥
शिव, ब्रह्मा तथा मुनिजन भी उसकी गति को समझ नहीं सकते॥ १॥

ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਕਥਾ ॥
प्रभ की अगम अगाधि कथा ॥
प्रभु की कथा अगम्य एवं अगाध है

ਸੁਨੀਐ ਅਵਰ ਅਵਰ ਬਿਧਿ ਬੁਝੀਐ ਬਕਨ ਕਥਨ ਰਹਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुनीऐ अवर अवर बिधि बुझीऐ बकन कथन रहता ॥१॥ रहाउ ॥
यह सुनने में कुछ और है परन्तु समझने में कुछ और ही तरह की है। यह वर्णन एवं कथन करने से परे है॥ १॥ रहाउ॥

ਆਪੇ ਭਗਤਾ ਆਪਿ ਸੁਆਮੀ ਆਪਨ ਸੰਗਿ ਰਤਾ ॥
आपे भगता आपि सुआमी आपन संगि रता ॥
परमात्मा स्वयं ही भक्त है और स्वयं ही स्वामी है। यह अपने आप से ही आसक्त रहता है।

ਨਾਨਕ ਕੋ ਪ੍ਰਭੁ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਹੈ ਪੇਖਿਓ ਜਤ੍ਰ ਕਤਾ ॥੨॥੨॥੧੧॥
नानक को प्रभु पूरि रहिओ है पेखिओ जत्र कता ॥२॥२॥११॥
नानक का प्रभु सारे विश्व में बसा हुआ है और वह उसे सर्वत्र देखता है ॥२॥२॥११॥

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥

ਮਤਾ ਮਸੂਰਤਿ ਅਵਰ ਸਿਆਨਪ ਜਨ ਕਉ ਕਛੂ ਨ ਆਇਓ ॥
मता मसूरति अवर सिआनप जन कउ कछू न आइओ ॥
प्रभु के सेवक को कोई सलाह-मशविरा एवं चतुराई कुछ भी नहीं आता।

ਜਹ ਜਹ ਅਉਸਰੁ ਆਇ ਬਨਿਓ ਹੈ ਤਹਾ ਤਹਾ ਹਰਿ ਧਿਆਇਓ ॥੧॥
जह जह अउसरु आइ बनिओ है तहा तहा हरि धिआइओ ॥१॥
जहां-कहीं भी संकट का अवसर बनता है, वहाँ वह हरि का ध्यान करता है॥ १॥

ਪ੍ਰਭ ਕੋ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਬਿਰਦਾਇਓ ॥
प्रभ को भगति वछलु बिरदाइओ ॥
भक्त-वत्सल होना प्रभु का विरद् है।

ਕਰੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ਬਾਰਿਕ ਕੀ ਨਿਆਈ ਜਨ ਕਉ ਲਾਡ ਲਡਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करे प्रतिपाल बारिक की निआई जन कउ लाड लडाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
वह अपने सेवकों का बालक की तरह भरण-पोषण करता है और अपने बच्चों की तरह उन्हें लाड लडाता है। ॥ रहाउ ॥

ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਕਰਮ ਧਰਮ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਜਨਿ ਗਾਇਓ ॥
जप तप संजम करम धरम हरि कीरतनु जनि गाइओ ॥
सेवक ने हरि-कीर्तन गाया है और हरि का कीर्तन ही उसके जप, तप, संयम एवं धर्म-कर्म हैं।

ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਨਾਨਕ ਠਾਕੁਰ ਕੀ ਅਭੈ ਦਾਨੁ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ॥੨॥੩॥੧੨॥
सरनि परिओ नानक ठाकुर की अभै दानु सुखु पाइओ ॥२॥३॥१२॥
हे नानक ! सेवक अपने ठाकुर जी की शरण में पड़ा है और उसने उससे अभयदान का सुख पाया है॥ २॥ ३॥ १२॥

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥

ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਆਰਾਧਹੁ ਪਿਆਰੋ ਨਿਮਖ ਨ ਕੀਜੈ ਢੀਲਾ ॥
दिनु राती आराधहु पिआरो निमख न कीजै ढीला ॥
हे प्रिय भक्तजनो ! दिन-रात भगवान की आराधना करो तथा क्षण भर के लिए भी विलम्ब मत करो।

ਸੰਤ ਸੇਵਾ ਕਰਿ ਭਾਵਨੀ ਲਾਈਐ ਤਿਆਗਿ ਮਾਨੁ ਹਾਠੀਲਾ ॥੧॥
संत सेवा करि भावनी लाईऐ तिआगि मानु हाठीला ॥१॥
अपने अभिमान एवं हठ को त्याग कर श्रद्धा से संतों की सेवा करो।॥ १॥

ਮੋਹਨੁ ਪ੍ਰਾਨ ਮਾਨ ਰਾਗੀਲਾ ॥
मोहनु प्रान मान रागीला ॥
मोहन प्रभु बड़ा रंगीला है जो मेरे प्राण एवं मान-सम्मान है।

ਬਾਸਿ ਰਹਿਓ ਹੀਅਰੇ ਕੈ ਸੰਗੇ ਪੇਖਿ ਮੋਹਿਓ ਮਨੁ ਲੀਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बासि रहिओ हीअरे कै संगे पेखि मोहिओ मनु लीला ॥१॥ रहाउ ॥
वह मेरे हृदय के साथ बसता है और उसकी लीला देखकर मेरा मन मुग्ध हो गया है॥ १॥ रहाउ॥

ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਮਨਿ ਹੋਤ ਅਨੰਦਾ ਉਤਰੈ ਮਨਹੁ ਜੰਗੀਲਾ ॥
जिसु सिमरत मनि होत अनंदा उतरै मनहु जंगीला ॥
जिस का सुमिरन करने से मन में आनंद होता है और मन (की जंग) मैल उतर जाती है,

ਮਿਲਬੇ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਨਾਨਕ ਪਰੈ ਪਰੀਲਾ ॥੨॥੪॥੧੩॥
मिलबे की महिमा बरनि न साकउ नानक परै परीला ॥२॥४॥१३॥
ऐसे प्रभु के मिलन की महिमा वर्णन नहीं की जा सकती। हे नानक ! उसकी महिमा अनुमान से परे अनंत है॥ २॥ ४॥ १३॥

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गूजरी महला ५ ॥
गूजरी महला ५ ॥

ਮੁਨਿ ਜੋਗੀ ਸਾਸਤ੍ਰਗਿ ਕਹਾਵਤ ਸਭ ਕੀਨੑੇ ਬਸਿ ਅਪਨਹੀ ॥
मुनि जोगी सासत्रगि कहावत सभ कीन्हे बसि अपनही ॥
जो स्वयं को मुनि, योगी एवं शास्त्रों के ज्ञाता कहलवाते हैं, माया ने उन सभी को अपने वश में किया हुआ है।

ਤੀਨਿ ਦੇਵ ਅਰੁ ਕੋੜਿ ਤੇਤੀਸਾ ਤਿਨ ਕੀ ਹੈਰਤਿ ਕਛੁ ਨ ਰਹੀ ॥੧॥
तीनि देव अरु कोड़ि तेतीसा तिन की हैरति कछु न रही ॥१॥
माया की इतनी प्रबलता देखकर त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु, महादेव और तेतीस करोड़ देवी-देवताओं की आश्चर्य की कोई सीमा न रही।॥ १॥

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