ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਬੋਧਿ ਅਪਰੰਪਰ ਪੁਰਖ ਅਪਾਰੀ ॥
हरि हरि अगम अगाधि बोधि अपर्मपर पुरख अपारी ॥
हरि-परमेश्वर अगम्य, अगाध ज्ञान वाला, अपरम्पर सर्वशक्तिमान एवं अनन्त है।
ਜਨ ਕਉ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਜਗਜੀਵਨ ਜਨ ਨਾਨਕ ਪੈਜ ਸਵਾਰੀ ॥੪॥੧॥
जन कउ क्रिपा करहु जगजीवन जन नानक पैज सवारी ॥४॥१॥
हे जगत के जीवन ! अपने दास पर कृपा करो और दास नानक की प्रतिष्ठा कायम रखो ॥४॥१ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
धनासरी महला ४ ॥
धनासरी महला ४ ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਜਨਾ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਤਿਨ ਕਾ ਦੂਖੁ ਭਰਮੁ ਭਉ ਭਾਗੀ ॥
हरि के संत जना हरि जपिओ तिन का दूखु भरमु भउ भागी ॥
हरि के संतजनों ने हरि का ही जाप किया है, जिससे उनका दु:ख, भ्रम एवं भय दूर हो गया है।
ਅਪਨੀ ਸੇਵਾ ਆਪਿ ਕਰਾਈ ਗੁਰਮਤਿ ਅੰਤਰਿ ਜਾਗੀ ॥੧॥
अपनी सेवा आपि कराई गुरमति अंतरि जागी ॥१॥
उसने स्वयं ही अपनी आराधना उनसे करवाई है और गुरु के उपदेश द्वारा मन में सत्य का प्रकाश हो गया है ॥१॥
ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਮਿ ਰਤਾ ਬੈਰਾਗੀ ॥
हरि कै नामि रता बैरागी ॥
जो हरि-नाम में मग्न है, वही सच्चा वैरागी है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਣੀ ਮਨਿ ਭਾਈ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि कथा सुणी मनि भाई गुरमति हरि लिव लागी ॥१॥ रहाउ ॥
उसने हरि की हरि-कथा सुनी है, जो उसके मन को अच्छी लगी है और गुरु के उपदेश द्वारा उसकी भगवान में सुरति लग गई है ॥१॥ रहाउ ॥
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੀ ਜਾਤਿ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਠਾਕੁਰ ਹਮ ਸਾਂਗੀ ॥
संत जना की जाति हरि सुआमी तुम्ह ठाकुर हम सांगी ॥
हे मेरे स्वामी हरि ! तू स्वयं ही संतजनों की जाति है। तू मेरा मालिक है और मैं तेरी कठपुतली हूँ।
ਜੈਸੀ ਮਤਿ ਦੇਵਹੁ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਤੈਸੇ ਬੁਲਗ ਬੁਲਾਗੀ ॥੨॥
जैसी मति देवहु हरि सुआमी हम तैसे बुलग बुलागी ॥२॥
हे स्वामी ! तुम जैसी मति देते हो, हम वैसे ही वचन बोलते हैं ॥२॥
ਕਿਆ ਹਮ ਕਿਰਮ ਨਾਨੑ ਨਿਕ ਕੀਰੇ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਵਡ ਪੁਰਖ ਵਡਾਗੀ ॥
किआ हम किरम नान्ह निक कीरे तुम्ह वड पुरख वडागी ॥
हे प्रभु ! हम जीव क्या हैं ? नन्हे से कृमि एवं नन्हे से कीड़े हैं और तुम महान् महापुरुष हो।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਹਿ ਨ ਸਕਹ ਪ੍ਰਭ ਹਮ ਕਿਉ ਕਰਿ ਮਿਲਹ ਅਭਾਗੀ ॥੩॥
तुम्हरी गति मिति कहि न सकह प्रभ हम किउ करि मिलह अभागी ॥३॥
मैं तेरी गति एवं तेरा विस्तार कथन नहीं कर सकता। फिर मैं भाग्यहीन तुझे कैसे मिल सकता हूँ?॥३॥
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਹੁ ਹਮ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਲਾਗੀ ॥
हरि प्रभ सुआमी किरपा धारहु हम हरि हरि सेवा लागी ॥
हे मेरे हरि-प्रभु स्वामी ! मुझ पर कृपा करो, ताकि मैं तेरी सेवा में तल्लीन हो जाऊँ।
ਨਾਨਕ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸੁ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਹਮ ਹਰਿ ਕਥਾ ਕਥਾਗੀ ॥੪॥੨॥
नानक दासनि दासु करहु प्रभ हम हरि कथा कथागी ॥४॥२॥
नानक विनती करता है कि हे प्रभु ! मुझे अपने दासों का दास बना लो चूंकि मैं सदैव ही हरि-कथा का कथन करता रहूं ॥४॥२॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
धनासरी महला ४ ॥
धनासरी महला ४ ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਸੰਤੁ ਸਤਗੁਰੁ ਸਤ ਪੁਰਖਾ ਜੋ ਬੋਲੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਬਾਨੀ ॥
हरि का संतु सतगुरु सत पुरखा जो बोलै हरि हरि बानी ॥
हरि का संत सतगुरु सत्यपुरुष है, जो हरि की वाणी बोलता रहता है।
ਜੋ ਜੋ ਕਹੈ ਸੁਣੈ ਸੋ ਮੁਕਤਾ ਹਮ ਤਿਸ ਕੈ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨੀ ॥੧॥
जो जो कहै सुणै सो मुकता हम तिस कै सद कुरबानी ॥१॥
जो कोई भी हरि की वाणी का स्वयं कथन करता एवं सुनता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।मैं तो उस महापुरुष गुरु पर सदैव कुर्बान जाता हूँ॥१॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਸੁਨਹੁ ਜਸੁ ਕਾਨੀ ॥
हरि के संत सुनहु जसु कानी ॥
हे हरि के संतो ! अपने कानों से हरि का यश सुनो।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਨਹੁ ਇਕ ਨਿਮਖ ਪਲ ਸਭਿ ਕਿਲਵਿਖ ਪਾਪ ਲਹਿ ਜਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि कथा सुनहु इक निमख पल सभि किलविख पाप लहि जानी ॥१॥ रहाउ ॥
यदि तुम एक निमेष एवं पल भर के लिए भी हरि-कथा सुन लो तुम्हारे सभी किल्विष पाप नाश हो जाएँगे ॥१॥ रहाउ॥
ਐਸਾ ਸੰਤੁ ਸਾਧੁ ਜਿਨ ਪਾਇਆ ਤੇ ਵਡ ਪੁਰਖ ਵਡਾਨੀ ॥
ऐसा संतु साधु जिन पाइआ ते वड पुरख वडानी ॥
जिन्होंने ऐसा संत एवं साधु पा लिया है, वे महापुरुष बन गए हैं।
ਤਿਨ ਕੀ ਧੂਰਿ ਮੰਗਹ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਹਰਿ ਲੋਚ ਲੁਚਾਨੀ ॥੨॥
तिन की धूरि मंगह प्रभ सुआमी हम हरि लोच लुचानी ॥२॥
हे मेरे प्रभु स्वामी ! मैं तो उन संतजनों की चरण-धूलि की कामना करता हूँ और मुझे तो तुझे मिलने की तीव्र लालसा लगी हुई है॥२॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਫਲਿਓ ਬਿਰਖੁ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਜਿਨ ਜਪਿਓ ਸੇ ਤ੍ਰਿਪਤਾਨੀ ॥
हरि हरि सफलिओ बिरखु प्रभ सुआमी जिन जपिओ से त्रिपतानी ॥
मेरा स्वामी हरि-प्रभु फलदायक वृक्ष है। जिसने उसका जाप किया है, वह तृप्त हो गया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ਸਭ ਲਾਥੀ ਭੂਖ ਭੁਖਾਨੀ ॥੩॥
हरि हरि अम्रितु पी त्रिपतासे सभ लाथी भूख भुखानी ॥३॥
वह हरिनामामृत का पान करके तृप्त हो गया है और उसकी तमाम भूख मिट गई है ॥३॥
ਜਿਨ ਕੇ ਵਡੇ ਭਾਗ ਵਡ ਊਚੇ ਤਿਨ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਜਪਾਨੀ ॥
जिन के वडे भाग वड ऊचे तिन हरि जपिओ जपानी ॥
जिनके बड़े उच्चतम भाग्य हैं, उन्होंने ही हरि का जाप जपा है।
ਤਿਨ ਹਰਿ ਸੰਗਤਿ ਮੇਲਿ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਸਾਨੀ ॥੪॥੩॥
तिन हरि संगति मेलि प्रभ सुआमी जन नानक दास दसानी ॥४॥३॥
नानक का कथन है कि हे मेरे स्वामी हरि-प्रभु ! मुझे उनकी संगति में मिला दो और मुझे दासों का दास बना दीजिए॥४॥३॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
धनासरी महला ४ ॥
धनासरी महला ४ ॥
ਹਮ ਅੰਧੁਲੇ ਅੰਧ ਬਿਖੈ ਬਿਖੁ ਰਾਤੇ ਕਿਉ ਚਾਲਹ ਗੁਰ ਚਾਲੀ ॥
हम अंधुले अंध बिखै बिखु राते किउ चालह गुर चाली ॥
हम अन्धे ज्ञानहीन विष रूपी विकारों में मग्न रहते हैं, फिर हम गुरु के मार्ग पर कैसे चल सकते हैं ?
ਸਤਗੁਰੁ ਦਇਆ ਕਰੇ ਸੁਖਦਾਤਾ ਹਮ ਲਾਵੈ ਆਪਨ ਪਾਲੀ ॥੧॥
सतगुरु दइआ करे सुखदाता हम लावै आपन पाली ॥१॥
सुखों का दाता सतगुरु हम पर दया करे तो हमें अपने साथ मिला ले।॥१॥
ਗੁਰਸਿਖ ਮੀਤ ਚਲਹੁ ਗੁਰ ਚਾਲੀ ॥
गुरसिख मीत चलहु गुर चाली ॥
हे गुरसिक्ख मित्रो ! गुरु के मार्ग पर चलो,
ਜੋ ਗੁਰੁ ਕਹੈ ਸੋਈ ਭਲ ਮਾਨਹੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਨਿਰਾਲੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो गुरु कहै सोई भल मानहु हरि हरि कथा निराली ॥१॥ रहाउ ॥
जो कुछ गुरु कहता है, उसे भला समझ कर स्वीकार करो, हरि की कथा बड़ी अद्भुत है ॥ १॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਸੁਣਹੁ ਜਨ ਭਾਈ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਹੁ ਬੇਗਿ ਬੇਗਾਲੀ ॥
हरि के संत सुणहु जन भाई गुरु सेविहु बेगि बेगाली ॥
हे हरि के संतजनो एवं भाइयो ! शीघ्र ही गुरु की सेवा में जुट जाओ।
ਸਤਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਖਰਚੁ ਹਰਿ ਬਾਧਹੁ ਮਤ ਜਾਣਹੁ ਆਜੁ ਕਿ ਕਾਲ੍ਹ੍ਹੀ ॥੨॥
सतगुरु सेवि खरचु हरि बाधहु मत जाणहु आजु कि काल्ही ॥२॥
गुरु की सेवा करके यात्रा हेतु हरि-नाम रूपी व्यय अपने साथ ले लो, चूंकि पता नहीं आज अथवा कल को ही दुनिया से चल देना है ॥२॥
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਜਪਹੁ ਹਰਿ ਜਪਣਾ ਹਰਿ ਸੰਤੁ ਚਲੈ ਹਰਿ ਨਾਲੀ ॥
हरि के संत जपहु हरि जपणा हरि संतु चलै हरि नाली ॥
हे हरि के संतजनो ! हरि का जाप जपो; हरि का संत तो उसकी इच्छानुसार ही चलता है।
ਜਿਨ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਸੇ ਹਰਿ ਹੋਏ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਕੇਲ ਕੇਲਾਲੀ ॥੩॥
जिन हरि जपिआ से हरि होए हरि मिलिआ केल केलाली ॥३॥
जिन्होंने हरि का जाप किया है, वे हरि का ही रूप हो गए हैं और लीलाएँ करने वाला विनोदी प्रभु उन्हें मिल गया है ॥३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਨੁ ਜਪਿ ਲੋਚ ਲੋੁਚਾਨੀ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਬਨਵਾਲੀ ॥
हरि हरि जपनु जपि लोच लोचानी हरि किरपा करि बनवाली ॥
मुझे तो हरि-नाम का जाप जपने की तीव्र लालसा लगी हुई है।हे बनवारी ! मुझ पर कृपा करो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਹਮ ਸਾਧ ਜਨਾ ਪਗ ਰਾਲੀ ॥੪॥੪॥
जन नानक संगति साध हरि मेलहु हम साध जना पग राली ॥४॥४॥
नानक विनती करता है कि हे हरि ! मुझे साधसंगत में मिला दो, मैं तो संतजनों के चरण-धूलि की कामना करता दुं।॥ ४॥ ४॥