ਬੰਨੑਿ ਉਠਾਈ ਪੋਟਲੀ ਕਿਥੈ ਵੰਞਾ ਘਤਿ ॥੨॥
बंन्हि उठाई पोटली किथै वंञा घति ॥२॥
दुनिया वालों की तरह मैंने भी गठरी बांधकर सिर पर उठाई हुई है, इसे छोड़कर कहाँ जाऊँ॥२ ॥
ਕਿਝੁ ਨ ਬੁਝੈ ਕਿਝੁ ਨ ਸੁਝੈ ਦੁਨੀਆ ਗੁਝੀ ਭਾਹਿ ॥
किझु न बुझै किझु न सुझै दुनीआ गुझी भाहि ॥
यह दुनिया छिपी हुई आग है, जिसमें कुछ समझ नहीं आता।
ਸਾਂਈਂ ਮੇਰੈ ਚੰਗਾ ਕੀਤਾ ਨਾਹੀ ਤ ਹੰ ਭੀ ਦਝਾਂ ਆਹਿ ॥੩॥
सांईं मेरै चंगा कीता नाही त हं भी दझां आहि ॥३॥
मेरे मालिक ने बहुत अच्छा किया, जो रहम करके मुझे इससे बचा लिया, अन्यथा मैंने भी इसमें जल जाना था ॥३॥
ਫਰੀਦਾ ਜੇ ਜਾਣਾ ਤਿਲ ਥੋੜੜੇ ਸੰਮਲਿ ਬੁਕੁ ਭਰੀ ॥
फरीदा जे जाणा तिल थोड़ड़े समलि बुकु भरी ॥
हे फरीद ! यदि मुझे पता होता कि ये जीवन-साँसें थोड़ी हैं तो सोच-समझ कर जीवन व्यतीत करता।
ਜੇ ਜਾਣਾ ਸਹੁ ਨੰਢੜਾ ਤਾਂ ਥੋੜਾ ਮਾਣੁ ਕਰੀ ॥੪॥
जे जाणा सहु नंढड़ा तां थोड़ा माणु करी ॥४॥
और यदि मुझे मालूम होता कि मेरा मालिक बेपरवाह है तो उसके आगे मैं बिल्कुल मान नहीं करता ॥४ ॥
ਜੇ ਜਾਣਾ ਲੜੁ ਛਿਜਣਾ ਪੀਡੀ ਪਾਈਂ ਗੰਢਿ ॥
जे जाणा लड़ु छिजणा पीडी पाईं गंढि ॥
यदि मुझे मालूम होता कि प्रेम का ऑचल टूटने वाला है तो मैं मजबूत गांठ लगा देता।
ਤੈ ਜੇਵਡੁ ਮੈ ਨਾਹਿ ਕੋ ਸਭੁ ਜਗੁ ਡਿਠਾ ਹੰਢਿ ॥੫॥
तै जेवडु मै नाहि को सभु जगु डिठा हंढि ॥५॥
हे सच्चे मालिक ! पूरी दुनिया घूम कर देख ली है, लेकिन तेरे जैसा दूसरा कोई नहीं ॥५॥
ਫਰੀਦਾ ਜੇ ਤੂ ਅਕਲਿ ਲਤੀਫੁ ਕਾਲੇ ਲਿਖੁ ਨ ਲੇਖ ॥
फरीदा जे तू अकलि लतीफु काले लिखु न लेख ॥
फरीद जी कहते हैं कि हे भाई ! यदि तू बुद्धिमान है तो अपने लिए बुरे कर्मो का हिसाब मत लिख,
ਆਪਨੜੇ ਗਿਰੀਵਾਨ ਮਹਿ ਸਿਰੁ ਨੀਂਵਾਂ ਕਰਿ ਦੇਖੁ ॥੬॥
आपनड़े गिरीवान महि सिरु नींवां करि देखु ॥६॥
बल्कि अपने गिरेबान में सिर झुका कर देख कि तू कैसा है (अच्छे काम कर रहा है कि बुरे काम) ॥ ६ ॥
ਫਰੀਦਾ ਜੋ ਤੈ ਮਾਰਨਿ ਮੁਕੀਆਂ ਤਿਨੑਾ ਨ ਮਾਰੇ ਘੁੰਮਿ ॥
फरीदा जो तै मारनि मुकीआं तिन्हा न मारे घुमि ॥
फरीद जी नम्रता की ओर बल देते हुए कहते हैं कि यदि कोई तुझे मुक्के मारता है तो पलट कर उसे मत मार।
ਆਪਨੜੈ ਘਰਿ ਜਾਈਐ ਪੈਰ ਤਿਨੑਾ ਦੇ ਚੁੰਮਿ ॥੭॥
आपनड़ै घरि जाईऐ पैर तिन्हा दे चुमि ॥७॥
बल्कि उसके पैर चूमकर अपने घर चले जाओ ॥ ७ ॥
ਫਰੀਦਾ ਜਾਂ ਤਉ ਖਟਣ ਵੇਲ ਤਾਂ ਤੂ ਰਤਾ ਦੁਨੀ ਸਿਉ ॥
फरीदा जां तउ खटण वेल तां तू रता दुनी सिउ ॥
हे फरीद ! जब तेरा कमाई करने (अर्थात् रब का नाम जपने) का समय था तो तू दुनियाँ में ही लीन रहा।
ਮਰਗ ਸਵਾਈ ਨੀਹਿ ਜਾਂ ਭਰਿਆ ਤਾਂ ਲਦਿਆ ॥੮॥
मरग सवाई नीहि जां भरिआ तां लदिआ ॥८॥
इस तरह मौत की नीव बढ़ती गई अर्थात् मौत निकट आती गई।जब जिंदगी पूरी हो गई तो पापों का बोझ लादकर चल पड़ा ॥८॥
ਦੇਖੁ ਫਰੀਦਾ ਜੁ ਥੀਆ ਦਾੜੀ ਹੋਈ ਭੂਰ ॥
देखु फरीदा जु थीआ दाड़ी होई भूर ॥
फरीद जी समझाते हैं कि हे भाई ! क्या हाल हो गया है, तेरी काली दाढ़ी भी अब सफेद हो गई है।
ਅਗਹੁ ਨੇੜਾ ਆਇਆ ਪਿਛਾ ਰਹਿਆ ਦੂਰਿ ॥੯॥
अगहु नेड़ा आइआ पिछा रहिआ दूरि ॥९॥
आगे आने वाला मौत का समय निकट आ गया है, जिंदगी का समय भी दूर रह गया है॥ ६ ॥
ਦੇਖੁ ਫਰੀਦਾ ਜਿ ਥੀਆ ਸਕਰ ਹੋਈ ਵਿਸੁ ॥
देखु फरीदा जि थीआ सकर होई विसु ॥
फरीद जी पुनः समझाते हैं कि देख ले, कैसी गुजर रही है। बुढ़ापे के कारण अब तो मीठी चीजें भी जहर की तरह कड़वी लगने लग गई हैं।
ਸਾਂਈ ਬਾਝਹੁ ਆਪਣੇ ਵੇਦਣ ਕਹੀਐ ਕਿਸੁ ॥੧੦॥
सांई बाझहु आपणे वेदण कहीऐ किसु ॥१०॥
अपने मालिक के बिना बुढ़ापे का दर्द किसे बताया जाए॥१० ॥
ਫਰੀਦਾ ਅਖੀ ਦੇਖਿ ਪਤੀਣੀਆਂ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਰੀਣੇ ਕੰਨ ॥
फरीदा अखी देखि पतीणीआं सुणि सुणि रीणे कंन ॥
फरीद जी बुढ़ापे का हाल बताते हुए कहते हैं कि देख-देखकर आँखें भी कमज़ोर हो गई हैं (अब आँखों से साफ नज़र नहीं आ रहा) और सुन-सुनकर कान भी बहरे हो गए हैं (बुढ़ापे के कारण सुनाई भी नहीं दे रहा)
ਸਾਖ ਪਕੰਦੀ ਆਈਆ ਹੋਰ ਕਰੇਂਦੀ ਵੰਨ ॥੧੧॥
साख पकंदी आईआ होर करेंदी वंन ॥११॥
जवानी गुजरते ही देह रूपी खेती पक गई है और इसने दूसरा ही रंग बना लिया है॥११ ॥
ਫਰੀਦਾ ਕਾਲੀਂ ਜਿਨੀ ਨ ਰਾਵਿਆ ਧਉਲੀ ਰਾਵੈ ਕੋਇ ॥
फरीदा कालीं जिनी न राविआ धउली रावै कोइ ॥
गुरु अमरदास जी फरीद जी के हवाले से कहते हैं कि जिसने जवानी में मालिक की बंदगी नहीं की, अब भला बुढ़ापे में वह कैसे बंदगी कर सकता है।
ਕਰਿ ਸਾਂਈ ਸਿਉ ਪਿਰਹੜੀ ਰੰਗੁ ਨਵੇਲਾ ਹੋਇ ॥੧੨॥
करि सांई सिउ पिरहड़ी रंगु नवेला होइ ॥१२॥
उचित तो यही है कि खुदा से मुहब्बत करते रहो, नया ही रंग पैदा होगा ॥१२॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਫਰੀਦਾ ਕਾਲੀ ਧਉਲੀ ਸਾਹਿਬੁ ਸਦਾ ਹੈ ਜੇ ਕੋ ਚਿਤਿ ਕਰੇ ॥
फरीदा काली धउली साहिबु सदा है जे को चिति करे ॥
गुरु अमरदास जी बाबा फरीद जी के उपरोक्त श्लोक पर व्याख्या करते हुए कहते हैं- हे फरीद ! यदि कोई मालिक को याद करे तो सदैव कर सकता है, उसके लिए जवानी या बुढ़ापे की कोई अहमियत नहीं।
ਆਪਣਾ ਲਾਇਆ ਪਿਰਮੁ ਨ ਲਗਈ ਜੇ ਲੋਚੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
आपणा लाइआ पिरमु न लगई जे लोचै सभु कोइ ॥
चाहे हर कोई उसे चाहता है, परन्तु अपने लगाने से प्रेम नहीं लगता।
ਏਹੁ ਪਿਰਮੁ ਪਿਆਲਾ ਖਸਮ ਕਾ ਜੈ ਭਾਵੈ ਤੈ ਦੇਇ ॥੧੩॥
एहु पिरमु पिआला खसम का जै भावै तै देइ ॥१३॥
यह प्रेम प्याला मालिक की बख्शिश है, जिसे चाहता है, उसे ही देता है।॥१३ ॥
ਫਰੀਦਾ ਜਿਨੑ ਲੋਇਣ ਜਗੁ ਮੋਹਿਆ ਸੇ ਲੋਇਣ ਮੈ ਡਿਠੁ ॥
फरीदा जिन्ह लोइण जगु मोहिआ से लोइण मै डिठु ॥
हे फरीद ! जिन सुन्दर आँखों ने लोगों को मोहित किया हुआ था, उनको भी मैंने देख लिया है।
ਕਜਲ ਰੇਖ ਨ ਸਹਦਿਆ ਸੇ ਪੰਖੀ ਸੂਇ ਬਹਿਠੁ ॥੧੪॥
कजल रेख न सहदिआ से पंखी सूइ बहिठु ॥१४॥
पहले तो वे काजल की रेखा को भी सहन नहीं करती थीं परन्तु अब उन पर पक्षियों के बच्चे बैठे हुए हैं।॥१४॥
ਫਰੀਦਾ ਕੂਕੇਦਿਆ ਚਾਂਗੇਦਿਆ ਮਤੀ ਦੇਦਿਆ ਨਿਤ ॥
फरीदा कूकेदिआ चांगेदिआ मती देदिआ नित ॥
हे फरीद ! भले पुरुष रोज़ पुकार कर शिक्षा देते हुए समझाते हैं परन्तु
ਜੋ ਸੈਤਾਨਿ ਵੰਞਾਇਆ ਸੇ ਕਿਤ ਫੇਰਹਿ ਚਿਤ ॥੧੫॥
जो सैतानि वंञाइआ से कित फेरहि चित ॥१५॥
जिन व्यक्तियों को शैतान ने खराब कर दिया है, उनका मन (अच्छे कामों की ओर) कैसे बदल सकता है॥१५ ॥
ਫਰੀਦਾ ਥੀਉ ਪਵਾਹੀ ਦਭੁ ॥
फरीदा थीउ पवाही दभु ॥
बाबा फरीद जी समझाते हैं कि यदि तू मालिक को पाना चाहता है तो
ਜੇ ਸਾਂਈ ਲੋੜਹਿ ਸਭੁ ॥
जे सांई लोड़हि सभु ॥
रास्ते की घास की तरह विनम्र हो जा,
ਇਕੁ ਛਿਜਹਿ ਬਿਆ ਲਤਾੜੀਅਹਿ ॥
इकु छिजहि बिआ लताड़ीअहि ॥
जिसे कोई काटता है, कोई पैरों के नीचे रोंदता है तो
ਤਾਂ ਸਾਈ ਦੈ ਦਰਿ ਵਾੜੀਅਹਿ ॥੧੬॥
तां साई दै दरि वाड़ीअहि ॥१६॥
फिर वह मालिक के दर पर पहुँचती है।॥१६॥
ਫਰੀਦਾ ਖਾਕੁ ਨ ਨਿੰਦੀਐ ਖਾਕੂ ਜੇਡੁ ਨ ਕੋਇ ॥
फरीदा खाकु न निंदीऐ खाकू जेडु न कोइ ॥
फरीद जी उपदेश देते हैं कि मिट्टी की निंदा मत करो, इस मिट्टी जैसा उपकारी कोई नहीं।
ਜੀਵਦਿਆ ਪੈਰਾ ਤਲੈ ਮੁਇਆ ਉਪਰਿ ਹੋਇ ॥੧੭॥
जीवदिआ पैरा तलै मुइआ उपरि होइ ॥१७॥
यह जीते-जी पैरों के नीचे होती है और मरने के बाद ऊपर होती है।॥१७॥
ਫਰੀਦਾ ਜਾ ਲਬੁ ਤਾ ਨੇਹੁ ਕਿਆ ਲਬੁ ਤ ਕੂੜਾ ਨੇਹੁ ॥
फरीदा जा लबु ता नेहु किआ लबु त कूड़ा नेहु ॥
फरीद जी कहते हैं कि यदि मन में लोभ ही भरा हो तो वहाँ प्रेम कैसे हो सकता है ? लोभ में किया प्रेम झूठा ही सिद्ध होता है।
ਕਿਚਰੁ ਝਤਿ ਲਘਾਈਐ ਛਪਰਿ ਤੁਟੈ ਮੇਹੁ ॥੧੮॥
किचरु झति लघाईऐ छपरि तुटै मेहु ॥१८॥
अगर छप्पर ही टूटा हुआ हो तो बरसात के दिनों में समय कैसे गुज़र सकता है, वैसे ही लोभ में प्रेम कदापि नहीं निभ सकता ॥१८॥
ਫਰੀਦਾ ਜੰਗਲੁ ਜੰਗਲੁ ਕਿਆ ਭਵਹਿ ਵਣਿ ਕੰਡਾ ਮੋੜੇਹਿ ॥
फरीदा जंगलु जंगलु किआ भवहि वणि कंडा मोड़ेहि ॥
फरीद जी शिक्षा देते हुए कहते हैं कि हे भाई ! तू पेड़-पौधों को कुचलता हुआ जंगल-जंगल क्यों घूम रहा है ?
ਵਸੀ ਰਬੁ ਹਿਆਲੀਐ ਜੰਗਲੁ ਕਿਆ ਢੂਢੇਹਿ ॥੧੯॥
वसी रबु हिआलीऐ जंगलु किआ ढूढेहि ॥१९॥
रब तो तेरे दिल में ही बस रहा है, जंगल में क्योंकर ढूंढ रहा है॥१६॥
ਫਰੀਦਾ ਇਨੀ ਨਿਕੀ ਜੰਘੀਐ ਥਲ ਡੂੰਗਰ ਭਵਿਓਮ੍ਹ੍ਹਿ ॥
फरीदा इनी निकी जंघीऐ थल डूंगर भविओम्हि ॥
फरीद जी कहते हैं- जवानी के दिनों में इन छोटी-छोटी टांगों से में मैदान एवं पहाड़ियों में घूमता फिरता रहा।
ਅਜੁ ਫਰੀਦੈ ਕੂਜੜਾ ਸੈ ਕੋਹਾਂ ਥੀਓਮਿ ॥੨੦॥
अजु फरीदै कूजड़ा सै कोहां थीओमि ॥२०॥
परन्तु बुढ़ापे के कारण आज मुझे वजु करने वाला छोटा-सा लोटा भी सौ कोस दूर लग रहा है॥२०॥
ਫਰੀਦਾ ਰਾਤੀ ਵਡੀਆਂ ਧੁਖਿ ਧੁਖਿ ਉਠਨਿ ਪਾਸ ॥
फरीदा राती वडीआं धुखि धुखि उठनि पास ॥
फरीद जी कहते हैं कि रातें अब लम्बी हो गई हैं, शरीर का अंग-अंग पीड़ा कर रहा है।