ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ ਅਸਟਪਦੀਆ
मारू महला ५ घरु ३ असटपदीआ
मारू महला ५ घरु ३ असटपदीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਭ੍ਰਮਤੇ ਭ੍ਰਮਤੇ ਦੁਲਭ ਜਨਮੁ ਅਬ ਪਾਇਓ ॥੧॥
लख चउरासीह भ्रमते भ्रमते दुलभ जनमु अब पाइओ ॥१॥
चौरासी लाख योनियों में भटकते-भटकते अब यह दुर्लभ मानव जन्म प्राप्त हुआ है॥ १॥
ਰੇ ਮੂੜੇ ਤੂ ਹੋਛੈ ਰਸਿ ਲਪਟਾਇਓ ॥
रे मूड़े तू होछै रसि लपटाइओ ॥
अरे मूर्ख ! तू तुच्छ पदार्थों के स्वाद में फँसा रहता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸੰਗਿ ਬਸਤੁ ਹੈ ਤੇਰੈ ਬਿਖਿਆ ਸਿਉ ਉਰਝਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अम्रितु संगि बसतु है तेरै बिखिआ सिउ उरझाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
नामामृत तेरे हृदय में साथ ही रहता है किन्तु तू विषय-विकारों के साथ उलझा हुआ है॥ १॥ रहाउ॥
ਰਤਨ ਜਵੇਹਰ ਬਨਜਨਿ ਆਇਓ ਕਾਲਰੁ ਲਾਦਿ ਚਲਾਇਓ ॥੨॥
रतन जवेहर बनजनि आइओ कालरु लादि चलाइओ ॥२॥
तू जगत् में नाम-रूपी रत्न-जवाहरों का व्यापार करने आया था, लेकिन बंजर मिट्टी लाद कर ही चल दिया है॥ २॥
ਜਿਹ ਘਰ ਮਹਿ ਤੁਧੁ ਰਹਨਾ ਬਸਨਾ ਸੋ ਘਰੁ ਚੀਤਿ ਨ ਆਇਓ ॥੩॥
जिह घर महि तुधु रहना बसना सो घरु चीति न आइओ ॥३॥
जिस घर में तूने सदा के लिए रहना है, वह सच्चा घर तुझे याद नहीं आया॥ ३॥
ਅਟਲ ਅਖੰਡ ਪ੍ਰਾਣ ਸੁਖਦਾਈ ਇਕ ਨਿਮਖ ਨਹੀ ਤੁਝੁ ਗਾਇਓ ॥੪॥
अटल अखंड प्राण सुखदाई इक निमख नही तुझु गाइओ ॥४॥
अटल, अखण्ड एवं प्राणों को सुख देने वाले ईश्वर का एक क्षण भी तूने भजन नहीं किया॥ ४॥
ਜਹਾ ਜਾਣਾ ਸੋ ਥਾਨੁ ਵਿਸਾਰਿਓ ਇਕ ਨਿਮਖ ਨਹੀ ਮਨੁ ਲਾਇਓ ॥੫॥
जहा जाणा सो थानु विसारिओ इक निमख नही मनु लाइओ ॥५॥
जहाँ तूने जाना है, उस सच्चे स्थान को भुला दिया है और एक पल भी परमेश्वर में मन नहीं लगाया। ५॥
ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਗ੍ਰਿਹ ਦੇਖਿ ਸਮਗ੍ਰੀ ਇਸ ਹੀ ਮਹਿ ਉਰਝਾਇਓ ॥੬॥
पुत्र कलत्र ग्रिह देखि समग्री इस ही महि उरझाइओ ॥६॥
तू जीवन भर अपने पुत्र, पत्नी, घर इत्यादि सामग्री में ही उलझा रहा॥ ६॥
ਜਿਤੁ ਕੋ ਲਾਇਓ ਤਿਤ ਹੀ ਲਾਗਾ ਤੈਸੇ ਕਰਮ ਕਮਾਇਓ ॥੭॥
जितु को लाइओ तित ही लागा तैसे करम कमाइओ ॥७॥
तुझे जिधर लगाया गया, उधर ही लगा रहा और वैसे ही कर्म करता रहा॥ ७॥
ਜਉ ਭਇਓ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਤਾ ਸਾਧਸੰਗੁ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਬ੍ਰਹਮੁ ਧਿਆਇਓ ॥੮॥੧॥
जउ भइओ क्रिपालु ता साधसंगु पाइआ जन नानक ब्रहमु धिआइओ ॥८॥१॥
हे नानक ! जब प्रभु कृपालु हो गया तो उसे साधुओं की संगति मिल गई और तब ब्रह्म का ध्यान किया॥ ८॥ १॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਕਰਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਰਾਖਿ ਲੀਨੋ ਭਇਓ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ॥
करि अनुग्रहु राखि लीनो भइओ साधू संगु ॥
ईश्वर ने कृपा करके बचा लिया है और साधुओं का संग प्राप्त हो गया है।
ਹਰਿ ਨਾਮ ਰਸੁ ਰਸਨਾ ਉਚਾਰੈ ਮਿਸਟ ਗੂੜਾ ਰੰਗੁ ॥੧॥
हरि नाम रसु रसना उचारै मिसट गूड़ा रंगु ॥१॥
यह रसना खूब मज़े लेकर हरि-नाम जपती रहती है और इसे गहरा मीठा रंग लग गया है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਾਨ ਕੋ ਅਸਥਾਨੁ ॥ ਮੀਤ ਸਾਜਨ ਸਖਾ ਬੰਧਪੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरे मान को असथानु ॥ मीत साजन सखा बंधपु अंतरजामी जानु ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु मेरे मन का अवलम्य है, उस अन्तर्यामी को ही मेरा सच्चा मित्र, साजन, सखा एवं बंधु समझो॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰੁ ਜਿਨਿ ਉਪਾਇਓ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਗਹੀ ॥
संसार सागरु जिनि उपाइओ सरणि प्रभ की गही ॥
जिसने यह संसार-सागर उत्पन्न किया है, मैंने उस प्रभु की शरण ली है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦੀ ਪ੍ਰਭੁ ਅਰਾਧੇ ਜਮਕੰਕਰੁ ਕਿਛੁ ਨ ਕਹੀ ॥੨॥
गुर प्रसादी प्रभु अराधे जमकंकरु किछु न कही ॥२॥
गुरु-कृपा से प्रभु की आराधना की है, इसलिए यमदूत भी कुछ नहीं कहते॥ २॥
ਮੋਖ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਿ ਜਾ ਕੈ ਸੰਤ ਰਿਦਾ ਭੰਡਾਰੁ ॥
मोख मुकति दुआरि जा कै संत रिदा भंडारु ॥
जिसका द्वार मोक्ष व मुक्तिदायक है, जिसके नाम का भण्डार संतों के हृदय में है,
ਜੀਅ ਜੁਗਤਿ ਸੁਜਾਣੁ ਸੁਆਮੀ ਸਦਾ ਰਾਖਣਹਾਰੁ ॥੩॥
जीअ जुगति सुजाणु सुआमी सदा राखणहारु ॥३॥
वह जीवनयुक्ति का ज्ञाता, चतुर स्वामी सदैव रक्षा करने वाला है॥ ३॥
ਦੂਖ ਦਰਦ ਕਲੇਸ ਬਿਨਸਹਿ ਜਿਸੁ ਬਸੈ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
दूख दरद कलेस बिनसहि जिसु बसै मन माहि ॥
जिसके मन में बस जाता है, उसके दुख-दर्द एवं सब क्लेश मिट जाते हैं।
ਮਿਰਤੁ ਨਰਕੁ ਅਸਥਾਨ ਬਿਖੜੇ ਬਿਖੁ ਨ ਪੋਹੈ ਤਾਹਿ ॥੪॥
मिरतु नरकु असथान बिखड़े बिखु न पोहै ताहि ॥४॥
मृत्यु, दुखदायी नरक स्थान एवं माया रूपी विष भी उसे प्रभावित नहीं करते॥ ४॥
ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਜਾ ਕੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਾ ਪਰਵਾਹ ॥
रिधि सिधि नव निधि जा कै अम्रिता परवाह ॥
जिसके घर में नामामृत का प्रवाह होता है, ऋद्धियाँ सिद्धियाँ व नौ निधियाँ सेवा में रत हैं,
ਆਦਿ ਅੰਤੇ ਮਧਿ ਪੂਰਨ ਊਚ ਅਗਮ ਅਗਾਹ ॥੫॥
आदि अंते मधि पूरन ऊच अगम अगाह ॥५॥
वह अगम्य, अथाह, सर्वोच्च परमेश्वर आदि, मध्य एवं अंत में सदैव विद्यमान है॥ ५॥
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਦੇਵ ਮੁਨਿ ਜਨ ਬੇਦ ਕਰਹਿ ਉਚਾਰੁ ॥
सिध साधिक देव मुनि जन बेद करहि उचारु ॥
बड़े-बड़े सिद्ध साधक, देवगण, मुनिजन एवं वेद ईश्वर की स्तुति करते हैं।
ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਸੁਖ ਸਹਜਿ ਭੁੰਚਹਿ ਨਹੀ ਅੰਤੁ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥੬॥
सिमरि सुआमी सुख सहजि भुंचहि नही अंतु पारावारु ॥६॥
वे अपने स्वामी का स्मरण करके सहज सुख प्राप्त करते हैं, जिसका कोई अन्त व आर-पार नहीं॥ ६॥
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਾਛਤ ਮਿਟਹਿ ਖਿਨ ਮਹਿ ਰਿਦੈ ਜਪਿ ਭਗਵਾਨ ॥
अनिक प्राछत मिटहि खिन महि रिदै जपि भगवान ॥
हृदय में भगवान का नाम जपने से क्षण में अनेक पाप मिट जाते हैं।
ਪਾਵਨਾ ਤੇ ਮਹਾ ਪਾਵਨ ਕੋਟਿ ਦਾਨ ਇਸਨਾਨ ॥੭॥
पावना ते महा पावन कोटि दान इसनान ॥७॥
परमात्मा का नाम महा पावन है, इसे जपने से करोड़ों दान-पुण्य व तीर्थ स्नान का फल हासिल होता है॥ ७॥
ਬਲ ਬੁਧਿ ਸੁਧਿ ਪਰਾਣ ਸਰਬਸੁ ਸੰਤਨਾ ਕੀ ਰਾਸਿ ॥
बल बुधि सुधि पराण सरबसु संतना की रासि ॥
संतजनों की धन-राशि, बल, बुद्धि ज्ञान, प्राण सबकुछ है।
ਬਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਨਿਮਖ ਮਨ ਤੇ ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥੮॥੨॥
बिसरु नाही निमख मन ते नानक की अरदासि ॥८॥२॥
नानक की प्रार्थना है कि हे परमेश्वर ! मन से एक पल भी न भूलना॥ ८॥ २॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਸਸਤ੍ਰਿ ਤੀਖਣਿ ਕਾਟਿ ਡਾਰਿਓ ਮਨਿ ਨ ਕੀਨੋ ਰੋਸੁ ॥
ससत्रि तीखणि काटि डारिओ मनि न कीनो रोसु ॥
कोई तीखे औजार से पेड़ को काट डालता है, मगर वह मन में क्रोध नहीं करता अपितु
ਕਾਜੁ ਉਆ ਕੋ ਲੇ ਸਵਾਰਿਓ ਤਿਲੁ ਨ ਦੀਨੋ ਦੋਸੁ ॥੧॥
काजु उआ को ले सवारिओ तिलु न दीनो दोसु ॥१॥
उसका कार्य संवार देता है और तिल भर भी उसे दोष नहीं देता॥ १॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਰਉ ਨਿਤ ਨੀਤਿ ॥
मन मेरे राम रउ नित नीति ॥
हे मेरे मन ! नित्य राम का भजन करो;
ਦਇਆਲ ਦੇਵ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਸੁਨਿ ਸੰਤਨਾ ਕੀ ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दइआल देव क्रिपाल गोबिंद सुनि संतना की रीति ॥१॥ रहाउ ॥
दयालु-कृपालु गोविंद का ध्यान करने वाले संतजनों का आचरण सुनो॥ १॥ रहाउ॥