ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਸੋਈ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣੈ ਹਰਿ ਕਾ ਮਹਲੁ ਅਪਾਰਾ ॥
जिनि कीआ सोई प्रभु जाणै हरि का महलु अपारा ॥
जिसने रचना की, वही प्रभु इस रहस्य को जानता है और उसका दरबार अपरम्पार है।
ਭਗਤਿ ਕਰੀ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਤੁਮਾਰਾ ॥੪॥੧॥
भगति करी हरि के गुण गावा नानक दासु तुमारा ॥४॥१॥
नानक विनय करता है कि हे प्रभु ! मैं तेरा दास हूँ, तेरी भक्ति करता हुआ तेरे ही गुण गाता रहता हूँ॥ ४॥ १॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रागु रामकली महला ५ ॥
ਪਵਹੁ ਚਰਣਾ ਤਲਿ ਊਪਰਿ ਆਵਹੁ ਐਸੀ ਸੇਵ ਕਮਾਵਹੁ ॥
पवहु चरणा तलि ऊपरि आवहु ऐसी सेव कमावहु ॥
हे भक्तजनों ! ऐसी सेवा करो कि सब लोगों के ऊपर अर्थात् उनसे श्रेष्ठ बन जाओ, सब की चरण-धूलि बन जाओ।
ਆਪਸ ਤੇ ਊਪਰਿ ਸਭ ਜਾਣਹੁ ਤਉ ਦਰਗਹ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ॥੧॥
आपस ते ऊपरि सभ जाणहु तउ दरगह सुखु पावहु ॥१॥
यदि सब को अपने से उत्तम मानोगे तो ही दरगाह में सुख हासिल होगा।॥ १॥
ਸੰਤਹੁ ਐਸੀ ਕਥਹੁ ਕਹਾਣੀ ॥
संतहु ऐसी कथहु कहाणी ॥
हे संतजनो ! ऐसी कथा-कहानी सुनाओ,
ਸੁਰ ਪਵਿਤ੍ਰ ਨਰ ਦੇਵ ਪਵਿਤ੍ਰਾ ਖਿਨੁ ਬੋਲਹੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुर पवित्र नर देव पवित्रा खिनु बोलहु गुरमुखि बाणी ॥१॥ रहाउ ॥
यदि एक क्षण भर के लिए गुरु की वाणी बोलो, तो मनुष्य, देवते एवं देवगण भी पवित्र हो जाएँगे।॥ १॥ रहाउ॥
ਪਰਪੰਚੁ ਛੋਡਿ ਸਹਜ ਘਰਿ ਬੈਸਹੁ ਝੂਠਾ ਕਹਹੁ ਨ ਕੋਈ ॥
परपंचु छोडि सहज घरि बैसहु झूठा कहहु न कोई ॥
जग के प्रपंच को छोड़कर सहजावस्था में बैठो और किसी को भी झूठा मत कहो।
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਹੁ ਨਵੈ ਨਿਧਿ ਪਾਵਹੁ ਇਨ ਬਿਧਿ ਤਤੁ ਬਿਲੋਈ ॥੨॥
सतिगुर मिलहु नवै निधि पावहु इन बिधि ततु बिलोई ॥२॥
सतगुरु से मिलकर नौ-निधियाँ हासिल कर लो, इस विधि द्वारा नाम रूपी दूध को बिलोकर माखन रूपी परमतत्व प्रभु को पा लो ॥२॥
ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਵਹੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਲਿਵ ਲਾਵਹੁ ਆਤਮੁ ਚੀਨਹੁ ਭਾਈ ॥
भरमु चुकावहु गुरमुखि लिव लावहु आतमु चीनहु भाई ॥
अपना भ्रम दूर करके गुरुमुख बनकर परमात्मा में ध्यान लगाओ एवं अपनी आत्म ज्योति को पहचानो।
ਨਿਕਟਿ ਕਰਿ ਜਾਣਹੁ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭੁ ਹਾਜਰੁ ਕਿਸੁ ਸਿਉ ਕਰਹੁ ਬੁਰਾਈ ॥੩॥
निकटि करि जाणहु सदा प्रभु हाजरु किसु सिउ करहु बुराई ॥३॥
हमेशा ही प्रभु को अपने निकट समझो तथा किसी की बुराई में मत पड़ो॥ ३॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਮਾਰਗੁ ਮੁਕਤਾ ਸਹਜੇ ਮਿਲੇ ਸੁਆਮੀ ॥
सतिगुरि मिलिऐ मारगु मुकता सहजे मिले सुआमी ॥
यदि सतगुरु मिल जाए तो मुक्ति का मार्ग प्राप्त हो जाता है और सहज ही स्वामी से मिलाप हो जाता है।
ਧਨੁ ਧਨੁ ਸੇ ਜਨ ਜਿਨੀ ਕਲਿ ਮਹਿ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨੀ ॥੪॥੨॥
धनु धनु से जन जिनी कलि महि हरि पाइआ जन नानक सद कुरबानी ॥४॥२॥
वे भक्तजन धन्य हैं, जिन्होंने कलियुग में भगवान् को पा लिया है। नानक तो सदैव उन पर कुर्बान जाता है॥ ४॥ २ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਆਵਤ ਹਰਖ ਨ ਜਾਵਤ ਦੂਖਾ ਨਹ ਬਿਆਪੈ ਮਨ ਰੋਗਨੀ ॥
आवत हरख न जावत दूखा नह बिआपै मन रोगनी ॥
अगर मन परमात्मा के ध्यान में लीन हो तो न किसी वस्तु के मिलने से खुशी होती है, न ही किसी वस्तु के खोने से दुख होता है और न ही मन को कोई रोग प्रभावित करता है।
ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਤਉ ਉਤਰੀ ਸਗਲ ਬਿਓਗਨੀ ॥੧॥
सदा अनंदु गुरु पूरा पाइआ तउ उतरी सगल बिओगनी ॥१॥
पूर्ण गुरु को पाकर सदैव परमानंद बना रहता है, सब वियोग मिट जाते हैं ॥ १॥
ਇਹ ਬਿਧਿ ਹੈ ਮਨੁ ਜੋਗਨੀ ॥
इह बिधि है मनु जोगनी ॥
इस तरीके से जिसका मन ईश्वर में प्रवृत्त है तो
ਮੋਹੁ ਸੋਗੁ ਰੋਗੁ ਲੋਗੁ ਨ ਬਿਆਪੈ ਤਹ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸ ਭੋਗਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मोहु सोगु रोगु लोगु न बिआपै तह हरि हरि हरि रस भोगनी ॥१॥ रहाउ ॥
मोह, शोक, रोग एवं लोक-लाज प्रभावित नहीं करते और मन हरि नाम का ही रस भोगता रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੁਰਗ ਪਵਿਤ੍ਰਾ ਮਿਰਤ ਪਵਿਤ੍ਰਾ ਪਇਆਲ ਪਵਿਤ੍ਰ ਅਲੋਗਨੀ ॥
सुरग पवित्रा मिरत पवित्रा पइआल पवित्र अलोगनी ॥
उसके लिए तो स्वर्गलोक, मृत्युलोक, पाताललोक, पवित्र हैं।
ਆਗਿਆਕਾਰੀ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਭੁੰਚੈ ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਹਰਿ ਗੁਨੀ ॥੨॥
आगिआकारी सदा सुखु भुंचै जत कत पेखउ हरि गुनी ॥२॥
ऐसा व्यक्ति प्रभु का आज्ञाकारी बनकर सदा सुख भोगता है और जिधर भी देखता है उधर ही गुणों का सागर परमेश्वर नजर आता है॥ २॥
ਨਹ ਸਿਵ ਸਕਤੀ ਜਲੁ ਨਹੀ ਪਵਨਾ ਤਹ ਅਕਾਰੁ ਨਹੀ ਮੇਦਨੀ ॥
नह सिव सकती जलु नही पवना तह अकारु नही मेदनी ॥
जिधर न शिवशक्ति, न जल, न पवन, न कोई आकार और न धरती है,
ਸਤਿਗੁਰ ਜੋਗ ਕਾ ਤਹਾ ਨਿਵਾਸਾ ਜਹ ਅਵਿਗਤ ਨਾਥੁ ਅਗਮ ਧਨੀ ॥੩॥
सतिगुर जोग का तहा निवासा जह अविगत नाथु अगम धनी ॥३॥
सतगुरु का निवास वहाँ है, जहाँ अगम्य, अविगत एवं गुणों का भण्डार मालिक प्रभु है॥ ३॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਹਰਿ ਕਾ ਧਨੁ ਸਭੁ ਹਰਿ ਕਾ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਹਉ ਕਿਆ ਗਨੀ ॥
तनु मनु हरि का धनु सभु हरि का हरि के गुण हउ किआ गनी ॥
यह तन-मन, धन सब परमात्मा की देन है, उसके उपकार गिने नहीं जा सकते।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਮ ਤੁਮ ਗੁਰਿ ਖੋਈ ਹੈ ਅੰਭੈ ਅੰਭੁ ਮਿਲੋਗਨੀ ॥੪॥੩॥
कहु नानक हम तुम गुरि खोई है अ्मभै अ्मभु मिलोगनी ॥४॥३॥
हे नानक ! गुरु ने मेरे मन से ‘मेरा-तेरा’ की भावना दूर कर दी है और जैसे जल में जल मिल जाता है, वैसे ही आत्मज्योति परमज्योति में विलीन हो गई है॥ ४॥ ३॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਰਹਤ ਰਹੈ ਨਿਰਾਰੀ ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਨ ਜਾਨੈ ॥
त्रै गुण रहत रहै निरारी साधिक सिध न जानै ॥
हरिनाम तीन गुणों से रहित एवं निराला ही बना रहता है और सिद्ध-साधक भी इसकी महत्ता नहीं जानते।
ਰਤਨ ਕੋਠੜੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸੰਪੂਰਨ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਖਜਾਨੈ ॥੧॥
रतन कोठड़ी अम्रित स्मपूरन सतिगुर कै खजानै ॥१॥
सतगुरु के खजाने में रत्नों की कोठरी है, जो अमृत से भरी हुई है॥ १॥
ਅਚਰਜੁ ਕਿਛੁ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥
अचरजु किछु कहणु न जाई ॥
इसका आश्चर्य कथन नहीं किया जा सकता और
ਬਸਤੁ ਅਗੋਚਰ ਭਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बसतु अगोचर भाई ॥१॥ रहाउ ॥
यह नाम रूपी वस्तु अपहुँच है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੋਲੁ ਨਾਹੀ ਕਛੁ ਕਰਣੈ ਜੋਗਾ ਕਿਆ ਕੋ ਕਹੈ ਸੁਣਾਵੈ ॥
मोलु नाही कछु करणै जोगा किआ को कहै सुणावै ॥
जब इसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता तो क्या कोई कहे अथवा सुनाए।
ਕਥਨ ਕਹਣ ਕਉ ਸੋਝੀ ਨਾਹੀ ਜੋ ਪੇਖੈ ਤਿਸੁ ਬਣਿ ਆਵੈ ॥੨॥
कथन कहण कउ सोझी नाही जो पेखै तिसु बणि आवै ॥२॥
इसे कथन करने एवं कहने की किसी को कोई सूझ नहीं है। जो भी इसे देखता है, उसकी प्रीति इसमें लग जाती है।॥ २॥
ਸੋਈ ਜਾਣੈ ਕਰਣੈਹਾਰਾ ਕੀਤਾ ਕਿਆ ਬੇਚਾਰਾ ॥
सोई जाणै करणैहारा कीता किआ बेचारा ॥
परमेश्वर सब जानता है, फिर जीव बेचारा क्या जानता है ?
ਆਪਣੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਹਰਿ ਆਪੇ ਪੂਰ ਭੰਡਾਰਾ ॥੩॥
आपणी गति मिति आपे जाणै हरि आपे पूर भंडारा ॥३॥
भक्ति का पूर्ण भण्डार परमेश्वर स्वयं ही अपनी गति एवं विस्तार को जानता है॥ ३॥
ਐਸਾ ਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮਨਿ ਚਾਖਿਆ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਰਹੇ ਆਘਾਈ ॥
ऐसा रसु अम्रितु मनि चाखिआ त्रिपति रहे आघाई ॥
ऐसा नाम रूपी अमृत रस मन ने चखा है, जिससे वह तृप्त एवं संतुष्ट हो गया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰੀ ਆਸਾ ਪੂਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ॥੪॥੪॥
कहु नानक मेरी आसा पूरी सतिगुर की सरणाई ॥४॥४॥
हे नानक ! सतगुरु की शरण लेने से मेरी अभिलाषा पूरी हो गई है॥ ४ ॥ ४ ॥