ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਕਾਇਆ ਅੰਦਰਿ ਗੜੁ ਕੋਟੁ ਹੈ ਸਭਿ ਦਿਸੰਤਰ ਦੇਸਾ ॥
काइआ अंदरि गड़ु कोटु है सभि दिसंतर देसा ॥
मानव-शरीर में ही दुर्ग, किला तथा सभी देश-देशान्तर की चीजें उपलब्ध हैं।
ਆਪੇ ਤਾੜੀ ਲਾਈਅਨੁ ਸਭ ਮਹਿ ਪਰਵੇਸਾ ॥
आपे ताड़ी लाईअनु सभ महि परवेसा ॥
ईश्वर ने स्वयं ही समाधि लगाई हुई है और सब जीवों में प्रवेश किया हुआ है।
ਆਪੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਾਜੀਅਨੁ ਆਪਿ ਗੁਪਤੁ ਰਖੇਸਾ ॥
आपे स्रिसटि साजीअनु आपि गुपतु रखेसा ॥
वह स्वयं ही सृष्टि-रचना करता है और खुद को गुप्त रखता है।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਜਾਣਿਆ ਸਚੁ ਪਰਗਟੀਏਸਾ ॥
गुर सेवा ते जाणिआ सचु परगटीएसा ॥
गुरु की सेवा करने से ही बोध होता है और वह सत्यस्यरूप प्रगट हो जाता है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸਚੋ ਸਚੁ ਹੈ ਗੁਰਿ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥੧੬॥
सभु किछु सचो सचु है गुरि सोझी पाई ॥१६॥
गुरु ने यही सूझ दी है कि सबकुछ परमसत्य ही है॥ १६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਸਾਵਣੁ ਰਾਤਿ ਅਹਾੜੁ ਦਿਹੁ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਦੁਇ ਖੇਤ ॥
सावणु राति अहाड़ु दिहु कामु क्रोधु दुइ खेत ॥
पापी इन्सान के लिए सावन का महीना रात के समान है और आषाढ़ का महीना दिन के समान है। काम एवं क्रोध दोनों ही उसके लिए खेत के समान हैं।
ਲਬੁ ਵਤ੍ਰ ਦਰੋਗੁ ਬੀਉ ਹਾਲੀ ਰਾਹਕੁ ਹੇਤ ॥
लबु वत्र दरोगु बीउ हाली राहकु हेत ॥
लालच उसके लिए विषय-विकार की फसल बोने के लिए उचित समय है और धोखा बोने वाला बीज है।
ਹਲੁ ਬੀਚਾਰੁ ਵਿਕਾਰ ਮਣ ਹੁਕਮੀ ਖਟੇ ਖਾਇ ॥
हलु बीचारु विकार मण हुकमी खटे खाइ ॥
उसके खेत में हल चलाने वाला किसान मोह है और उसका मंदा विचार ही जमीन को चलाने के लिए हल है। उसने पापों की फसल से पाप रूपी अनाज का फल इकठ्ठा किया है और परमात्मा के हुक्म से ही फल प्राप्त करता है।
ਨਾਨਕ ਲੇਖੈ ਮੰਗਿਐ ਅਉਤੁ ਜਣੇਦਾ ਜਾਇ ॥੧॥
नानक लेखै मंगिऐ अउतु जणेदा जाइ ॥१॥
हे नानक ! उसके किए कर्मो का हिसाब मांगते समय ही पता चलता है कि वह जीव रूपी पिता जगत् में से संतानहीन ही गया है, क्योंकि उसने किसी पुण्य कर्म रूपी पुत्र को जन्म नर्हीं दिया॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਭਉ ਭੁਇ ਪਵਿਤੁ ਪਾਣੀ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਬਲੇਦ ॥
भउ भुइ पवितु पाणी सतु संतोखु बलेद ॥
धर्मी इन्सान के लिए परमात्मा का डर खेत के समान है और मन की शुद्धता फसल को देने वाले जल के समान है। सत्य एवं संतोष दो बैलों के समान है और
ਹਲੁ ਹਲੇਮੀ ਹਾਲੀ ਚਿਤੁ ਚੇਤਾ ਵਤ੍ਰ ਵਖਤ ਸੰਜੋਗੁ ॥
हलु हलेमी हाली चितु चेता वत्र वखत संजोगु ॥
नम्रता हल के समान है, उसका चित्त हलवाहक एवं परमात्मा का सिमरन फसल बोने का उचित समय है, उसके लिए प्रभातकाल प्रभु से मिलाप करवाने वाला संयोग है और
ਨਾਉ ਬੀਜੁ ਬਖਸੀਸ ਬੋਹਲ ਦੁਨੀਆ ਸਗਲ ਦਰੋਗ ॥
नाउ बीजु बखसीस बोहल दुनीआ सगल दरोग ॥
प्रभु का नाम खेत में बोने वाले बीज के समान है, परमात्मा की कृपा अनाज के समान है और उसे सारी दुनिया ही धोखा नजर आती है।
ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਕਰਮੁ ਹੋਇ ਜਾਵਹਿ ਸਗਲ ਵਿਜੋਗ ॥੨॥
नानक नदरी करमु होइ जावहि सगल विजोग ॥२॥
हे नानक ! यदि परमात्मा की करुणा-दृष्टि हो जाए तो उसके सारे वियोग दूर हो जाते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਮਨਮੁਖਿ ਮੋਹੁ ਗੁਬਾਰੁ ਹੈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਬੋਲੈ ॥
मनमुखि मोहु गुबारु है दूजै भाइ बोलै ॥
स्वेच्छाचारी जीव के मन में मोह रूपी गुबार है, जिस कारण वह द्वैतभाव की ही बातें करता रहता है।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਸਦਾ ਦੁਖੁ ਹੈ ਨਿਤ ਨੀਰੁ ਵਿਰੋਲੈ ॥
दूजै भाइ सदा दुखु है नित नीरु विरोलै ॥
द्वैतभाव के कारण सदा दुख ही मिलता है और वह नित्य ही दूध के भ्रम में जल को विलोता रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਮਥਿ ਤਤੁ ਕਢੋਲੈ ॥
गुरमुखि नामु धिआईऐ मथि ततु कढोलै ॥
यदि गुरुमुख बनकर नाम का ध्यान किया जाए तो मंथन करके परमतत्व प्राप्त हो जाता है।
ਅੰਤਰਿ ਪਰਗਾਸੁ ਘਟਿ ਚਾਨਣਾ ਹਰਿ ਲਧਾ ਟੋਲੈ ॥
अंतरि परगासु घटि चानणा हरि लधा टोलै ॥
अन्तर्मन में प्रभु-ज्योति का प्रकाश हो जाता है और खोजकर भगवान को प्राप्त कर लेता है।
ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਦਾ ਕਿਛੁ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧੭॥
आपे भरमि भुलाइदा किछु कहणु न जाई ॥१७॥
ईश्वर स्वयं भ्रम में डालकर कुमार्गगामी कर देता है और इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता॥१७॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੨ ॥
सलोक मः २ ॥
श्लोक महला २॥
ਨਾਨਕ ਚਿੰਤਾ ਮਤਿ ਕਰਹੁ ਚਿੰਤਾ ਤਿਸ ਹੀ ਹੇਇ ॥
नानक चिंता मति करहु चिंता तिस ही हेइ ॥
नानक कहते हैं कि हे जीव ! चिंता मत करो, चूंकि सब की चिंता ईश्वर को स्वयं ही है।
ਜਲ ਮਹਿ ਜੰਤ ਉਪਾਇਅਨੁ ਤਿਨਾ ਭਿ ਰੋਜੀ ਦੇਇ ॥
जल महि जंत उपाइअनु तिना भि रोजी देइ ॥
जो जीव उसने जल में उत्पन्न किए हैं, वह उन्हें भी भोजन देता है।
ਓਥੈ ਹਟੁ ਨ ਚਲਈ ਨਾ ਕੋ ਕਿਰਸ ਕਰੇਇ ॥
ओथै हटु न चलई ना को किरस करेइ ॥
वहाँ जल में न कोई दुकान चलती है और न ही कोई कृषि करता है।
ਸਉਦਾ ਮੂਲਿ ਨ ਹੋਵਈ ਨਾ ਕੋ ਲਏ ਨ ਦੇਇ ॥
सउदा मूलि न होवई ना को लए न देइ ॥
वहाँ बिल्कुल ही कोई सौदा नहीं होता, न ही केिसी का कोई लेन-देन होता है।
ਜੀਆ ਕਾ ਆਹਾਰੁ ਜੀਅ ਖਾਣਾ ਏਹੁ ਕਰੇਇ ॥
जीआ का आहारु जीअ खाणा एहु करेइ ॥
वहीं जीवों का आहार जीव ही बनते हैं।
ਵਿਚਿ ਉਪਾਏ ਸਾਇਰਾ ਤਿਨਾ ਭਿ ਸਾਰ ਕਰੇਇ ॥
विचि उपाए साइरा तिना भि सार करेइ ॥
उसने जो जीव समुद्र में पैदा किए हैं, उनकी देखभाल भी वह स्वयं ही करता है।
ਨਾਨਕ ਚਿੰਤਾ ਮਤ ਕਰਹੁ ਚਿੰਤਾ ਤਿਸ ਹੀ ਹੇਇ ॥੧॥
नानक चिंता मत करहु चिंता तिस ही हेइ ॥१॥
हे नानक ! कोई चिंता मत करो, चूंकि सब की चिंता ईश्वर को स्वयं ही है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਜੀਉ ਮਛੁਲੀ ਝੀਵਰੁ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਕਾਲੁ ॥
नानक इहु जीउ मछुली झीवरु त्रिसना कालु ॥
हे नानक ! यह जीव मछली है और तृष्णा काल रूपी मछुवा है।
ਮਨੂਆ ਅੰਧੁ ਨ ਚੇਤਈ ਪੜੈ ਅਚਿੰਤਾ ਜਾਲੁ ॥
मनूआ अंधु न चेतई पड़ै अचिंता जालु ॥
अन्धा अर्थात् ज्ञानहीन मन भगवान को याद नहीं करता और अकस्मात् ही उसे मृत्यु का जाल आ पड़ता है।
ਨਾਨਕ ਚਿਤੁ ਅਚੇਤੁ ਹੈ ਚਿੰਤਾ ਬਧਾ ਜਾਇ ॥
नानक चितु अचेतु है चिंता बधा जाइ ॥
हे नानक ! मनुष्य का चित्त नासमझ है, इसलिए चिंता का बंधा हुआ यह यमपुरी को जाता है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜੇ ਆਪਣੀ ਤਾ ਆਪੇ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥੨॥
नदरि करे जे आपणी ता आपे लए मिलाइ ॥२॥
यदि भगवान अपनी करुणा-दृष्टि कर दे तो वह स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਸੇ ਜਨ ਸਾਚੇ ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਿਨੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਤਾ ॥
से जन साचे सदा सदा जिनी हरि रसु पीता ॥
वे लोग सदैव सत्यशील हैं, जिन्होंने नाम रूपी हरि-रस का पान किया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚਾ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਚੁ ਸਉਦਾ ਕੀਤਾ ॥
गुरमुखि सचा मनि वसै सचु सउदा कीता ॥
जिन्होंने सत्य का सौदा किया है, गुरु के माध्यम से सच्चा प्रभु उनके मन में बस गया है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਘਰ ਹੀ ਮਾਹਿ ਹੈ ਵਡਭਾਗੀ ਲੀਤਾ ॥
सभु किछु घर ही माहि है वडभागी लीता ॥
सबकुछ हृदय-घर में ही उपलब्ध है, परन्तु भाग्यशाली ने ही उसे प्राप्त किया है।
ਅੰਤਰਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਮਰਿ ਗਈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੀਤਾ ॥
अंतरि त्रिसना मरि गई हरि गुण गावीता ॥
भगवान का गुणानुवाद करने से उनके अन्तर्मन की तृष्णा समाप्त हो गई है।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਅਨੁ ਆਪੇ ਦੇਇ ਬੁਝਾਈ ॥੧੮॥
आपे मेलि मिलाइअनु आपे देइ बुझाई ॥१८॥
ईश्वर ने स्वयं ही उन्हें गुरु से मिलाकर अपने साथ मिला लिया है और स्वयं ही ज्ञान प्रदान किया है। १८॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਵੇਲਿ ਪਿੰਞਾਇਆ ਕਤਿ ਵੁਣਾਇਆ ॥
वेलि पिंञाइआ कति वुणाइआ ॥
जैसे कपास को बेलकर रूई को कातकर कपड़ा बुना जाता है।
ਕਟਿ ਕੁਟਿ ਕਰਿ ਖੁੰਬਿ ਚੜਾਇਆ ॥
कटि कुटि करि खु्मबि चड़ाइआ ॥
फिर कपड़े को काट-फूट कर धोने के लिए भट्टी में डाल दिया जाता है।
ਲੋਹਾ ਵਢੇ ਦਰਜੀ ਪਾੜੇ ਸੂਈ ਧਾਗਾ ਸੀਵੈ ॥
लोहा वढे दरजी पाड़े सूई धागा सीवै ॥
लोहे की कैंची कपड़े को काटती है और दर्जी उस कपड़े को फाड़ता है, फिर सूई और धागे से कपड़े को सिलाई कर दिया जाता है।
ਇਉ ਪਤਿ ਪਾਟੀ ਸਿਫਤੀ ਸੀਪੈ ਨਾਨਕ ਜੀਵਤ ਜੀਵੈ ॥
इउ पति पाटी सिफती सीपै नानक जीवत जीवै ॥
हे नानक ! इसी प्रकार मनुष्य की खोई हुई इज्जत भगवान की स्तुति करने से हासिल हो जाती है और फिर वह शिष्ट जीवन बिताता है।
ਹੋਇ ਪੁਰਾਣਾ ਕਪੜੁ ਪਾਟੈ ਸੂਈ ਧਾਗਾ ਗੰਢੈ ॥
होइ पुराणा कपड़ु पाटै सूई धागा गंढै ॥
यदि कपड़ा पुराना होकर फट जाए तो सूई एवं धागे से उसे सिलाई कर लिया जाता है।
ਮਾਹੁ ਪਖੁ ਕਿਹੁ ਚਲੈ ਨਾਹੀ ਘੜੀ ਮੁਹਤੁ ਕਿਛੁ ਹੰਢੈ ॥
माहु पखु किहु चलै नाही घड़ी मुहतु किछु हंढै ॥
यह सिलाई किया हुआ कपड़ा महीना या १५ दिन ही चलता है और घड़ी-मुहूर्त कुछ समय ही चलता है।