Hindi Page 908

ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸ ਇਕ ਮੂਰਤਿ ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਕਾਰੀ ॥੧੨॥
ब्रहमा बिसनु महेस इक मूरति आपे करता कारी ॥१२॥
ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश एक परमेश्वर का ही रूप हैं और वह स्वयं ही सबकुछ करने वाला है॥ १२ ॥

ਕਾਇਆ ਸੋਧਿ ਤਰੈ ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਆਤਮ ਤਤੁ ਵੀਚਾਰੀ ॥੧੩॥
काइआ सोधि तरै भव सागरु आतम ततु वीचारी ॥१३॥
जो आत्म-तत्व का चिंतन करता है, वह अपने शरीर को शुद्ध करके भवसागर से तैर जाता है। १३॥

ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਰਵਿਆ ਗੁਣਕਾਰੀ ॥੧੪॥
गुर सेवा ते सदा सुखु पाइआ अंतरि सबदु रविआ गुणकारी ॥१४॥
गुरु की सेवा करने से सदा सुख ही प्राप्त होता है और अन्तर्मन में गुणकारी शब्द समाया रहता है। १४॥

ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਲਏ ਗੁਣਦਾਤਾ ਹਉਮੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਮਾਰੀ ॥੧੫॥
आपे मेलि लए गुणदाता हउमै त्रिसना मारी ॥१५॥
जिसने अपने अभिमान एवं तृष्णा को मिटा दिया है, गुणों के दाता ईश्वर ने स्वयं ही उसे अपने साथ मिला लिया है॥ १५ ॥

ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮੇਟੇ ਚਉਥੈ ਵਰਤੈ ਏਹਾ ਭਗਤਿ ਨਿਰਾਰੀ ॥੧੬॥
त्रै गुण मेटे चउथै वरतै एहा भगति निरारी ॥१६॥
जो माया के तीन गुणों को मिटाकर तुरीयावस्था में रहता है, यही निराली भक्ति है॥ १६॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੋਗ ਸਬਦਿ ਆਤਮੁ ਚੀਨੈ ਹਿਰਦੈ ਏਕੁ ਮੁਰਾਰੀ ॥੧੭॥
गुरमुखि जोग सबदि आतमु चीनै हिरदै एकु मुरारी ॥१७॥
गुरुमुख का योग यही है कि वह शब्द द्वारा आत्मा को पहचान ले और हृदय में ईश्वर का सिमरन करता रहे।१७ ॥

ਮਨੂਆ ਅਸਥਿਰੁ ਸਬਦੇ ਰਾਤਾ ਏਹਾ ਕਰਣੀ ਸਾਰੀ ॥੧੮॥
मनूआ असथिरु सबदे राता एहा करणी सारी ॥१८॥
शुभ आचरण यही है कि मन स्थिर हो जाए और शब्द में लीन रहे॥ १८ ॥

ਬੇਦੁ ਬਾਦੁ ਨ ਪਾਖੰਡੁ ਅਉਧੂ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰੀ ॥੧੯॥
बेदु बादु न पाखंडु अउधू गुरमुखि सबदि बीचारी ॥१९॥
हे योगी ! वेदों के वाद-विवाद एवं पाखण्ड में नहीं पड़ना चाहिए, अपितु गुरुमुख बनकर शब्द का चिंतन करना चाहिए॥ १६॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੋਗੁ ਕਮਾਵੈ ਅਉਧੂ ਜਤੁ ਸਤੁ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੨੦॥
गुरमुखि जोगु कमावै अउधू जतु सतु सबदि वीचारी ॥२०॥
हे योगी ! जो गुरुमुख बनकर योग-साधना करता है, वही यतीत्व, सदाचारी है और शब्द का चिंतन करता है॥ २o ॥

ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਮਨੁ ਮਾਰੇ ਅਉਧੂ ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੨੧॥
सबदि मरै मनु मारे अउधू जोग जुगति वीचारी ॥२१॥
हे योगी ! जिसने शब्द द्वारा अपने अभिमान को मिटाकर मन को नियंत्रण में कर लिया है, उसने ही योग-युक्ति को पहचाना है॥ २१॥

ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਭਵਜਲੁ ਹੈ ਅਵਧੂ ਸਬਦਿ ਤਰੈ ਕੁਲ ਤਾਰੀ ॥੨੨॥
माइआ मोहु भवजलु है अवधू सबदि तरै कुल तारी ॥२२॥
हे योगी ! माया मोह के भवसागर से गुरु शब्द द्वारा पार हुआ जाता है और अपने कुल-परिवार को भी पार किया जा सकता है। ॥२२॥

ਸਬਦਿ ਸੂਰ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਅਉਧੂ ਬਾਣੀ ਭਗਤਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੨੩॥
सबदि सूर जुग चारे अउधू बाणी भगति वीचारी ॥२३॥
हे योगी ! चारों युगों में वही शूरवीर माना गया है, जिसने शब्द का चिंतन एवं वाणी द्वारा प्रभु की भक्ति की है॥ २३॥

ਏਹੁ ਮਨੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿਆ ਅਉਧੂ ਨਿਕਸੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੨੪॥
एहु मनु माइआ मोहिआ अउधू निकसै सबदि वीचारी ॥२४॥
हे योगी ! यह मन माया के मोह में फँसा हुआ है जो शब्द के चिंतन द्वारा ही इससे निकल सकता है।॥ २४॥

ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ॥੨੫॥੯॥
आपे बखसे मेलि मिलाए नानक सरणि तुमारी ॥२५॥९॥
नानक कहते हैं कि हे परमेश्वर ! जो तेरी शरण में आता है, तू उसे क्षमा करके अपने साथ मिला लेता है ॥२५ ॥ ६ ॥

ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੩ ਅਸਟਪਦੀਆ
रामकली महला ३ असटपदीआ
रामकली महला ३ असटपदीआ

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਸਰਮੈ ਦੀਆ ਮੁੰਦ੍ਰਾ ਕੰਨੀ ਪਾਇ ਜੋਗੀ ਖਿੰਥਾ ਕਰਿ ਤੂ ਦਇਆ ॥
सरमै दीआ मुंद्रा कंनी पाइ जोगी खिंथा करि तू दइआ ॥
हे योगी ! मेहनत एवं शालीनता की कानों में मुद्राएँ धारण कर और दया को तू अपनी कफनी बना।

ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ਬਿਭੂਤਿ ਲਾਇ ਜੋਗੀ ਤਾ ਤੀਨਿ ਭਵਣ ਜਿਣਿ ਲਇਆ ॥੧॥
आवणु जाणु बिभूति लाइ जोगी ता तीनि भवण जिणि लइआ ॥१॥
यदि तू जन्म-मरण की भय रूपी विभूति अपने शरीर पर लगा ले तो समझ लेना तीनों लोकों को जीत लिया है। १॥

ਐਸੀ ਕਿੰਗੁਰੀ ਵਜਾਇ ਜੋਗੀ ॥
ऐसी किंगुरी वजाइ जोगी ॥
हे योगी ! ऐसी वीणा बजाना,

ਜਿਤੁ ਕਿੰਗੁਰੀ ਅਨਹਦੁ ਵਾਜੈ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जितु किंगुरी अनहदु वाजै हरि सिउ रहै लिव लाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जिस वीणा से तेरे मन में अनहद शब्द बजता रहे और परमात्मा में तेरा ध्यान लगा रहे॥ १॥ रहाउ ॥

ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਪਤੁ ਕਰਿ ਝੋਲੀ ਜੋਗੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਭੁਗਤਿ ਪਾਈ ॥
सतु संतोखु पतु करि झोली जोगी अम्रित नामु भुगति पाई ॥
हे योगी ! सत्य-संतोष को अपना पात्र एवं झोली बना और उसमें नामामृत रूपी भोजन डाल।

ਧਿਆਨ ਕਾ ਕਰਿ ਡੰਡਾ ਜੋਗੀ ਸਿੰਙੀ ਸੁਰਤਿ ਵਜਾਈ ॥੨॥
धिआन का करि डंडा जोगी सिंङी सुरति वजाई ॥२॥
तू ध्यान को अपना डंडा बना और अपनी सुरति को बजाने वाली सिंगी बना ॥२॥

ਮਨੁ ਦ੍ਰਿੜੁ ਕਰਿ ਆਸਣਿ ਬੈਸੁ ਜੋਗੀ ਤਾ ਤੇਰੀ ਕਲਪਣਾ ਜਾਈ ॥
मनु द्रिड़ु करि आसणि बैसु जोगी ता तेरी कलपणा जाई ॥
हे योगी ! अपने मन को स्थिर करके आसन लगाकर बैठ, तो तेरी कल्पना मिट जाएगी।

ਕਾਇਆ ਨਗਰੀ ਮਹਿ ਮੰਗਣਿ ਚੜਹਿ ਜੋਗੀ ਤਾ ਨਾਮੁ ਪਲੈ ਪਾਈ ॥੩॥
काइआ नगरी महि मंगणि चड़हि जोगी ता नामु पलै पाई ॥३॥
यदि तू शरीर रूपी नगरी में भिक्षा मांगने जाएगा तो तुझे नाम-दान प्राप्त होगा ॥ ३॥

ਇਤੁ ਕਿੰਗੁਰੀ ਧਿਆਨੁ ਨ ਲਾਗੈ ਜੋਗੀ ਨਾ ਸਚੁ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥
इतु किंगुरी धिआनु न लागै जोगी ना सचु पलै पाइ ॥
हे योगी ! यदि इस वीणा द्वारा ध्यान नहीं लगता तो तुझे सत्य की प्राप्ति नहीं होगी।

ਇਤੁ ਕਿੰਗੁਰੀ ਸਾਂਤਿ ਨ ਆਵੈ ਜੋਗੀ ਅਭਿਮਾਨੁ ਨ ਵਿਚਹੁ ਜਾਇ ॥੪॥
इतु किंगुरी सांति न आवै जोगी अभिमानु न विचहु जाइ ॥४॥
यदि इस वीणा द्वारा शान्ति नहीं मिलती तो तेरे मन का अभिमान दूर नहीं होता ॥४॥

ਭਉ ਭਾਉ ਦੁਇ ਪਤ ਲਾਇ ਜੋਗੀ ਇਹੁ ਸਰੀਰੁ ਕਰਿ ਡੰਡੀ ॥
भउ भाउ दुइ पत लाइ जोगी इहु सरीरु करि डंडी ॥
हे योगी ! तू अपनी वीणा को परमात्मा के भय एवं प्रेम के दो तूंबे लगा और शरीर को इसकी डण्डी बना।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵਹਿ ਤਾ ਤੰਤੀ ਵਾਜੈ ਇਨ ਬਿਧਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਖੰਡੀ ॥੫॥
गुरमुखि होवहि ता तंती वाजै इन बिधि त्रिसना खंडी ॥५॥
यदि तू गुरुमुख बन जाए तो तेरे प्रेम की तंती तेरे हृदय में बजती रहेगी और इस विधि से तेरी तृष्णा नाश हो जाएगी ॥५॥

ਹੁਕਮੁ ਬੁਝੈ ਸੋ ਜੋਗੀ ਕਹੀਐ ਏਕਸ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥
हुकमु बुझै सो जोगी कहीऐ एकस सिउ चितु लाए ॥
वही सच्चा योगी कहलाता है, जो परमेश्वर से चित्त लगाता है और उसके हुक्म को बूझता है।

ਸਹਸਾ ਤੂਟੈ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਵੈ ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਇਵ ਪਾਏ ॥੬॥
सहसा तूटै निरमलु होवै जोग जुगति इव पाए ॥६॥
उसका सन्देह मिट जाता है, मन निर्मल हो जाता है और इस तरह योग की युक्ति को हासिल कर लेता है॥ ६ ॥

ਨਦਰੀ ਆਵਦਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਬਿਨਸੈ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
नदरी आवदा सभु किछु बिनसै हरि सेती चितु लाइ ॥
जो कुछ नजर आ रहा है, वह नाशवान है। इसलिए परमात्मा में ही अपना चित्त लगाओ।

ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਲਿ ਤੇਰੀ ਭਾਵਨੀ ਲਾਗੈ ਤਾ ਇਹ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥੭॥
सतिगुर नालि तेरी भावनी लागै ता इह सोझी पाइ ॥७॥
यह सूझ तुझे तभी होगी, जब सतगुरु से तेरी श्रद्धा बन जाएगी॥ ७॥

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