ਓਰਾ ਗਰਿ ਪਾਨੀ ਭਇਆ ਜਾਇ ਮਿਲਿਓ ਢਲਿ ਕੂਲਿ ॥੧੭੭॥
ओरा गरि पानी भइआ जाइ मिलिओ ढलि कूलि ॥१७७॥
जैसे ओला गर्मी से गल कर पानी रूप हो जाता है और ढाल पाकर बह जाता है ॥१७७॥
ਕਬੀਰਾ ਧੂਰਿ ਸਕੇਲਿ ਕੈ ਪੁਰੀਆ ਬਾਂਧੀ ਦੇਹ ॥
कबीरा धूरि सकेलि कै पुरीआ बांधी देह ॥
हे कबीर ! ईश्वर ने पंच तत्व रूपी धूल को मिलाकर शरीर रूपी पुड़िया बांधी है।
ਦਿਵਸ ਚਾਰਿ ਕੋ ਪੇਖਨਾ ਅੰਤਿ ਖੇਹ ਕੀ ਖੇਹ ॥੧੭੮॥
दिवस चारि को पेखना अंति खेह की खेह ॥१७८॥
यह शरीर चार दिन का तमाशा है, आखिरकार शरीर रूपी मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है।॥१७८ ॥
ਕਬੀਰ ਸੂਰਜ ਚਾਂਦ ਕੈ ਉਦੈ ਭਈ ਸਭ ਦੇਹ ॥
कबीर सूरज चांद कै उदै भई सभ देह ॥
हे कबीर ! सूरज चांद के उदय की तरह यह शरीर (नश्वर) है।
ਗੁਰ ਗੋਬਿੰਦ ਕੇ ਬਿਨੁ ਮਿਲੇ ਪਲਟਿ ਭਈ ਸਭ ਖੇਹ ॥੧੭੯॥
गुर गोबिंद के बिनु मिले पलटि भई सभ खेह ॥१७९॥
गुरु-परमेश्वर के मिलाप बिना सब मिट्टी हो जाता है॥१७६ ॥
ਜਹ ਅਨਭਉ ਤਹ ਭੈ ਨਹੀ ਜਹ ਭਉ ਤਹ ਹਰਿ ਨਾਹਿ ॥
जह अनभउ तह भै नही जह भउ तह हरि नाहि ॥
हे कबीर ! जहाँ परम सत्य का ज्ञान होता है, वहाँ मौत का भय नहीं होता, जहाँ सांसारिक भय हो, वहाँ ईश्वर नहीं।
ਕਹਿਓ ਕਬੀਰ ਬਿਚਾਰਿ ਕੈ ਸੰਤ ਸੁਨਹੁ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥੧੮੦॥
कहिओ कबीर बिचारि कै संत सुनहु मन माहि ॥१८०॥
कबीर जी कहते हैं कि यह बात मैंने सोच-समझ कर कही है, हे सज्जनो ! आप इसे मन लगाकर सुनो ॥१८०॥
ਕਬੀਰ ਜਿਨਹੁ ਕਿਛੂ ਜਾਨਿਆ ਨਹੀ ਤਿਨ ਸੁਖ ਨੀਦ ਬਿਹਾਇ ॥
कबीर जिनहु किछू जानिआ नही तिन सुख नीद बिहाइ ॥
हे कबीर ! जिन्होंने कुछ सत्य अथवा ज्ञान को नहीं जाना, वे बेफिक्र होकर सुख की नींद सो रहे हैं।
ਹਮਹੁ ਜੁ ਬੂਝਾ ਬੂਝਨਾ ਪੂਰੀ ਪਰੀ ਬਲਾਇ ॥੧੮੧॥
हमहु जु बूझा बूझना पूरी परी बलाइ ॥१८१॥
परन्तु जब मैंने सत्य को समझ लिया तो सब बलाएँ दूर हो गई॥१८१॥
ਕਬੀਰ ਮਾਰੇ ਬਹੁਤੁ ਪੁਕਾਰਿਆ ਪੀਰ ਪੁਕਾਰੈ ਅਉਰ ॥
कबीर मारे बहुतु पुकारिआ पीर पुकारै अउर ॥
कबीर जी कथन करते हैं- जब दुनियावी चोटें प्राप्त होती हैं तो मनुष्य उसके दर्द से बहुत चिल्लाता है।
ਲਾਗੀ ਚੋਟ ਮਰੰਮ ਕੀ ਰਹਿਓ ਕਬੀਰਾ ਠਉਰ ॥੧੮੨॥
लागी चोट मरम की रहिओ कबीरा ठउर ॥१८२॥
परन्तु हे कबीर ! जब किसी के मर्म पर चोट लगती है तो पुकारने योग्य भी नहीं ॥१८२॥
ਕਬੀਰ ਚੋਟ ਸੁਹੇਲੀ ਸੇਲ ਕੀ ਲਾਗਤ ਲੇਇ ਉਸਾਸ ॥
कबीर चोट सुहेली सेल की लागत लेइ उसास ॥
हे कबीर ! बरछे की चोट सुगम है, जिसके लगने पर कम से कम साँस तो ली जाती है।
ਚੋਟ ਸਹਾਰੈ ਸਬਦ ਕੀ ਤਾਸੁ ਗੁਰੂ ਮੈ ਦਾਸ ॥੧੮੩॥
चोट सहारै सबद की तासु गुरू मै दास ॥१८३॥
शब्द-गुरु की चोट सहना बहुत मुश्किल है, जो शब्द की चोट सहन कर ले, मैं उस गुरु का स्वयं को दास मानता हूँ॥१८३ ॥
ਕਬੀਰ ਮੁਲਾਂ ਮੁਨਾਰੇ ਕਿਆ ਚਢਹਿ ਸਾਂਈ ਨ ਬਹਰਾ ਹੋਇ ॥
कबीर मुलां मुनारे किआ चढहि सांई न बहरा होइ ॥
कबीर जी उपदेश देते हैं कि हे मुल्ला ! तू मीनार पर बांग देने के लिए क्यों चढ़ता है, बांग सुनने वाला मालिक बहरा नहीं।
ਜਾ ਕਾਰਨਿ ਤੂੰ ਬਾਂਗ ਦੇਹਿ ਦਿਲ ਹੀ ਭੀਤਰਿ ਜੋਇ ॥੧੮੪॥
जा कारनि तूं बांग देहि दिल ही भीतरि जोइ ॥१८४॥
जिसके लिए तू बांग देता है, उसको तू अपने दिल में ही देख॥ १८४ ॥
ਸੇਖ ਸਬੂਰੀ ਬਾਹਰਾ ਕਿਆ ਹਜ ਕਾਬੇ ਜਾਇ ॥
सेख सबूरी बाहरा किआ हज काबे जाइ ॥
हे शेख ! यदि मन में संतोष नहीं तो हज्ज करने के लिए काबा क्योंकर जाया जाए।
ਕਬੀਰ ਜਾ ਕੀ ਦਿਲ ਸਾਬਤਿ ਨਹੀ ਤਾ ਕਉ ਕਹਾਂ ਖੁਦਾਇ ॥੧੮੫॥
कबीर जा की दिल साबति नही ता कउ कहां खुदाइ ॥१८५॥
कबीर जी कहते हैं कि जिसका दिल ही साफ नहीं तो उसे कहाँ खुदा मिल सकता है।॥ १८५ ॥
ਕਬੀਰ ਅਲਹ ਕੀ ਕਰਿ ਬੰਦਗੀ ਜਿਹ ਸਿਮਰਤ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥
कबीर अलह की करि बंदगी जिह सिमरत दुखु जाइ ॥
कबीर जी आग्रह करते हैं कि अल्लाह की बंदगी करो, उसे याद करने से सब दुख-दर्द मिट जाते हैं।
ਦਿਲ ਮਹਿ ਸਾਂਈ ਪਰਗਟੈ ਬੁਝੈ ਬਲੰਤੀ ਨਾਂਇ ॥੧੮੬॥
दिल महि सांई परगटै बुझै बलंती नांइ ॥१८६॥
वह मालिक तो दिल में ही मिल जाता है और उसके नाम से संसार की तृष्णा बुझ जाती ॥१८६॥
ਕਬੀਰ ਜੋਰੀ ਕੀਏ ਜੁਲਮੁ ਹੈ ਕਹਤਾ ਨਾਉ ਹਲਾਲੁ ॥
कबीर जोरी कीए जुलमु है कहता नाउ हलालु ॥
कबीर जी कहते हैं कि एक तो मासूम जीव पर जोर-जबरदस्ती करके जुल्म करते हो और दूसरा इसे हलाल का नाम देते हो।
ਦਫਤਰਿ ਲੇਖਾ ਮਾਂਗੀਐ ਤਬ ਹੋਇਗੋ ਕਉਨੁ ਹਵਾਲੁ ॥੧੮੭॥
दफतरि लेखा मांगीऐ तब होइगो कउनु हवालु ॥१८७॥
जब खुदा के दफ्तर में तेरे कर्मों का हिसाब मांगा जाएगा तो तेरा क्या हाल होगा ॥ १८७ ॥
ਕਬੀਰ ਖੂਬੁ ਖਾਨਾ ਖੀਚਰੀ ਜਾ ਮਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਲੋਨੁ ॥
कबीर खूबु खाना खीचरी जा महि अम्रितु लोनु ॥
कबीर जी मांस खाने पर आपति जतलाते हुए कहते हैं कि दाल-खिचड़ी का खाना बहुत अच्छा है, जिसमें स्वादिष्ट नमकीन होता है।
ਹੇਰਾ ਰੋਟੀ ਕਾਰਨੇ ਗਲਾ ਕਟਾਵੈ ਕਉਨੁ ॥੧੮੮॥
हेरा रोटी कारने गला कटावै कउनु ॥१८८॥
जीभ के चस्के के लिए मांसाहार हेतु जीव को मारना और फिर इसकी सजा भोगने के लिए अपना गला कौन कटाए ? (मुझे यह स्वीकार नहीं) ॥१८८ ॥
ਕਬੀਰ ਗੁਰੁ ਲਾਗਾ ਤਬ ਜਾਨੀਐ ਮਿਟੈ ਮੋਹੁ ਤਨ ਤਾਪ ॥
कबीर गुरु लागा तब जानीऐ मिटै मोहु तन ताप ॥
कबीर जी कहते हैं कि गुरु से साक्षात्कार तब माना जाता है, जब मोह एवं तन के रोग मिट जाते हैं।
ਹਰਖ ਸੋਗ ਦਾਝੈ ਨਹੀ ਤਬ ਹਰਿ ਆਪਹਿ ਆਪਿ ॥੧੮੯॥
हरख सोग दाझै नही तब हरि आपहि आपि ॥१८९॥
फिर खुशी अथवा गम कोई असर नहीं करता, तब परमात्मा स्वयं होता है।॥१८६॥
ਕਬੀਰ ਰਾਮ ਕਹਨ ਮਹਿ ਭੇਦੁ ਹੈ ਤਾ ਮਹਿ ਏਕੁ ਬਿਚਾਰੁ ॥
कबीर राम कहन महि भेदु है ता महि एकु बिचारु ॥
कबीर जी कहते हैं कि राम कहने में भेद है, उस में एक समझने योग्य बात है।
ਸੋਈ ਰਾਮੁ ਸਭੈ ਕਹਹਿ ਸੋਈ ਕਉਤਕਹਾਰ ॥੧੯੦॥
सोई रामु सभै कहहि सोई कउतकहार ॥१९०॥
दशरथ पुत्र श्रीरामचन्द्र को सब लोग ‘राम’ ही कहते हैं और सर्वव्यापक लीला करने वाले रचयिता को भी राम ही कहा जाता है॥१६० ॥
ਕਬੀਰ ਰਾਮੈ ਰਾਮ ਕਹੁ ਕਹਿਬੇ ਮਾਹਿ ਬਿਬੇਕ ॥
कबीर रामै राम कहु कहिबे माहि बिबेक ॥
कबीर जी कहते हैं कि ‘राम’ ‘राम’ जपते रहो, जपने में विवेक है।
ਏਕੁ ਅਨੇਕਹਿ ਮਿਲਿ ਗਇਆ ਏਕ ਸਮਾਨਾ ਏਕ ॥੧੯੧॥
एकु अनेकहि मिलि गइआ एक समाना एक ॥१९१॥
एक राम ही अनेकानेक रूपों में सब में समाया हुआ है, एक राम ही हर दिल में बस रहा है, वह समान रूप से एक ही है ॥१९१॥
ਕਬੀਰ ਜਾ ਘਰ ਸਾਧ ਨ ਸੇਵੀਅਹਿ ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਨਾਹਿ ॥
कबीर जा घर साध न सेवीअहि हरि की सेवा नाहि ॥
कबीर जी कहते हैं कि जिस घर में साधु महापुरुषों की सेवा नहीं होती, न ही ईश्वर की पूजा-वंदना होती है,
ਤੇ ਘਰ ਮਰਹਟ ਸਾਰਖੇ ਭੂਤ ਬਸਹਿ ਤਿਨ ਮਾਹਿ ॥੧੯੨॥
ते घर मरहट सारखे भूत बसहि तिन माहि ॥१९२॥
वह घर मरघट समान है और वहाँ भूत-प्रेत ही रहते हैं।॥१६२॥
ਕਬੀਰ ਗੂੰਗਾ ਹੂਆ ਬਾਵਰਾ ਬਹਰਾ ਹੂਆ ਕਾਨ ॥
कबीर गूंगा हूआ बावरा बहरा हूआ कान ॥
कबीर जी कहते हैं कि वह जुबान से गूंगा व बावला हो जाता है, कान से बहरा (अर्थात् जिसके मन में गुरु का उपदेश अवस्थित हो जाता है, वह जुबान से किसी को अपशब्द नहीं कहता, कानों से किसी की निन्दा नहीं सुनता)”
ਪਾਵਹੁ ਤੇ ਪਿੰਗੁਲ ਭਇਆ ਮਾਰਿਆ ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਨ ॥੧੯੩॥
पावहु ते पिंगुल भइआ मारिआ सतिगुर बान ॥१९३॥
व पैरों से पिंगला हो जाता है और पैरों से चलकर किसी बुरे काम के लिए नहीं जाता, जिसको सतिगुरु ने अपने शब्द का बाण मारा ॥१६३॥
ਕਬੀਰ ਸਤਿਗੁਰ ਸੂਰਮੇ ਬਾਹਿਆ ਬਾਨੁ ਜੁ ਏਕੁ ॥
कबीर सतिगुर सूरमे बाहिआ बानु जु एकु ॥
कबीर जी कहते हैं कि पूर्णगुरु ने जिसको अपने उपदेश का एक बाण मारा,
ਲਾਗਤ ਹੀ ਭੁਇ ਗਿਰਿ ਪਰਿਆ ਪਰਾ ਕਰੇਜੇ ਛੇਕੁ ॥੧੯੪॥
लागत ही भुइ गिरि परिआ परा करेजे छेकु ॥१९४॥
उसके लगते ही अहम् मिट गया और दिल प्रेम में बिंध गया॥१६४॥
ਕਬੀਰ ਨਿਰਮਲ ਬੂੰਦ ਅਕਾਸ ਕੀ ਪਰਿ ਗਈ ਭੂਮਿ ਬਿਕਾਰ ॥
कबीर निरमल बूंद अकास की परि गई भूमि बिकार ॥
हे कबीर ! वर्षा के समय आकाश से निर्मल बूंद गिरकर बेकार ही भूमि में पड़ गई और वह किसी काम न आई।