ਮਨਮੁਖ ਦੂਜੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ਨਾ ਬੂਝਹਿ ਵੀਚਾਰਾ ॥੭॥
मनमुख दूजै भरमि भुलाए ना बूझहि वीचारा ॥७॥
मन की मतानुसार चलने वाले द्वैतभाव में पड़कर भ्रमों में भटके रहते हैं और तथ्य को नहीं बूझते ॥७॥
ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੇ ਦੇਵੈ ਆਪੇ ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ॥
आपे गुरमुखि आपे देवै आपे करि करि वेखै ॥
परमेश्वर ही गुरु है, देने वाला भी वह स्वयं ही है और वह स्वयं ही जगत लीला कर करके देखता है।
ਨਾਨਕ ਸੇ ਜਨ ਥਾਇ ਪਏ ਹੈ ਜਿਨ ਕੀ ਪਤਿ ਪਾਵੈ ਲੇਖੈ ॥੮॥੩॥
नानक से जन थाइ पए है जिन की पति पावै लेखै ॥८॥३॥
नानक फुरमाते हैं कि वही व्यक्ति सफल होते हैं, जिनको लोक-परलोक में सम्मान मिलता है॥ ८ ॥३॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀਆ ਘਰੁ ੧
सारग महला ५ असटपदीआ घरु १
सारग महला ५ असटपदीआ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਗੁਸਾਈਂ ਪਰਤਾਪੁ ਤੁਹਾਰੋ ਡੀਠਾ ॥
गुसाईं परतापु तुहारो डीठा ॥
हे मालिक ! मैंने तुम्हारी महिमा देखी है।
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਉਪਾਇ ਸਮਾਵਨ ਸਗਲ ਛਤ੍ਰਪਤਿ ਬੀਠਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करन करावन उपाइ समावन सगल छत्रपति बीठा ॥१॥ रहाउ ॥
तू सर्वकर्ता है, जीवों को पैदा करने एवं नाश करने वाला है, सर्वशक्तिमान है और समूचे संसार में बादशाह की तरह विराजमान है॥१॥रहाउ॥।
ਰਾਣਾ ਰਾਉ ਰਾਜ ਭਏ ਰੰਕਾ ਉਨਿ ਝੂਠੇ ਕਹਣੁ ਕਹਾਇਓ ॥
राणा राउ राज भए रंका उनि झूठे कहणु कहाइओ ॥
दुनियावी राणा, राव एवं राजा तो पल में कंगाल हो जाते हैं और उनके दावे भी झूठे सिद्ध होते हैं।
ਹਮਰਾ ਰਾਜਨੁ ਸਦਾ ਸਲਾਮਤਿ ਤਾ ਕੋ ਸਗਲ ਘਟਾ ਜਸੁ ਗਾਇਓ ॥੧॥
हमरा राजनु सदा सलामति ता को सगल घटा जसु गाइओ ॥१॥
लेकिन हमारा राजन सदैव शाश्वत है, पूरी दुनिया उसी का यशोगान कर रही है॥१॥
ਉਪਮਾ ਸੁਨਹੁ ਰਾਜਨ ਕੀ ਸੰਤਹੁ ਕਹਤ ਜੇਤ ਪਾਹੂਚਾ ॥
उपमा सुनहु राजन की संतहु कहत जेत पाहूचा ॥
हे भक्तजनो ! मेरे राजन प्रभु की कीर्ति सुनो, अपनी समर्थानुसार वर्णन करता हूँ।
ਬੇਸੁਮਾਰ ਵਡ ਸਾਹ ਦਾਤਾਰਾ ਊਚੇ ਹੀ ਤੇ ਊਚਾ ॥੨॥
बेसुमार वड साह दातारा ऊचे ही ते ऊचा ॥२॥
वह बेशुमार है, सबसे बड़ा बादशाह, देने वाला और ऊँचे से भी ऊँचा है॥२॥
ਪਵਨਿ ਪਰੋਇਓ ਸਗਲ ਅਕਾਰਾ ਪਾਵਕ ਕਾਸਟ ਸੰਗੇ ॥
पवनि परोइओ सगल अकारा पावक कासट संगे ॥
उसने समूचे आकार को प्राण रूपी वायु से पिरोया हुआ है और अग्नि लकड़ी में स्थित की हुई है।
ਨੀਰੁ ਧਰਣਿ ਕਰਿ ਰਾਖੇ ਏਕਤ ਕੋਇ ਨ ਕਿਸ ਹੀ ਸੰਗੇ ॥੩॥
नीरु धरणि करि राखे एकत कोइ न किस ही संगे ॥३॥
पानी और पृथ्वी को एक स्थान पर ही रखा हुआ है, फिर भी कोई किसी के साथ नहीं अर्थात् पानी एवं पृथ्वी अलग-अलग ही हैं।॥३॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਕਥਾ ਰਾਜਨ ਕੀ ਚਾਲੈ ਘਰਿ ਘਰਿ ਤੁਝਹਿ ਉਮਾਹਾ ॥
घटि घटि कथा राजन की चालै घरि घरि तुझहि उमाहा ॥
हर घर में मेरे राजन प्रभु की कथा चल रही है और घट-घट में उसे पाने की उमंग है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਪਾਛੈ ਕਰਿਆ ਪ੍ਰਥਮੇ ਰਿਜਕੁ ਸਮਾਹਾ ॥੪॥
जीअ जंत सभि पाछै करिआ प्रथमे रिजकु समाहा ॥४॥
(वाह ! क्या खूब है) वह जीवों को उत्पन्न करने से पूर्व ही उनकी रोजी-रोटी का इंतजाम कर देता है॥४॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਣਾ ਸੁ ਆਪੇ ਕਰਣਾ ਮਸਲਤਿ ਕਾਹੂ ਦੀਨੑੀ ॥
जो किछु करणा सु आपे करणा मसलति काहू दीन्ही ॥
जो कुछ करता है, वह अपनी मर्जी से ही करता है और कोई उसे सलाह-मशविरा नहीं देता।
ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਕਰਿ ਕਰਹ ਦਿਖਾਏ ਸਾਚੀ ਸਾਖੀ ਚੀਨੑੀ ॥੫॥
अनिक जतन करि करह दिखाए साची साखी चीन्ही ॥५॥
हम लोग अनेक यत्न करके दिखावा करते हैं परन्तु सच्ची शिक्षा से तथ्य की सूझ होती है॥५॥
ਹਰਿ ਭਗਤਾ ਕਰਿ ਰਾਖੇ ਅਪਨੇ ਦੀਨੀ ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ॥
हरि भगता करि राखे अपने दीनी नामु वडाई ॥
हरि ने अपने भक्तों की सदैव रक्षा की है और नाम देकर कीर्ति प्रदान की है।
ਜਿਨਿ ਜਿਨਿ ਕਰੀ ਅਵਗਿਆ ਜਨ ਕੀ ਤੇ ਤੈਂ ਦੀਏ ਰੁੜ੍ਹ੍ਹਾਈ ॥੬॥
जिनि जिनि करी अवगिआ जन की ते तैं दीए रुड़्हाई ॥६॥
जिस-जिसने भक्तों का अपमान किया है, हे हरि ! तूने उनको खत्म कर दिया है॥६॥
ਮੁਕਤਿ ਭਏ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕਰਿ ਤਿਨ ਕੇ ਅਵਗਨ ਸਭਿ ਪਰਹਰਿਆ ॥
मुकति भए साधसंगति करि तिन के अवगन सभि परहरिआ ॥
जो साधु-पुरुषों की संगत में मुक्ति पा गए, उनके सभी अवगुण समाप्त कर दिए।
ਤਿਨ ਕਉ ਦੇਖਿ ਭਏ ਕਿਰਪਾਲਾ ਤਿਨ ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਤਰਿਆ ॥੭॥
तिन कउ देखि भए किरपाला तिन भव सागरु तरिआ ॥७॥
उनको देखकर तुम कृपालु हो गए और उनको संसार-सागर से पार उतार दिया ॥७॥
ਹਮ ਨਾਨੑੇ ਨੀਚ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹੇ ਬਡ ਸਾਹਿਬ ਕੁਦਰਤਿ ਕਉਣ ਬੀਚਾਰਾ ॥
हम नान्हे नीच तुम्हे बड साहिब कुदरति कउण बीचारा ॥
हम बहुत तुच्छ एवं नीच हैं, हे मालिक ! तू महान है, हमारी इतनी हैसियत नहीं कि तुम्हारी शक्ति पर विचार कर सकें।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਗੁਰ ਦਰਸ ਦੇਖੇ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰਾ ॥੮॥੧॥
मनु तनु सीतलु गुर दरस देखे नानक नामु अधारा ॥८॥१॥
नानक का कथन है कि गुरु के दर्शनों से मन तन शीतल हो गया है और हरि-नाम ही हमारा आसरा है॥८॥१॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀ ਘਰੁ ੬
सारग महला ५ असटपदी घरु ६
सारग महला ५ असटपदी घरु ६
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਸੁਨਹੁ ਜਨ ਕਥਾ ॥
अगम अगाधि सुनहु जन कथा ॥
हे जिज्ञासुओ ! अगम्य असीम कथा सुनो;
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਅਚਰਜ ਸਭਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पारब्रहम की अचरज सभा ॥१॥ रहाउ ॥
परब्रह की सृष्टि रूपी सभा आश्चर्यजनक है॥१॥रहाउ॥।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਤਿਗੁਰ ਨਮਸਕਾਰ ॥
सदा सदा सतिगुर नमसकार ॥
सतगुरु को हमारा सदैव प्रणाम है,
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਗੁਨ ਗਾਇ ਅਪਾਰ ॥
गुर किरपा ते गुन गाइ अपार ॥
क्योंकि गुरु की कृपा से भगवान का गुणगान किया है।
ਮਨ ਭੀਤਰਿ ਹੋਵੈ ਪਰਗਾਸੁ ॥
मन भीतरि होवै परगासु ॥
इसी से मन में आलोक होता है और
ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਅਗਿਆਨ ਬਿਨਾਸੁ ॥੧॥
गिआन अंजनु अगिआन बिनासु ॥१॥
ज्ञान का सुरमा लगाने से अज्ञान नष्ट हो जाता है।॥१॥
ਮਿਤਿ ਨਾਹੀ ਜਾ ਕਾ ਬਿਸਥਾਰੁ ॥
मिति नाही जा का बिसथारु ॥
उसके प्रसार की कोई सीमा नहीं,
ਸੋਭਾ ਤਾ ਕੀ ਅਪਰ ਅਪਾਰ ॥
सोभा ता की अपर अपार ॥
उसकी शोभा अपरंपार है।
ਅਨਿਕ ਰੰਗ ਜਾ ਕੇ ਗਨੇ ਨ ਜਾਹਿ ॥
अनिक रंग जा के गने न जाहि ॥
उसके अनेक रंग हैं, जिनकी गणना नहीं की जा सकती।
ਸੋਗ ਹਰਖ ਦੁਹਹੂ ਮਹਿ ਨਾਹਿ ॥੨॥
सोग हरख दुहहू महि नाहि ॥२॥
वह खुशी एवं गम दोनों से रहित है॥२॥
ਅਨਿਕ ਬ੍ਰਹਮੇ ਜਾ ਕੇ ਬੇਦ ਧੁਨਿ ਕਰਹਿ ॥
अनिक ब्रहमे जा के बेद धुनि करहि ॥
अनेक ब्रह्मा वेदों की ध्वनि में उसकी प्रशंसा गा रहे हैं।
ਅਨਿਕ ਮਹੇਸ ਬੈਸਿ ਧਿਆਨੁ ਧਰਹਿ ॥
अनिक महेस बैसि धिआनु धरहि ॥
अनेकानेक शिवशंकर बैठकर उसी के ध्यान में निमग्न हैं।