ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਮਸਕਾਰਿ ॥
गुर के चरन कमल नमसकारि ॥
गुरु के चरण-कमल को नमन करो;
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਇਸੁ ਤਨ ਤੇ ਮਾਰਿ ॥
कामु क्रोधु इसु तन ते मारि ॥
इस प्रकार इस तन में से काम-क्रोध को मार दो।
ਹੋਇ ਰਹੀਐ ਸਗਲ ਕੀ ਰੀਨਾ ॥
होइ रहीऐ सगल की रीना ॥
हमें सबके चरणों की धूलि बनकर रहना चाहिए और
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਮਈਆ ਸਭ ਮਹਿ ਚੀਨਾ ॥੧॥
घटि घटि रमईआ सभ महि चीना ॥१॥
सबमें बस रहे राम को पहचानना चाहिए॥ १॥
ਇਨ ਬਿਧਿ ਰਮਹੁ ਗੋਪਾਲ ਗੋੁਬਿੰਦੁ ॥
इन बिधि रमहु गोपाल गोबिंदु ॥
इस विधि द्वारा गोपाल गोविंद को याद करते रहो,
ਤਨੁ ਧਨੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਜਿੰਦੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तनु धनु प्रभ का प्रभ की जिंदु ॥१॥ रहाउ ॥
यह तन-धन सब प्रभु का दिया हुआ है और अमूल्य जिंदगी भी उसकी देन है॥ १॥ रहाउ॥
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
आठ पहर हरि के गुण गाउ ॥
आठ प्रहर भगवान का गुणगान करो;
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਕੋ ਇਹੈ ਸੁਆਉ ॥
जीअ प्रान को इहै सुआउ ॥
तेरी जिंदगी एवं प्राणों का यही मनोरथ है,
ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਜਾਨੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸੰਗਿ ॥
तजि अभिमानु जानु प्रभु संगि ॥
अपना अभिमान त्यागकर प्रभु को साथ ही समझो।
ਸਾਧ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਸਿਉ ਮਨੁ ਰੰਗਿ ॥੨॥
साध प्रसादि हरि सिउ मनु रंगि ॥२॥
साधु की कृपा से मन भगवान् के रंग में लगाओ॥ २॥
ਜਿਨਿ ਤੂੰ ਕੀਆ ਤਿਸ ਕਉ ਜਾਨੁ ॥
जिनि तूं कीआ तिस कउ जानु ॥
जिस परमात्मा ने तुझे पैदा किया है, उसे समझ लो।
ਆਗੈ ਦਰਗਹ ਪਾਵੈ ਮਾਨੁ ॥
आगै दरगह पावै मानु ॥
आगे उसके दरबार में बड़ा यश प्राप्त होगा।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲ ਹੋਇ ਨਿਹਾਲੁ ॥
मनु तनु निरमल होइ निहालु ॥
जिस व्यक्ति की रसना ईश्वर का नाम जपती रहती है,
ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਗੋਪਾਲ ॥੩॥
रसना नामु जपत गोपाल ॥३॥
उसका मन-तन निर्मल हो जाता है और वह निहाल हो जाता है।॥ ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਰੇ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
करि किरपा मेरे दीन दइआला ॥
हे दीनदयाल ! मुझ पर कृपा करो;
ਸਾਧੂ ਕੀ ਮਨੁ ਮੰਗੈ ਰਵਾਲਾ ॥
साधू की मनु मंगै रवाला ॥
मेरा मन तो साधु की चरण-धूलि ही मांगता है।
ਹੋਹੁ ਦਇਆਲ ਦੇਹੁ ਪ੍ਰਭ ਦਾਨੁ ॥
होहु दइआल देहु प्रभ दानु ॥
हे प्रभु ! दयालु होकर मुझे यह दान दीजिए।
ਨਾਨਕੁ ਜਪਿ ਜੀਵੈ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮੁ ॥੪॥੧੧॥੧੩॥
नानकु जपि जीवै प्रभ नामु ॥४॥११॥१३॥
क्योंकि नानक तो प्रभु का नाम जपकर ही जीवित रह रहा है॥ ४॥ ११॥ १३॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५ ॥
ਧੂਪ ਦੀਪ ਸੇਵਾ ਗੋਪਾਲ ॥
धूप दीप सेवा गोपाल ॥
परमात्मा की उपासना ही मेरे लिए वास्तव में धूप एवं दीप की तरह अर्चना करना है और
ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਬੰਦਨ ਕਰਤਾਰ ॥
अनिक बार बंदन करतार ॥
अनेक वार करतार की ही वन्दना करता हूँ।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਰਣਿ ਗਹੀ ਸਭ ਤਿਆਗਿ ॥
प्रभ की सरणि गही सभ तिआगि ॥
सबकुछ त्याग कर मैंने प्रभु की शरण ग्रहण कर ली है और
ਗੁਰ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਭਏ ਵਡ ਭਾਗਿ ॥੧॥
गुर सुप्रसंन भए वड भागि ॥१॥
मैं बड़ा भाग्यशाली हैं कि गुरु मुझ पर सुप्रसन्न हो गया है॥ १॥
ਆਠ ਪਹਰ ਗਾਈਐ ਗੋਬਿੰਦੁ ॥
आठ पहर गाईऐ गोबिंदु ॥
आठ प्रहर गोविंद का यशोगान करना चाहिए।
ਤਨੁ ਧਨੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਜਿੰਦੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तनु धनु प्रभ का प्रभ की जिंदु ॥१॥ रहाउ ॥
यह तन-धन प्रभु का दिया हुआ है और प्राण भी उसकी ही देन है ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਗੁਣ ਰਮਤ ਭਏ ਆਨੰਦ ॥
हरि गुण रमत भए आनंद ॥
भगवान का गुणगान करने से मन में आनंद बना रहता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਬਖਸੰਦ ॥
पारब्रहम पूरन बखसंद ॥
परब्रह्म क्षमावान् एवं कृपा का घर है और
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਨ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥
करि किरपा जन सेवा लाए ॥
कृपा करके उसने भक्तजनों को अपनी सेवा में लगा लिया है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖ ਮੇਟਿ ਮਿਲਾਏ ॥੨॥
जनम मरण दुख मेटि मिलाए ॥२॥
उसने जन्म-मरण के दुखः मिटाकर अपने साथ मिला लिया है॥ २ ॥
ਕਰਮ ਧਰਮ ਇਹੁ ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ॥
करम धरम इहु ततु गिआनु ॥
कर्म धर्म एवं सच्चा ज्ञान तो यही है कि
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਪੀਐ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥
साधसंगि जपीऐ हरि नामु ॥
सत्संग में मिलकर हरि का नाम जपना चाहिए।
ਸਾਗਰ ਤਰਿ ਬੋਹਿਥ ਪ੍ਰਭ ਚਰਣ ॥
सागर तरि बोहिथ प्रभ चरण ॥
प्रभु के चरण ऐसा जहाज है जो संसार-सागर से पार करवा देता है।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਪ੍ਰਭ ਕਾਰਣ ਕਰਣ ॥੩॥
अंतरजामी प्रभ कारण करण ॥३॥
अन्तर्यामी प्रभु ही सब करने एवं कराने वाला है ॥३॥
ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਅਪਨੀ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥
राखि लीए अपनी किरपा धारि ॥
उसने अपनी कृपा करके बचा लिया है और
ਪੰਚ ਦੂਤ ਭਾਗੇ ਬਿਕਰਾਲ ॥
पंच दूत भागे बिकराल ॥
भयानक पाँच दूतों-काम, क्रोध, मोह, लोभ एवं अहंकार को भगा दिया है।
ਜੂਐ ਜਨਮੁ ਨ ਕਬਹੂ ਹਾਰਿ ॥
जूऐ जनमु न कबहू हारि ॥
अब वह कभी भी जुए में जन्म नहीं हारेगा,
ਨਾਨਕ ਕਾ ਅੰਗੁ ਕੀਆ ਕਰਤਾਰਿ ॥੪॥੧੨॥੧੪॥
नानक का अंगु कीआ करतारि ॥४॥१२॥१४॥
क्योंकि ईश्वर ने स्वयं नानक का पक्ष लिया है ॥ ४॥ १२॥ १४॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸੁਖ ਅਨਦ ਕਰੇਇ ॥
करि किरपा सुख अनद करेइ ॥
परमात्मा ने कृपा करके मन में सुख एवं आनंद कर दिया है।
ਬਾਲਕ ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਗੁਰਦੇਵਿ ॥
बालक राखि लीए गुरदेवि ॥
गुरुदेव ने अपने बालक को बचा लिया है।
ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾਲ ਦਇਆਲ ਗੋੁਬਿੰਦ ॥
प्रभ किरपाल दइआल गोबिंद ॥
प्रभु कृपा का घर एवं दया का सागर है,
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਗਲੇ ਬਖਸਿੰਦ ॥੧॥
जीअ जंत सगले बखसिंद ॥१॥
वह सब जीवों को क्षमा करने वाला है॥ १॥
ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ॥
तेरी सरणि प्रभ दीन दइआल ॥
हे दीनदयाल प्रभु ! तेरी शरण में आ गया हूँ।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਜਪਿ ਸਦਾ ਨਿਹਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पारब्रहम जपि सदा निहाल ॥१॥ रहाउ ॥
हे परब्रह्म ! तेरा नाम जपकर सदैव निहाल रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਲ ਦੂਸਰ ਕੋਈ ਨਾਹੀ ॥
प्रभ दइआल दूसर कोई नाही ॥
हे प्रभु ! तुझ जैसा दयालु अन्य कोई नहीं और
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਰਬ ਸਮਾਹੀ ॥
घट घट अंतरि सरब समाही ॥
घट घट सबके मन में तू ही समा रहा है।
ਅਪਨੇ ਦਾਸ ਕਾ ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਸਵਾਰੈ ॥
अपने दास का हलतु पलतु सवारै ॥
तू अपने दास का लोक-परलोक सवार देता है।
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਪ੍ਰਭ ਬਿਰਦੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ॥੨॥
पतित पावन प्रभ बिरदु तुम्हारै ॥२॥
हे प्रभु ! पतितों को पावन करना तुम्हारा यश है॥ २॥
ਅਉਖਧ ਕੋਟਿ ਸਿਮਰਿ ਗੋਬਿੰਦ ॥
अउखध कोटि सिमरि गोबिंद ॥
गोविंद का स्मरण ही करोड़ों रोगों की औषधि है और
ਤੰਤੁ ਮੰਤੁ ਭਜੀਐ ਭਗਵੰਤ ॥
तंतु मंतु भजीऐ भगवंत ॥
भगवान का भजन ही सर्वोत्तम तंत्र-मंत्र है।
ਰੋਗ ਸੋਗ ਮਿਟੇ ਪ੍ਰਭ ਧਿਆਏ ॥
रोग सोग मिटे प्रभ धिआए ॥
प्रभु का ध्यान करने से सब रोग-शोक मिट जाते हैं और
ਮਨ ਬਾਂਛਤ ਪੂਰਨ ਫਲ ਪਾਏ ॥੩॥
मन बांछत पूरन फल पाए ॥३॥
मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं॥ ३॥
ਕਰਨ ਕਾਰਨ ਸਮਰਥ ਦਇਆਰ ॥
करन कारन समरथ दइआर ॥
दयावान् ईश्वर सबकुछ करने-कराने में समर्थ है और
ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ਮਹਾ ਬੀਚਾਰ ॥
सरब निधान महा बीचार ॥
उसका चिंतन ही सर्व भण्डार है।
ਨਾਨਕ ਬਖਸਿ ਲੀਏ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ॥
नानक बखसि लीए प्रभि आपि ॥
हे नानक ! प्रभु ने स्वयं ही भक्तजनों को बचा लिया है,
ਸਦਾ ਸਦਾ ਏਕੋ ਹਰਿ ਜਾਪਿ ॥੪॥੧੩॥੧੫॥
सदा सदा एको हरि जापि ॥४॥१३॥१५॥
सदैव एक परमात्मा का जाप करो ॥ ४॥ १३ ॥ १५ ॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮੇਰੇ ਮੀਤ ॥
हरि हरि नामु जपहु मेरे मीत ॥
हे मेरे मित्र ! हरि नाम जपो;